हिन्दी भाषा के स्वरूप की विवेचना कीजिए

नस्ष्ट संस्कृत के 'भाष्' धातु से बनी है, जिसका कोशगत अर्थ होता है-व्यक्त वाणी । वास्तव में भाषा वह उच्चरित और सशक्त माध्यम है, जिसके द्वारा परस्पर विचारों का विनिमय किया जा सकता है। सामान्य रूप में जिन ध्वनि-चिन्हों के माध्यम से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उनकी समष्टि को भाषा कहते हैं । भाषा का मूल सम्बन्ध बोलने से है तथा इस दृष्टि से वह मनुष्य जाति से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। 

भाषा की अनेक प्रवृत्तियों के समान ही भाषा वैज्ञानिकों ने इसके विविध रूपों एवं विकास के विविध आयामों की ओर ध्यान आकृष्ट किया। सच तो यह है कि अंधकार में बोलते हुए व्यक्ति को भाषण-पद्धति से हम पहचान लेते हैं, दूरभाष पर आवाज के माध्यम से भी व्यक्ति को पहचाना जाता है। ऐसी स्थिति में यह तथ्य स्पष्ट होता है कि जितने व्यक्ति हैं उतनी भाषा अथवा बोलियाँ हैं। 

भाषा विकास के आंगिक, वाचिक, लिखित और यांत्रिक ये सब विविध सोपान माने गये हैं। भाषा के विविध रूप आमतौर पर मुख-विवर से नि:सृत होने वाले प्रत्येक ध्वनि-संकेत को भाषा की संज्ञा दी जाती है, किन्तु भाषा वैज्ञानिकों की व्यापक दृष्टि में यह सब भाषा नहीं है। समाज में उनके पृथक्-पृथक् व्यवहार को दृष्टिगत कर भाषाविदों ने इन्हें विभिन्न नामों से संकेतिक किया है। 

इन्हें भाषा के विविधरूप की संज्ञा दी जाती है। इनमें से कुछ प्रमुख रूप हैं 1. बोली (Patois)-भाषा की छोटी इकाई है-बोली। कतिपय विद्वान इसे विभाषा अथवा उपभाषा भी कह देते हैं। परन्तु ध्यान देकर देखा जाये तो बोली एवं विभाषा में भेद है। किसी भी सीमित क्षेत्र की भाषा को उस क्षेत्र की ‘उपभाषा' कहकर पुकारा जा सकता है, जो वहाँ के निवासियों द्वारा दैनिक बोल-चाल के रूप में मात्र मौखिक रूप में प्रचलित है। 

लेखन, साहित्यिक प्रयोग, व्याकरणनिष्ठता आदि से इनका सम्बन्ध नहीं होता। भाषा की तरह इनमें व्यापकता अथवा स्थिर रूप के भी दर्शन नहीं होते। इसकी रूप-रचना और उच्चारण में स्थानीय प्रभाव को लक्षित किया जा सकता है। जिस प्रकार खड़ी बोली का एक रूप साहित्यिक है तो दूसरा विस्तृत ग्रामीण अंचलों में व्याप्त। इसी प्रकार ब्रजभाषा, भोजपुरी आदि के स्वरूप भी स्पष्ट होते हैं। 

निजी उच्चारण के कारण बोली का अपना अस्तित्व होता है। भाषा विज्ञान कोश में भी कहा गया है“Popular speech mainly, that of the illiterate classes, specially a local dialect of the । lower social strata.” तात्पर्य यह है कि किसी स्थान विशेष के निम्नवर्गीय एवं अशिक्षित लोगों की बोलचाल में प्रयुक्त होने वाली भाषा को बोली कहा जाता है। यही कारण है कि शिक्षित होने पर भी परिनिष्ठित एवं साहित्यिक भाषाओं

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