भ्रमरगीत से क्या आशय है

भ्रमरगीत से आशय - भ्रमरगीत भारतीय काव्य की एक पृथक काव्यपरम्परा है। हिन्दी में सूरदास, नंददास, परमानंददास, मैथिलीशरण गुप्त और जगन्नाथदास रत्नाकर ने भ्रमरगीत की रचना की है। भारतीय साहित्य में 'भ्रमर' रसलोलुप नायक का प्रतीक माना जाता है।

हिन्दी काव्य में भ्रमरगीत का मूलस्रोत, श्रीमद्भागवत पुराण है जिसके दशम स्कंध के 46वें एवं 47वें अध्याय में भ्रमरगीत प्रसंग है। श्रीकृष्ण गोपियों को छोङकर मथुरा चले गए और गोपियाँ विरह विकल हो गई। कृष्ण मथुरा में लोकहितकारी कार्यों में व्यस्त थे।

किन्तु उन्हें ब्रज की गोपियों की याद सताती रहती थी। उन्होंने अपने अभिन्न मित्र उद्धव को संदेशवाहक बनाकर गोकुल भेजा। वहां गोपियों के साथ उनका वार्तालाप हुआ तभी एक भ्रमर वहां उड़ता हुआ आ गया।

गोपियों ने उस भ्रमर को प्रतीक बनाकर अन्योक्ति के माध्यम से उद्धव और कृष्ण पर जो व्यंग्य किए एवं उपालम्भ दिए उसी को ’भ्रमरगीत’ के नाम से जाना गया। भ्रमरगीत प्रसंग में निर्गुण का खण्डन, सगुण का मण्डन तथा ज्ञान एवं योग की तुलना में प्रेम और भक्ति को श्रेष्ठ ठहराया गया है।

भ्रमरगीत में श्रीकृष्ण को क्या कहा गया है

भ्रमरगीत में श्री कृष्ण को काले भवरे की उपाधि दी है। जब उद्धव गोपियों को समझाने के लिए मथुरा से वृंदावन आता है। और गोपियों को समझाता है, परंतु वह गोपीयो समझने के बजाय, उद्धव को ही प्रेम के बारे में बताने लगते है, उस समय गोपियों ने श्री कृष्ण को काले भवरे की उपाधि दी है।

भ्रमरगीत सार किसकी रचना है

भ्रमरगीत सार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित किया गया हैं। यह महाकवि सूरदास के पदों का संग्रह है। उन्होने सूरसागर के भ्रमरगीत से लगभग 400 पदों को छांटकर उनको 'भ्रमरगीत सार' के रूप में प्रकाशित कराया था।

भ्रमरगीत की क्या विशेषता है

भ्रमरगीत एक भाव प्रधान काव्य है। इसमे वियोग श्रृंगार रस का मार्मिक चित्रण किया गया है। गोपियों की, सहृदयता, व्यंग्यात्मकता सर्वथा सराहनीय है। उन्होंने अपनी इसी कला के माध्यम से उद्धव जैसे विद्वान व्यक्ति को चुप करा दिया। इसमे कृष्ण से वियोग मे व्याकुल गोपियों का वर्णन किया गया हैं। उद्धो कृष्ण का सन्देस लेकन गोपियों को ज्ञान देने के उदेश्य से वृंदावन आता हैं। और गोपियों के प्रेम को देखकर भावविभोर हो जाता हैं।

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