अन्तर्जात शक्तियाँ अनेक प्रकार से पृथ्वी की सतह को या धरातल को ऊँचा-नीचा करती रहती हैं, वहाँ की चट्टानों की संरचना को प्रभावित कर उन्हें कठोर या असंगठित बनाने में सहायक रहती हैं।
इसके ठीक विपरीत, बहिर्जात शक्तियाँ असमतल धरातल या ऊँचे-नीचे भागों को विविध क्रियाओं, शक्तियों एवं अभिकर्ताओं के द्वारा समतल करने का प्रयास करती रहती हैं।
अनाच्छादन किसे कहते हैं
इस प्रक्रिया में एक ओर जहाँ ऊँचे भाग कट-छंटकर बहाए जाते हैं वहीं इन्हें निम्न धरातलीय भागों में बहाकर जमा कर दिया जाता है। इस प्रकार, ऐसी सम्पूर्ण क्रिया-कलाप जिसके द्वारा असमतल धरातल पर समतलीकरण का कार्य होता जाता है, अनाच्छादन कहलाती है।
इसमें स्थैतिक (स्थिर) एवं गतिशील दोनों ही प्रकार की शक्तियाँ कार्य करती हैं।
मांकहाउस महोदय के अनुसार, “अनाच्छादन शब्द का प्रयोग उन समस्त कारकों की क्रियाओं के लिए किया जाता है जिनसे धरातल का कोई भाग विनाश, अपव्यय तथा क्षति से गुजरता है तथा उपलब्ध अवसाद परिवहन कर अन्यत्र अवसादी शैलों की रचना हेतु जमा कर दिया जाता है।"
डॉ. सविन्द्र सिंह के अनुसार, "अनाच्छादन स्थैतिक एवं गतिशील दोनों शक्तियों का योग है।"
स्थैतिक या स्थिर शक्ति द्वारा अनाच्छादन से अर्थ यह है कि जब चट्टानें बिना किसी गतिशील शक्ति के प्रभाव से अपने ही स्थान पर टूट-टूटकर अपखण्डित होती हैं तथा रासायनिक क्रिया द्वारा अपघटित होती रहती हैं तो इसे अपक्षय कहते हैं।
गतिशील शक्तियों
गतिशील शक्तियों के द्वारा स्थैतिक शक्तियों द्वारा एकत्रित या धरातल पर उपलब्ध पदार्थों को काट-छाँटकर व बहाकर निम्न भागों की ओर ले जाकर जमा करने की सम्पूर्ण क्रिया पूरी की जाती है क्योंकि गतिशील शक्तियों द्वारा जो पदार्थ बहाकर ले जाया जाता है वह कहीं-न-कहीं तो जमा किया ही है।
अतः कटाव, बहाव एवं जमाव तीनों ही क्रियाएँ कटाव का ही परिणाम हैं। कटाव प्रधानत: ढाल है एवं गुरुत्वाकर्षण से निर्धारित होता है। भूतल पर पदार्थों का अनाच्छादन एवं क्षरण या वृहद् क्षरण की क्रिया कई प्रकार से प्रभावित रही है।
इसी कारण जब केवल तेज ढाल के प्रभाव से ही अपक्षय द्वारा एकत्रित पदार्थ बिना गतिशील शक्ति की सहायता से नीचे गिरते जाते हैं तो उन्हें वृहद् क्षरण कहा जाता है ।
इस क्रिया में भू-स्खलन के समय एक साथ बड़े पैमाने पर पदार्थों का ढाल एवं गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से स्थान परिवर्तन होता है। ऐसे पदार्थ एवं अन्य अपक्षय द्वारा ऊपरी डाल पर एकत्रित पदार्थ निरन्तर पर्वत पदीय भागों में एकत्रित होते रहते हैं। एक भू-वैज्ञानिक के अनुसार अर्थात् यदि आप किसी भृगु से नीचे गिरें तो इसे । धू-वैज्ञानिक भाषा में वृहद् क्षरण कहेंगे।
संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि अनाच्छादन में स्थैतिक एवं गतिशील या अपरदनकारी शक्तियों का सम्पूर्ण कार्य सम्मिलित है। अतः अनाच्छादन = अपक्षय + अपरदन