उद्योग की समस्या और समाधान

औद्योगिक क्रांति के सूत्रपात के साथ सम्पूर्ण विश्व में तेजी से औद्योगीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी। इसके साथ कई औद्योगिक समस्याओं का उदय हुआ। विकसित, विकासशील एवं पिछड़े देशों के भिन्न-भिन्न औद्योगिक समस्याएँ हैं। 

उद्योग की समस्या

इनमें से प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. कच्चे माल की समय पर पूर्ति न होना – विश्व के समस्त उद्योग चाहे उन्हें कच्चा माल, कृषि, खनिज वन अथवा पशुओं से प्राप्त होता है। प्रमुख समस्या समय पर पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की पूर्ति न हो पाना है। समय पर पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल न मिलने से उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 

उत्पादन की मात्रा कम हो जाती है, इससे वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है। नुकसान न सहन करने की स्थिति में कई उद्योग बंद हो जाते हैं। 

उदाहरण के लिए स्वतंत्रता के पश्चात् भारत के कई जूट मिलें बंद हो गयी थीं, कारण जूट उत्पादक क्षेत्र पाकिस्तान के हिस्से में चला गया एवं मिलें भारत में ही रहीं, परिणामतः इन मिलों को समय पर कच्चे माल की पूर्ति नहीं हो पायी थी ।

कृषि आधारित उद्योगों को कच्चा माल कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है। विश्व के अधिकांश कृषि प्रधान विकासशील देशों में कृषि वर्षा जल पर निर्भर करता है। समय पर पर्याप्त मात्रा में वर्षा न होने से कृषि उत्पाद कम हो जाते हैं। 

फलतः इससे संबंधित उद्योगों को वांछित मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध नहीं पाता। ऐसी स्थिति में उत्पादन के स्तर में गिरावट आती है। इसी प्रकार पृथ्वी पर खनिजों के भंडार सीमित हैइनकी मात्रा को बढ़ाया नहीं जा सकता ।

2. कच्चे माल का आयात – कई देश कच्चे माल का आयात करते हैं। इससे उत्पादन लागत में वृद्धि होती है। जैसे उदाहरण के लिए जापान भारत से लौह अयस्क आयात करता है। भारत में उत्तम रेशे वाले कपास का उत्पादन कम है फलतः भारत कपास का आयात करता है। ।

3. प्रौद्योगिकी का पिछड़ापन - आर्थिक दृष्टि से विकासशील एवं पिछड़े देश में औद्योगिक विकास की धीमी गति का कारण प्रौद्योगिकी पिछड़ापन है। ये देश दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक, इंजीनियरिंग आदि के क्षेत्र में विकसित देशों पर निर्भर है।

4. कमजोर अर्थव्यवस्था - एशिया, अफ्रीका एवं दक्षिण अमेरिका के अधिकांश देश संसाधनों में सम्पन्न होने के बाद भी औद्योगिक विकास में बहुत पीछे है इसका कारण इनकी कमजोर अर्थव्यवस्था है। पर्याप्त मात्रा में पूँजी सुलभ न होने से उद्योगों का आधुनिकीकरण नहीं हो पाता । उद्योग पूरी क्षमता से उत्पादन कार्य नहीं कर पाते इससे पूँजी निवेश का अपव्यय होता है।

5. महँगी उत्पाद वस्तुएँ — विकासशील एवं पिछड़े देशों में पुराने एवं परंपरागत संयंत्रों के कारण अधिक लागत में कम वस्तुओं का उत्पादन होता है। इससे वस्तुओं की कीमतें अधिक हो जाती हैं। उच्च कीमत के कारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में इनके उत्पादों की माँग कम होती है।

6. विकास में असंतुलन - विश्व के कुछ ही देश बहुत विकसित है एवं अधिकांश देश विकासशील एवं पिछड़ी अवस्था में हैं। विकसित देश अपनी शर्तों पर लेन-देन करते हैं। परिणामतः पिछड़े राष्ट्र और भी पिछड़ते जा रहे हैं।

7. प्राकृतिक विपदाएँ – कई बार प्राकृतिक विपदाएँ, जैसे- भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, तूफान, सूखा, बाढ़ आदि के कारण भी औद्योगिक विकास की गति धीमी हो जाती है। उदाहरण के लिए सुनामी के कहर से दक्षिण-पूर्वी देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी है। सन् 2001 में आए भूकम्प से भारत का 'भुज’ शहर नष्ट हो गया, अहमदाबाद की बड़ी-बड़ी इमारतें धराशयी हो गयीं।

8. प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ- कई देशों की भौगोलिक परिस्थितियाँ प्रतिकूल होने के कारण संसाधनों में संपन्न होने के बाद भी औद्योगिक विकास नहीं हो पाया है। उदाहरण के लिये मध्य अफ्रीका एवं अमेजन नदी बेसिन में जल विद्युत् शक्ति के विकास की अपार संभावनाएँ हैं, परन्तु दलदली भूमि एवं घने वनों । के कारण यहाँ के संसाधन का उपयोग नहीं हो पा रहा है ।

9. भौगोलिक प्रदूषण - औद्योगीकरण से नदी, नालों, समुद्र का जल दूषित हो रहा है। अम्लीय वर्षा होना, वायु प्रदूषित होना ऐसी समस्या है जिन्हें अपेक्षित नहीं किया जा सकता है।

10. अन्य समस्याएँ – ऊर्जा संसाधनों की पर्याप्त पूर्ति न हो पाना, द्रुतगामी यातायात साधनों का अभाव, पर्याप्त मात्रा में कुशल एवं प्रशिक्षित कर्मचारियों एवं श्रमिकों की कमी, विकसित देशों में अतिरेक माल का उत्पादन, विश्व व्यापार संगठनों की जटिल शर्तें आदि। 

उद्योग की समस्या का समाधान

1. कच्चे माल की कमी को दूर करना – कच्चे माल की कमी को दूर करने के उपाय खोजे जाने चाहिए। जैसे कृषि आधारित उद्योगों के लिए कृषि पदार्थों के उत्पादन को बढ़ाया जाए, कृषि की वर्षा पर निर्भरता को कम करने हेतु सिंचाई साधनों का विस्तार किया जाना चाहिए। 

जो उद्योग खनिज पर आधारित है उनके लिए नवीन खनिज भंडारों की खोज किया जाए। खदान से खनिज निकालते समय सावधानी बढ़ती जाए कि खनिजों का क्षय न हो। पुनः प्रयोग में आने वाले खनिज पदार्थों का सावधानीपूर्वक उपयोग किया जाए। जिनके भंडार कम उनके स्थानापन्न पर खनिजों की खोज किया जाए।

2. प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर - प्रौद्योगिकी में पिछड़े देशों में प्रौद्योगिकी के विकास पर बल दिया जाए एवं इस समस्या के तत्काल निदान हेतु विदेशों से तकनीक आयात किया जाए। द्वितीय विश्व युद्ध में हार के पश्चात् जापान ने इसी नीति को अपनाकर वर्तमान स्थिति को प्राप्त किया ।

3. पूँजी की कमी को दूर करना – पूँजी की कमी को दूर करने हेतु आर्थिक नीति को उदार बनाए। अप्रवासी नागरिकों को देश के उद्योग में पूँजी लगाने हेतु प्रोत्साहित किया जाए। जैसा कि भारत ने सन् 1991 में इस दिशा में प्रयास प्रारंभ किया जिसका सकारात्मक परिणाम मिला ।

4. औद्योगिक क्षमता का पूर्ण उपयोग — विकासशील एवं पिछड़े देशों के उद्योग विभिन्न कारणों से अपनी क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पा रहें है । इन कारणों को ढूंढकर दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। - 

5. औद्योगिक प्रदूषण कम करने हेतु प्रयास – उद्योगों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ औद्योगिक प्रदूषण में भी वृद्धि होती है। ऐसे उपाय अपनाएँ जाए जिससे प्रदूषण न हों। औद्योगिक प्रदूषण रोकने हेतु कठोर कानून बनाएँ जाएँ एवं उन्हें कड़ाई से लागू किया जाए।

6. उपभोक्ताओं की आवश्यकता के अनुरूप उत्पादन – उद्योगों को लगाते समय एवं उत्पादन की मात्रा निर्धारित करते समय बाजार की माँग को ध्यान में रखा जाए। इससे वस्तुओं के व्यर्थ जमा हो जाने का जोखिम नहीं रहेगा।

7. देशी उद्योग - धन्धों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इस हेतु सरकार छोटे उद्योगपतियों को बैंकों के माध्यम से कम ब्याज दर पर पूँजी उपलब्ध कराएँ । साथ ही नवीन तकनीकों की जानकारी की भी व्यवस्था करें तथा बाजार की सुविधा उपलब्ध कराएँ ।

8. द्रुतगामी परिवहन - साधनों का विकास किया जाए। शीत भंडार की व्यवस्था हो । कर्मचारियों एवं श्रमिकों के प्रशिक्षण हेतु नवीन प्रशिक्षण संस्थाएँ स्थापित किये जाएँ।

9. शक्ति के साधनों की पर्याप्त पूर्ति हेतु ऊर्जा के परंपरागत स्रोतों के उपयोग के साथ ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों को विकसित किया जाना चाहिए।

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