आत्महत्या पर गाँधी जी के विचार लिखिए।

 आत्महत्या पर गाँधी जी के विचार लिखिए। 

उत्तर

स्वयं पर किया गया प्रयोग, दूसरों के द्वारा दोहराने पर अधिक प्रभावी नहीं लगता है। बारह-तेरह वर्ष के उम्र में गाँधी जी स्वयं आत्महत्या के विषय में सोचते हैं और आत्महत्या की कोशिश भी करते हैं। 

आत्महत्या करने के लिए जंगल जाकर धतूरे के बीज लाते हैं। लेकिन दो-चार बीज खाने के बाद और बीज खाने की हिम्मत नहीं हुई। तुरंत मृत्यु न हुई तो बच जाने पर क्या होगा? यह भय मस्तिष्क में समा गया। शरीर को खत्म कर लेने से क्या सभी दुख दूर हो जाते हैं ? 

गाँधी जी जिस पराधीनता से मुक्ति के लिए आत्महत्या करना चाहते थे, उस आत्महत्या के सम्मुख जाकर उन्हें पराधीनता ही ठीक लगा।

बारह-तेरह साल के बालक का मन स्वतंत्रता चाहता है। पराधीनता जैसा शब्द या माहौल घर की चार दीवारी को समझा जाता है। बच्चे बड़ों से अपनत्व की चाह रखते हैं। 

बड़ों की बातों में छोटे बच्चों को दरकिनार कर देन से बच्चों में हीन भावना का जन्म होता है। बड़ों की आज्ञा के बिना स्वयं कुछ नहीं कर पाने की भावना गाँधी जी को अपने प्रति उपेक्षा लग रहा था। यही उपेक्षा उन्हें आत्महत्या के लिए प्रेरित करता है। 

आत्महत्या-मनुष्य के भीतर का अवसाद, विकार उसकी मृत्यु का कारण बनता है। निराशा के कारण जानबूझ कर अपने जीवन की इहलीला समाप्त करना, आत्महत्या है।

आत्महत्या को गाँधी जी ने निकट से अनुभव किया था। निराशाजनक स्थिति में आत्महत्या के विषय में सोचना सुखद अनुभूति देता है। 

आत्महत्या कर मनुष्य सभी मोह पास से छूट जाने की कल्पना करता है। सांसारिक जीवन में अपने कर्तव्यों का सही तरीके से निर्वहन न करने की वजह संसार से विरक्ति और आत्महत्या का कारण बनता है। बाल्यावस्था में बड़ों के सामने छोटे बच्चों को अनदेखा करना बाल्यमन में हीन भावना पैदा करता है। जिससे कभी-कभी घर से दूर भागने या आत्महत्या करने का प्रयास किया जाता है। 

आत्महत्या की कोशिश में असफल होने के बाद की स्थिति मन को विचलित कर देती है। असफल होने पर घर पर पड़ने वाली डाँट, धतूरे के बीज खाने से स्वास्थ्य का खराब होना यह सब बातें मन में आते ही गाँधीजी को आत्महत्या का विचार छोड़ना पड़ा था। 

दुबारा आत्महत्या के विषय में न सोचकर बड़ों की बातें मानना उन्हें अधिक संगत प्रतीत हुआ।

'अतएव गाँधी जी पर आत्महत्या की धमकी का असर नहीं होता।' 

Related Posts