बाबू गुलाब राय की निबंध कला पर टिप्पणी

बाबू गुलाबराय हिन्दी के सुप्रसिद्ध आलोचक एवं निबन्धकार के रूप में अद्वितीय स्थान के अधिकारी हैं। आपने आलोचना एवं निबन्ध के क्षेत्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हिन्दी साहित्य को प्रदान की हैं। 

जिनमें प्रमुख हैं-काव्य के रूप, ठलुआ क्लब, फिर निराशा क्यों, मेरी असफलताएँ, जीवनी और जगत, मनोवैज्ञानिक निबन्ध, राष्ट्रीयता, कुछ उयले कुछ गहरे, हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास, भारत का सांस्कृतिक इतिहास, बौद्ध धर्म, शान्ति धर्म, मैत्री धर्म, मेरे निबन्ध आदि। हिन्दी के आत्मपरक निबन्धों में तो आप शीर्षस्थ माने जाते हैं।

मकान, फिर ललित निबन्ध की दृष्टि से गुलाबराय की कुछ रचनाएँ उल्लेखनीय हैं-ठलुआ क्लब, निराशा क्यों, मेरी असफलताएँ आदि संग्रहों में उनके कुछ श्रेष्ठ व्यक्तिगत निबन्ध संकलित हैं। मेरा मेरे नापिताचार्य, मेरी दैनिकी का एक पृष्ठ, प्रीतिभोज आदि निबन्ध ललित निबन्ध की सभी विशेषताओं से युक्त हैं।

बाबू गुलाबराय के निबन्धों की भाषा सरल, सुबोध, व्यावहारिक हिन्दी है। उसमें स्थान-स्थान पर संस्कृत एवं हिन्दी के उदाहरण देकर अपनी बात पुष्ट की गयी है। भाषा में संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग है। उसमें कहीं-कहीं आलंकारिता का भी समावेश है।

बाबू गुलाबराय जी के निबन्धों में विवेचनात्मक, व्याख्यात्मक, वर्णनात्मक, विवरणात्मक, आत्मपरक, भावात्मक, आलंकारिक, हास्य-व्यंग्य शैलियाँ प्रयुक्त हुई हैं।

Related Posts