बसंत आ गया है किसकी कृति है

बसन्त डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी रचित एक महत्वपूर्ण निबन्ध है। इसमें डॉ. द्विवेदी ने बसन्त के आगमन पर प्रकृति की विविधता का चित्र बड़े ही रोचक शैली में किया है। प्रस्तुत निबन्ध लेखक के 'शांति निकेतन' में बिताये क्षणों के चिन्तन को प्रतिबिम्बित करता है। 

बसन्त ऋतु के आगमन पर लेखक की दृष्टि प्रकृति पर पड़ती है। लेखक अपने आसपास प्रकृति के विविध चित्रों पर आपला चिन्तन प्रस्तुत करते है। 

डॉ द्विवेदी लिखते है कि वसन्त आ गया है इसकी प्रतिध्वनि जहाँ तातियो त ! पाणियों में मुं। ताती है, हा प्रकृति में कुछ वृक्षों को तो मानो बसन्त के आगमन की में पूर्व सूचना हो गई है। गोंकि ये वृक्ष लई कोपलों और पुष्पों से सुसज्जित हो ऋतुराज के आगमन में वागतोत्सुक हो उठे हैं। 

कि कुछ से भी वृक्षा हैं जिन पर बसन्त के आगमन का कुछ भी असर नहीं हुआ है बल्कि वे जैसे पहले ये वैसे ही अब भी हैं। इस प्रकार ऐसा लगता है कि बसंत के आने का किसी को पता चला है तो किसी को नहीं ।

लेखक कहते हैं कि वसन्त के आगमन से पूर्व पतझड़ आता है। ऐसा लगता है जैसे बसन्त पहले सबको समस्त और त्यागमूर्ति बनाकर उनका पूर्व संचित धन उन्मुक्त भाव से (पतझड़ द्वारा) दान करा देता है। शिरीष के वृक्षों में पत्ते खड़खड़ाने लगे हैं। 

इसके पत्ते तो झड़ गये हैं, किन्तु लव पल्लव अत्य तक दिखाई नहीं दे पाये हैं। इस कड़ी में नीम के वृक्षों में कुछ नवीन किसलिकाओं का प्रफुल्लित होना आराश्य दिखाई दे रहा है। यहाँ गुरुदेव रवीन्द्र के हाथों लगाई हुई दो कृष्ण चूड़ाएँ हैं, जो नादान होने के कारण हरी-भरी रहकर भी फाल्गुन-आषाढ़ मास की दशा को प्राप्त हैं।

लेखक कहते हैं कि अमरूद के पेड़ों की दशा तो और भी निराली है। इनमें तो सदा ही बसन्त सा रहता है। इस समय दो-चार श्वेत पुष्प इन पर विराजमान हैं, पर ऐसे फूल माघ में भी थे और जेठ में भी रहेंगे। एक केदार के वृक्ष भी हैं जिन पर मानो इस बसन्त के मौसम में भी मुर्दनी छाई हुई है। 

इस प्रकार प्रकृति में विषमता सर्वत्र व्याप्त है। समान परिस्थिति वाले पेड़ भी बसन्त में खिलने के मामले में समानता का परिचय नहीं दे रहे हैं। लेखक लिखते हैं कि मेरे निवास के सामने स्थित कचनार का वृक्ष स्वस्थ सबल होते हुए भी पुष्पित नहीं हुआ है, बल्कि पड़ोस में कमजोर दुबला यही पेड़ लहक उठा है। इसे देखकर वे कहते हैं कि 'कमजोरों' में भावुकता ज्यादा होती होगी।

लेखक लिखते हैं कि विषमता प्रकृति में यहाँ-वहाँ दिखाई दे जाती है। सारी दुनिया में बसन्त के आगमन का हल्ला हो गया है, पर कुछ पेड़-पौधों को मानो खबर ही नहीं है। क्या इन तक बसन्त के आगमन का सन्देश पहुँचाने का कोई साधन नहीं हो सकता ? 

इस मामले में महुआ वृक्ष बहुत बदनाम है कि उसे सबके बाद बसन्त का अनुभव होता है, किन्तु जामुन वृक्ष भला कहाँ इस मामले में अच्छा है। यह तो और भी बाद में फूलता है। 

कालिदास के लाड़ले कर्णिकार की बात तो और भी निराली है। यह तो जेठ के महीने में भी मौज से आता है। लेखक कहते हैं कि ऐसा लगता है कि बसन्त भागता-भागता चलता है।

डॉ. द्विवेदी लिखते हैं कि गंधराज पुष्प तो वर्षा में भी लिखते हैं। विष्णुकान्ता और घास के मनोहर पुरवैया हवा की किंचित गति पर भी निकल पड़ते हैं। बरसात में तो इनकी बात ही निराली होती है। ब्राह्य प्रकृति का अनुमान लगाने की इनकी शक्ति अत्यन्त तीव्र है। 

इस प्रकार लेखक कहते हैं कि बसन्त आता नहीं बल्कि जाया जाता है। बसन्त में कुछ वृक्ष बहुत ज्यादा फल फूल रहे हैं तो कई ऐसे हैं न्हेिं पता ही नहीं कि बसन्त आ गया है।

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