पारिस्थितिकी तंत्र के घटकों का वर्णन?

जीवधारी जिस वातावरण में रहते हैं वह उसका पर्यावरण होता है। पर्यावरण (Environment) शब्द का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर होता हैं। इस प्रकार पर्यावरण अनेक वस्तुओं या कारकों जैसे प्रकाश, ताप, मिटटी, जल वायु आदि जो किसी जीव को घेरे रहते हैं। दूसरे शब्दों में प्रकृति के अंतर्गत हमें जो कुछ दिखाई देता है वह पर्यावरण का एक अंग है।

अर्थात वयु, जल, मृदा, पेड़-पीधे, समुद्र एवं जीव-जन्तु सम्मिलित रुप से पर्यावरण की रचना करते हैं। पृथ्वी पर उपस्थित किसी भी जीव का जीवन इस पर्यावरण के बिना संभव नहीं हो सकता तथा कोई भी जीव अपने पर्यावरण से अलग जीवन-यापन नहीं कर सकता हैं। समस्त जीवधारियों को उसके वास स्थान या पारिस्थितिक तंत्र में उपस्थित परिस्थितियों या अजैविक एवं जैविक घटकों के अनुसार अपना जीवन निर्यहन करना पड़ता है।

इस प्रकार “किसी स्थान विशेष के भौतिक अथवा अजैविक तथा जैविक घटकों की परिस्थितियों का योग पर्यावरण कहलाता है।"

पारिस्थितिक कारक

कोई भी बहरी बल पदार्थ या दशा जो जीवधारियों के चारों ओर उपरिथत होते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से जीवधारियों के जीवन को प्रभावित करते हैं उसे पारिस्थतिक या पर्यावरणीय कारक कहते हैं। अध्ययन की सुविधा के लिये किसी पर्यावरण या पारिस्थितिक तंत्र के घटकों को दो समहो में बाँटा गया है -

  1. अजैविक कारक
  2. जैविक कारक

अजैविक कारक

इसके अंतर्गत उन समस्त अजीवित कारकों को रखा गया है जो कि अपने भौतिक गुणों के कारण पर्यावरण में उपस्थित जीवो को प्रभावित करते हैं। इन्हें जलवायुवीय कारक भी कहते हैं। उदा. - वाय, जल, प्रकाश. तापक्रम, मदा, एस्थलाकति आदि।

जैविक कारक

इसके अंतर्गत समस्त जीवधारियों को सम्मिलित किया गया है। उदाहरण - पेड़-पौधे, सभी जन्तु आदि। हमे ज्ञात है कि पृथ्वी पर करोड़ों प्रकार के जीव निवास करते है और अपनी समस्त जैविक क्रियायोंओं को पूर्ण करते हुए मुत्यु को प्राप्त करते है। इन जीवों को अपनी जैविक कियाओं को पूर्ण करने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

प्रकृति में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत सूर्य है। हरे पौधे सौर ऊर्जा का अवशोषण करके उसे भोजन में परिवर्तित करते हैं। इस प्रकार यही सौर ऊर्जा प्रत्यक्ष और अत्यक्ष रुप से समस्त जीवधारियों की जैविक क्रियाओं के काम आती है। हरे पेड़-पौयों द्वारा निर्मित भोजन साकाहारी जन्तुओं के काम आती है।

ये शाकाहारी जन्तु उच्चवर्गीय जन्तुओं का भोजन बनते है जिन्हें सर्वोच्च श्रेणी के मांसाहारी खाते है। जीवधारियों की मुत्यु परश्चात उनके शरीर के कार्बनिक पदार्थों का अपघटन कवकों एवं जीवाणुओं द्वारा किया जाता है। इस प्रकार सौर ऊर्जा ही सभी जीवधारियों के द्वारा रासायनिक ऊर्जा के रुप में उपयोग की जाती है। अपघटक जीवधारियों के शरीर का अपघटन करके उनके शरीर के अकार्बनिक तत्वों को पुननः भूमि में मिला देते है।

इस प्रकार पारिस्थितिक तंत्र एवं प्रकृति में ऊर्जा के प्रवाह के साथ-साथ पोषक पदार्थों का पुन चक्रण होता रहता है। ये पदार्थ पुनः जीवधारियों के काम आते हैं।

पारिरिस्थतिक तंत्र में ऊर्जा प्रवाह

पूर्व अध्यायों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो चुका है कि प्रत्येक पोषी स्तर पर आहार के स्थानांतरण के साथ ही ऊर्जा का भी स्थानांतरण होता है। यह क्रम प्रत्येक पारितंत्र से जीवमण्डल तक होता है। समस्त हरे पौधे जिनमें पर्णहरिम उपरिस्थित होता है, में ही केवल यह क्षमता है कि सर्य की विकिरण ऊर्जा को ग्रहण कर सके।

सूर्य की प्रकाश ऊर्जा के द्वारा पौधे प्रकाश-संश्लेषण क्रिया करके खाद्य (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करते हैं। सौर ऊर्जा पृथ्वी पर विकिरण ऊर्जा के रुप में आती है जिसका 10 प्रतिशत ही पौधे उपयोग कर पाते हैं पौधे के अन्दर यह सौर ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संग्रहित होती है। प्रत्येक पौधा अपने अंदर संग्रहित ऊर्जा का 90 भाग अपनी जैविक क्रियाओं, जैसे श्वसन आदि अन्य क्रियाओं में खर्च कर देते हैं।

सूर्य की प्रकाश को ऊर्जा के द्वारा पौधे प्रकाश-संश्लेषण क्रिया करके खाद्य (कार्बोहाइड्रेट) का निर्माण करते हैं। सौर ऊर्जा पृथ्वी पर विकिरण ऊर्जा के रुप में आती है जिसका 10 प्रतिशत ही पौधे उपयोग कर पाते हैं पौधे के अन्दर यह सौर ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संग्रहित होती है। प्रत्येक पौधा अपने अंदर संग्रहित ऊर्जा का 90 भाग अपनी जैविक क्रियाओं, जैसे श्वसन आदि अन्य क्रियाओं में खर्च कर देते हैं।

अपने अन्दर 10% ऊर्जा जी ही संग्रहित कर पाते हैं शाकाहारी जन्तु पौधों को खाद्य के रुप में ग्रहण करते है। प्राप्त ऊर्जा का शाकाहारी जन्तु अपने जैविक कार्यों में तथा कुछ ऊर्जा-वातावरण में उष्मा के रूप में त्यागते है शेप ऊर्जा शाकाहारी के अन्दर संग्रहित रहती है।

इसी प्रकार मांसाहारी जन्तु भी शाकाहारी जन्तुओं को मारकर उनका माँस खाते हैं ऊर्जा का अधिक भाग उनके जैविक कार्यों में प्रयुक्त होता है तथा कुछ ऊष्मा के रूप में वातावरण में छोड़ते हैं जो ऊर्जा की हानि है। शेष ऊर्जा शरीर में संग्रहित रहती है। उपयुक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि उष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार ऊर्जा न तो उत्पन्न होती है और न ही नष्ट होती है।

प्रकति में ऊर्जा में स्थानान्तरण के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते हैं -

1. पादप परिवर्तक - ऊर्जा न तो पैदा होती है और न ही नष्ट होती है केवल ऊर्जा का रुपान्तरण एक से दूसरे रुप में होता है प्रकाश- संरश्लेषण क्रिया में हरे पीधे सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं। इस प्रकार यहाँ हरे पौधे ऊर्जा के उत्पादक के साथ-साथ परिवर्तक कहे जा सकते हैं।

2 ऊर्जा स्थानान्तरण - आहार श्रृंखला के प्रत्येक पोषण स्तर पर नीचे से ऊपर की ओर केवल ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है . प्रत्येक पोषण स्तर पर जीव ऊर्जा का उपयोग अपने जैविक कार्यों में खर्च करता है तथा अधिक भाग को ऊमा के रूप में वातावरण में छोड़ता है | यदि छोड़ी हुई मुकक्त ऊर्जा की गणना की जाये तो यह ऊर्जा की हानि अधिक मात्रा में होती है।

3. 10 प्रतिशत का नियम - अध्ययन से स्पष्ट होता है कि ऊर्जा खाद्य के रुप में एक पोषी स्तर से दूसररे पोपीषी स्तर पर बहुत कम मात्रा अर्थात 10% ही आगे पहुँचती है। यही 10 प्रतिशत का नियम है। उदाहरण के लिए यदि गाय 10 किलो हरा चारा खाती है तो उसका वजन 1 किलो ही बढेगा।

उपर्युक्त से स्पष्ट होता है कि ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न नष्ट की जा सकती है, केवल एक रूप से दूसरे रुप में बदलकर रुपान्तरित की जा सकती है। इस रुपान्तरण क्रिया में ऊर्जा की हानि होती है। ऊर्जा का उपयोग न होकर ऊष्मा के रूप में वातावरण में छोड़ दिया जाता है।

अतः ऊर्जा का प्रवाह एक दिशीय होता है। इस प्रक्रिया में ऊर्जा अजैव वातावरण से आहार के द्वारा जैव वातावरण में प्रवेश करती है और ऊष्मा के रूप में छोड़ी जाती है। यह छोड़ी गई उष्मा को हरे पादप भी प्रकाश-संश्लेषण क्रिया में प्रयुक्त नहीं कर पाते हैं। यह स्पष्ट है कि ऊर्जा का वातावरण में स्थानान्तरण उष्मागतिकी के निययोंमों के अनुसार होता है।

पारिरिथतिक तंत्र में पोषक पदाथों का चक़ण

पौधों की वृद्धि के लिये विभिन्न प्रकार के पोषकों की आवश्यकता होती है। ये पोषक पदार्थ विभिन्न प्रकार के खनिज तत्व होते हैं। पौधे इन्हें खनिज लवणों के रुप में भूमि से जल के साथ अवशोषित करते हैं तथा प्रकाश- संश्लेषण की क्रिया में जल तथा खनिजों का उपयोग होता है। गहन अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्रकाश-संश्लेलेषण क्रिया में आधारभूत तत्त्व कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइझेजन, सल्फर तथा फास्फोरस आदि मुख्य रूप से भाग लेते हैं।

एक संयुक्त यौगिक के रूप में यह पदार्थ परितंत्र के उत्पादक स्तर से प्रवेश करते हैं और खाद्य के रूप में उपभोक्ता स्तर में स्थानानारित कर दिये जाते हैं। पुननः यह पदार्थ जन्तु एवं पादपों के मृत शरीर, मल-मूत्र के रुप में जमीन पर लौट आते हैं। इस प्रकार उक्त रसायनों का पारितंत्र तथा जीवमण्डल में पुन चक्रण को जैव भू-रसायन चक्र (biogeochemical cycle) कहते हैं।

स्पष्ट होता है कि यह रसायन भी ऊर्जा की तरह लुप्त नहीं होते है। बल्कि इन पदार्थों का चक्रण चलता रहता है इस संपूर्ण प्रक्रिया में अपघटकों की मुख्य भूमिका होती है, क्योंकि अपघटक (जीवाणु तथा कवक) जटिल कार्बनिक पदार्थों को तोड़कर सरल अकार्बनिक पदार्थ में बदते है जो पुन: पादपों द्वारा जटिल में बदला जाता है। यही क्रम निरन्तर चलता रहता है। सभी स्थलीय एवं जलीय पारिस्थतिक तंत्रों में ये चक्र आवश्यक होते हैं तथा इनकी प्रक्रिया भी एकसमान होती है।

जैव भू रासायनिक चक्र के प्रकार

पौधे प्रकृति में उपस्थित पोषक पदाथों को गैसीय अथवा जलीय या अवसादों के रूप में ग्रहण करते हैं। अत: पोषक पदार्थों का चक्रण तीन प्रकार का होता हैं।

  1. गैसीय चक्रण - इसके अंतर्गत पोषक पदाथों का चक्रण गैसों के रूप में होता हैं। उदाहरण - कार्बन चक्र, आक्सीजन चक्र, नाइट्रोजन चक्र आदि।
  2. जल चक्र - इसके अंतर्गत हाइड्रोजन का चक्रण होता है।
  3. अवसादी चक्र - इसके अंतर्गत पोषक पदार्थों का चक्र अवसादों के रूप में होता है। उदाहरण - कैल्सियम चक्र, फॉस्फोरस चक्र, सल्फार चक्र आदि।

नाइट्रोजन चक

वातावरण की स्वतंत्र वायु संगठन में 78 % नाइट्रोजन विद्यमान है लेकिन इस स्वतंत्र नाइट्रोजन का सीधे उपयोग करने की क्षमता सजीयों में नहीं होती है। N2 का उपयोग शुक्ष्म जीवों (विवाणुओं) केमाध्यम से ही संभव होता है -

1.हरे पौधे नाइट्रोजन जमीन से नाइट्रेटे के रुप में ग्रहण करते हैं जिससे अमीनों अम्ल तथा प्रोटीन बनती है।

2. यह प्रोटीन शाकाहारी से माँसाहारियों तक भोजन के द्वारा पहुँचती है।

3. जन्तुओं के मल-मुत्रों में N2 अमोनिया के रूप में लौट कर मृदा मे आती है जो अमोनियम नाइटेट बनाती है।
4. वायुमण्डल की स्वतंत्र नाइट्रेट को दाल वाले पौधे (मटर, चना, अरहर आदि) की जड़ों की गाँठो में राइजोबियम नामक सहजीवी जीवाणु मिलते है जो स्वतंत्र N2, को नाइराइट में बदलते हैं।

नाइट्रोसोमोनास जीवाणु अमोनिया को नाइट्राइट मे तथा नाइट्रोबैक्ट्री जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में बदलते है। यही नाइट्रेट पौधों द्वारा अवशोबित होती है।

5. मुदा में विविनाइट्रीकारी जीवाणु स्यूडोमोनास (Pseudomonas) नाइट्रेट को तोड़कर वायुमंडल में N2 को मुक्त करते हैं।

6. वायुमंडल N2 का कुछ अंश तड़ित विद्युत द्वारा नाइट्रिक अम्ल मे बदला जाता है जो वर्षा के जल के साथ भूमि में पहुँचकर नाइट्रेट में बदलता है जिसे पौधें सीधे ग्रहण करते हैं।

इस प्रकार नइट्रोजन का चक्र निरंतर वातावरण, सजीवों तथा मृदा में होकर सन्तुलित रुप में चलता रहा है। इसलिए यह एक आदर्श चक है।

नाइरोजन स्थिरीकरण करने याले जीवाणओं के नाम है

  • राइजोबियम
  • नीले हरे शैवाल या सायनोजीवाणु

2. अक्सीजन चक्र

वायुमण्डल में स्वतंत्र ऑक्सीजन 21% होती है इसका उपयोग सभी सजीव (जन्त एवं वायुमण्डलीय पादप) श्वसन में करते है। किसी भी पदार्थ के जलने में O2 का प्रयोग होता है।

पानी में भी O2 घुली रहती है हरे पौधे वायुमण्डल तथा जल में घुली हुयी कार्बनडाई ऑक्साइड को लेकर प्रकाश-संरलेषण क्रिया करके CO2 की मात्रा को घटाते रहते हैं तथा वातावरण में इतनी O2 छोड़ते है कि सभी के लिए पर्याप्त हो। साथ ही यही ऑकक्सीजन कार्बन तथा हाइड़ोजन के साथ काबोहाइडेट तथा लवणों के ऑक्साइड के रुप में पौधों में संग्रहित होकर जन्तुओं में आती है। हवा की O2 जल, वर्षा के साथ जमीन में पहुँचती है। इस प्रकार ऑवक्सीजन का स्वतंत्र उपयोग होकर संयुक्त रुप से चक्र पूरा करती है।

3. कार्बन चक्र

कार्बन वातावरण में कार्बनड़ाइऑवसाइड के रुप में उपस्थित रहती है। इसकी प्रतिशत 0.003%होती हैं। स्वतंत्र तत्व के रुप में कार्बन का उपयोग कोई भी नहीं कर सकता हैं। परन्तु कार्बनड़ाइऑवसाइड में कार्बन को पौधे वायु से प्राप्त कर सकते हैं।

जिसकेफलस्वरूप काबोहाइडेट के साथ-साथ वसा, प्रोटीन, केन्द्रक-अल आदि भी बनते हैं। गैसीय रुप में कार्बन का मुख्य भण्डारवायुमण्डल है और जैव कार्बन का भण्डार समुद्र है।

जीवों के शरीर का निर्माण करने वाले सभी कार्बनिक पदार्थों का मुख्य भाग कार्बन होता है यह चुने के पत्थरों,वायु (03%) जल (01%), कोयला और पेट्रोलियम पदार्थों में पाया जाता है। जैविक घटक कार्बन आइ-आक्साइड को प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा काबंनिक पदार्थों में परिवर्तित कर देता है। ये कार्बनिक पदार्थ शरीर का निर्माण करते हैं। शाकाहारी कुछ कार्बन को CO2 के रूप में त्याग देते है लेकि कुछ कार्बन माँसाहारी जन्तुओं द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है।

मांसाहारी जन्तुओं को सर्वोच्च माँसाहारी जी खाते है ये भी ककु को CO2 के रुप में निकालते हैं। पदार्थों को जलाने में भीकार्बनडाई-ऑक्साइड मुक्त होती हैं। ये सभी वायुमंडल में चले जाते हैं। इस प्रकार जैविक कार्यो में भी कार्बनिक पदार्थ हमारे लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

4. हाइड्रोजन चक्र

हाइड्रोजन जल के रूप में चक पूरा करती है। जल ही जीवन है सभी सजीवों में 80-90% तक जल है तथा यह जीवन का मुख्य आधार या माध्यम है। जैविक पदार्थ भी जल के साथ ही चक्र पुरा करते है। जल वायुमण्डल में वाष्य के रुप में मिलता है। समुद्र, नदी, तालाब, जीवों के शरीर से पानी निरन्तर वाष्प बनकर उड़ता रहता है और वायमुण्डल में जाकर पुननः वर्षा या बर्फ के रुप में लौटता है। यह छोटा चक्र है।

सजीवों के माध्यम से जल लंबे चक्र द्वारा पृथ्वी तक आता है। पौधे जमीन से जल का अवशोषण करते हैं खाद्य के साथ जन्तुओं में पहुंचता है। कुछ जल सीधे सजीव ग्राहण करते है, जल की एक निश्चित मात्रा सजीवों की जेविक क्रियाओं के लिए जरुरी होती है। पौधों में वाष्पीकरण, जंतुओं के स्वसन, वाष्पन, उत्सर्जन क्रिया से उत्पन्न जल वातावरण में आता है। सजीवों की मृत्यु के बाद मृत शरीरों के अपघटन से उत्पन्न जल वातावरण में आता है।

अतः जितना जल सजीव ग्रहण करते हैं उतना ही वातावरण में लौट आता है। इस प्रकार जल चक्र संतुलित रूप में चलता रहता है।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण रासायनिक चक

कुछ अन्य रासायनिक पदार्थ जैसे - फास्फोरस,सल्फर, पोटेशियम भी जीवमण्डल में जैव एवं अजैव घटको के माध्यम से चक्रण करते हैं। पोषण पदाथों के चक्रण के अध्ययन से हमें निम्न बातों की जानकारी प्राप्त होती है। 1. उर्जा के विपरीत ये पदार्थ जीवमण्डल के जैव एवं अजैव घटकों के मध्य चक्रण करते रहते हैं। 2. जीवमण्डल में चक्रण करते हुए विभिन्न रासायनिक पदार्थों की मात्रा लगभगस्थिर बनी रहती है।

पोषक पदाथों के चक्रण को बनाये रखना

कभी-कभी मानव द्वारा किए गए कुछ कार्यों के परिणाम स्वरूप पदार्थों के इस पुनः चक्रण में कुछग तिरोध उत्पत्र हो जाते हैं। रसायनों का आवश्यकता से अधिक उपयोग (उर्वरक तथा कीटनाशक) जीवाश्म इधनों का अत्यधिक उपयोग तथा ऐसी मशीनों का प्रबंधन जिनमें पूर्ण दोहन नहीं होता आदि।

अनेक कार्यों के परिणामस्वरूप ये चक अचक्रीय हो सकते है। इसके परिणामामस्वप आहार श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है। हमें आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने तथा औद्योगिक विकास से संबंधित निर्णय लेने में पर्यावरण के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

पर्यावरण के प्रति बढ़ती अवमानना समस्त जीवधारियों के लिये संकट का आमंत्रण है। प्रकृति में अनेक तत्वों को हम निरर्थक समझकर नष्ट कर रहे हैं, जबकि पर्यावरण को सन्तुलित रखने में वह किसी न किसी रूप में महत्वपूर्ण होता है। पारिस्थितिक तंत्रों के अध्ययन से स्पष्ट होता है। कि यदि आहार श्रृंखला की कोई कड़ी हटा दी जाये तो आहार श्रृंखला छोटी हो जायेगी। साथ ही श्रृंखला छोटी होने से पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। जैसे - घास - हिरण - शेर।

उपर्युक्त आहार श्रृंखला में से यदि शेर को हटा दें या मार दें तो जंगल में हिरणों की संख्या अधिक हो जायेगी तथा घास भी समाप्त हो सकती है। जिससे रेगिस्तान बनने की संभावना होगी। यदि हिरण हटा दिये जायें तो भोजन के अभाव में शेर भूखे मरेगे या पलायन कर जायेंगे तथा घास की मात्रा अधिक हो जाएगी। श्रृंखला में से घास को हटा दें तो हिरण मरेंगे या शेर भी माँस के आभाव में नष्ट हो जायेंगे। आज राजस्थान के अधिक भाग रेगिस्तान होने का यही कारण सही प्रतीत होता है।

आहार श्रृंखला के 6 सोपान हैं - 1. सूर्य, 2. पादप, 3. शाकाहारी, 4. माँसाहारी, 5. उच्च माँसाहारी,6 अपघटक। इन्हीं सोपानों से आहार श्रृंखला पूरी हो जाती है। इससे कम सोपान होने पर पारितंत्र का सन्तन्तुलन विगड ज़येगा।

आहार श्रृंखला के एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष का भी अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि कितने ही हानिकारक रसायन मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। जैसे अधिक तथा अच्छी फसल पाने के लिए अनेक कीटनाशक रसायनों का छिडकाव किया जाता है। जो पानी तथा हवा के साथ मिट्टी में मिल जाते हैं। जोपुनः पौधों के द्वारा उपयोग किया जाता है। ये मृदा में मिलकर प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इससे मृदा में उपस्थित जीवाण, कवक, केचुए आदि नष्ट हो जाते हैं।

मानव शरीर में उक्त रसायन मात्रा प्राथमिक स्तर के उत्पादको से अधिक है। अतःप्रत्येक पोषी स्तर पर रससायनों की सान्द्रता बढ़ती जा रही है। जो मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रही है।

प्रश्न अभ्यास

1. पर्यावरण किसे कहते है ?

Ans - किसी स्थान विशेष के भौतिक अथवा अजैविक तथा जैविक घटकों की परिस्थितियों का योग पर्यावरण कहलाता है।

2. पर्यावरण क़ारक क्या हैं ?

Ans - कोई भी बहरी बल पदार्थ या दशा जो जीवधारियों के चारों ओर उपरिथत होते हैं और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से जीवधारियों के जीवन को प्रभावित करते हैं उसे पारिस्थतिक या पर्यावरणीय कारक कहते हैं।

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