आर्थिक नियोजन क्या है?

आज के युग में आर्थिक नियोजन सर्वाधिक लोकप्रिय हो गया है। इसका प्रारम्भ 20वीं शताब्दी में हुआ। सर्वप्रथम नार्वे के विख्यात अर्थशास्त्री शोन्हेयडर ने आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिए नियोजन की आवश्यकता पर बल दिया। प्रथम महायुद्ध के समय जर्मनी ने अस्थायी तौर पर इसका उपयोग किया, परन्तु आर्थिक विकास के रूप नियोजन का उपयोग सर्वप्रथम नियोजित ढंग से रूस ने किया। 

इसके बाद नियोजन को उन देशों ने अपनाया जो विकास की गति को तीव्र करना चाहते थे। अन्य शब्दों में, आज आर्थिक नियोजन किसी न किसी रूप में विश्व के सभी देशों में अपनाया जाने लगा है। 

इसीलिये प्रो. राबिन्स का कथन है कि “आर्थिक नियोजन हमारे युग की एक महान औषधि है।” आर्थिक नियोजन की कुछ विद्वानों की परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

श्रीमती बी. बूटन के अनुसार, “आर्थिक नियोजन एक ऐसी पद्धति है जिसमें विपणन तन्त्र का प्रयोग जानबूझकर इस प्रकार किया जाता है कि ऐसा ढाँचा बने जो कि उनको स्वतन्त्र छोड़ने पर बनने वाले ढाँचे से भिन्न है।”

" डॉ. डाल्टन के शब्दों में, “व्यापक अर्थ में आर्थिक नियोजन विशाल साधनों के संरक्षणों द्वारा निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आर्थिक क्रियाओं का सचेत निर्देशन है।”

भारतीय योजना आयोग के मतानुसार, “आर्थिक नियोजन आवश्यक रूप से सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप साधनों को अधिकतम लाभ हेतु संगठित एवं उपयोग करने का एक मार्ग है । "

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन एवं विश्लेषण से पता चलता है कि सभी परिभाषाओं में नियोजन के विभिन्न तत्वों पर बल दिया गया है। अतएव इस आधार पर कहा जा सकता है कि आर्थिक नियोजन का तात्पर्य एक ऐसी व्यवस्था से है जिसमें निश्चित अवधि में किसी केन्द्रीय नियोजन सत्ता द्वारा देश के उपलब्ध साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग अधिकतम सामाजिक कल्याण प्राप्त करने के लिए किया जाता है। वास्तव में आर्थिक नियोजन किसी भी देश के सीमित साधनों को एक निश्चित अवधि में अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करने की विधि है।

आर्थिक नियोजन की विशेषताएँ

आज विश्व के प्रत्येक देश को आर्थिक नियोजन की आवश्यकता है किन्तु विकासशील देशों को इसकी और अधिक आवश्यकता रहती है। इन देशों में आर्थिक नियोजन के बिना गरीबी के दुष्चक्र को दूर करके ऊँची विकास दर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। 

इसीलिए कहा जाता है कि निम्न स्तर के सन्तुलन को भंग करने के लिये एक जोरदार धक्के की आवश्यकता होती है । वास्तव में यह एक नियोजित अर्थव्यवस्था के द्वारा ही सम्भव है। इस प्रकार नियोजन की निम्न विशेषताएँ पायी जाती हैं - 

(i) आर्थिक नियोजन आर्थिक संगठन की एक विधि है जिसमें अर्थव्यवस्था को विशेष प्रकार से व्यवस्थित किया जाता है ।

(ii) आर्थिक नियोजन के लिये देश में केन्द्रीय नियोजन संस्था संगठित की जाती है। यह देश के साधनों के अनुसार विकास कार्यक्रम बनाती है।

(iii) आर्थिक नियोजन का निर्माण पूर्व निर्धारित तथा सुविचारित निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है।

(iv) आर्थिक साधन सदैव सीमित होते हैं। अतएव उद्देश्यों में प्राथमिकता का निर्धारण करना होता है क्योंकि सभी कार्य एक साथ नहीं हो सकता है

(v) आर्थिक नियोजन के कार्यक्रम समय की अवधि के सन्दर्भ में तैयार किये जाते हैं तथा निर्धारित उद्देश्यों को इस अवधि में पूरा करने का प्रयास किया जाता है।

(vi) नियोजित अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाओं के लिये नियोजन किया जाता है किसी विशेष के लिए नहीं ।

(vii) इस व्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं को स्वतन्त्र रूप से कार्य करने के लिये अवसर प्राप्त नहीं होता है। प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप रहता है। 

(viii) एक नियोजित अर्थव्यवस्था में उत्पादन के नियोजन के साथ-साथ वितरण का भी नियोजन रखना आवश्यक होता है क्योंकि इससे सामाजिक कल्याण में तेजी से वृद्धि होती है ।

(ix) नियोजन अल्पकालीन न होकर एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। एक बार नियोजन अपनाने के बाद यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि आज विश्व के प्रत्येक देश को आर्थिक नियोजन की आवश्यकता है। किन्तु विकासशील तथा अर्द्धविकसित देशों में इसकी आवश्यकता अधिक ज्यादा है। इन देशों में आर्थिक नियोजन के बिना गरीबी के दुष्चक्र को दूर करके ऊँची विकास दर को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। 

प्रो. लेवी के शब्दों में, “आर्थिक नियोजन का आशय उत्पादन या वितरण या दोनों की माँग एवं पूर्ति के अन्तर को स्वतः उद्देश्य एवं अनियन्त्रित शक्तियों पर छोड़ने के स्थान पर सविचार एवं विचार युक्त नियन्त्रण द्वारा सन्तुलन स्थापित करना है।”

आर्थिक नियोजन का महत्व

आज आर्थिक विकास के क्षेत्र में नियोजन एक महत्वपूर्ण शस्त्र बन गया है। बिना नियोजन के कोई देश आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता है। वास्तव में विकासशील देशों के लिये आर्थिक नियोजन अनिवार्य हो गया है। 

प्रो. आस्कर लोगे ने ठीक ही कहा है कि “आज अनेक अर्द्धविकसित राष्ट्र यह विश्वास करते हैं कि उनके है पिछड़ेपन का एकमात्र समाधान आर्थिक नियोजन है।" इस प्रकार एक विकासशील अर्थव्यवस्था में आर्थिक नियोजन का विशेष महत्व है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय तथा महत्वपूर्ण मानी जाती हैं—

1. तीव्र विकास के लिए नियोजन - आर्थिक नियोजन विकासशील तथा अल्पविकसित देशों में तीव्र आर्थिक विकास की एक उपयुक्त विधि है। इन देशों में आर्थिक विकास के लिए आवश्यक भौतिक संरचना जैसे विद्युत पूर्ति, यातायात के साधन, सिंचाई आदि की कमी होती है। यह सुविधाएँ आर्थिक नियोजन के माध्यम से प्राप्त की जा सकती हैं। अतएव इनके तीव्र विकास हेतु इन देशों में आर्थिक नियोजन अनिवार्य होता है।

2. निर्धनता के कुचक्र को तोड़ने हेतु नियोजन - विकासशील देशों में आर्थिक शक्तियाँ इस प्रकार चक्राकार आकृति में घूमती रहती हैं कि एक देश अल्पविकसित बना रहता है, इस निर्धनता के कुचक्र को बड़े धक्के के द्वारा ही तोड़ा जा सकता है । इसके लिये विनियोग की आवश्यकता होती है, परन्तु इन विकासशील देशों में बचत एवं विनियोग की दरें बहुत ही नीची होती हैं। इनको ऊँचा नियोजन द्वारा बनाया जा सकता है तथा विकास को गति प्रदान की जा सकती है ।

3. पूँजी निर्माण करने हेतु नियोजन - विकासशील देशों में सड़कों, रेलों, शक्ति उत्पादन केन्द्रों, सिंचाई सुविधाओं, संचार माध्यमों आदि के रूप में सामाजिक पूँजी का अभाव होता है। वास्तव में इन देशों में पूँजी निर्माण की समस्या पायी जाती है। अन्य शब्दों में, इन देशों में विकसित देशों की तुलना में पूँजी निर्माण की दर सदैव कम होती है। वास्तव में देश के तीव्र विकास के लिए इनका पाया जाना नितान्त आवश्यक होता है।

4. साधनों के पूर्ण उपयोग हेतु नियोजन- अर्द्धविकसित देशों में साधारणतया विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों के कारण भी समस्त साधनों का पूर्ण उपयोग एवं विदोहन नहीं हो पाता है। इससे देश का पूर्ण रूप से विकास नहीं हो पाता है तथा राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में कमी बनी रहती है। इस कारण भी विकासशील देशों में आर्थिक नियोजन का अपनाया जाना तथा उनको पूरा किया जाना नितान्त आवश्यक होता है।

5. बेरोजगारी तथा अर्द्धबेरोजगारी को दूर करने हेतु नियोजन - प्रायः यह देखा गया है कि विकासशील तथा अल्पविकसित देशों में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी तथा अर्द्धबेरोजगारी पायी जाती है। यही कारण है कि आर्थिक नियोजन में सरकार मानव शक्ति का नियोजन करती है तथा अधिक-से-अधिक नये रोजगार विकसित करती है। इस प्रकार केन्द्रीय नियोजन द्वारा अर्थव्यवस्था में बड़ी मात्रा में नवीन रोजगारों का सृजन सम्भव हो सकता है। इन देशों में नियोजन की आवश्यकता इसके कारण भी पायी जाती है ।

6. तकनीकी प्रगति के लिए नियोजन - विकासशील देशों में उत्पादन की पिछड़ी हुई तथा रूढ़िवादी तकनीकी का प्रयोग होता है । साथ-ही-साथ जनता का मानस भी रूढ़िवादी होता है तथा वे आधुनिक उत्पादन तकनीक का विरोध करते हैं । किन्तु विकास के लिये वैज्ञानिक व नवीनतम यन्त्रों का उपयोग किया जाना आवश्यक होता है तभी विकास की गति में तेजी आती है। वास्तव में यह कार्य आर्थिक नियोजन के द्वारा सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

7. सन्तुलित आर्थिक विकास हेतु नियोजन — विकासशील देशों के तीव्र आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है कि कृषि तथा उद्योगों का साथ-साथ विकास हो । साथ-ही-साथ सामाजिक सेवाओं का विकास तथा आन्तरिक व बाह्य व्यापार में उचित ढंग से समन्वय बना रहे। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए साधनों का विभिन्न क्षेत्रों में उचित विभाजन किया जाना आवश्यक होता है। इसके लिये नियोजित नियोजन की आवश्यकता होती है।

8. बड़े धक्के के सिद्धान्त हेतु नियोजन — विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था निम्न स्तर की होती है। प्राय: यह देश अधिकतम तीव्र गति से विकास करने का प्रयास करता है । इसीलिये विकास की निम्न स्तरीय स्थिति को समाप्त करने के लिये एक बड़े धक्के की आवश्यकता होती है। 

इसके लिये पर्याप्त मात्रा में धन विनियोग करने की जरूरत होती है। अतएव यह कार्य नियोजन के माध्यम से आसानी से किया जा सकता है । एक कुशल नियोजन की आवश्यकता इसके लिये पड़ती है।

9. समाजवादी समाज की स्थापना हेतु नियोजन - अधिकांश विकासशील देशों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था पायी जाती है जिसमें घोर विषमता पायी जाती है। कभी-कभी इन देशों में विदेशी शासन भी होता है। दोनों ही दशाओं में आम जनता का शोषण होता है। 

किन्तु आज विश्व के अधिकांश देश स्वतन्त्र हो गये हैं तथा आर्थिक विकास में लगे हुये हैं। चूँकि नियोजन में समाजवादी विचारधारा होती है इसलिये तीव्र आर्थिक विकास हेतु इन देशों में नियोजन की आवश्यकता होती है। अन्य शब्दों में, समाजवादी समाज की स्थापना हेतु नियोजन की आवश्यकता पड़ती है।

उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि विकासशील देशों के लिए नियोजन अत्यन्त महत्वपूर्ण है, क्योंकि इन देशों में विकास की गति तीव्र करनी होती है। 

अन्य शब्दों में, इन विकासशील देशों में परिस्थितियाँ ही ऐसी होती हैं जहाँ पर आर्थिक नियोजन को अपनाना एक अनिवार्यता हो जाती है। प्रो. पानिकर के शब्दों में, “एक बात स्पष्ट प्रतीत होती है कि बिना व्यापक राजकीय नियोजन के वे देश आर्थिक पिछड़ेपन से मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकते हैं ।

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