नगरीकरण क्या है समझाइए?

नगरीकरण से तात्पर्य उस स्थान विशेष से होता है जहाँ एक बड़ा जनसमूह एक साथ रहता है। नगर एक व्यापक क्षेत्रीय संगठन होता है, यह सभ्यता के उस स्तर का प्रतिनिधित्व करता है जिन तक कुछ क्षेत्र नहीं पहुँच पाए हैं। इस प्रकार नगर किसी क्षेत्र विशेष के भौतिक विकास और सांस्कृतिक प्रगति के सूचक होते हैं।

जब कभी किसी राष्ट्र की जनसंख्या का बढ़ता हुआ अनुपात नगरों में निवास के लिए एकत्र होने लगता है तो इसे नगरीकरण कहा जाता है। अर्थात् नगरीकरण सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन की ऐसी प्रक्रिया है जिसके फलस्वरूप ग्रामीण जीवन विधि नगरीय विधि में बदलती है। इस प्रकार लोगों द्वारा नगरीय सभ्यता को स्वीकार किया जाना ही नगरीकरण है।

कुछ प्रमुख विद्वानों ने नगरीकरण की परिभाषाएँ इस प्रकार दी हैं

थाम्पसन एवं लेविस के अनुसार, “नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी देश की जनसंख्या बढ़ती दर से नगरों में आकर बसने लगती है। नगरत्व एक ऐसी जीवनयापन विधि है जो नगरों में अपनायी जाती है।” ग्रिफिथ टेलर के अनुसार, “गाँवों की जनसंख्या का नगरों की ओर स्थानान्तरण होना ही नगरीकरण कहलाता है।”

बर्गेस के अनुसार, "ग्रामीण क्षेत्रों नगरीय क्षेत्रों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को ही हमें नगरीकरण कहना चाहिए। इस प्रक्रिया का गाँव की जनसंख्या की आर्थिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ता है। "

इस प्रकार उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि नगरीकरण की प्रक्रिया में ग्रामीण जनसंख्या नगरीय जनसंख्या में परिवर्तित होती रहती है जिसके परिणामस्वरूप नगरीय जनसंख्या का अनुपात बढ़ जाता है । यह प्रवास सामान्यतः छोटी प्रशासनिक इकाई से बड़ी प्रशासनिक इकाई की ओर होता है। जैसे— गाँवों से कस्बों, कस्बों से जिला मुख्यालय तथा वहाँ से महानगरों की ओर होता है।

गाँवों से नगरों की ओर प्रवास के कारण

गाँवों से नगरों की ओर प्रवास होने के अथवा नगरीकरण के अनेक कारण हैं। नगरीकरण के इन प्रमुख कारणों को हम निम्नांकित पाँच भागों में विभाजित कर सकते हैं

(1) आर्थिक कारण 

(i) कृषि जोतों का अनार्थिक होना तेजी से बढ़ती जनसंख्या के फलस्वरूप कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है जिसके फलस्वरूप अपखण्डन एवं विखण्डन के कारण कृषि जोतें अनार्थिक होती जा रही हैं । अतः रोजगार की तलाश में लोग गाँवों से शहरों की ओर आने लगे हैं।

(ii) कृषि में यन्त्रीकरण —–कृषि में तेजी से बढ़ते यन्त्रीकरण के फलस्वरूप कृषि में काम करने वाले लोगों का अनुपात घटता जा रहा है । इस प्रकार कृषि यन्त्रीकरण के कारण कृषि क्षेत्र में बहुत कम जनसंख्या की आवश्यकता रह गयी है। अतः कृषि क्षेत्र से अलग हुई यह जनसंख्या अपने जीवनयापन के लिए नगरों की तरफ प्रवास करती है ।

(iii) यातायात के साधनों का विकास–नगरों के विकास का एक कारण यातायात के साधनों का तीव्र * गति से होने वाला विकास भी है। यातायात के साधनों का विकास होने का कारण नगर व्यापार का केन्द्र बन गये हैं, अतः नगरों में रोजगार की अच्छी सम्भावनाएँ हैं। इसलिए भी लोग गाँवों से नगरों की ओर प्रवास कर रहे हैं।

(iv) औद्योगीकरण-औद्योगीकरण तथा नगरीकरण में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। औद्योगीकरण के साथ नगरों का भी विकास होता है । जिस स्थान पर उद्योगों की स्थापना होती है वहाँ पर यातायात के साधन, व्यापार तथा अन्य सम्बन्धित क्रिया-कलापों का विकास होने लगता है, श्रमिकों की आवश्यकता की चीजें भी वहाँ उपलब्ध होने लगती हैं जो श्रमिकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं और श्रमिक वहीं जाकर रहने लगता है। इस प्रकार नगरीकरण को बढ़ावा मिलता है।

(2) भौगोलिक कारण

अनुकूल भौगोलिक पर्यावरण भी नगरों के विकास का कारण होता है। जिन क्षेत्रों में भौगोलिक पर्यावरण अनुकूल होता है वहाँ प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति सहजता से हो जाती है। यही कारण है कि लोग गाँवों को छोड़कर नगरों की ओर आकर्षित होते हैं ।

(3) सामाजिक व सांस्कृतिक कारण

अनेक सामाजिक व सांस्कृतिक कारण भी नगरीकरण को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं

(i) शिक्षा केन्द्र–जब कोई नगर शिक्षा का केन्द्र हो जाता है तो उसका विकास तेजी से होता है। जब किसी स्थान पर विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, इन्जीनियरिंग एवं मेडीकल कॉलेजों, अन्य तकनीकी शिक्षण तथा प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की जाती है तो वहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी पढ़ने के लिए आते हैं तथा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यवसायी भी आकर बसने लगते हैं। इससे नगरीकरण को बढ़ावा मिलता है।  

(ii) स्वास्थ्य व मनोरंजन के केन्द्र-नगरों में उपलब्ध अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएँ तथा मनोरंजन के आधुनिक साधन भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इससे प्रभावित होकर भी ग्रामीण क्षेत्रों के लोग इन नगरों में प्रवास करने आते हैं

(iii) धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र - भारत में अनेक नगरों का विकास इसलिए हुआ क्योंकि वे धार्मिक केन्द्र रहे तथा वहाँ धार्मिक मेलों का आयोजन किया जाता रहा है। काशी, प्रयाग, मथुरा तथा हरिद्वार इसके उदाहरण हैं।

(iv) ऐतिहासिक केन्द्र– दिल्ली, आगरा, जयपुर, पटना तथा हैदराबाद जैसे नगरों का इसलिए विकास हुआ क्योंकि प्रारम्भ में ही ये नगर विभिन्न राजाओं की राजधानी रहे हैं। अतः इनका अपना ऐतिहासिक महत्व है साथ ही ये पर्यटन स्थल भी बन गये हैं। अतः अनेक ग्रामीण क्षेत्रों के लोग इन नगरों की ओर आकर्षित होकर यहाँ प्रवास के लिए आ जाते हैं।

(4) राजनैतिक कारण

नगरों के विकास और नगरीकरण को प्रभावित करने वाले कुछ भी हैं जो निम्न प्रकार हैं।

(i) सुरक्षा — गाँवों की अपेक्षा नगरों में जीवन तथा सम्पत्ति की सुरक्षा अधिक होती है । इस सुरक्षा की भावना से लोग नगरों की ओर आकर्षित होते हैं और नगरीकरण को बढ़ावा मिलता है।

(ii) प्रशासनिक केन्द्र–बहुत से ऐसे नगर हैं जिनका विकास इसलिए तेजी से हुआ है क्योंकि वे प्रान्तों तथा देश की राजधानी के रूप में रहे हैं। ऐसे नगरों में जीवनयापन की समस्त सुविधाएँ सरलता से उपलब्ध होने के कारण लोग इन नगरों की ओर अधिक आकर्षित होते हैं।

(iii) सरकारी नीति व सहायता - सरकारी नीति एवं सहायता भी नगरों के विकास का एक कारण रही है । सरकार उद्योगों की स्थापना करके, परिवहन, विद्युत आपूर्ति तथा मनोरंजन के साधनों की व्यवस्था, चिकित्सा एवं शिक्षा आदि की व्यवस्था करके नगरों का विकास करने में सहायता करती है। इन सभी सुविधाओं से आकर्षित होकर ग्रामीण लोग इन नगरों की ओर प्रवास के लिए चले आते हैं।

(5) मनोवैज्ञानिक कारण

नगरों के विकास के लिए मनोवैज्ञानिक कारण भी काफी महत्वपूर्ण रहा है प्राय: यह देखा जाता है कि गाँव में अनेक सुविधाओं के उपलब्ध होने के बावजूद भी ग्रामीण लोग नगरों में बसना चाहते हैं। किसी नगर में अपना मकान होना समाज में प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखा जाता है। इसलिए भी ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों की ओर प्रवास को बढ़ावा मिला है।

नगरीकरण के प्रभाव–वर्तमान में देश में नगरीकरण की प्रक्रिया काफी जोर-शोर से चल रही है । इस तेजी से होते नगरीकरण के देश में कुछ अच्छे व कुछ बुरे प्रभाव पड़ रहे हैं।

नगरीकरण के सकारात्मक प्रभाव 

नगरीकरण के सकारात्मक या कुछ अच्छे प्रभाव इस प्रकार हैं

(1) आर्थिक विकास का सूचक

नगरीकरण को आर्थिक विकास का सूचक समझा जाता है। प्राय: देखा" जाता है कि जैसे-जैसे किसी देश का आर्थिक विकास होता जाता है, वैसे-वैसे नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या का अनुपात बढ़ता जाता है। ग्रामीण जनसंख्या की प्रधानता देश के औद्योगिक पिछड़ेपन को प्रदर्शित करती है तथा इससे यह संकेत मिलता है कि देश में कृषि पर जनसंख्या का अत्यधिक भार है।

(2) रोजगार का विस्तार

नगरीकरण तथा औद्योगीकरण दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। नगरों में उद्योगों के विकास से वहाँ रोजगार का सृजन होता है। उद्योगों के विकास से क्षेत्र में संरचनात्मक परिवर्तन आता है। सहायक उद्योग-धन्धे विकसित होने लगते हैं जिससे श्रमिकों की माँग बढ़ती है और रोजगार के अवसरों में वृद्धि होती है।

(3) कृषि में सुधार सम्भव

नगरीकरण से गाँवों में जनसंख्या के भार में कमी आ जाती है इससे भूमि का अपखण्डन तथा विखण्डन रुक जाता है। इस प्रकार कृषि में सुधार लाना सम्भव हो जाता है । 

(4) जनांकिकीय दृष्टिकोण से लाभ

नगरीकरण जनांकिकीय दृष्टिकोण से भी लाभप्रद होता है। नगरों में स्वास्थ्य सुविधाओं आदि की सुचारु रूप से उपलब्धता के कारण जन्म दर तथा मृत्यु दर में कमी आती है और जीवित रहने की सम्भावना बलवती होती है जिससे जीवन स्तर ऊपर उठता है। 

(5) दृष्टिकोण में परिवर्तन

नगरीकरण से लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आता है। ऐसा माना जाता है कि गाँवों में लोग अशिक्षित, परम्परावादी, अन्धविश्वासी होते हैं तथा प्रगतिशील विचारों को ग्रहण करने में संकोच करते हैं, जबकि नगरों में लोग अधिक प्रगतिशील, शिक्षित, विवेकशील, दूरदर्शी तथा जागरूक होते हैं । नगरीकरण से अन्धविश्वास में कमी आती है, जाति प्रथा के बन्धन ढीले हो जाते हैं तथा राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास होता है।

(6) अन्य सकारात्मक प्रभाव

 नगरीकरण के कुछ अन्य लाभ भी हैं। जैसे—आवागमन तथा संचार के साधनों का विकास होने लगता है, जनसंख्या की गतिशीलता में वृद्धि होती है, भौतिकवादी विचारधारा विकसित होती है, प्रशासनिक एवं शिक्षण संस्थाओं तथा चिकित्सालयों का विकास होता है, राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न होती है तथा उत्पादन एवं उपभोग में प्रतिस्पर्द्धा का विकास होता है।

नगरीकरण के नकारात्मक प्रभाव 

नगरीकरण से जहाँ इतने लाभ हुए हैं वहीं इससे कुछ समस्याओं का भी जन्म हुआ है। इससे उत्पन्न होने वाली कुछ प्रमुख समस्याएँ इस प्रकार हैं।

(1) कृषि एवं घरेलू उद्योगों का अवरुद्ध विकास

नगरीकरण के फलस्वरूप कृषि एवं घरेलू उद्योगों का विकास ठीक से नहीं हो पाता है क्योंकि उपलब्ध पूँजी का अधिकांश भाग बड़े तथा भारी उद्योगों में लग जाता है जो नगरों में स्थित होते हैं। कृषि एवं घरेलू उद्योगों के लिए पर्याप्त पूँजी उपलब्ध नहीं हो पाती है।

(2) बेरोजगारी की समस्या 

गाँवों से नगरों की तरफ तेजी से होने वाले प्रवास ने नगरों में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न कर दी है। यहाँ रोजगार खोजने वालों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है, परन्तु रोजगार के अवसरों में अपेक्षाकृत वृद्धि नहीं हो पा रही है।

(3) आवास की समस्या 

नगरों में तेजी से बढ़ती भीड़ ने वहाँ आवास की समस्या उत्पन्न कर दी है। गाँव से नगरों में आने वाले लोगों को जब रहने का स्थान नहीं मिलता तो लोग नगरों में जहाँ भी स्थान मिलता है। वहाँ झोंपड़ी बनाकर रहने लगते हैं। इससे नगरों में झुग्गी-झोंपड़ियों तथा गन्दी बस्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है।

(4) पर्यावरण प्रदूषण की समस्या 

नगरीकरण से नगरों में जनसंख्या घनत्व बढ़ता जा रहा है। मोटर वाहनों तथा यातायात के यन्त्रचालित दुपहिया, तिपहिया वाहनों की अधिकता से दुर्घटनाओं में वृद्धि होती जा रही है तथा पर्यावरण प्रदूषण भी बढ़ रहा है।

(5) अपराध प्रवृत्ति में वृद्धि

नगरों में आबादी बढ़ने के साथ-साथ लोगों में अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जिससे चारों ओर अशान्ति का वातावरण फैल गया है। अतः बढ़ते हुए अपराधों के कारण एक गम्भीर सामाजिक समस्या उत्पन्न हो रही है।

(6) लोगों में अलगाव की भावना का उदय 

गाँवों से जब नगरों की ओर देशान्तरण होता है तो देशान्तरित व्यक्ति अपना अलग समाज बना लेते हैं जिससे समाज के अन्दर एक और समाज का निर्माण हो जाता है। इससे लोगों में अलगाव की भावना पनपने लगती है।

(7) आर्थिक विषमता की समस्या 

नगरीकरण ने आर्थिक विषमता को भी जन्म दिया है। धनी लोग अधिक धनी तथा निर्धन अधिक निर्धन होते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप दोनों वर्गों में दूरी बढ़ती जा रही है जो वर्ग .. संघर्ष का कारण बन सकती है।

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