माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

अंग्रेजी सत्ता की जड़ें हिलाने के लिए अनेक राष्ट्रवादी रचनाकार हुए हैं। रामनरेश त्रिपाठी, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन', सुभद्रा कुमारी चौहान सदृश अनेक रचनाकारों के नाम लिए जा सकते हैं । इनमें श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी का कम महत्वपूर्ण स्थान नहीं है।

श्री माखनलाल चतुर्वेदी के विषय में डॉ. नगेन्द्र द्वारा सम्पादित 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' नामके ग्रन्थ में डॉ. गोपाल राय ने लिखा है।

“ चतुर्वेदी जी की रचनाओं में देश के प्रति गम्भीर प्रेम और देश कल्याण के लिए आत्मोत्सर्ग की उत्कृष्ट भावना दिखाई देती है। इस मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को तभी सफलता मिल सकती है।

 जब वह जीवन के सुख और वैभव को ठुकरा कर संघर्ष और साधना का मार्ग अपनाए। इन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा देशवासियों को इसी संघर्ष और साधना के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।”

इस प्रकार से चतुर्वेदी राष्ट्रीय विचारधारा के महानतम् कवियों में अपनी खास पहचान बनाने वाले जनमानस के कवि हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी का जन्म मध्य प्रदेश के जिला होशंगाबाद के गाँव बम्बई में सन् 1889 ई. में एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। आपके पिता श्री स्थानीय गाँव के एक हाई स्कूल में अध्यापक थे। इसलिए आपकी आरंभिक शिक्षा वहीं पर हुई। 

आप सहज, गंभीर और संवेदनशील होने के साथ-साथ उत्साही व्यक्ति थे । आरम्भ से ही देश की दुर्दशा से प्रभावित और जागरूक थे । सैयद अमीरअली 'पीर', स्वामी रामतीर्थ और माधव राव सप्रे का आपके व्यक्तित्व पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा था । वैष्णव संस्कार तो इन्हें अपने परिवार से ही मिले थे। 

अपने जीवन का आरम्भ इन्होंने एक अध्यापक के रूप में ही किया था, किन्तु पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कार्यशील रहे। इन्होंने 'प्रभा', 'प्रताप' और 'कर्मवीर' मासिक पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया ।

चतुर्वेदी जी अपने जीवन के आरम्भ में क्रान्ति के दर्शन से प्रभावित थे, किन्तु बाद में इनकी आस्था गाँधीवादी दर्शन से प्रभावित हो गई थी। अपनी राजनीतिक अस्थिरता के कारण ही इन्हें कई बार बन्दी बनाया गया था, जिसके परिणामस्वरूप आपको जेल जीवन बिताना पड़ा था। 

जेल के जीवन काल में इन्होंने अनेक कविताओं की रचनाएँ की थी। स्वाधीन भारत की दशाओं का भी अपनी कविताओं में प्रभावशाली चित्रण किया है। आपकी मृत्यु सन् 1967 ई. में हुई।

रचनाएँ - चतुर्वेदी जी ने काव्य के क्षेत्र में असाधारण प्रसिद्धि अर्जित की है, लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं लेना चाहिए कि चतुर्वेदी जी गद्य-विधा में बिल्कुल नगण्य और अनजाने हैं। आपकी निम्नलिखित रचनाएँ हैं।

काव्य-संग्रह - 'हिम-किरीटिनी', 'हिम तरंगिरणी', 'साहित्य-देवता' 'माता', 'वेणु जो गूंजे, 'धरा' आदि। इनकी कविताओं का संग्रह 'एक भारतीय आत्मा' के नाम से संगृहीत हैं । 

कहानी-संग्रह - 'वनवासी' । नाटक - 'श्री कृष्णार्जून युध्द

काव्यगत विशेषताएँ—इनका सम्पूर्ण काव्य क्रांति तभी सम्भव है, जब नव जवानी की जवानियाँ रंग जाएँ, अन्यथा सब कुछ यहीं धरा का धरा रह जायेगा । उद्देश्य की कल्पना कोरी कल्पना बनकर रह जायेगी । इसी भाव से चतुर्वेदी जी ने मरते हुए नवजवानों को प्रेरित किया है।

धरा यह तरबूज दो फांक कर दे 
चढ़ा दे स्वातंय प्रभु पर अमर पानी ।
विश्व माने कि तू जवानी है जवानी । 
आग अंतर में लिए पागल जवानी
कौन कहता है कि तू विधवा हुई खो आज पानी ।।

इसमें कहीं-कहीं विषमता और असमानता भी हैं। आपकी सभी प्रकार की रचनाएँ काव्यगत विशेषताओं से परिपूर्ण हैं। इनमें काव्य के प्रभाव बार-बार परिलक्षित होते हैं।

कल्पना और यथार्थ समन्वित रूप झलकते हुए बार-बार आकर्षित करते हैं। आपकी काव्यगत विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

(1) भाव - पक्ष - चतुर्वेदी जी अत्यन्त भावुक और भाव - प्रधान कवि हैं। आपकी भावव-पक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं

1. साम्राज्य विरोधी स्वर

चतुर्वेदी जी ऐसे संवेदनशील कवि हैं, जिनकी रचनाओं में सच्चाई तो है, लेकिन वह लोक स्तर पर है। चतुर्वेदी जी साम्राज्य विरोधी शक्तियों के विरोधी आपने अपनी कविताओं के द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की शक्तियों को उखाड़ने के लिए सामान्य जन में अपना विरोधी स्वर अग्र प्रकार से फूंक दिया था - 

क्या ? देख न सकती जंजीरों का गहना। 
हथकड़ियाँ क्यों ? यह ब्रिटिश राज्य का गहना
 कोल्हू का चरेक जूँ ? जीवन की तान । 
मिट्टी से लिखे अंगुलियों ने गाया गान ।
 हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जुआ । 
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कुआँ ।

अनुभूति की कवि रहे हैं । की आव

2. अनुभूति की प्रधानता - चतुर्वेदी जी में अनुभूति की प्रधानता है। इस विषय में डॉ. गोपाल राय ने लिखा है जो निम्न प्रकार है

"इनकी कई रचनाओं में विशेषकर आरंभिक रचनाओं में आध्यात्मिक अनुभूति की भी वाणी मिली है। इनकी आध्यात्मिक भावना पर निर्गुण भक्ति, सगुण और रहस्य-भावना का प्रभाव दिखाई देता है।” 

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि चतुर्वेदी जी की रचनाओं में जो अनुभूति की प्रधानता है, वह विविध प्रकार की है। उसमें राष्ट्र के प्रति संवेदनशीलता, अदृश्य शक्ति के प्रति भक्ति भावना आदि को देखा जा सकता है।

3. क्रांतिवादी चेतना 

चतुर्वेदी जी की कविताओं में क्रांतिवादी चेतना के स्वर है। उसमें राष्ट्रीय उत्थान के लिए युवावर्ग को संचेतना देते हुए उन्हें ललकारते हुए इस प्रकार से कहा हैआग अंतर में लिए पागल जवानी । कौन कहता है कि तू विधवा हुई, खो आज पानी । 

चल रही घड़ियाँ, चले हिमखंड सारे। चल रही है सांस फिर तू ठहर जाए। दो सदी पीछे कि तेरी लहर आए । पहन ले नर मुंडमाला उठा स्वयंभू सुमेरु कर ले ।

रोटियाँ खाई की साहस खो चुका है, प्राणी है कि प्राण से तू जा चुका है •तुम न खेलों ग्रामसिंहों में भवानी मरण का त्योहार जीवन की जवानी, आग अंतर में लिए पागल जवानी, कौन कहता है कि तू विधवा हुई खो आज पानी । 

(2) कला - पक्ष - चतुर्वेदी जी की भाव-पक्षीय विशेषताओं के समान उनकी कला-पक्षीय विशेषताएँ भी अद्भुत और विविध हैं। आपकी कलागत विशेषताओं की प्रमुखता इस प्रकार हैं

1. भाषा - चतुर्वेदी जी की भाषा में प्रवाहमयता और संवेदनशीलता दोनों ही गुण विद्यमान हैं, विषय का चुनाव और उसका स्पष्टीकरण करने की जो सफलता चतुर्वेदी जी को मिली उसके लिए अनुभूति पक्ष को श्रेय तो देना ही पड़ेगा, इसके साथ-साथ भाषा को भी श्रेय देना अपेक्षित कार्य होगा। 

शब्दों के चुनाव में चतुर्वेदी जी ने मुख्य रूप से तत्सम् शब्दावली का ही प्रयोग किया हैं । कहीं-कहीं तद्भव और देशज शब्दों के प्रयोग दिखाई देते हैं। उर्दू शब्दावली के प्रवाह के कारण भाषा में गतिशीलता और मधुरता दोनों रस टपकते हैं। 

इस प्रकार से चतुर्वेदी जी की भाषा सजीव और प्राणवान् भाषा है। यह चुस्त और चटक हैं। इसमें भावाभिव्यक्ति की पूरी क्षमता दिखाई देती है।

2. शैली - चतुर्वेदी जी मुख्य रूप से संवेदनशील कवि हैं। कल्पना से अधिक यथार्थ का बोध आप में अधिक है। इस प्रकार से आपने यथार्थ को ही कल्पना के रंगीन चित्रों के द्वारा प्रस्तुत करने का पूरा प्रयास किया है। 

इस दृष्टि से बोधगम्य शैली और चित्रात्मक शैली दोनों ही आपकी कविताओं की प्रमुख आधारभूत शैलियाँ रही हैं। भावों की सरसता और रोचकता के कारण आपकी शैली को भावात्मक शैली भी कह सकते हैं। 

चतुर्वेदी जी द्वारा प्रयुक्त शैली की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह चिन्तन प्रधान शैली है। इनके गंभीर चिन्तन शैली के प्रभाव किसी भी कविता में देखे जा सकते हैं 

3. रस - श्री माखनलाल चतुर्वेदी भावावेग के कवि हैं । क्रांतिवादिता और प्रगतिशीलता आपके काव्यत्व व्यक्तित्व की प्रधान विशेषताएँ हैं। कविता में ओज और जोश-खरोश जो प्रबल उद्वेग दिखाई देता है वह परिवर्तनशीलता का आग्रही रूप है। 

फलतः चतुर्वेदी जी की कविता वीर, रौद्र, भयानक, शृंगार और करुण रसों से सिंचित हैं। विभिन्न रसों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं

वीर रस

श्वान सिर हो तो चरण चाटता है। 
भौंक ले क्या सिंह को वह भौंकता है
 ?

शृंगार रस

ये आए बादल झूम उठे, 
ये हवा के झोंके झूम उठे,
 बिजली की चम चम पर चढ़कर 
नीले मोती भू चूम उठे।

4. छन्द - चतुर्वेदी जी ने मुक्तक छंदों की कम मार्मिक छन्दों की अधिकांशतः रचनाएँ की है। आपके छन्दों के भावों की स्वतंत्रता और उच्छवास हैं। 

इस प्रकार से छन्दों पर भावों की विजय दिखाई देती है। सजीवता आपके छन्दों का प्रमुख वैशिष्ट्य है। अतुकान्त छन्दों की भाव-प्रवणता देखते ही बनती है। 

5. अलंकार - चतुर्वेदी जी की कविताओं में अलंकार समावेश स्वतः हुआ है। इस प्रकार से आए हुए अलंकारों में प्रमुख अलंकार हैं- उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, अन्योक्ति, वक्रोक्ति, सन्देह आदि हैं। 

मानवीकरण अलंकार आपके द्वारा प्रस्तुत सर्वाधिक और सर्वप्रिय अलंकार है। इसके उदाहरण देखिए

जब चाँद मुझे नहलाता है,
सूरज रोशनी पिन्हाता है, 
क्यों दीपक लेकर कहते हो, 
यह तेरा है, यह मेरा है ? 
                तथा.
हो मुकुट हिमालय पहनाता,
सागर जिसके पद धुलवाता,
वह बंधा वेणियों में मंदिर
मस्जिद, गुरुद्वारा मेरा हैं।

साहित्यिक महत्त्व - चतुर्वेदी जी का हिन्दी कविता का राष्ट्रवादी चेतना के प्रमुख कवियों में एक प्रतिष्ठित स्थान है। राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत कर देने वाले चतुर्वेदी जी निःसन्देह युवा हृदय के सम्राट् कवि हैं। 

देशवासियों को निरन्तर संघर्ष और समर्पण का पाठ पढ़ाने वाले चतुर्वेदी जी युगप्रवर्त्तक के रूप में सदैव स्मरणीय रहेंगे। आपका साहित्य जन-समाज का साहित्य होने के कारण आप सदैव जनप्रिय और जन सम्मानित कवि के रूप में प्रगतिशील विचारधारा के स्वस्थ मन को प्रेरणा और उत्साह से मिश्रित आशावादी स्वर को भरते रहेंगे।

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