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जादुई कुएं की कहानी - jadui kua ki kahani

एक गांव में नीरज और मोहन नाम के दोस्त रहते थे। नीरज बहुत ही सीधा साधा था। जबकि मोहन बहुत लालची और कंजूस था। दोनो की शादी हो गई थी। नीरज खेती किसानी करता था। जबकि मोहन व्यापार करता था।

उस साल बारिस न होने के कारण नीरज को बहुत नुकशान हुआ था। और गर्मी अधिक पड़ने के कारण गांव में पानी की कमी हो गई थी। नीरज के आंगन में कुंआ था वो भी सुख गया था। नीरज और उसकी पत्नी दोनो पानी की कमी के बारे में बात कर रहे थे। तभी उसकी पत्नी ने याद दिलाया की उसने मोहन को बहुत पहले 500 रूपए उधार दिए थे। और उसने नहीं लौटाए है।

उसकी पत्नी ने कहा जाओ उसे मांगकर लावो उससे कुछ कष्ट दूर हो जाएंगे। और कुएं को गढ़ा करने के लिए मिस्त्री मिल जायेंगे। जिससे हमे पानी की कमी नहीं होगी। 

नीरज मोहन के पास जाता हैं। मोहन का व्यापार बहु अच्छा चल रहा था। उसके पास बहुत पैसे थे उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी। मोहन को नीरज ने 500 रूपय उधार देने की बात याद दिलाई। लेकिन मोहन ने पैसे नही है बोलकर उसे नही दिए। 

नाराज होकर नीरज ने अपनी पत्नी से कहा की मैं खुद ही कुआ को गहरा करूंगा। नीरज सीडी और रस्सी की मदद से नीचे उतरा और कुआं को खोदने लगा। दिन रात मेहनत करने के बाद कुछ पानी की बूंदे दिखाई देने लगी। नीरज और उसकी पत्नी बहुत खुश हो गए। लेकिन हाथ में लेने पर पता चला कि वह पानी नहीं तेल हैं। 

फिर नीरज ने उसका व्यापार करने का सोचा और उस तेल को लेजाकर शहर में बेच आता था। इससे उसे काफी मुनाफा होने लगा। कुछ समय में नीरज बहुत अमीर बन गया। यह देख मोहन की पत्नी जलन के मारे मोहन से कहती हैं इतना पैसा तुम्हारे दोस्त के पास कहा से आ रहा हैं जाओ और पता लगाकर आना।

मोहन नीरज के घर जाता हैं। और उसके काम के बारे में पूछने लगता हैं। लेकिन नीरज कुछ नही बताता हैं। लेकिन बाद में मोहन और उसकी पत्नी को पता चल जाता हैं की नीरज के कुआ में तेल निकल रहा हैं। 

फिर मोहन भी अपना व्यापार छोड़कर अपने आंगन में कुआ खोदने लगता हैं। और बहुत मेहनत करने पर भी कुछ नही मिल पाता हैं। मोहन बहुत गरीब हो जाता हैं। और अपने लालच करने पर पछताने लगता हैं।

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