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सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ था

सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 19 को अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक गांव में हुआ था जो कि उत्तराखंड में स्थित है इनके पिताजी का नाम गंगाधरपंत और माताजी का नाम सरस्वती देवी था। 

पंत के जन्म के कुछ ही समय बाद उनकी माता जी का निधन हो गया था। पंत जी का पालन पोषण उसकी दादी जी ने किया पंथ साथ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे बचपन में इनका नाम गोसाई दत्त रखा था उनको यह नाम पसंद नहीं आया इसलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया सिर्फ 7 साल की उम्र में ही पंत ने कविता लिखना प्रारंभ कर दिया था 

पंत जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा से पूरी की हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए 18 वर्ष की उम्र में अपने भाई के पास बनारस चले गए हाई स्कूल के पढ़ाई पूरी करने के बाद बंद इलाहाबाद गए और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया सत्याग्रह आंदोलन के समय पंत अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर महात्मा गांधी का साथ देने के लिए आंदोलन में चले गए बंद फिर कभी अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सकते परंतु घर पर ही उन्होंने हिंदी संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन जारी रखा।

1918 के आसपास तक वे हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे वर्ष 1926 27 में पंत जी के प्रसिद्ध काव्य संकलन पल्लव का प्रसारण हुआ। जिसके गीत सौंदर्य था और पवित्रता का साक्षात्कार करते हैं। कुछ समय बाद वे अल्मोड़ा आ गए। जहां वे मार्क्स और फाइट की विचारधारा से प्रभावित हुए थे। वर्ष 1938 में पंत जी रूपाभ नाम का एक मासिक पत्र शुरू किया। वर्ष 1955 से 1965 तक आकाशवाणी से जुड़े रहे और मुख्य निर्माता के पद पर कार्य किया।

सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियां हैं ग्रंथि गुंजन गांव में योगदान स्वर्ण किरण स्वर्ण डोली कला और बूढ़ा चांद लोकायन चिदंबरा सत्य काम आदि। उनके जीवनकाल में उनकी 28 पुस्तकें प्रकाशित हुई जिनमें कविताएं पाठ्य नाटक और निबंध शामिल हैं परंतु अपने स्वीकृत समय में एक विचारक दार्शनिक और मानवतावादी के रूप में सामने आते हैं किंतु उनके सबसे कलात्मक कविताएं पल्लव में संकलित हैं जो 1918 से 1924 तक लिखी गई 32 कविताओं का संग्रह है।

पन्तजी को साहित्य अकादमी तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार भी प्राप्त हुए। भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण अलंकार से सम्मानित किया । हिन्दी का यह अलंकार 29 दिसम्बर, 1977 को हिन्दी संसार को सूना कर चला गया। 

रचनाएँ - पन्तजी दीर्घकाल तक सरस्वती की सेवा करते रहे। उनकी निम्नलिखित रचनाएँ सरस्वती के भण्डार के रत्न हैं - (1) पल्लव, (2) युगान्त, (3) ग्राम्या, (4) स्वर्ण किरण, (5) उत्तरा, (6) अतिमा, (7) ग्रन्थि, (8) लोकायतन, (9) कला और बूढ़ा चाँद।

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