मानवीय क्रियाकलाप क्या है - manviy kriyakalap

आवश्यकता अविष्कार की जननी है। बहुत समय तक मानव अपनी प्रारंभिक आवश्यकताओ की पूर्ति हेतु प्रकृति प्रदत्त मुलभुत साधनो जैसे वायु, जल, मांस कंदमूल आदि का प्रयोग करता रहा मनुष्य की बुद्धि का विकास हुआ उसी अनुरूप आवश्यकताएं भी बढ़ती गई। 

मानवीय क्रियाकलाप क्या है

मानव अपनी विभिन्न अवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कोई न कोई कार्य करता रहा है। मानव द्वारा जीवन यापन करने के लिए की जाने वाली इन्ही आर्थिक क्रियाकलापों को मानवीय क्रियाकलाप कहते हैं। 

इन आर्थिक क्रियाकलापों को व्यव्साय कहते है। इन आर्थिक क्रिया कलापो को मुख्य रूप से प्राथमिक ,द्वितीयक,तृतीयक या चतुर्थक क्रियाकलाप में बाँटा गया है।

परिवर्तित होती प्रवित्तियाँ - वर्तमान स्थिति तक के विकास में मनुष्य को हजारो वर्ष लग गए है। आज के मनुष्य की आवश्यकताएँ मात्र प्रारंभिक आवश्यकताएँ ही नहीं रह गई हैं।

बल्की अब तो उनकी इच्छये अन्य ग्रहो तक भ्रमण कर चुकी है।और बुद्धि के विकास के साथ साथ इच्छये भी बढ़ती जा रही है। 

आज मनुष्य द्वारा अपनाये जाने वाले व्यावसाय भौतिक पर्यावरण और वँहा रहने वाले लोगों की शिक्षा एवं तकनिकी स्तर के अनुरूप निर्धारित होते हैं। आज मनुष्य समस्त उपलब्ध संसाधनों जैसे वायु, जल, मृदा, वन, वन्य जीव, मत्स्य, खनिज पदार्थ एवं मानवीय संसाधनों का भरपूर उपयोग कर रहा है। 

मानवीय क्रियाकलाप का विकास

इन संसाधनों के उपयोग में जैसे जैसे विविधता और जटिलता आती गई इनमें स्पष्टीकरण होता गया हैं।

1. आदि मानव ने आवश्यकता पूर्ति हेतु शिकार को अपनाया। आज भी विभिन्न आदिम जातीयाँ इस व्यव्साय को अपनाये हुए हैं। जैसे - कांगो घाटी के पिग्मी अमेजन बेसिन के बोरो, श्रीलंका के वेद्दा एवं टुण्ड्रा प्रदेश के निवासी एसिकमो तथा सेमोयेडस आदि। 

2. शिकार से जब मनुष्य की क्षुधा तृप्त नई हुई तो उसने अन्य वस्तुओ को भी भोजन के लिए चुना और उसका संग्रहण करना प्रारम्भ कर दिया।  संग्रहण में कंद, मूल फल विशेष उल्लेखनीय हैं। 

3. मनुष्य ने पशु संसाधन का उपयोग करना सीखा और इससे पशु - पालनव्यव्साय विकसित हुआ। आज भी घास के मैदानी इलाकों में पशुपालन किया जाता है। 

4 आगे चलकर मनुष्य ने बीजों का चयन कर उसे उपजाना सीखा जिसे कालांतर में कृषि व्यव्साय विकसित होकर वर्तमान स्थिति को प्राप्त हुआ। 

5 विशिस्टिकरण एवं वर्ग विभाजन से एक दूसरे पर निर्भरता बढी तथा वस्तु विनिमय की आवश्यकता पड़ी मुद्रा के विकास ने विनिमय सरल बना दिया। कुछ लोगो ने इसी से जीविकोपार्जन करना प्रारम्भ किया और व्यापार ने व्यवसाय का रूप धारण कर लिया।

6. जहाँ अच्छी उपयोग वाले वन थे। वहां लकड़ी काटने का व्यव्साय विकसित हुआ जैसे - कनाडा व साइबेरिया का टैगा क्षेत्र आदि में। 

7. अनेक उद्योग खनिज संसाधनों पर निर्भर है, अत: जहाँ खनिज पदार्थ उपलब्ध हुए वहां खनन व्यवसाय विकसित हुआ। 

8. आगे चलकर, सामाजिक संगठन इस प्रकार बना की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अनेक पेशेवर व्यवसाय विकसित हुए जैसे, अध्यापक, डॉक्टर, वैज्ञानिक, कारीगर आदि। 

9. आद्योगिक विकास के साथ ही हजारों प्रकार के व्यवसाय विकसित हुए, जैसे - बैंकिंग, परिवहन साधन, वाणिज्य आदि।

मानव क्रिया कलापों के प्रकार   

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि मानव अपनी विभिन्न आवश्कताओ की पूर्ति हेतु कोई न कोई आर्थिक कार्य करता है। मानव द्वारा जीवन यापन के लिए की जाने वाली इन्ही आर्थिक क्रिया कलापो को व्यवसाय कहते हैं। 

इन आर्थिक क्रियाकलापों या व्यवसाय को मुख्य रूप से प्राथमिक, द्वितीयक, तृतीयक, एवं चतुर्थक क्रियाकलापों में बाँटा गया है। 

1. प्रथामिक क्रियाकलाप

ये वे व्यवसाय हैं जिनके द्वारा मनुष्य प्राकृतिक संसाधनों से सीधे भोजन वस्त्र आवास तथा अन्य सुविधाएँ प्राप्त करता है। इनका सीधा सम्बन्ध प्राकृतिक वातावरण की दशाओ से होता है।

 वनों से संग्रहण, आखेट, लकड़ी काटना, घास के मैदान में पशु चराना,नदियों, झीलों व समुद्रों से मछली पकड़ना, पशुओं से दूध, मांस प्राप्त करना आदि। उपजाऊ मैदानी भागों में कृषि करना तथा खदानों से खनिज निकलना आदि प्राथमिक व्यवसाओं के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। 

इन व्यवसाओं की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं 

  1. प्राथमिक व्यवसाय सरल होते हैं और कम बुद्धि का व्यक्ति भी इसे अपना सकता है। 
  2. ये व्यवसाय प्रायः परम्परागत होते हैं। 
  3. वे व्यवसाय आदि काल की आर्थिक तथा सामाजिक संरचना के प्रतिक हैं।

विश्व के सभी भागों में लोग प्राथमिक व्यवसायों में लगे हुए हैं। जिसमे एशिया, अफ्रीका, दक्षिणी अमेरिका तथा उत्तरी ध्रुव के अधिकांश निवासी प्राथमिक व्यवसाय में कार्यरत हैं।     

2. द्वितीयक क्रियाकलाप

प्राथमिक व्यवसायों से उपलब्ध संसाधनों को संसोधित कर अथवा उनका रूप बदल कर उन्हें अधिक उपयोगी वस्तुएँ बनाने की समस्त क्रियाएँ द्वितीयक व्यवसाय के अंतर्गत आते हैं। जैसे - कपास से सूती वस्त्र बनाना, गन्ने से शक्कर बनाना, लौह-अयस्क तथा कोयले आदि के सहयोग से लौह इस्पात बनाना आदि। 

चुकि इस व्यवसाय द्वारा नवीन पदार्थो का निर्माण होता है, अतः इसे निर्माण उद्योग कहा जाता है। इसके अंतर्गत छोटी वस्तु से लेकर बड़ी एवं जटिल वस्तुएँ मशीनें, यंत्र,औजार आदि बनाये जाते है। इस उद्योग की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

  1. अधिकांश उत्पादन मशीनों द्वारा होता है।   
  2. उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है। 
  3.  अधिक पूंजी की आवश्यकता पड़ती है। 
  4.   विभिन्न प्रकार के औद्योगिक अनुसंधान होते रहते हैं। 
  5.  ये व्यवसाय अर्थव्यवस्था के प्रमुख आधार होते है। 
  6.   अधिकांश उत्पादन निर्यात के लिए किया जाता है। 
  7.  उत्पादन एवं कार्यों का विशिष्टीकरण होता है। 
  8.  एक उद्योग के साथ अनेक सहायक उद्योग विकसित होते हैं।  
  9. उत्पादित वस्तुओं का नवीनीकरण होता रहता है। 
  10. वस्तु निर्माण उद्योग के तीन स्तर हैं- (a) कुटी, (b) लघु, (c) वहत उद्योग। 

 3. तृतीय क्रियाकलाप

तृतीयक व्यवसाय के अंतर्गत वे सभी सेवाएँ आती हैं, जो प्राथमिक एवं द्वितीयक व्यवसाय में लगे लोगों को व्यक्तिगत रूप से दी जाती हैं। इस व्यवसाय में लगे हुए लोग प्रत्यक्ष रूप से किसी वस्तु का उत्पादन नहीं करते, बल्कि अपनी कार्य कुशलता तथा तकनीकी क्षमता से समाज की सेवा करते हैं।

इसीलिए इस व्यवसाय को सेवा श्रेणी भी कहा जाता है। परिवहन, व्यापार, संचार स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासनिक सेवा आदि तृतीयक व्यवसाय के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। 

4. चतुर्थ क्रियाकलाप 

मानव द्वारा किये जाने वाले उच्च स्तर के कार्य को इसके अंतर्गत रखा जाता है। जीन गॉटमैन के अनुसार-अप्रत्यक्ष सेवाएँ चतुर्थक व्यवसाय है। इस दृष्टि से अनुसंधान प्रबन्धन, उच्च शिक्षा, मनोरंजन के साधन, संरचना तकनीक आदि चतर्थक व्यवसाय हैं।

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