प्रायश्चित के संदर्भ में गाँधी जी के विचार पर प्रकाश डालिए।

अपने गुनाहों की माफी माँगना ही प्रायश्चित है। प्रायश्चित के माध्यम से अपने अपराध को कम करने का प्रयास किया जाता है। सद्, चित, आचरण का व्यवहार कर अपने पापों की क्षमा याचना करना प्रायश्चित है। 

मनुष्य का किसी बात पर आत्मग्लानि करते हुए माफी माँगना कम देखा गया है। अधिकांश दंड के डर से लोग अपने अपराध को छुपा लेते हैं। 

मनुष्य की शारीरिक या मानसिक दंड का निर्धारण अपराध की श्रेणी से निर्धारित होता है। जितना बड़ा अपराध उतना ही बड़ी सजा भी मिलती है। शारीरिक दंड का प्रावधान हमारे कानून में है।

हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं कि अच्छे कर्म करने से सद्गति और बुरे कर्म करने से दुर्गति होती है हमारे द्वारा किया गया प्रत्येक कार्य पाप और पुण्य की श्रेणी में रखा जाता है। 

समय रहते अगर हम अपनी गलती स्वीकार नहीं करते हैं तो मृत्यु पश्चात् यमराज हमें उसका दंड अवश्य देते हैं। बाल्यावस्था में सुनी हुई यह सब बात आजीवन हमें बुरी संगति, बुरा व्यवहार करने में रोकता है। 

प्रायश्चित करके आत्म संतुष्टि होती है। किसी भी वस्तु को नष्ट करने का अधिकार हमें प्राप्त नहीं है, क्योंकि हम उसे नष्ट करने के बाद पुनः हूबहू नहीं बना सकते हैं। इसी प्रकार किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाकर हमें खुश नहीं होना चाहिए। 

चोरी करना, हत्या करना, झूठ बोलना यह सब अपराध है, इससे बचना चाहिए। मनुष्य आत्म संतुष्टि रखते हुए इन सभी अपराधों से बच सकता है। लेकिन अनजाने में या जानकर अपराध हो जाने पर उसे स्वीकार करना आवश्यक है। 

अपराध की स्वीकारिता आपके अपराध को कम करती है। अपराध के दंड स्वरूप प्रायश्चित आवश्यक है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक अपराध के लिए आपको सजा मिले, आप जेल में रहकर दिन व्यतीत करें। 

आत्मग्लानि सबसे बड़ा प्रायश्चित है। सबके समक्ष अपनी गलती स्वीकार करना सीखना चाहिए।

गाँधी जी को अपनी गलती पर पछतावा हुआ। वह अपने पिताजी से सच कहकर अपनी गलती का प्रायश्चित करना चाहते थे। पन्द्रह साल की उम्र में अपनी गलतियों का एहसास गाँधी जी को हो गया था। 

चिट्ठी में अपने सभी अपराध लिख दिए और पिताजी को चिट्ठी देकर उनके समक्ष अपराधी की भाँति बैठ गए। गाँधी जी द्वारा किए गए अपराध में जूठी ठूठी बीड़ी चुराना, नौकर के जेब से पैसे चुराना और भाई के साथ उनके सोने के कडे के टुकड़े बेचना है। 

यह सब बात पिताजी से छिपी हुई थी। इसके कारण गाँधी जी का अपराध बोझ बढ़ते जा रहा था। अतः प्रायश्चित करना आवश्यक था।

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