भाषा मनुष्यों द्वारा उपयोग की जाने वाली संचार की प्रणाली है, जिसमें भाषण, इशारे और लेखन शामिल हैं। अधिकांश भाषाओं में मूल ध्वनि या हावभाव और उसके अर्थ को लिखने के लिए लेखन प्रणाली होती है।
किसी भी भाषा की संरचना उसका व्याकरण है जिसमे उसकी शब्दावली निहित होती है। भाषाएं मनुष्यों के संचार का प्राथमिक साधन हैं, और इन्हें भाषण, संकेत या लेखन के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषाओं में लेखन प्रणालियाँ होती हैं। जो ध्वनियों या संकेतों को सहेज कर रखती हैं।
आज इस पोस्ट में हम आपसे बात करने वाले हैं। भाषा-बोली, लिपि और व्याकरण के बारे में। इस पोस्ट में हम विस्तार से जानेंगे की भाषा किसे कहते हैं? बोली क्या है? लिपि क्या है? तथा इनसे व्याकरण किस प्रकार संबंधित है।
भाषा किसे कहते हैं
भाषा का उपयोग हम अक्सर बोलने, पढ़ने और लिखने के लिए करते हैं। यह दुसरो को अपना भाव प्रगट करने का एक जरिया है। जिससे हम अपने बात को सामने वाले तक पहुंचते है। यह कई प्रकार के हो सकते है।
भाषा की संरचना इसका व्याकरण है और मुक्त घटक इसकी शब्दावली है। सबसे व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषाओं में लेखन प्रणालियाँ होती हैं जो ध्वनियों या संकेतों को रिकॉर्ड करने में सक्षम बनाती हैं।
परिभाषा - भाषा भाष धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है सुचना। इस प्रकार भाषा एक प्रकार के सुचना का काम करता है। अपने भावों विचारों को व्यक्त करने का यह सिर्फ एक माध्यम नहीं है इसके अलावा और भी माध्यम हैं लेकन भाषा एक ऐसा माध्यम है जिसका की प्रयोग वृहद मात्रा में किया जाता है।
भाषा हमारे मन में उठे विचार को किसी को बताने के लिए उपयोग में लाया जाता है। लोगों के पास परस्पर सम्पर्क का माध्यम ही भाषा है। इसके माध्यम से ही दुनिया में कहि भी किसी भी जगह के लोग उनकी बातों को समझ सकते हैं।
भाषा बोली का ही बड़ा भाग है जिसमें की ग्रामर का प्रयोग किया जाता है तथा जो सुव्यवस्थित ढंग से लिखा, पढ़ा और बोला जाता है। यदि भाषा न होती तो ज्ञान का प्रचार-प्रसार भी नही होता और इतनी आसानी से संवाद सम्भव नहीं होता।
किसी अन्य जीव की तुलना मे मानव भाषा अद्वितीय है इसमें संचार के लिए एक ही तरीके पर निर्भर करता है। संस्कृतियों और समय भाषा प्रणालियों पर गहरा प्रभाव डालती है।
मानव भाषाओं में उत्पादकता और विस्थापन के गुण होते हैं और वे सामाजिक परंपरा पर निर्भर होते हैं। दुनिया में भाषाओं की संख्या 5,000 से 7,000 के बीच है। भाषाओं और बोलियों के बीच अंतर पाया जाता हैं।
भाषा विशेष रूप से व्याकरण और अन्य नियमों और मानदंडों को संदर्भित करती है जो मनुष्यों को उच्चारण और ध्वनियों को इस तरह से समझने की अनुमति देती है कि अन्य लोग समझ सकें।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के अनुशार भाषा वह है "जो हमें इंसान बनाती है। भाषा क्या है इसकी खोज के लिए सदियों से इसके विकास ने मानव विकास में केंद्रीय भूमिका निभाई है।
यदि भाषा मानव जाति का सबसे बड़ा आविष्कार है, तो यह सबसे बड़ी विडंबना है कि वास्तव में इसका आविष्कार कभी नहीं हुआ था। दरअसल, दुनिया के दो सबसे प्रसिद्ध भाषाविदों का कहना है कि भाषा की उत्पत्ति आज भी उतनी ही रहस्यपूर्ण है जितनी बाइबिल के समय में थी।
भाषा की उत्पत्ति
भाषा जीवन का एक निरंतर विकसित होने वाला हिस्सा है, कुछ ऐसा जो उपयोग के प्रत्येक गुजरते उदाहरण के साथ बदलता है। आखिरकार, यह संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, यही वजह है कि यहां कई अलग-अलग भाषाएं और बोलियां पाई जाती हैं। लेकिन यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न को भी जन्म देता है: भाषा की उत्पत्ति क्या है? क्या हम इसे अपने सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश से सीखते हैं, या हम इसके साथ पैदा हुए हैं?
इसी तरह का एक तर्क भाषाविज्ञान की दुनिया में काफी समय से चल रहा है। एक ओर यह धारणा है कि भाषा संस्कृति का हिस्सा है, वास्तव में, वह भाषा संस्कृति का ही विस्तार है, और इसलिए पूरी तरह से इस पर निर्भर है।
यह धारणा इस तथ्य की पुष्टि करती है कि भाषा हमेशा पर्यावरण संस्कृति के साथ हाथ से विकसित हुई है।
भाषा की उत्पत्ति और इससे जुड़े सभी सवालों के बारे में विद्वान और वैज्ञानिक सदियों से बहस कर रहे हैं। द लिंग्विस्टिक सोसाइटी ऑफ़ पेरिस - भाषाओं के अध्ययन के लिए समर्पित एक संगठन - ने वास्तव में 1886 में इस मुद्दे पर किसी भी बहस पर प्रतिबंध लगा दिया और कई वर्षों तक इसे वापस नहीं लिया। लेकिन यह बहस का ऐसा विषय क्यों है?
शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि भाषा एक ऐसा अनूठा और जटिल कौशल है। यह कुछ ऐसा है जो केवल मनुष्य ही कर सकता है। वर्षों से वानरों को बोलना सिखाने के कई प्रयास हुए हैं, और विशेष रूप से चिंपैंजी - जो मानव के सबसे करीबी जीवित रिश्तेदार हैं।
हालांकि, किसी अन्य जानवर के पास हमारे बोलने के तरीके के लिए आवश्यक मुखर विकृति नहीं है। यहां तक कि चिंपांजी को सांकेतिक भाषा सिखाने का प्रयास भी बेकार साबित हुआ है, जिसमें कोई भी जानवर दो साल के इंसान के स्तर से ऊपर का कौशल नहीं दिखाता है।
ऐसा लगता है कि एक प्राणी को इंसान की तरह बोलने के लिए तीन चीजों की जरूरत होती है, वह है इंसान का दिमाग, इंसान का वोकल कॉर्ड और इंसान की बुद्धि।
भाषा विकास के निरंतरता सिद्धांत यह मानते हैं कि यह धीरे-धीरे विकसित हुआ होगा, मनुष्यों के शुरुआती पूर्वजों के बीच, विभिन्न चरणों में विकसित होने वाली विभिन्न विशेषताओं के साथ, जब तक कि लोगों के भाषण आज हमारे पास नहीं हैं।
भाषा के प्रकार
भाषा के भेद - भाषा के तीन भेद होते है, मौखिक भाषा, लिखित भाषा और सांकेतिक भाषा। आइये अब इन सभी भाषा के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मौखिक भाषा किसे कहते हैं
यह एक ऐसी भाषा है जो सामान्य तौर पर बोली जाती है जो एक लिखित भाषा के विपरीत, मुखर ध्वनियों द्वारा निर्मित होती है। मौखिक भाषा में ध्वनि के माध्यम से शब्दो का निर्माण किया जाता है। और सामने वाले तक अपनी बात बहुचायी जाती है।
मैखिक भाषा बोलकर या आवाज के माध्यम से हमारे मन के भावों तथा विचारों का आदान प्रदान करते हैं।ऐसी भाषा को मौखिक भाषा कहते हैं। साथ ही मौखिक भाषा को कथित भाषा भी कहते हैं। यहाँ मौखिक भाषा के कुछ उदाहरण है जहां दो लोग अपने विचार को एक दूसरे के साथ शेयर कर रहे हैं।
- यार आज मंत्री जी ने बड़े कमाल का भाषण दिया।
- अरे भोलू तुम्हें पता है कल हमारे स्कुल में खुब बातें हुई।
- वो लड़का बहुत बोलता है।
लिखित भाषा किसे कहते हैं
लिखित भाषा संचार का लिखित रूप है जिसमें पढ़ना और लिखना दोनों शामिल हैं। यद्यपि लिखित भाषा को पहले अपने लिखित रूप में केवल मौखिक भाषा माना जा सकता है, दोनों मौखिक भाषा के नियमों में काफी भिन्न हैं, जबकि लिखित भाषा स्पष्ट शिक्षा के माध्यम से हासिल की जाती है।
लिखित भाषा, चाहे पढ़ना हो या लिखना, दोनों के लिए बुनियादी भाषा क्षमताओं की आवश्यकता होती है। इनमें ध्वन्यात्मक प्रसंस्करण शब्दावली और वाक्य रचना शामिल हैं। कुशल पढ़ने और लिखने के लिए अर्थ निर्माण के लिए जो पढ़ा या लिखा जा रहा है, उसके बारे में जागरूकता की आवश्यकता होती है।
मौखिक भाषा में बोल या सुनकर विचार आदान-प्रदान किया जाता है। ठीक उसी प्रकार यहां पर लिखित भाषा में किसी भी विचार का आदान-प्रदान लिखकर या पढ़कर किया जाता है। जो की लखित रूप में होता है। जैसे -
- शिवा ने अपने बेटे को पत्र में लिखा वह सकुशल है।
- रामचरित मानस का दोहा तुलसीदास ने लिखा है।
सांकेतिक भाषा किसे कहते हैं
सांकेतिक भाषा हाथ के संकेतों, हावभाव, चेहरे के भाव और शरीर की भाषा के माध्यम से संवाद करने का एक साधन है।
यह बधिर और कम सुनने वाले समुदाय के लिए संचार का मुख्य रूप है, लेकिन सांकेतिक भाषा लोगों के अन्य समूहों के लिए भी उपयोगी हो सकती है। ऑटिज्म, वाक् की शिथिलता, सेरेब्रल पाल्सी और डाउन सिंड्रोम सहित विकलांग लोगों को भी संचार के लिए सांकेतिक भाषा फायदेमंद लग सकती है।
भाषा के जिस रूप से भावों को संकेतों मतलब हम इशारों से बात करते हैं उसे सांकेतिक भाषा कहा जाता है अक्सर अपने मुखबधित लोगो को इस तरह वार्ता करते देखा होगा।
- गाल पर हथेली रख के मारने का इशारा करना।
- किसी को बाय करना हाथ ऊपर करके।
- हाथ हिलाकर हाय करना आदि।
तो इस प्रकार हमने सीधे और सरल भाषा में जाना भाषा के भेद के बारे में हालांकि यहां पर भाषा के प्रकारों के बारे में नहीं बताया गया है। जिसे हम अपने अगले आने वाले पोस्ट में कवर करने की कोशिश करेंगे।
फिर भी यहां थोड़ा सा डिसकस कर लेते हैं भाषा के प्रकार के बारे में- भाषा किसी भी राष्ट्र का गौरव होती हैं। हमारे भारत के लिए बड़े दुःख की बात यह है की, यहां अभी तक राष्ट्र भाषा का चुनाव नहीं किया जा सका है। और हिंदी हमारे देश की राजभाषा ही बन कर रह गई है। यह सिर्फ हमारे देश की भाषा नहीं है बल्कि यह कई राज्यों और देशों में बोली जाती है।
हमारे भारत में लगभग 800 भाषा है, जिनमे से प्रमुख भाषा निम्नलिखित हैं - हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, उड़िया, मराठी, तेलुगू, कन्नड़, बंगाली, तमिल, उर्दू आदि। हमारे देश में लगभग 800 भाषा है ।
बोली किसे कहते हैं
बोली, भाषा के ठीक विपरीत है। एक छोटे से क्षेत्र में बोली जाने वाली मौखिक भाषा को बोली कहते हैं। जैसे की ब्रज, अवधि, भोजपुरी छत्तीसगढ़ी आदि। इस प्रकार की भाषाओं के लिए कोई व्याकरण नहीं होता है। इस कारण इन्हें बोली के रूप में रखा जाता है। सुनने में आया है की छत्तसगढ़ी बोली को राज भाषा बनाने की तैयारी चल रही है जिसके लिए व्याकरण का निर्माण कियाजा रहा है।
बोली में यही समस्या होती है की इसमें किसी भी प्रकार का कोई व्याकरण नहीं होता है और बोली सिमित मात्रा में किसी क्षेत्र विशेष में बोली जाती है। चलिए जानते है बोली और भाषा में क्या अंतर होता है।
भाषा और बोली में अंतर
- भाषा का एक विस्तृत क्षेत्र होता है जिसमे बहुत सारे लोग इसे बोलते हैं जबकि बोली का क्षेत्र छोटा या सीमित होता है जिसमें बोला जाता है।
- भाषा का मान रूप होता है लेकिन बोली में किसी भी प्रकार के मानक बोली नहीं होती है।
- मानक भाषा का लिखित रूप होता है लेकिन बोली का कोई लिखित रूप नहीं होता है और होती है तो यह मान्यता मौखिक होती है।
- भाषा का अपना साहित्य होता है, जबकि बोली का प्रायः लोकसाहित्य में मिलती है। लोकसाहित्य मतलब एक सीमित क्षेत्र में रचना किया गया साहित्य जो की ज्यादा प्रसिद्ध नहीं होता है।
भारतीय भाषाएँ - भारत में अगर हम बोली की बात करें तो यहां बहुत सारी बोलियाँ बोली जाती हैं। जिनको की भाषा का दर्जा देना या मान्यता देना असम्भव है, क्योंकि इनका कोई व्याकरण नही है या ये सिर्फ लौकिक रूप से प्रसिद्ध हैं लिखित रूप में नही। हमारे भारत में कुल 22 भाषाओं को भाषा का दर्जा दिया गया है। जो की इस प्रकार है -
न. | भाषा |
---|---|
1. | मलयालम |
2. | कोंकणी |
3. | असमिया |
4. | मैथिलि |
5. | संथाली |
6. | पंजाबी |
7. | सिंधी |
8. | कश्मीर |
9. | तमिल |
10. | गुजराती |
11. | डोगरी |
12. | बोडो |
13. | नेपाली |
14. | संस्कृत |
15. | कन्नड़ |
16. | उर्दू |
17. | मराठी |
17. | बंगला |
19. | तेलुगू |
20. | उड़िया |
21. | मणिपुरी |
22. | हिंदी |
हिंदी - भारत में अगर बोली की बात करें तो भारत में कुल बोली की संख्या 1652 बोलियां हैं जो की बोली जातीं हैं और समझी जाती हैं लेकिन हिंदी ऐसी बोली है जो की सबसे ज्यादा बोली और समझी जाती है। जिसके कारण इसे संविधान में राजभाषा का दर्जा दिया गया है।
अपने समृद्ध साहित्य और विभिन्न प्रकार के फिल्मों, रेडियो, टेलीविजन आदि में इस हिंदी भाषा का प्रयोग बड़ी मात्रा में होता है, जिसके कारण यह और भी अत्यधिक प्रचलित होता जा रहा है। और यह सिर्फ हमारे देश की सम्पर्क भाषा नहीं है बल्कि अब विदेशों में बोली जानी भाषा के रूप में प्रचलित होती जा रही है। वैसे भी विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा में हिंदी का दूसरा स्थान है।
लिपि किसे कहते हैं
मुख से निकलने वाली ध्वनियों को लिखकर एक भाषा को पुस्तकों या किसी दस्तावेज में संग्रहित किया जाता है ताकि कोई भी उसको पढ़कर जानकारी हासिल कर सके। लिखने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है उसे लिपि कहते है।
सभी उन्नत भषाओं की अपनी अलग लिपि होती है। लेकिन कई भाषाओ में एक ही लिपि का उपयोग किया जाता है। यह प्राचीन भाषा से विकसित भाषा होती है। जैसे - हिंदी और संस्कृत की लिपि देवनागरी लिपि है। संस्कृत से हिंदी का विकास हुआ है।
आइये देखते हैं कुछ भाषा और लिपियों के बारे में किस प्रकार की लिपि का प्रयोग किया जाता है?
भाषा | भलिपि |
---|---|
अंग्रेजी | रोमन |
कश्मीरी | शारदा |
मराठी/नेपाल | देवनागरी |
उर्दू-फारसी | फ़ारसी |
पंजाबी | गुरुमुखी |
व्याकरण किसे कहते हैं
व्याकरण का अर्थ है - विश्लेषण करना। विश्लेषण का मतलब विस्तार से किसी भाषा का अध्ययन कर उस भाषा से संबंधित सभी जानकारी अर्थात अर्थात छोटी से छोटी जानकारी का होना विश्लेषण कहलाता है। इस प्रकार भाषिक व्यवहार के विश्लेषण के आधार पर भाषा के जो नियम बनाये गए, उन्हें व्याकरण कहते हैं तथा किसी भी भाषा के शुद्ध रूप का बोध कराने वाले शास्त्र को व्याकरण कहते हैं।
व्याकरण किसी भी भाषा के लिए अत्यंत आवश्यक है -
व्याकरण, भाषा को परिमार्जित करके उसे मानक रूप प्रदान करता है।
व्याकरण, भाषा को शुद्ध रूप में बोलना और लिखना सिखाता है।
उसके अंगों प्रत्यांगों का बोध कराता है।
शब्दों के असुद्ध प्रयोग पर कड़ा अनुशासन रखता है।
उसे व्यवस्थित करके नियम बनाता है।
उसकी प्रयोग-विधि पर विचार करता है।
व्याकरण के तीन भेद होते हैं -
- वर्ण-विचार
- शब्द-विचार
- वाक्य-विचार
वर्ण-विचार - वर्ण-विचार में शब्दों के बनावट, उच्चारण, लेखन आदि पर विचार किया जाता है।
शब्द-विचार - शब्द- विचार में शब्दों के विभिन्न भेद, रूप, उत्पत्ति व प्रयोग आदि के विषय पर विचार किया है।
वाक्य-विचार - वाक्य-विचार में वाक्य रचना, प्रकार, प्रयोग, विराम-चिन्ह आदि के विषय पर विचार किया जाता है।
सारांश - मन के विचारों का आदान-प्रदान करना ही भाषा कहलाता है। भाषा के तीन भेद मौखिक, लिखित तथा सांकेतिक भाषा हैं। व्याकरण भाषा का शुद्ध रूप बोलना और लिखना सिखाता है।