एक दिन भगवान बुद्ध एक गाँव से गुजर रहे थे। तभी एक युवक आया और उसका अपमान करने लगा, तुम्हें कोई अधिकार नहीं है, ज्ञान देने की तुम सभी की तरह मूर्ख हो। तुम एक नकली साधु हो वह व्यक्ति बुद्ध भगवान से बोलने लगा।
बुद्ध इन अपमानों से विचलित नहीं हुए। इसके बजाय उसने उस युवक से पूछा, मुझे बताओ अगर तुम किसी के लिए उपहार खरीदते हो और वह व्यक्ति उसे नहीं लेता है तो उपहार किसका है।
ऐसा अजीब सवाल पूछे जाने पर वह आदमी हैरान रह गया और उसने जवाब दिया, यह मेरा होगा। क्योंकि मैंने उपहार खरीदा है।
बुद्ध मुस्कुराए और बोले, यह सही है। और ठीक ऐसा ही तुम्हारे क्रोध के साथ भी होता है। यदि तुम मुझ पर क्रोधित हो जाते हो और मेरा कोई जवाब नही आता हैं। तो क्रोध तुम पर लौट आता है।
तब तुम ही दुखी होगे। क्रोध दूसरे से ज्यादा खुद को नुकसान पहुंचाता हैं। अगर आप खुद को चोट पहुंचाना बंद करना चाहते हैं, तो आपको अपने गुस्से को कम करना होगा। और सभी से प्यार करना होगा।
जब आप दूसरों से घृणा करते हैं, तो आप स्वयं दुखी हो जाते हो। लेकिन जब आप दूसरों से प्यार करते हों, तो हर कोई खुश होता है।
बुद्ध भगवान की कहानी
गौतम बुद्ध का जन्म 567 ईसा पूर्व के आसपास, हिमालय की गोदी मे बसा देश नेपाल में हुआ था। उनके पिता शाक्य वंश के मुखिया थे। ऐसा कहा जाता है कि उनके जन्म से बारह साल पहले ब्राह्मणों ने भविष्यवाणी की थी कि गौतम महान सम्राट या एक महान ऋषि बनेगा।
उसे तपस्वी बनने से रोकने के लिए उसके पिता ने उसे महल की ऐसों आराम की जिंदगी मे रखा। गौतम राजसी विलासिता में पले-बढ़े, बाहरी दुनिया से बिल्कुल अनजान थे। ब्राह्मणों द्वारा शिक्षा प्राप्त लिया, और तीरंदाजी, तलवारबाजी, कुश्ती और तैराकी मे महारत हासिल किया।
जब वह बड़ा हुआ तो उसका विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ, जिसने एक पुत्र को जन्म दिया। सभी बहुत खुश थे। गौतम बुद्ध को राजमहल की चार दीवार अब रास नहीं आ रही थी। वह बार बार बाहर की दुनिया को देखने की बात करता था।
एक दिन जब राजकुमार गौतम भ्रमण के लिए गया तो उसने देखा, एक बीमार आदमी , एक बूढ़ा व्यक्ति मृत्यु के अगन पर था, और एक लाश जिसे जलाया जा रहा था। उसके जीवन में इसका अनुभव कभी नहीं किया था। जब उनके सारथी ने उन्हें बताया कि सभी प्राणी बीमारी, वृद्धावस्था और मृत्यु के अधीन हैं।
चाहे वह राज्य हो या रंक सभी को इन अवस्था से होकर गुजरना पड़ता हैं। सभी व्यक्ति को एक ना एक दिन मृत्यु की श्याया पर लेटना पड़ता हैं।
जैसे ही वह महल में लौटा, उसने एक भटकते हुए तपस्वी को सड़क के किनारे शांतिपूर्वक देखा। गौतम ने पूछा ये कौन है और ऐसा वस्त्र क्यों धरण किया हुआ हैं। सारथी ने जवाब दिया यह साधु हैं वह सत्य की तलाश करने के लिए तप करते हैं।
तब गौतम बुद्ध सत्य की तलाश में महल छोड़ने का संकल्प लिया। अपनी पत्नी और बच्चों को बिना बताएं चुपचाप वह जंगल के किनारे चला गया। उसने अपने लंबे बाल और एक तपस्वी के जैसे कपड़ों को अपनाया।
भगवान बुद्ध को बिहार मे एक वृक्ष के नीचे तप करते हुए ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने अपने जन्म लेने के कारण को जान लिया था। तब से गौतम बुद्ध भ्रमण करते करते लोगों को दीक्षा देते देते एक गाँव से दूसरे गावँ जाते थे।
भारत के कई जगहों पर बुद्ध की प्रतिमा और प्राचीन स्कूल का पता लगा हैं। कहा जाता है की हजारों भिकछुक इन स्कूल से दीक्षा प्राप्त करते थे।