मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरी सोइ।
जा तन की झाँई परैं स्यामु हरित-दुति
होइ।। 1 ।।
अपने अंग के जानि कै जोबन-नृपति प्रबीन।
स्तन, मन, नैन, नितम्ब की बड़ौ
इजाफा कीन।। 2 ।।
अर तैं टरत न बर-परे, दई मरक मनु मैन।
होड़ाहोडी बढि चले चितु, चतुराई,
नैन।। 3 ।।
औरें-ओप कनीनिकनु गनी घनी-सिरताज।
मनीं धनी के नेह की बनीं छनीं पट लाज।।
4 ।।
सनि-कज्जल चख-झख-लगन उपज्यौ सुदिन सनेहु।
क्यौं न नृपति ह्वै भोगवै लहि सुदेसु सबु देहु।। 5 ।।
सालति है नटसाल सी, क्यौं हूँ निकसति नाँहि।
मनमथ-नेजा-नोक सी खुभी खुभी
जिय माँहि।। 6 ।।
जुवति जोन्ह मैं मिलि गई, नैन न होति लखाइ।
सौंधे कैं डोरैं लगी अली चली
सँग जाइ।। 7 ।।
हौं रीझी, लखि रीझिहौ छबिहिं छबीले लाल।
सोनजुही सी होवति दुति-मिलत मालती
माल।। 8 ।।
बहके, सब जिय की कहत, ठौरु कुठौरु लखैं न।
छिन औरे, छिन और से, ए छबि छाके
नैन।। 9 ।।
फिरि फिरि चितु उत हीं रहतु, टुटी लाज की लाव।
अंग-अंग-छबि-झौंर मैं भयौ
भौंर की नाव।। 10 ।।
नीकी दई अनाकानी, फीकी परी गुहारि।
तज्यौ मनौ तारन-बिरदु बारक बारनु
तारि।। 11 ।।
चितई ललचौहैँ चखनु डटि घूँघट-पट माँह।
छह सौं चली छुवाइ कै छिनकु छबीली
छाँह।। 12।।
जोग-जुगति सिखए सबै मनौ महामुनि मैन।
चाहत पिय-अद्वैतता काननु सेवन
नैन।13।।
खरी पातरी कान की, कौन बहाऊ बानि।
आक-कली न रत्नी करै, अली, जिय
जानि।।14।।
पिय-बिछुरन कौ दुसहु दुखु, हरषु जात प्यौसार।
दुरजोधन लौं देखियत तजत
प्रान इहि बार।।15।।
झीनैं पट मैं झुलमुली झलकति ओप अपार।
सुरतरु की मनु सिंधु मैं लसति
सपल्ल्व डार।।16।।
डारे थोड़ी-गाड़, गहि नैन-बटोहि, मारि।
चिलक-चौंध मैं रूप-ठग, हाँसी-फाँसी
डारि।।17।।
कीनै हूँ कोरिक जतन अब कहि काढै कौनु।
भो मन मोहन-रूप मिलि पानी मैं कौ
लौनु।।18।।
लाग्यो सुमनु ह्वै है सफलु आतप-रोसु निवारि।
बारी, बारी अपनी सींचि
सुहृदयता-बारि।।19।।
अजौ तरयौना हीं रह्यो श्रुति सेवत इक-रंग।
नाक-बास बेसरि लह्यो बसि
मुकुतनु कैं संग।।20।।
जम करि-मुँह-तरहरि परयौ, इहिं धरहरि चित लाउ।
विषय-तृषा परिहरि अजौं नरहरि
के गुन गाउ।।21।।
पलतु पीक, अंजनु अधर, धरे महावरू भाल।
आजु मिले, सु भली करी; भले बने हौ
लाल।।22।।
लाज-गरब-आलस-उमग-भरै नैन मुसकात।
राति-रमी रति देति कहि औरें प्रभा
प्रभात।।23।।
पति रति की बतियाँ कहीं, सखी लखी मुसकाइ।
कै कै सबै टलाटलीं, अलीं चलीं
सुखु पाइ।।24।।
तो पर वारौं उरबसी, सुनी, राधिके सुजान।
तू मोहन कैं उर बसी ह्वै
उरबसी-समान।।25।।
कुच-गिरि चढ़ि, अति थकित ह्वै, डीठि मुंह-चाड़।
फिरि न टरि, परियै रही, गिरी
चियुक की गाड़।।26।।
बेधक अनियारे नयन, बेधत करि न निषेधु।
बरवट बेधतु मो हियौ तो नासा कौ
बेधु।।27।।
लौनैं मुहँ दीठि न लगै, यौं कहि दीनौ ईठि।
दूनी ह्वै लागन लगी, दियै
दिठौना, दीठि।।28।।
चितवनि रूखे दृगनु की, हाँसी-बिनु मुसकानि।
मानु जनायौ मानिनी, जानि लियौ
पिय, जानि।।29।।
सब ही त्यौं समुहाति छिनु, चलति सबनु दै पीठि।
वाही त्यौं ठहराति यह,
कविलनवी लौं, दीठि।।30।।
कौन भाँति रहिहै बिरदु अब देखिवी, मुरारि।
बीधे मोसौं आइ कै गीधे गीधहिं
तारि।।31।।
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं, नैननु
हीं सब बात।।32।।
वाही कोई चित चटपटी, धरत अटपट पाइ।
लपट बुझावत बिरह की कपट-भरेऊ आइ।।33।।
लखि गुरुजन-बिच कमल सौं सीसु छुवायौ स्याम।
हरि-सनमुख करि आरसी हियैं लगाई
बाम।।34।।
पाइ महावर दैन कौं नाइनि बैठी आइ।
फिरि फिरि, जानि महावरी, एड़ी मीड़ति
जाइ।।35।।
तोहीं, निरमोही, लाग्यौ मो ही इहैं सुभाउ।
अनआऐं आवै नहीं, आऐं आवतु
आउ।।36।।
नेहु न, नैननु, कौं कछू उपजी बड़ी बलाइ।
नीर-भरे नितप्रति रहैं, तऊ न प्यास
बुझाइ।।37।।
नहि परागु नहि मधुर मधु नहिं बिकासु इहिं काल।
अली, कली ही सौं बंध्यौ,
आगैं कौन हवाल।।38।।
लाल, तुम्हारे विरह की अगनि अनूप, अपार।
सरसै बरसै नीर हूँ, झर हूँ मिटै न
झार।।39।।
देह दुलहिया की बढ़ैं ज्यौं ज्यौं जोबन-जोति।
त्यौं त्यौं लखि सौत्यैं सबैं
बदन मालिन दुति होति।।40।।
जगतु जनायौ जिहिं सकलु, सो हरि जान्यौं नाँहि।
ज्यौं आँखिनु सबु देखियै,
आँखि न देखी जाँहि।।41।।
सोरठा -
मंगलु बिंदु सुरंगु, मुखु ससि, केसरि आड़ गुरु।
इक नारी लहि संगु, रसमय किय
लोचन-जगत।।42।।
दोहा -
पिय तिय सौं हँसि कै कह्यौं, लखैं दिठौना दीना।
चंदमुखी, मुखचंद तैं भली
चंद-समु की।।43।।
कौंहर सी एडीनु की लाली देखि सुभाइ।
पाइ महावरू देइ को आपु भई
बे-पाइ।।44।।
खेलन सिखए, अलि, भलैं चतुर अहेरी मार।
कानन-चारी नैन-मृग नागर नरनु
सिकार।।45।।
रससिंगार-मंजनु किए, कंजनु भंजनु दैन।
अंजनु रंजनु हूँ बिना खंजनु गंजनु,
नैन।।46।।
साजे मोहन-मोह कौं, मोहीं करत कुचैन।
कहा करौ, उलटे परै टोने लोने
नैन।।47।।
याकै उर औरे कछू लगी बिरह की लाइ।
पजरै नीर गुलाब कैं, पिय की बात
बझाइ।।48।।
कहा लेहुगे खेल पैं, तजौं अटपटी बात।
नैंक हँसौंही हैं भई भौंहे, सौहैं
खात।।49।।
डारी सारी नील की ओट अचूक, चुकैंन।
मो मन-मृग करबर गहैं अहे! अहेरी
नैन।।50।।
दीरघ साँस न लेहि दुख, सुख साईहिं न भूलि।
दई दई क्यौं करतु है, दई दई सु क़बूलि।।51।।
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।52।।
हा हा! बदनु उघारि, दृग सफल करैं सबु कोइ।
रोज सरोजनु कैं परै, हँसी ससी की होइ।।53।।
होमति सुखु, करि कामना तुमहिं मिलन की, लाल।
ज्वालामुखी सी जरति लखि लगनि-अगनि की ज्वाला।।54।।
सायक-सम मायक नयन, रँगे त्रिबिध रँग गात।
झखौ बिलखि दूरि जात जल, लखि जलजात लजात।।55।।
मरी डरी कि टरई बिथा, कहा खरी, चलि चाहि।
रही कराहि कराहि अति, अब मुँह आहि न आहि।।56।।
कहा भयौ, जौ बीछुरे, मो मनु तोमन-साथ।
उड़ी जाउ कित हूँ, तऊ गुड़ी उड़ाइक हाथ।।57।।
लखि लोन लोइननु कैं, कौइनु, होई न आजु।
कौन गरीबु निवाजिबौ, कित तूठ्यौं रातिराजु।।58।।
सीतलताउरू सुबास कौ घटे न महिमा-मूरु।
पीनस वारैं जौ तज्यौ सोरा जानि कपूरु।।59।।
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ मेरे हिय की बात।।60।।
बंधु भए का दीन के, को तारयौ, रघुराइ।
तूटे तूठे फिरत हौ झूठे बिरद कहाइ।।61।।
जब जब वै सुधि कीजियै, तब तब सब सुधि जाँहि।
आँखिनु आँखि लगी रहैं आँखें लागति नाँहि।।62।।
कौन सुनै, कासौं कहौं, सुरति बिसारी नाह।
बदाबदी ज्यौ लेत हैं ए बदरा बदराह।।63।।
मैं हो जान्यौं, लोइननु जुरत बाढ़िहै जोति।
को हो जानतु, दीठि कौं किरकिटी होति।।64।।
गहकि, गाँसु औरे गहें, रहे अधकहे बैन।
देखि खिसौं हैं पिय- नयन किए रिसौं हैं नैन।।65।।
मैं तोसौं कैवा कह्यौं, तू जिन इन्हैं पत्याइ।
लगालगी करि लोइननु उर मैं लाई लाइ।।66।।
बर जीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न।
हरिनी के नैनानु तैं, हरि, नीके ए नैन।।67।।
थोरैं ही गुन रीझते, बिसराई वह बानि।
तुमहूँ, कान्ह, मनौ भए आजकाल्हि के दानि।।68।।
अंग-अंग-नग जगमगत दीपसिखा सी देह।
दिया बढाऐं हूँ रहैं बड़ौं उज्यारौ गेह।।69।।
छुटी न सिसुता की झलक, झलक्यौ जोबनु अंग।
दीपति देह दुहून मिलि दिपति ताफ्ता-रंग।।70।।
कब कौ टेरतु दीन रट, होत न स्याम सहाइ।
तुमहूँ लागी जगत-गुरु, जग-नाइक, जग-बाइ।।71।।
सकुचि न रहियै, स्याम, सुनि ए सतरौहैं बैन।
देत रचौंहौं चित कहे नेह-नैचाहैं नैन।।72।।
पत्रा हीं तिथि पाइयै वा घर कैं चहुँ पास।
नितप्रति पून्यौईं रहै आनन-ओप-उजास।।73।।
बसि सकोच-सदबदन-बस, साँचु दिखावति बाल।
सियलौं सोधति तिय तनहिं लगनि-अगनि की ज्वाल।।74।।
जौ न जुगति पिय मिलन की, धूरि मुकति-मुँह दीन।
जौं लहियै सँग सजन, तौ धरक नरक हूँ की न।।75।।
चमक, तमक, हाँसी, ससक, मसक, झपट, लपटानि।
ए जिहिं रति, सो रति मुकति; और मुकति अति हानि।।76।।
मोहूँ सौं तजि मोहू, दृग चले लागि उहि गैल।
छिनकु छवाइ छबि-गुर-डरी छले छबीलैं छैल।।77।।
कंज-नयनि मंजनु किए, बैठी ब्यौरति बार।
कच-अंगूरी-बिच दीठि दै, चितवति नंदकुमार।।78।।
पावक सो नयननु लगै जावकु लाग्यौ भाल।
मुकुरु होहुगे नैंक मैं, मुकुरु बिलौकौ, लाल।।79।।
रहति न रन, जयसाहि-मुख लखि, लाखनु की फौज।
जाँचि निराखर ऊ चलै लै लाखनु की मौज।।80।।
दियौ, सु सीस चढ़ाइ लै आछी भाँति अएरि।
जापैं सुखु चाहतु लियौ, ताके दुखहिं न फेरि।।81।।
तरिवन-कनकु कपोल-दुति बिच हीं बिकान।
लाल लाल चमकतिं चुनीं चौका चीन्ह-समान।।82।।
मोहि दयौ, मेरौ भयौ, रहतु जु मिलि जिय साथ।
सो मनु बाँधि न सौं पियै, पिय, सौतिनि कैं हाथ।।83।।
कंजु-भवनु तजि भवन कौं चालियै नंदकिसोर।
फ़ूलति कली गुलाब की, चटकाहट चहुँ ओर।।84।।
कहति न देवर की कुबत कुल-तिय कलह डराति।
पंजर-गत मंजार-ढिग सुक ज्यौं सूकति जाति।।85।।
औरे भाँति भए अब चौसरु, चंदनु, चंदु।
पति-बिनु अति पारतु बिपति मारतु मारुतु मंदु।।86।।
चलन ना पावतु निगम-मगु जनु, उपज्यौ अति त्रासु।
कुच-उतंग गिरिबर गह्यौ मैना मैनु मवासु।।87।।
त्रिबली, नाभि दिखाइ, कर सिर ढकि, सकुचि, समाहि।
गली, अली की ओट कै, चली भली बिधि चाहि।।88।।
देखत वुरै कपूर ज्यौं उपै जाइ जिन, लाल।
छिन छिन जाति परी खरी छीन छबीली बाल।।89।।
हँसि उतारि हिय तैं दई तुम जु तिहिं दिना, लाल।
राखति प्रान कपूर ज्यौं, वहै चुहुटिनी माल।।90।।
कोऊ कोरिक संग्रहौ, कोउ लाख हजार।
मो सम्पति जदुपति सदा बिपति-बिदारनहार।।91।।
द्वैज-सुधादीधिति-कला वह लखि, दीठि लगाइ।
मनौ अकास-अगस्तिया एकै कली लखाइ।।92।।
गदराने तन गोरटी, ऐपन-आड़ लिलार।
हूठयौ दै, इठलाइ, दृग करै गँवारि सुबार।।93।।
तंत्री-नाद, कबित्त-रस, सरस राग, रति-रंग।
अनबूड़े बूढ़े, तरे जे बूड़े सब अंग।।94।।
सहज सचिक्क्न, स्याम-रूचि, सुचि, सुगंध, सुकुमार।
गनतु न मनु पथु अपथु, लखि बिथुरे सुथरे बार।।95।।
सुदुति दुराई दुरति नहिं, प्रगट करति रति-रूप।
छुटैं पीक, औरे उठी लाली ओठ अनूप।।96।।
वेई गड़ि गाड़ैं परीं, उपट्यौं हारु हियैं न।
आन्यौ मोरि मतंगु मनु मारि गुरेरनु मैन।।97।।
नैंक न झुरसी बिरह-झर नेह-लता कुम्हिलाति।
नित नित होति हरी हरी , खरी झालरति जाति।।98।।
हेरि हिंडोरैं गगन तैं परी परी सी टूटि।
धरी धाइ पिय बीच हीं, करी खरी रस लूटी।।99।।
नैंक हँसौंही बानि तजि, लख्यौ परतु मुहुँ नीठि।
चौका-चनकनि-चौंध मैं परति चौंधि सी डीठि।।100।।