जनसंख्या की विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

भारतीय जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि भारतीय जनसंख्या में वृद्धि की प्रवृत्ति पायी जाती है। भारत की पहली जनगणना 1872 में की गयी थी और उसके अनुसार उस समय भारत की जनसंख्या 25.4 करोड़ थी। 

जो कि ठीक 100 वर्षों में बढ़कर 1971 में 54.8 करोड़ व 2001 में 102.7 करोड़ हो गई है। प्रारम्भ में जनसंख्या वृद्धि की दर धीमी थी लेकिन बाद में इसमें तीव्र गति से वृद्धि हुई है। भारतीय जनसंख्या में अनेक विशिष्ट लक्षण पाये जाते हैं। कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं।

जनसंख्या का घनत्व

जनसंख्या के घनत्व से तात्पर्य मानव-भूमि अनुपात से है। किसी क्षेत्र में प्रति वर्ग किलोमीटर में निवास करने वाले व्यक्तियों की औसत संख्या को ही जनसंख्या का घनत्व कहते हैं।

सन् 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में जनसंख्या का घनत्व प्रति वर्ग किलोमीटर 324 व्यक्ति है जो कि 1901 की जनगणना के समय 77 व्यक्ति था। 

जनसंख्या घनत्व किसी स्थान या क्षेत्र में अधिक होता है तो किसी में कम् | इसके कारण भूमि की उर्वरा शक्ति, जलवायु, सिंचाई के साधन, व्यापार, राजधानी, परिवहन के साधन, उद्योग, प्राकृतिक संसाधन व जीवन की सुरक्षा आदि हैं। भारतीय जनसंख्या घनत्व से सम्बन्धित मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं।

1.जनसंख्या घनत्व में लगातार वृद्धि

पिछली जनगणनाओं के आँकड़ों से यह स्पष्ट है कि भारत के जनसंख्या घनत्व में निरन्तर वृद्धि हो रही है। विभिन्न वर्षों में प्रतिवर्ग किलोमीटर में जनसंख्या का घनत्व इस प्रकार है — 1911 में 82, 1921 में 81, 1931 में 90, 1941 में 103, 1951 में 117, 1961 में 142, 1971 में 177, 1981 में 216, 1991 में 267 व 2001 में यह 324 हो गया है।

2.भारत की मध्यम स्थिति

विश्व के विभिन्न देशों में जनसंख्या घनत्व की दृष्टि से भारत की स्थिति मध्यम है। जैसे—जापान में 335, जर्मनी में 235, ब्रिटेन में 245, चीन में 133, अमेरिका में 29, रूस में 09, कनाडा में 3 व ऑस्ट्रेलिया में 2 हैं । विश्व औसत 45 है।

3.राज्यों के जनसंख्या घनत्व में भारी भिन्नता होना

भारत के विभिन्न राज्यों के जनसंख्या घनत्व में भारी भिन्नता पायी जाती है। 2001 की जनगणना के अनुसार जहाँ अरुणाचल प्रदेश में प्रति वर्ग किलोमीटर में 13 व्यक्ति रहते हैं वहाँ दिल्ली में 9, 292, चण्डीगढ़ में 7,903, केरल में 819 एवं पश्चिम बंगाल में 904 और उत्तर प्रदेश में 548 व्यक्ति रहते हैं ।

ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या

किसी भी देश के नगरीकरण में प्रगति उस देश के विकास की गति को बताती है। यही कारण है जिसकी वजह से यह कहा जाता है कि नगरीकरण व आर्थिक विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध है । जिस देश में नगरीकरण का अनुपात जितना अधिक होगा वह देश उतना ही अधिक विकसित होगा। 

भारत की 2001 की गणना के अनुसार देश की कुल जनसंख्या 102-7 करोड़ है जिसकी 28 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रहती है तथा शेष 72 प्रतिशत गाँवों में रहती है। 

विगत वर्षों में ग्रामीण व शहरी जनसंख्या का प्रतिशत इस प्रकार रहा है — 1921 में 88.8 व 11.2 प्रतिशत, 1931 में 88.0 व 12 प्रतिशत, 1941 में 86.1 व 13.9 प्रतिशत, 1951 में 81.7 व 18.3 प्रतिशत, 1961 में 82 व 18 प्रतिशत, 1971 में 80.1 व 19.9 प्रतिशत, 1981 में 76.7 व 23.3 प्रतिशत, 1991 में 74.3 व 25.7 प्रतिशत तथा 2001 में 72 व 28 प्रतिशत। 

उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि वर्तमान में देश में 10 व्यक्तियों में से तीन व्यक्ति शहर में रहते हैं, जबकि 70 वर्ष पूर्व 10 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति शहर में रहता था।

नगरों में जनसंख्या वृद्धि के कारण-नगरों में जनसंख्या वृद्धि के निम्नांकित कारण हैं।

(i) औद्योगीकरण एवं नवीन उद्योगों का विकास, (ii) देश विभाजन, (iii) गाँवों में सुरक्षा की कमी, (iv) नगरों में चिकित्सा, शिक्षा, मनोरंजन, प्रशिक्षण व रोजगार सुविधाओं का होना, (v) शहरों में रोजगार क्षमता का होना,(vi) जमींदारों की शहरों में बसने की प्रवृत्ति आदि।

स्त्री पुरुष अनुपात

किसी भी देश की जनसंख्या में स्त्री-पुरुष या लिंग अनुपात काफी महत्वपूर्ण होता है जो जन्म दर व मृत्यु दर को प्रभावित करता है।

इससे विवाह दर व बच्चों की संख्या भी प्रभावित होती है तथा प्रतिकूल लिंग अनुपात की स्थिति में विभिन्न प्रकार की नैतिक एवं सामाजिक बुराइयाँ भी पैदा हो जाती हैं। स्त्रियों की कार्य शक्ति सामान्यतः कम होती है, इसलिए स्त्रियों का अनुपात अधिक होना राष्ट्रीय आय पर भी कुप्रभाव डाल सकता है।

स्त्री-पुरुष अनुपात की गणना 1000 के आधार पर की जाती है। इसका अर्थ है कि 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियाँ हैं। 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में प्रति 1000 पुरुषों के पीछे 933 स्त्रियाँ हैं।

(i) स्त्री-पुरुष अनुपात में कमी के कारण देश के विभिन्न जनगणनाओं के आँकड़ों से ज्ञात होता है कि देश में स्त्रियों की संख्या निरन्तर घट रही है। 

1901 में प्रति 1000 पुरुषों के पीछे 972 स्त्रियाँ थीं जिनकी संख्या 1971 में घटकर प्रति 1000 पुरुषों के पीछे 930 व 1991 की जनगणना के अनुसार यह 927 हो गयी तथा कुछ सुधार के साथ 2001 में यह बढ़कर 933 हो गयी है। 

स्त्रियों की संख्या में कमी के मुख्य कारण हैं—(i) पुरुष शिशुओं का अधिक जन्म, बाल्यावस्था में लड़कियों की उचित देखभाल न होना और उनकी मृत्यु हो जाना । (ii) बाल-विवाह होने पर मातृत्व का भार वहन करने के अयोग्य होने के कारण लड़कियों की प्रसूति काल में मृत्यु आदि हैं ।

(ii) विभिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न स्थिति — देश के विभिन्न राज्यों में स्त्री पुरुष अनुपात एकसमान नहीं है। दिल्ली में प्रति हजार पुरुषों के पीछे 821 स्त्रियाँ हैं, जबकि केरल में प्रति हजार पुरुषों के पीछे 1058 स्त्रियाँ हैं। 

अन्य राज्यों में स्त्री-पुरुष अनुपात प्रति हजार पुरुषों पर इस प्रकार हैं - बिहार 921, हरियाणा 861, हिमाचल प्रदेश 900, मध्य प्रदेश 920, पंजाब 874, राजस्थान 922 व उत्तर प्रदेश में 898 हैं।

(iii) ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में स्त्री - पुरुष अनुपात में अन्तर - 1991 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार पुरुषों के पीछे शहरी क्षेत्रों में 859 स्त्रियाँ हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 952 हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि पुरुष अपनी स्त्रियों को गाँव में छोड़कर नौकरी के लिए शहरों में आ जाते हैं।

साक्षरता अनुपात

जिस देश में साक्षरता अनुपात जितना अधिक होगा उतना ही उस देश के विकास में सुविधा मिलेगी। इस दृष्टिकोण से हमारे देश में स्थिति सन्तोषजनक नहीं है, यद्यपि यहाँ साक्षरता के प्रतिशत में निरन्तर वृद्धि हो रही है। 

1951 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता का प्रतिशत 18.3 था जो 1961 में बढ़कर 24, 1971 में 29.2, 1981 में 36-2, 1991 में 52.2 व 2001 में 65.4 हो गया है। इस प्रकार पिछले 50 वर्षों में साक्षरता दर में चार गुने की वृद्धि हुई है।

साक्षरता दर अनुपात की अन्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं - 

(i) स्त्रियों की साक्षरता दर पुरुषों से कम — स्त्रियों की साक्षरता दर पुरुषों की तुलना में कम है। 2001 की जनगणना के अनुसार स्त्रियों की साक्षरता प्रतिशत 54.2 है, जबकि पुरुषों की साक्षरता प्रतिशत 75:9 है। 

(ii) ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों की साक्षरता दर में अन्तर — ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता शहरी क्षेत्रों से कम । 1991 की गणना के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों का साक्षरता का प्रतिशत 33.8 था, जबकि शहरी क्षेत्र का प्रतिशत 61-3 था। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों की साक्षरता का प्रतिशत 13.2 था, जबकि शहरी क्षेत्र की स्त्रियों का प्रतिशत 42-3 था।

(iii) विभिन्न राज्यों की साक्षरता दर में अन्तर - देश के विभिन्न राज्यों में साक्षरता का प्रतिशत एक-सा नहीं है । 2001 की जनगणना के अनुसार भारत में केरल राज्य एक ऐसा राज्य है जहाँ साक्षरता का प्रतिशत 90.9 है जो सबसे ऊँचा है। इसके बाद मिजोरम का स्थान है जहाँ पर प्रतिशत 88.5 है। भारत में सबसे कम साक्षरता बिहार में है जिसका प्रतिशत 47.5 है। उत्तर प्रदेश में साक्षरता का प्रतिशत 57.4 है। 

प्रत्याशित आयु 

प्रत्याशित आयु से अर्थ जीवित रहने की आयु से है जिसे देश के निवासी जन्म के समय आशा कर सकते हैं। इस जीवित रहने की आशा को ही प्रत्याशित आयु या औसत आयु कहते हैं। यदि मृत्यु दर ऊँची हो जाती है या मृत्यु कम आयु में हो जाती है तो प्रत्याशित आयु कम होती है।

इसके विपरीत यदि मृत्यु दर नीची होती है तो व्यक्तियों की आयु अधिक होती है और इस प्रकार प्रत्याशित आयु भी अधिक होती है। लगभग 90 वर्ष पूर्व भारत में प्रत्याशित आयु 24 वर्ष थी, लेकिन इसमें धीरे-धीरे वृद्धि हो गयी है और वर्तमान में यह 65 वर्ष हो गयी है। 

भारत में प्रत्याशित आयु बढ़ी है जो 90 वर्षों में लगभग तीन गुनी हो गयी है। इसके बढ़ने के कारण सामान्य मृत्यु दर व बाल मृत्यु दर में तेजी सें कमी होना है जो शिक्षा, चिकित्सा सुविधाओं, रहन-सहन स्तर में वृद्धि आदि का परिणाम है।

लेकिन फिर भी भारत की प्रत्याशित आयु अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। जैसे—–प्रत्याशित आयु जापान में 80, स्वीडन में 79, कनाडा में 79, अमेरिका में 77, ब्रिटेन में 77 व चीन में 70 वर्ष है।

आयु संरचना

किसी भी देश की जनसंख्या में आयु संरचना का विशेष महत्व है। इस आयु संरचना से बहुत-सी महत्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

जैसे - स्कूल जाने वाली जनसंख्या,श्रम करने वाली जनसंख्या,विवाह योग्य जनसंख्या, मतदाताओं की जनसंख्या आदि।

2001 की जनगणना के अनुसार भारत में 0-6 वर्ष तक के बच्चों का प्रतिशत 15-42 है। वैसे भारत में 14 वर्ष तक के बच्चों का प्रतिशत 36 है। 7 प्रतिशत जनसंख्या ऐसी है जिसकी आयु 60 वर्ष या इससे अधिक है। इस प्रकार 43 प्रतिशत जनसंख्या बूढ़े व बच्चों की है तथा शेष 57 प्रतिशत की आयु 15 वर्ष से लेकर 59 वर्ष तक की है।

भारत में 14 वर्ष तक के बच्चों का प्रतिशत 36 है जो बहुत ऊँचा है । इस प्रतिशत को कम करने के लिए जन्म दर कम करना आवश्यक है। इससे आश्रितों की संख्या में कमी होगी, जिससे जीवन स्तर पर व बचत पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा।

जन्म दर व मृत्यु दर

जन्म दर–जन्म दर से अर्थ एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे बच्चों के जन्म से है। भारत में जन्म दर में निरन्तर कमी होती रही है। 1910-11 के मध्य यह दर 49.2 प्रति हजार थी जो 1961-71 के मध्य कम होकर 41-7 प्रति हजार हो गयी, लेकिन विभिन्न परिवार नियोजन कार्यक्रमों के अपनाने से इसमें और कमी आयी है। 

अतः यह 1990-91 में 29.5 प्रति हजार रही है, जबकि वर्तमान में यह 26.1 प्रति हजार है। यह अन्य देशों की तुलना में काफी ऊँची है । औसत जन्म दर ऑस्ट्रेलिया में 15, जर्मनी में 10, अमेरिका में 16 प्रति हजार है।

भारत में ऊँची जन्म दर के कारण – भारत में ऊँची जन्म दर होने के निम्नांकित कारण हैं—(1) सामाजिक विश्वास,(2) पारिवारिक मान्यता, (3) बाल-विवाह, (4) विवाह की अनिवार्यता, (5) ईश्वरीय देन,(6) मनोरंजन के साधनों का अभाव, (7) निम्न आय व निम्न जीवन स्तर, (8) गर्म जलवायु, ( 9 ) ग्रामीण क्षेत्रों में निरोधक सुविधाओं का अभाव आदि ।

मृत्यु दर – मृत्यु दर से अभिप्राय एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे मृत्युओं की संख्या से है । इस दर में काफी कमी हुई है। 1911-20 के मध्य यह दर 47.7 थी जो 1950-51 में 27.4 व 1990-91 में 9.8 रह गयी और वर्तमान में यह 8.7 है। यह भी अन्य देशों की तुलना में ऊँची है।

मृत्यु दर की कमी के कारण - भारत में मृत्यु दर में आने वाली कमी के कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं—(1) अकालों व महामारियों में कमी, (2) चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुधार कार्यक्रमों का विस्तार, (3) स्त्रियों की शिक्षा में वृद्धि, (4) विवाह आयु में वृद्धि, (5) मनोरंजन के साधनों का विस्तार, (6) अन्धविश्वास में कमी, (7) शहरीकरण, (8) जीवन स्तर में वृद्धि आदि ।

जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण

जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण से अर्थ कुल जनसंख्या के उस अनुपात से है जिसमें जनसंख्या विभिन्न प्रकार के व्यवसाय में लगी है। अर्थात् कुल जनसंख्या विभिन्न प्रकार के व्यवसायों में किस अनुपात में लगी है इसी को जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण कहते हैं। 

कुल जनसंख्या में कार्यशील जनसंख्या का अनुपात विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न है तथा एक ही देश में अलग-अलग समयों पर अलग-अलग है। इसके प्रमुख कारण हैं—प्रत्याशित आयु, रोजगार अवसरों की उपलब्धि, कार्य के प्रति जनता का दृष्टिकोण आदि। 

1991 की जनगणना के अनुसार भारत की कार्यशील जनसंख्या 37.5 प्रतिशत थी । यह प्रतिशत पिछले दशकों में घटता-बढ़ता रहा है। जैसे - 1901 में 46.6 प्रतिशत और 1931 में 42.4 प्रतिशत।

यदि हम अन्य देशों से भारत की कार्यशील जनसंख्या की तुलना करते हैं तो पाते हैं कि हमारा प्रतिशत जो 37.5 है जो बहुत ही कम है। जैसे - जर्मनी की 73 प्रतिशत, जापान की 50 प्रतिशत तथा फ्रांस की 43 प्रतिशत जनसंख्या कार्यशील है।

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