सौर परिवार की उत्पत्ति कैसे हुई - origin of solar system in hindi

हमारे चारों ओर दूर-दूर तक फैला आकाश, एक महासमुद्र की भांति है, इसको ही अन्तरिक्ष कहते हैं। प्राचीनकाल से ही वैज्ञानिकों द्वारा इसके गूढ़ रहस्यों का पता लगाने का प्रयास किया जाता रहा है। आज तो मानव निर्मित उपग्रहों, राकेटो, विशालकाय स्वयं-नियंत्रित इलेक्ट्रॉनिक दूर्बानों एवं वेधशालाओं से इसका निरन्तर अध्ययन किया जा रहा है। 

सौर परिवार की उत्पत्ति कैसे हुई

यह बाहरी आकाश या अन्तरिक्ष आश्चर्य से भरे अनेक स्वरूपों एवं तथ्यों का अनन्त भण्डार है। अभी तक जो भी खोज हो पायी है उसके आधार पर इसके विस्तार को अनन्त ही कहा जा सकता है, क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा विशेष शक्तिशाली अतिसंवेदनशील एवं इलेक्ट्रॉनिक दूदर्बानों, उपग्रहों के टेलीविजन कैमरों तथा दूर्बानों से अब तक इसके सौ प्रकाश वर्ष से भी अधिक गहराई तक की इसकी विशेषताओं एवं इसके विस्तार को ही नापकर देखा जा सका है।  

अब तक इसकी जो खोज की गयी है उसके अनुसार इस अनन्त अन्तरिक्ष में अनेक निहारिकाएँ, काले छिद्ध (Blak Hols), स्वयं विस्फोट करती निहारिकाएँ, गेलेक्सी (आकाश गंगा), अति ज्वलनशील एवं प्रकाशशील विशेष आकार की अनेक प्रकार की निहारिकाएँ, आद्य पदायों या ब्रह्मणण्डीय धूल (Cosmic Dust) का संघटन, आदि को ही अब तक अंकित किया जा सका है। 

बहाण्ड के इस स्वरूप में निचले स्तर पर तारे,ग्रह, छुद्रग्रह, उल्का, पुच्छल तारे, उपग्रह आदि पाये जाते हैं। हमें रात्रि को आकाश में जो कुछ भी आकर्षक दूश्य दिखायी देते हैं वे तो मात्र विशाल अंतरिक्ष की एक बूँद से भी छोटा भाग ही है। इस ब्रम्हांड की सैकड़ों निहारिकाओं में से प्रत्येक में करोड़ों सूर्य पाये जाते हैं। इनमें से अधिकांश तो हमारे सूर्य से भी बहुत विशाल हैं। 

भारतीय ज्योतिष में जो नक्षत्र गिनाये गये हैं वे भी वास्तव में ऐसे ही तारों या सूयों के ही नाम हैं। हमारा सौरमण्डल एवं सूर्य जिस गेलेक्सी का सदस्य है, उनका नाम एंड्रोमेडा (देवयानी) निहारिका है इसमें हमारे सूर्य जैसे दो करोड़ से भी अधिक तारे हैं इनमें से सम्भवतः अधिकांश में हमारे सूर्य की भाति ही ग्रह-उपग्रह का अपना सौरमण्डल भी है। 

इसी आधार पर आज के वैज्ञानिकों का दढ़ विश्वावास है कि अन्तरिक्ष में कहीं न कहीं हमारे जैसा या हमसे भी विकसित वैज्ञानिक संसार अवश्य होना चाहिए। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक भी उड़नतश्तरियों को इसका महत्वपूर्ण प्रमाण मानने लगे हैं। इसके अतिरिक्त, अति संवेदनशील दूर्बानों की फिल्म पर प्राप्त विशेष सांकेतिक चिन्ह भी इसी से सम्बन्धित हो सकते हैं। हमारी देवयानी आकाशगंगा का रात्रि के अंधेरे में स्वच्छ आकाश में स्पष्टता से अवलोकन किया जा सकता है। इसकी आकृति कुम्हार के चाक की भति है।

उपर्यक्त विवेचन के पश्चात भी यह उल्लेख करना आवरश्यक होगा कि अन्तरिक्ष और आकाश के बीच अन्तर यह है कि आकाश सम्पूर्ण ब्रम्हांड का सूचक है जिसमें पृथ्वी भी समिमलित है जबकि अन्तरिक्ष  का अर्थ पृथ्वी को छोड़कर शेष सभी स्थान हैं। वस्तुतः अन्तरिक्ष वहाँ से शुरू होता है जहाँ पृथ्वी का वातावरण समाप्त होला है।  अन्तरिश अनन्त है आयामों को हमारी पृथ्वी के पैमानों से मापना सम्भव नहीं है। इसीलिए प्रकाश वर्ष और खगोलोय इकाई जैसे नए पैमानों को अपनाया गया है। 

हमारा सौर मंडल लगभग 4.5 अरब साल पहले इंटरस्टेलर गैस और धूल के घने बादल से बना था। जब यह धूल का बादल ढह गया, तो इसने एक सौर निहारिका का निर्माण किया।

केंद्र में, गुरुत्वाकर्षण अधिक होने कारण, कोर में दबाव इतना अधिक था कि हाइड्रोजन परमाणु मिलकर हीलियम बनाने लगे, जिससे जबरदस्त मात्रा में ऊर्जा निकली। उसके साथ, हमारे सूर्य का जन्म हुआ। 

डिस्क में बाहर का पदार्थ भी आपस में टकरा रहा था। एक दूसरे से टकराने के कारण बड़े पिंडो का निर्माण होने लगा। उनमें से कुछ इतने बड़े हो गए कि उनका गुरुत्वाकर्षण उन्हें एक गोले में परिवर्तित होने लगे। जिससे ग्रह, बौने ग्रह और बड़े चंद्रमा बन गए। 

अन्य छोटे बचे मलवे के टुकड़े क्षुद्रग्रह, धूमकेतु, उल्कापिंड और छोटे, अनियमित चंद्रमा का निर्माण करने लगे। 

हमारे सौर मंडल में ग्रहों और अन्य पिंडों का क्रम और व्यवस्था सौर मंडल के बनने के तरीके के कारण है। सूर्य के सबसे नजदीक चट्टानी भाग ही अधिक गर्मी का सामना कर सकती थी। इस कारण से, पहले के चार ग्रह - बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल - स्थलीय ग्रह हैं। वे सभी ठोस, चट्टानी सतहों से बने हैं।

जिन ग्रहो को हम सौर मंडल के बाहरी ग्रह जे रूप में जानते हैं। वे तरल या गैस के रूप में हैं। गुरुत्वाकर्षण ने इन पिंडो को एक साथ खींचा जिसके चलते इन क्षेत्रों में हमें गैस के दिग्गज बृहस्पति और शनि, और बर्फ के दिग्गज यूरेनस और नेपच्यून मिलते हैं।

 सौरमण्डल

सौरमण्डल या सौर परिवार के अन्तर्गत सूर्य एवं उसके प्रभाव क्षेत्र में आने वाले आकाशीय पिंड अर्थात सभी नौ ग्रह  (अब आठ ग्रह हैं ) उनके उपग्रह, पुच्छल तोरे व उल्का पिण्ड सम्मिलीत हैं। सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रम - बुध, शुक, पृथ्वी, मंगल, वृहम्मति, शनि, अरुण, वरुण, यम आदि हैं जबकि आकार के आधार पर इनका क्रम वृहम्पति , शनि, अरुण , वरुण, पृथ्वी, शुक, मंगल, बुध और यम है। जैसाकि उपयुक्त विवेचन में उल्लेख किया गया है कि इस विचित्र ब्रम्हांड में अनगिनत सौरमण्डल हैं। सौरमण्डल का केन्द्र या जनक सूर्य है। सूर्य एवं उसके ग्रहों-उपमहों का परिचय निनांकित है :

सूर्य (Sun)

सूर्य आग का धकता हुआ एक चमकीला गोला है यह स्वयं अपनी क्रियाओं से प्रकाश एवं ऊर्जा बिखेरने वाला बना रहता है। इसके धरातल पर निरन्तर अणु-परमाणु के व अन्य विस्फोट होते रहते हैं इसी कारण सूर्य की सतह पर बहुत ऊंचा तापमान बना रहता है। इसकी सतह का तापमान 6 से 7 हजार डिग्री सेंटीग्रेट रहता है। इसके आन्तरिक एवं केन्द्रीय भाग के तापमान कुछ करोड़ डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुँच जाते हैं। 

वॉल्कोव के अनुसार, यह तापमान 20000000 सेंटीग्रेट तक हो सकता है। सूर्य के काले धब्बों का तापमान 1.500 सेंटीग्रेट होता है। सर्य के इन धब्बों की संख्या बढ़ती जा रही है ऐसे तापमान को सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। 

सूर्य का आकार पृथ्वी से 13 लाख गुना अधिक है एवं इसका व्यास पृथ्वी के व्यास से 109 गुना है। इतना विशाल होते हुए भी यह पिण्ड पृथ्वी को आकर्षण शक्ति से मान 28 गुना हो अधिक भारी है, अर्थात पृथ्वी का एक किलोमाम सूर्य पर 28 किया होगा। इसका दूसरा अर्थ है कि अति उत्तप्त एवं गैसौसीय दशा में होने से यह विशेष हलके तत्वों से बना है। सूर्य का व्यास 13,9300 किलोमीटर है। 

इसे अपनी कीली पर एक चक्कर पूरा करने में 25 दिन 5 घंटे लगते हैं। इसका निर्णय सौर कलंकों की स्थिति से किया गया है। सूर्य की पृथ्वी से औसत दूरी 14.96 करोड़ किलोमोटर है। प्रकाश द्वारा एक सेकण्ड में लगभग 3 लाख किलोमीट दूरी तय की जाती है। 

इसे मानक मानकर पृथ्वी सूर्य से 8 मिनट 2 सेकण्ड दूर है। हमारी पृथ्वी से सूर्य आकृति में अन्य नक्षत्रों की तुलना में सबसे बड़ा दिखायी देता है, क्योंकि यह पुथ्वी से सबसे निकट का तारा है अन्यथा अनेक नक्षत्र सूर्य से भी बहुत बड़े हैं।आद्रा, जेच्ठा, घनिष्टा आदि नक्षत्र सूर्य से सैकड़ों गुना बड़े हैं। ये नक्षत्र पृथ्वी से कुछ प्रकाश वर्ष को दूरी पर हैं।  

इसी कारण छोटा दिखायी देने बाला ध्रुव तरा भी सूर्व से हजारों गुना बड़ा है, किन्तु यह सूर्य के सौरमण्डल से 466 प्रकारा वर्ष दूर है। सूर्य के चारों ओर दिखायी देने वाला एक पट्टी सूर्य का मुकट (Caron) कहलाती है। यह सूर्य को लाखों किलोमीटर के घेरे में घेरे हुए है। जब सूर्य घूमता है तो यह कुकट नहीं घूमता है क्योकि इसको सतह सूर्य की सहसे बाहर है। 

ऐसा अनुमान है कि यह सूर्य की ज्वाला द्वारा निकाले गये पमाणुओं एवं विद्युत कणों के सूर्य की सतह के चारों ओर जमने से इसकी पुकुट की रचना हुई है। 

 सौरमण्डल के सबसे महत्वपूर्ण सदस्यों की संख्या सूर्य के पश्चात्  एवं अब तक भली प्रकार से ज्ञात नौ हैं। हलाकि अब आठ ही ग्रह है वैज्ञानिकों ने यम को ग्रह मानने से इंकार कर दिया हैं। फिर भी यहाँ नौ ग्रहो की जानकारी दी जा रही हैं। 

बुध (Merury)

यह सूर्य से सबसे निकट का ग्रह और नौ ग्रहो में से सबसे छोटा है, किन्तु यह पुथ्वी के चन्द्रमा से घोड़ा बड़ा है। ईसका व्यास 4880 कलोमीटर है। यह सूर्य केमात्र 576 लाख कलेमीटर की दरी पर है। बुध ग्रह को अपनी कीली पर एवं सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में 88 दिन का समय लगता है अर्थात इस ग्रह का एक दिवस एवं एक रात दोनों ही पृथ्वी के 88 दिन के बराबर होते हैं। बुध का कोई उपग्रह नहीं है। 

इस ग्रह का अधिकम तापमान 350 सेण्टीग्रेट रहता है, यहाँ पर कसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना नहीं कीजा सकती हैं।  बुध अपनी कक्षा में 176000 कलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूमता है। यह गति से सूर्य की ग्रुत्वकर्षण की पकड़ से सुरक्षित रखती है। बुध परवायुमंडल नहीं है, अतः यहाँ दिन बहुत अधिक गर्म और रातें बर्फली होती हैं।  इसका दव्यमान पृथ्5% है। . 

शुक्र (Vems)

यद ग्रह बुध, मंगल एवं यम से बड़ा एवं अन्य ग्रहों से छोटा है इसका व्यास 12,104 कलोमीटर है। इसकी सूर्य से दुँरी 10 करोड़ 82 लाख किलोमीयर है। यहाँ का एक दिन पृथ्वी का लगभग 3/4 होता है एवं इसे सूर्य को परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 225 दिन लगते हैं। यह ग्रह तेज चमकीले वाला है। लगभग पृथ्वी के आकार और भार वाला शुक्र ग्रह गर्म और तपता हुया ग्रह है। इसका सूर्य के सम्मुख अधिकतम तापमान 100 डिग्री सेण्टीग्रेट है, अतः यहाँ भी जीवन के विकास की सम्भावना नहीं पाई जाती हैं।

सूर्य के विपरीत भाग में तापमान -23 डिग्री सेंटीग्रेट रहता है। इस ग्रह के चारों ओर सल्फ्यूरिक एसिड के जमे हुए बादल हैं। अनुसंधान और रडार मेपिंग द्वारा इसके बादलों को भेदने से पता चला है कि शुक्र की सतह चट्टानों और ज्वालामुखियों से भरी है। प्रातः पूर्व एवं सायं पश्चिम में दिखाई पड़ने के कारण इसे भोर का तारा (Moring Satar) एवं संध्या तारा (Evening Satar) कहा जाता है। यह आकार एवं द्रव्यमान में पृथ्वी से थोड़ा छोटा हैं। अततः कुछ खगोलशास्त्री इसे पृथ्वी की वहन भी कहते हैं। 

पृथ्वी (Earth)

यह सौरमण्डल का सबसे अधिक ज्ञात एवं मानव व जैव जगत के लिए सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है। यह बुध, शुक्र, मंगल एवं यम से बड़ा और शेष ग्रहो से छोटा है। इसका व्यास 12756 किलोमीटर है। इसकी सूर्य से दूरी 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है। पृथ्वी अपनी स्थिति की दृष्टि से स्थान पर है। इसे अपनी कीली पर एक चक्कर पूरा करने में लगभग चौबीस घटे लगते हैं। 

एवं सूर्य की परिक्रमा पूरा करने में 365 दिन 6 बघटे का समय लगता है। यह ग्रहअपनी कीली पर 23. 1/2 डिग्री झुका हुआ है। इससे पृथ्वी पर सौर ताप प्राप्ति, वर्षा एवं अन्य अनेक क्रियाओं तथा ऋतुओं पर विशेष प्रभाव पड़ता है। पृथ्वी पर औसत तापमान, नमी एवं विरोष वायुमण्डल की दशाएँ आदि सभी मिलकर यहाँ के जीवन के विकास में विशेष सहायक रहे हैं। ऐसा या इससे मिलता वायुमण्डल केवल मंगल ग्रह पर ही है। जहाँ संभवतः: कभी भिन्न प्रकार का जीवन रहा होगा। 

यहाँ का अधिकतम तापमान 58.4 सेण्टीग्रेट है इसका एक उपमह चन्द्रमा है। यह उपग्रह पृथ्वी से मात्र चार लाख किलोमीटर दूर है। मध्य तापमान, ऑक्सीवन और प्रचुर मात्रा में जल की उपस्थिति के कारण पृथ्वी सौर मण्डल का एकमात्र ऐसा ग्रह है जहाँ पर जीवन है। लेकिन जिस तरह से मनुष्य स्वयं इसकी सतह और वातावरण को नष्ट कर रहा है, सम्भवतः भविष्य में पृथ्वी ऐसा बन जायेगा जिसे यही के निवासियों ने नष्ट कर दिया हो। 

मंगल (Mars) 

यह ग्रह बुध एवं यम से बड़ा है एवं सूर्य से चौथे स्थान पर स्थित है। इसका व्यास 6,787 किलोमीटर है सूर्य से इसकी दूरी 22 करोड़ 79 लाख किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 687 दिन का समय लगता है। इसके फोबोस तथा डिमोस नामक दो उपग्रह हैं। यहाँ का तापमान 30 डिग्री सेण्टीग्रेट है। अततः यहाँ पर जीवन होने की संभावना की जाती रही है। जब सन 1909 में यह ग्रह पृथ्वी के समीप था, तब अमेरिकी विद्वान लोवेल ने इसे एरिजोना से दूर्बान की सहायता से देखा तथा महत्वपूर्ण तथ्य सामने रखे जिनके सम्बन्ध में सभी विद्वान एकमत नहीं थे।  

NASA द्वारा प्रस्तुत सत्र 1992 की खोज एवं रिपोर्ट के अनुसार आज से लगभग 3.000 करोड़ वर्ष पूर्व यहाँ पर विशाल सागर या जल भण्डार थे। तब सम्भवतः यहाँ विशेष प्रकार का जैव जगत विकसत रहा होगा। मंगल की बंजर भूमि का रंग गुलाबी है। अतः इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है। यहा पर चट्टानें और शिशलाखंड हैं। इसकी सतह पर गहरे गढ़ढे, ज्वालामुखी और घाटियाँ हैं। 

वृहस्पति (jupier)

यह सौर मण्डल का सबसे बड़ा ग्रह है। स्थिति के हिसाब से यह सूर्य से पॉचवें स्थान पर है इसकी सूर्य से दरी 77 करोड़ 83 लाख किलोमीटर है इसका व्यास 1,42,00 किलोमीटर हैं। इसे सूर्य की एक परिकमा पुरी करने में पृथ्वी के 11व र्ष 9 माह का समय लग जाता है इसका तापममान बहुत नीचा -132 सेण्टीग्रेट रहता है। अतः यहाँ किसी भी प्रकार का जीवन सभव नहीं है इसके 16 उपग्रह है, इनमें से एक उपग्रह तो बुध, मंगल व यम से भी बड़ा है। 

यह ग्रह गैसीय पिंड है। अन्य उपग्रह आयो, यूरोपा, कैलिस्टो एवं आलमपिया आदि हैं। इसके 14वें उपग्रह की खोज सन 1917 में हुई थी। वृहस्पति ग्रह का व्यमान सौरमण्डल के सभी ग्रहों का 71% एवं आयतन डेढ़ गुना है। दूर के उपग्रहों में से दो विपरीत दिशा में परिभ्रमण करते हैं। 

यहाँ विचित्र विशेषता वाले उपग्रह भी हैं। पायनियर ने अंतरिक्ष अभियान द्वारा प्राप्त चित्रों से पृथ्वी के आकार सामान विशाल लाल धब्बे की खोज की है। वोयजर 1 ने बाद में बतलाया कि वास्तब में यह विशाल लाल धब्बा बादलों के घेरे में विशाल चक्रवात है। यहाँ पर धूल भरे बादल और ज्वालामखी भी हैं। 

शनि  (saturn)

यह वृहस्पति के पश्चात सबसे बड़ा ग्रह है इसका व्यास 1,200 किलोमीटर है यह सर्य से 427 करोड़ किलोमीटर दूर है। इसे सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 295 वर्ष लग जाते हैं। यहाँ पर भीषण शीत पड़ती है और अधिकतम तापमान भी -151 सेण्टीग्रेट रहते हैं इसके 21 उपग्रह हैं इसका सबसे बड़ा उपग्रह टिटॉन है। यह आकार में बुध ग्रह के बराबर है।  

अन्य उपग्रहों में मीमास, एनसीलाडु, टेथिस, डीऑन, रीया, हाइपेरियन, इयेपेट्स तथा फोबे हैं। फोबे उपग्रहशनि की कक्षा में, विपरीत दिशा में परिक्रमा करता है। शनि ग्रह के चारों ओर एक सुन्दर वलय बनी हुई है। इस वलय की उत्पत्ति भीतरी उपग्रहों के विखंडित होकर धूल कणों में बदलने एवं उन पर जमी हुई गेसों के साथ वलय के आकार में संगठित होने से हुई है।  

यह वलय अथवा कुण्डली शानि की सतह से मात्र 13 हजार किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। वोयजर-1 ने जानकारी दी है कि शनि ग्रह के वलय हजारों सर्पीली तरंगों की पट्टी है। इस पट्टी की मोटाई 100 फीट है। इसके चन्द्रमा टिटॉन पर नाइट्रोजनीय वातावरण और हाइड्रोकार्बन मिले हैं। इन दोनों को उपस्थिति से जीवन के लक्षण का पता चलता है, लेकिन यहाँ पर जीवन का अस्तित्व नहीं मिला है। 

शनि ग्रह पर हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस पायी जाती हैं तथा कुछ मात्रा में मीथेन एवं अमोनिया भी मिलती हैं। शनि ग्रह की प्रमुख विशेषता उसके चारों ओर गैस हिमकण एवं छोटे छोटे ठोसचट्टानों के मलवे का पाया जाना है।  इस ग्रह पर सूर्य का प्रकाश केवल 1/100 वं भाग ही पड़ता है। 

अरुण (Naptune)

यह ग्रह वृहस्पति व शनि से छोटा है। इसका व्यास 51800 कलोमीटर है। यह सौर मण्डल की बाहरी सीमा के निकट सूर्य से 286.96 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थत है। आकार में यह वरुण से कुछ बड़ा है। इसमें 15 उपग्रह हैं इनमें एरियल, अम्बिरयल, टिटेनिया, ओबेरॉन तथा मिराण्डा आदि प्रमुख हैं। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 84 वर्ष का समय लगता है। 

यहाँ के तापमान -200 सेण्टीग्रेट से भी नीचे रहते हैं। वोयजर-2 नेअरुण की 5 वलयों का पता लगाया है। इसके नाम क्रमश: अल्फा, बीटा, गामा, डेल्टा और इपसिलॉन हैं। अरुण ग्रह की खोज सन 1781 में सर विलियम हरशल नामक विद्वान ने की थी।  

प्रथम उपग्रह ट्राइटन है जो पृथ्वी के चन्द्रमा से बड़ा है। तथा वरुण की सतह के समीप दूसरा उपग्रह मेरीड है। इसमें से तीन वलय इतनी हल्की थीं कि उनका पता एक सप्ताह बाद लगा। खगोलविदों का अनुमान है कि इसकी बाहरी वलय बर्फ चन्द्रकाओं से भरी है, और आन्तरिक वलय पतली और कठोर है। यह विपरीत दिशा में घूमता है। 

वरुण (Uranus)

इस ग्रह की खोज सन 1846 में जर्मन खगोल वैज्ञानिक जोहान गाले ने की। यह ग्रह वृहस्पति, शनि, एवं अरुण से छोटा तया अन्य ग्रहों से बड़ा है। इसका व्यास 49500 किलोमीटर है।  इसकी सूर्य से दूरी 449.66 करोड़ किलोमीटर है। इसे सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में पृथ्वी के 164 वर्ष का समय लगता है। इसके 8 उपग्रह हैं।  यहाँ का तापमान -185 सेण्टीग्रेट रहता है। येरेनस एकमात्र ऐसा ग्रह है जो एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक अपनी प्रदक्षिणा कक्ष में सूर्य के सम्मुख रहता है। वोयजर 2 ने 9 गहरी वलय और कार्क स्कू के आकार का 40 लाख वर्ग किलोमीटर से बड़े चुम्बकीय क्षेत्र का पता लगाया है। 

यम (Pluto)

प्लूटो यूनानी संस्कृति व (सौरमण्डल के) दर्शन के अनुसार पाताल का देवता कहलाता है। अतः अन्तरिक्ष में सबसे अधिक गहराई पर स्थित होने से इसका नाम प्लूटो पड़ा। इसका उपग्रह एक है। यह ग्रह बुध के पश्चात सबसे छोटा है एवं सौरमण्डल की बाहरी सीमा पर सूर्य से 590 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे सूर्य का एक चक्कर पूरा करने में पृथ्वी के 248 वर्ष लगते हैं। इसका व्यास 3,040 किलोमीटर है। यह सबसे ठंडा ग्रह है एवं यहाँ के तापमान -220 सेण्टीग्रेट से भी निचे रहते हैं।

छोटा सा प्लूटो हमेसा से रहस्य्मय रहा हैं। लेकिन ऐसा प्रतीत होता हैं। यह पानी और मीथेन के जमे हुए बर्फ का गोला हैं। यह सौरमंडल में बिना क्रम के पथ पर घूमता रहता हैं। 

सौरमंडल के प्रथम चार ग्रह बुध,शुक्र, पृथ्वी एवं मंगल भीतरी ग्रह कहलाते हैं। सूर्य से अधिक दूरी पर स्थित होनेके कारण अन्य ग्रहबृहस्पति,शनि,अरुण,वरुण और यम बाहरी ग्रह कहलाते है। 

उपग्रह 

वे आकाशीय पिण्ड जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करते हैं, उपग्रह कहलालेते हैं। ये सभी अपने ग्रह की परिक्रमा करने के साय-साथ सूर्य की भी परिक्रमा करते हैं। जिस तरह ग्रह चमक रहित होता हैं, उसी तरह उपग्रह भी चमक रहित हैं। वे सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं। अधिकतर ग्रहों के उपग्रह उसी दिशा में ग्रहों की परिक्रमा करते हैं जिस दिशा में ग्रह सर्य की परिक्रमा करते हैं। 

धूमकेतु

धूमकेतु धूल, चट्टान और बर्फ से बने सौर मंडल के निर्माण से जमे हुए अवशेष हैं। वे कुछ मील से लेकर दसियों मील तक चौड़े होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वे सूर्य की परिक्रमा करते हैं, वे गर्म होते हैं और गैसों और धूल को एक चमकते हुए सिर में उगलते हैं। जो एक ग्रह से बड़ा हो सकता है। यह सामग्री एक पूंछ बनाती है जो लाखों मील तक फैली होती है। ज्ञात धूमकेतुओं की वर्तमान संख्या 3,743 है। 

क्षुद्र ग्रह

क्षुद्रग्रह छोटे, चट्टानी पिंड हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। हालांकि क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा ग्रहों की तरह करते हैं, लेकिन वे ग्रहों की तुलना में बहुत छोटे होते हैं। हमारे सौर मंडल में बहुत सारे क्षुद्रग्रह हैं। उनमें से अधिकांश मुख्य क्षुद्रग्रह बेल्ट में रहते हैं - मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच का क्षेत्र।

अन्य जगहों पर भी क्षुद्रग्रह हैं। उदाहरण के लिए, कुछ क्षुद्रग्रह ग्रहों के कक्षीय पथ में पाए जाते हैं। इसका मतलब है कि क्षुद्रग्रह और ग्रह सूर्य के चारों ओर एक ही पथ का अनुसरण करते हैं। पृथ्वी और कुछ अन्य ग्रहों  आसपास इस तरह के क्षुद्रग्रह हैं।

उल्का पिंड 

उल्कापिंड, अंतरग्रहीय छोटी प्राकृतिक वस्तु हैं। जो पृथ्वी के वायुमंडल और सतह पर गिरता है। यह आकर में भिन्न हो सकते हैं। रात समय जो टुटता तारा दिखाई देता हैं। उसे ही उल्कापिंड कहा जाता हैं। 

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि हर दिन लगभग 48.5 टन उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरता है। पृथ्वी के वायुमंडल में लगभग सभी वाष्पीकृत हो जाती है, जिससे एक चमकीला निशान निकलता है जिसे प्यार से "शूटिंग स्टार" कहा जाता है। कई उल्का किसी भी रात में देखे जा सकते हैं। 

पृथ्वी का इतिहास

पृथ्वी का इतिहास इसके गठन से लेकर आज तक ग्रह पृथ्वी के विकास से संबंधित है। प्राकृतिक विज्ञान की लगभग सभी शाखाओं ने पृथ्वी के अतीत की मुख्य घटनाओं को समझने में योगदान दिया है, जो निरंतर भूवैज्ञानिक परिवर्तन और इसकी विशेषता है।

भूवैज्ञानिक समय पैमाना अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा परिभाषित किया गया है, पृथ्वी की शुरुआत से लेकर वर्तमान तक के समय के बड़े विस्तार को दर्शाता है, और पृथ्वी के इतिहास की कुछ निश्चित घटनाओं का वर्णन करते हैं।  पृथ्वी का निर्माण लगभग 4.54 अरब साल पहले हुआ था, जो ब्रह्मांड की उम्र का लगभग एक तिहाई है। ज्वालामुखी से निकलने वाली गैसों ने संभवतः वातावरण और समुद्र का निर्माण किया, लेकिन प्रारंभिक वातावरण में लगभग कोई ऑक्सीजन नहीं थी। 

अन्य पिंडों के साथ बार-बार टकराने के कारण पृथ्वी का अधिकांश भाग पिघल गया था जिसके कारण अत्यधिक ज्वालामुखी उत्पन्न हुआ था। जब पृथ्वी अपने प्रारंभिक चरण में थी, तब माना जाता है कि थिया नामक ग्रह के टक्कर ने चंद्रमा का निर्माण किया था। समय के साथ, पृथ्वी ठंडी हो गई, जिससे एक ठोस क्रस्ट का निर्माण हुआ, और सतह पर तरल पानी निर्माण हुआ।

पृथ्वी पर जीवन का सबसे पहला निर्विवाद प्रमाण कम से कम 3.5 अरब साल पहले का है, ईओआर्चियन युग के दौरान, जब भूगर्भीय क्रस्ट पहले पिघले हुए हैडियन ईऑन के बाद जमना शुरू हुआ था। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में खोजे गए 3.48 अरब साल पुराने बलुआ पत्थर में स्ट्रोमेटोलाइट्स जैसे माइक्रोबियल मैट जीवाश्म मिला हैं। 

अन्य प्रारंभिक भौतिक प्रमाण दक्षिण-पश्चिमी ग्रीनलैंड में खोजे गए 3.7 अरब वर्षीय मेटासेडिमेंटरी चट्टानों में ग्रेफाइट मिले हैं यह पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में पाए गए "जैविक जीवन के अवशेष" जैसे हैं। 

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