समता का अधिकार क्या है - samta ka adhikar kya hai

इस मौलिक अधिकार का अर्थ है देश के कानून के सामने सभी नागरिक सामान है । जैसे कुछ समय पहले एक अधिकारी पर अपराध के सम्बन्ध में मुकदमा चला। जब तक मामला अदालत में था। उन्हें सामान्य नागरिक की तरह अदालत मे पेस किया गया। ऐसा नहीं होना चाहिए की कोई भी अधिकारी राजनेता अपने पद का गलत उपयोग करे। यह समानता के खिलाफ होगा।

समता का अधिकार क्या है

समानता का अधिकार कानून के समक्ष सभी के साथ समान व्यवहार का प्रावधान करता है, विभिन्न आधारों पर भेदभाव को रोकता है। सार्वजनिक रोजगार के मामलों में सभी को समान मानता है, और अस्पृश्यता, और उपाधियों को समाप्त करता है।

सविधान में देश के सभी नागरिको के लिए समानता की बात कही गयी है। उदाहरण के लिए नौकरी के लिए व्यक्ति को जाति, धर्म के आधार पर कोई यह नहीं कह सकता की आप किसी जाति विशेष के है। इसलिए आपको नौकरी नहीं मिल सकती है।

सविधान में छुआ छूत को क़ानूनी रूप से अपराध घोषित किया गया है। किसी भी नागरिक को सार्वजानिक संथाओ जैसे कालेज, स्कूल, मदिंर और अस्पताल स्थल में प्रवेश एवं स्तेमाल करने से नहीं रोक सकता हैं।

समानता का अधिकार के प्रकार

समानता के अधिकार के बारे में जानने से पहले समानता के प्रकारों को जानना चाहिए। समता का अधिकार के प्रकार हैं:

  • प्राकृतिक
  • सामाजिक
  • नागरिक
  • राजनीतिक
  • आर्थिक
  • कानूनी

समानता का अधिकार भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों में से एक है। यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि यह अधिकार क्या है और इसमें क्या शामिल है। 

समानता का अधिकार अनुच्छेद

अनुच्छेद 14 - धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र में कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

अनुच्छेद 15 - राज्य किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

अनुच्छेद 16 - राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी।

अनुच्छेद 17 - अस्पृश्यता का उन्मूलन

अनुच्छेद 18 - सैन्य और शैक्षणिक को छोड़कर सभी उपाधियों का उन्मूलन

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