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ज्वालामुखी किसे कहते हैं - jwalamukhi kya hai

आन्तरिक शक्तियों में से ज्वालामुखी एवं भूकम्प की घटनाएँ इतनी आकस्मिक एवं शीघ्र घटित होती है। कि उनका पृथ्वी की सतह पर तत्काल विनाशकारी प्रभाव दिखाई देता है। 

ज्वालामुखी किसे कहते हैं

ज्वालामुखी जैसा कि शब्द से स्पष्ट है  एक ज्वाला उगलने वाला या आग का पहाड़ होता है। इसमें से बहुत ऊँचे तापमान पर आग की से लपटों की भाँति दहकते ठोस व गैसीय पदार्थ तेजी से धरातल की ओर फेंक दिए जाते हैं। इसी कारण यह दूर से आग फेंकने वाली घटना जैसी  दिखाई देती है। 

यूनान काल में वूलकेनो नामक ज्वालामुखी के मुख को पाताल का मार्ग कहा जाता था। अतः इसी से Volcano शब्द बना। मोटे तौर पर “पृथ्वी के भीतरी भाग से जो दहकते हुए पदार्थ जिस मार्ग विशेष से निकलते हैं उसे ज्वालामुखी कहते हैं।

एवं उससे बनने वाली आकृति या पहाड़ को 'ज्वालामुखी शंकु' कहते हैं।” ज्वालामुखी से निकले पदार्थों में पिघला हुआ लावा, ठोस शिलाखण्ड, अनेक प्रकार की जलती हुई गैसें, धूल, राख एवं भारी मात्रा में ऊँचे ताप पर जलवाष्प तेजी से प्रायः ऊँचे दबाव पर या कम दबाव पर बाहर आती है। 

सभी पदार्थ जिन शक्तियों एवं घटनाओं के अधीन भूगर्भ से बाहर की ओर आते हैं उन सबको एक साथ 'ज्वालामुखी क्रिया' के नाम से पुकारते हैं। 

अतः वूलरिज एवं मॉर्गन के अनुसार : 'ज्वालामुखी क्रिया' के अन्तर्गत वह सम्पूर्ण प्रक्रिया आ जाती है जिनके माध्यम से भूगर्भ से मैग्मा भूतल की ओर आता है अथवा धरातल पर प्रकट होते हैं। 

आर्थर होम्स के अनुसार, “वह सारी घटना जिसके द्वारा पृथ्वी की गहराइयों से, मेग्मा सम्पूर्ण पदार्थ की ओर अथवा धरातल पर लाकर बिछा दिया जाता है, ज्वालामुखी क्रिया कहलाती है।" 

इस प्रकार ज्वालामुखी घटना का सीधा सम्बन्ध पृथ्वी की विभिन्न गहराइयों में होने वाली विशेष प्रक्रियाओं एवं घटनाओं से है ऐसी घटनाओं के एवं उनके लिए जिम्मेदार शक्तियों के प्रभाव से वहां की पहले से ही विशेष चट्टानें पिघल जाती है।

इन्हीं पिघली हुई चट्टानी पदार्थों को मेग्मा कहते हैं। जब मेग्मा पृथ्वी की सतह पर आता है तो उसमें मिलने वाली गैस बाहर निकल आती हैं तब उसे लावा कहते हैं इस प्रकार लावा + गैस मेग्मा कहा जाता है मैग्मा आग्नेय चट्टानें बनने का वर्तमान में आधार है।

मेग्मा जब पृथ्वी तल की ओर विशेष मार्ग से आने का प्रयास करता है तो वह भूतल के कमजोर भागों  या पहले की दरारों या मार्गों को ढूंढ कर बाहर निकल आता है। यदि इसमें गैसों एवं जलवाष्प का दबाव कम होता है जो यह पृथ्वी की सतह से नीचे ही, जहाँ भी स्थान मिलता है वहीं फैलकर धीरे-धीरे ठण्डा हो जाता है। इससे भूमि के नीचे भूगर्भ में अनेक प्रकार की आकृतियाँ बनती हैं। 

इन्हें ही ‘आन्तरिक आग्नेय चट्टानें' आदि कई नामों से पुकारते हैं।इसके दूसरी ओर जब मेग्मा धरातल पर फैलने लगता है तो उसके साथ अनेक प्रकार की गैसें, राख, धुआँ, धूल एवं जलवाष्प पहले वायुमण्डल में काफी दूर-दूर तक फैलकर तेजी से तापमान बढ़ा देती हैं एवं वहाँ प्राय: साँस लेना भी कठिन हो जाता है।

ऐसी जलवाष्प के ठण्डा व संघनित होते ही सभी पदार्थों की सम्मिलित या जहरीली वर्षा होती है एवं भूमि पर दलदल फैलने लगता है । इसी समय उद्गार की शक्ति के अनुसार एवं मेग्मा की प्रकृति के अनुसार भूगर्भ से लावा एवं अन्य ठोस चट्टानी टुकड़े बाहर उगल दिये जाते हैं।

 ऐसे पत्थर के टुकड़ों एवं गाढ़े मेग्मा (लावा) के ठण्डा होने से बचे विशेष आकार के टुकड़ों को अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। ज्वालामुखी के मार्ग से धरातल पर निकलने वाले सारे पदार्थ ज्वालामुखी उद्दगार  की सीमा में आते हैं।

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