भारतीय नियोजन की क्या उपलब्धियां है?

भारत में आर्थिक नियोजन को 1 अप्रैल 1951 से प्रारम्भ किया गया था। तब से अब तक नियोजन के 58 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इन 58 वर्षों में देश ने निःसन्देह बहुत प्रगति की है। हम आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हुए हैं लेकिन अभी भी गरीबी और बेरोजगारी जैसी समस्याएँ पूर्ण रूप से खत्म नहीं हुई हैं। 

भारत में आर्थिक नियोजन की उपलब्धियाँ अपने 58 वर्षों के नियोजन काल में भारत ने अनेक उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं जिसमें से कुछ इस प्रकार हैं -

1. प्रति व्यक्ति आय

नियोजन काल में शुद्ध राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय दोनों में वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय 1950-51 में क्रमशः 8,905 करोड़ रुपये और 225 रुपये था जो 1999-2000 में बढ़कर 17,71,028 करोड़ रुपये व 16,047 रुपये हो गयी है। 

2. कृषि का विकास

नियोजन के 58 वर्षों में कृषि उत्पादन में लगभग चार गुना वृद्धि हुई है। खाद्यान्नों का उत्पादन 1950-51 में 508 लाख टन था जो1999-2000 में बढ़कर 2,089 लाख टन हो गया है। इसी प्रकार कपास व जूट का उत्पादन भी वृद्धि हुई है। सिंचाई सुविधाओं में भी वृद्धि हुई है। 1950-51 में 2.21 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध थीं। जबकि 1999-2000 में ये सुविधाएँ 8.47 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में उपलब्ध हैं।

3. औद्योगिक क्षेत्र में प्रगति

योजना अवधि में सबसे अधिक प्रगति औद्योगिक क्षेत्र में हुई है। इन वर्षों में औद्योगिक क्षेत्र का न केवल आधार मजबूत हुआ है बल्कि उद्योगों का वर्गीकरण भी हुआ है। कई नये-नये उद्योग स्थापित हुए हैं। उद्योगों के विकास के कारण पूँजीगत वस्तुओं के लिए अब भारत दूसरे देशों पर निर्भर नहीं है बल्कि भारत में पूँजीगत सामान का निर्यात होने लगा है। 

1950 से 2000 के बीच इस्पात 24 गुना, सीमेंट में 37 गुना, कागज में 30 गुना, साइकिलों में 139 गुना, मशीनरी औजारों में 4,663 गुना व नाइट्रोजन खाद में 1,220 गुना उत्पादन बढ़ा है।

4. सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार

नियोजन काल में सार्वजनिक क्षेत्र में काफी विकास हुआ है। 1950-51 में केवल 5 सार्वजनिक उपक्रम थे और उनमें 29 करोड़ रुपये विनियोजित थे। लेकिन 2000 के अन्त तक इन उपक्रमों की संख्या 240 हो गयी जिनमें 3,03,332 करोड़ रुपये विनियोजित थे। इन उपक्रमों में 15 लाख कर्मचारी कार्य कर रहे हैं।

5. बचत एवं विनियोग दरों में वृद्धि

योजना काल में शुद्ध घरेलू बचत व शुद्ध विनियोग दोनों में वृद्धि हुई है। 1950-51 में सकल घरेलू बचत की दर 8.9 प्रतिशत थी। जो 1999-2000 में बढ़कर 22 प्रतिशत हो गयी। इसी प्रकार 1950-51 में विनियोग दर 8.7 प्रतिशत थी वह 1999-2000 में बढ़कर 22.3 प्रतिशत हो गयी है।

6. परिवहन एवं संचार साधनों का विकास

योजना काल में देश में परिवहन एवं संचार साधनों का भी काफी विकास हुआ है। 1950-51 में 53,000 किलोमीटर रेलमार्ग था। जो 1999-2000 में बढ़कर 62,800 किमी हो गया है। इसी प्रकार 1950-51 में 4 लाख किमी. लम्बी सड़कें थीं। जबकि आज इन सड़कों की लम्बाई 33-2 लाख किमी है।

1950-51 में कुल 36,000 डाकखाने थे लेकिन अब इनकी संख्या एक लाख 54 हजार है। इसी प्रकार 1950-51 में 1.7 लाख टेलीफोन देश में थे। जिनकी संख्या वर्तमान में बढ़कर 265 लाख हो गयी है। 

7. शिक्षा का प्रसार

मानवीय पूँजी निर्माण में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश में इस दिशा में भी काफी प्रगति हुई है। शिक्षा के क्षेत्र में साक्षरता की दर जो 1951 में 18.3% थी। जो बढ़कर 1991 में 52.21 प्रतिशत हो गई थी।

6-11 आयु वर्ग के विद्यार्थियों का सकल पंजीकरण अनुपात 1950-51 में 42.6% था जो अब बढ़कर 1999-2000 में 87% हो गया है। इसी प्रकार इस अवधि में 11-14 आयु वर्ग का प्रतिशत 13 से बढ़कर 50 हो गया है।

8. आयात एवं निर्यात में वृद्धि

58 वर्षों के नियोजन काल में आयात एवं निर्यात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 1950-51 में आयात एवं निर्यात क्रमशः 608 व 606 करोड़ रु. के थे जो 1999-2000 में बढ़कर क्रमशः 2,04,583 व 1,62,935 करोड़ रुपये के हो गये हैं।

9. बैंकिंग क्षेत्र में उन्नति

देश में बैंकिंग सेवा का काफी विस्तार किया गया है। 1951 में वाणिज्यिक बैंकों की शाखाओं की संख्या 2,647 थी जो जून 2000 के अन्त में बढ़कर 65,450 हो गयी है।

10 स्वास्थ्य एवं जीवन प्रत्याशा में वृद्धि

योजना काल में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में समान प्रगति हुई है। 1951 में रोग शैयाओं की अस्पतालों में कुल संख्या 117 हजार थी। जो अब बढ़कर 834 हजार हो गई है। इसी के परिणामस्वरूप 1951 में भारत में जीवन प्रत्याशा जो 32 वर्ष थी वह बढ़कर 61 वर्ष हो गई है।

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