स्ट्राइक एकांकी की मूल संवेदना क्या है

पाश्चात्य विद्वानों द्वारा निश्चित किए गए एकांकी के तत्वों का समन्वय बहुत कुछ अंशों में भारतीय नाट्य-तत्वों में ही हो जाता है। पाश्चात्य विद्वानों ने एकांकी के निम्नलिखित सात तत्व माने है

  1. कथावस्तु या कथानक,
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. कथोपकथन या संवाद योजना, 
  4. देशकाल या वातावरण,
  5. भाषा-शैली
  6. उद्देश्य और 
  7. अभिनय। 

उपर्युक्त तत्वों के आधार पर हम श्री भुवनेश्वर लिखित एकांकी ‘स्ट्राइक' की समीक्षा निम्न प्रकार कर रहे हैं

(1) कथावस्तु या कथानक—कथावस्तु या कथानक के द्वारा एकांकी का वर्ण्य-विषय तैयार होता है। इससे कथा को एक सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।

कथानक या कथावस्तु की दृष्टि से जब हम श्री भुवनेश्वर लिखित एकांकी 'स्ट्राइक' का अध्ययन करते हैं, तो हम यह पाते हैं कि प्रस्तुत एकांकी का कथानक बहुत ही सुगठित और सुसम्बद्ध है। इसका कथानक आधुनिक जिन्दगी जी रहे मध्यमवर्गीय परिवार-समाज का है। 

इसमें एक ऐसे मध्यमवर्गीय पति-पत्नी के ऐसे स्वाभाविक और आशातीत मधुर और आत्मीय सम्बन्धों का चित्रण है, जो सर्वथा अपेक्षित और अनुचित रूप में दिखाई देते हैं। इस प्रकार प्रस्तुत एकांकी 'स्ट्राइक' का कथानक या कथावस्तु एक चुनी हुई और प्रासंगिक कथानक या कथावस्तु है। 

इसके माध्यम से एकांकीकार में आधुनिक जिन्दगी के एक ऐसे पहलू का चित्रांकन किया है, जिसे मध्यमवर्गीय समाज की संज्ञा तो दी जाती है, लेकिन उसका जीवन- -स्वरूप निम्नवर्गीय स्वरूप से बहुत कुछ मिलता- -जुलता स्वरूप है। इस प्रकार एकांकीकार द्वारा चयनित कथानक या कथावस्तु एक सफल और सार्थक सिद्ध होता है।

(2) पात्र और चरित्र-चित्रण—पात्र और चरित्र-चित्रण 'एकांकी' का एक महत्वपूर्ण तत्व है। इससे एकांकी के कथानक या कथावस्तु को गतिशीलता प्राप्त होती है। इसके लिए एकांकीकार सटीक पात्रों का ही चयन नहीं करता है, 

अपितु उनके चरित्र-चित्रण को भी चुन-चुनकर प्रस्तुत करता है। फलस्वरूप विषय का प्रतिपादन बड़े ही सुचारू रूप से हो जाता है।

पात्र और चरित्र की दृष्टि से प्रस्तुत एकांकी 'स्ट्राइक' सुप्रसिद्ध एकांकीकार की एक श्रेष्ठ और भाववर्द्धक एकांकी है। इसमें कुल तीन ही मुख्य पात्र हैं-पुरुष (श्रीचन्द), स्त्री और एक युवक। 

इस एकांकी में पुरुष का चरित्र एक विवेकशील और सुलझे हुए व्यक्तित्व के रूप में प्रस्तुत हुआ है, जबकि युवक का चरित्र अबोधपूर्ण और अनुभवहीन व्यक्तित्व के रूप में है।

युवक—पर मान लीजिए, मशीन का एक पुरजा बिगड़ जाए।

पुरुष-(हँसता हुआ) तो पुरजा बदल डालिए, स्वयं बदल जाइए। किताब ? मैं आपको बताऊँगा, किताबें क्या हैं ? मैंने रुई के व्यापार पर एक छोटी-सी किताब लिखी। वही सब बातें लिखीं, जो लोग रोज सोचते थे और जिनकी चर्चा करते रहते थे। 

नतीजा यह हुआ कि किताब की धूम मच गयी, पर उन उसूलों को जिनकी मैंने वकालत की, काम में लाने की बात मैं स्वप्न में भी नहीं सोचता।

स्त्री पात्र का चरित्रांकन बड़े ही स्वाभाविक और उदार रूप में हुआ है। शेष पात्रों के चरित्रांकन को एकांकीकार यथोचित में प्रस्तुत किया है।

संक्षेप में हम कहना चाहेंगे कि प्रस्तुत एकांकी 'स्ट्राइक' पात्र और चरित्र-चित्रण की दृष्टि से एक सफल एकांकी है।

(3) कथोपकथन या संवाद-कथोपकथन या संवाद का एकांकी के तत्वों में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इससे जहाँ पात्रों की मनोवृत्ति का पता चलता है, वहाँ एकांकीकार के अभिप्राय और मंशा का भी अच्छा प्रकाशन होता है। 

इसलिए कथोपकथन या संवाद को एकांकी के एक आवश्यक तत्वों के रूप में स्वीकार किया गया है।कथोपकथन या संवाद के विचार से जब हम श्री भुवनेश्वर लिखित एकांकी 'स्ट्राइक' का अध्ययन-मनन करते हैं, तो हम यह पाते हैं कि इसके कथोपकथन या संवाद पात्रगत विचार-वैशिष्ट्य के प्रतीक हैं। 

दूसरे शब्दों में एकांकीकार श्री भुवनेश्वर ने प्रस्तुत एकांकी के कथोपकथनों अथवा संवादों की पात्रानुसार एवं एकांकी के भाव-अभिप्राय के ही अनुसार प्रस्तुत किया है। एक उदाहरण देखिए

युवक—जिक्र तो शादी का था ?

पुरुष—हाँ, हाँ शादी को ही लीजिए। आप मानते हैं कि हर एक आदमी को जाति की जिन्दगी में दाखिल होना जरूरी है। जैसा मैं प्रायः कहता हूँ कि दुनिया साझे की दुकान है और हर एक बालिग आदमी का कर्तव्य है कि उसका साझेदार हो। 

अगर इस कोशिश में आप अपनी जान नहीं खपा देते, तो आप मनुष्य कहलाने का कोई हक नहीं रखते। (उत्तेजित होकर) मैं कहता हूँ सब पुस्तकें गलत हैं। सब झूठी हैं।

युवक—मैंने तो शादी नहीं की नहीं की कि मैं शायद कभी भी औरत का दिमाग.. साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते। मैं

पुरुष-भाईजान, शादी एक गहरी समस्या है, आप उसके ता हूँ, आप एक फैक्टरी में तो हर तरह का विज्ञान, कानून, विशिष्ट ज्ञान लगाते हैं, फिर क्या कारण है कि जीवन को ऐसे परमात्मा के भरोसे छोड़ दिया जाए कि उसमें आदमी की सस्ती-से-सस्ती और निकम्मी-से-निकम्मी शक्तियाँ ही सिर्फ काम में लाई जाएँ। 

आप कहते हैं, मैं औरत को समझ नहीं पाता। जनाब, यह सब कोरी बातें हैं, बातें। समझने की क्या जरूरत है ? मशीन की एक पुली दूसरी पुली को नापने, जोखने, समझने नहीं जाती। स्त्री-पुरुष तो जीवन की मशीन के दो पुरजे हैं।

(4) देशकाल या वातावरण कथानक या कथावस्तु से ही सम्बन्धित देशकाल या वातावरण नामक तत्व होता है। इसमें संकलनत्रय, अर्थात् स्थान, काल और कार्य (घटना) की एकता को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है। इससे ही देशकाल या वातावरण नामक तत्व का जो निर्माण होता है, 

उससे एकांकी का कथ्य सुस्पष्ट हो जाता है। इस दृष्टि से श्री भुवनेश्वर लिखित एकांकी का देशकाल या वातावरण इसमें वर्णित कथानक के अनुसार ही है। 

यह हर प्रकार से स्वाभाविक और सटीक रूप में हुआ है। इस आधार पर प्रस्तुत एकांकी की सार्थकता और उपयोगिता निःसन्देह सिद्ध हो जाती है। 

(5) भाषा शैली-भाषा-शैली के द्वारा ही न केवल पात्रों की अभिव्यक्ति का प्रतिपादन होता है,अपितु एकांकीकार की मनोवृत्ति और मनोदशा का भी स्पष्ट उल्लेख होता है। इस आधार पर भाषा-शैली को एकांकी के प्रमुख तत्वों में से एक प्रधान तत्व स्वीकार किया गया है।

प्रस्तुत एकांकी की भाषा-शैली में सरसता, बोधगम्यता, स्पष्टता और हृदयग्राहाता नामक विशेषताएँ एक साथ हैं। इससे कथा-प्रवाह में गतिशीलता नामक गुण आ गया है। 

मनोवैज्ञानिक कथ्य को एकांकीकार ने जिस भाषा-शैली के द्वारा विश्लेषित किया है, वह वास्तव में सफल और सार्थक सिद्ध हुई है। प्रस्तुत एकांकी की भाषा-शैलीगत वैशिष्ट्य का एक उदाहरण निम्न प्रकार है

पहला-हम लोगों-सा कोई बेसरोकार आदमी रूस जाकर देखे कि इन शरीफों ने वहाँ क्या कर दिखाया है कि दुनिया भर को रूस के सामने हेय समझते हैं।

दूसरा-  हर देश, हर सरकार के सामने समस्या सिर्फ यही है कि किस तरह उसके कर कम-से-कम किए जा सकते हैं। आप कर कम कर दीजिए, प्रजा अपने आप प्रसन्न होगी। 

तीसरा-यानि खुदा तक को।

(6) उद्देश्य-पाश्चात्य एकांकियों में जहाँ रस को विशेष महत्व नहीं दिया जाता है, वहाँ उसके उद्देश्य पर अधिक बल दिया जाता है। आन्तरिक और बाह्य संघर्षों के द्वारा उद्देश्य का विकास आरम्भ हो जाता है। इस संघर्ष की समाप्ति के साथ ही उद्देश्य के रूप में हमें एकांकीकार के जीवन से सम्बन्धित दृष्टिकोण का पता लग जाता है।

प्रस्तुत एकांकी ‘स्ट्राइक' में एकांकीकार श्री भुवनेश्वर ने आधुनिक मध्यवर्गीय जीवन समाज में ने दाम्पत्य-जीवन के मधुर नहीं, अपितु कटु-जीवन के विविध पहलुओं को प्रकाश में लाया गया है। 

स्वाभाविक रूप से स्त्री-पुरुष में जहाँ परस्पर प्रेम-व्यापार से सभी सम्बन्ध सुदृढ़ होते हैं, वहाँ वह प्रेम-व्यापार बिल्कुल ही नहीं है। इस एकांकी में स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की वह स्थिति दिखाई गई है, जो एक ऊब और टीस के रूप में बनने के सिवाय और कुछ नहीं है। 

मधुरता और सरसता इसमें कतई नहीं है। इस प्रकार कसावपूर्ण और तनावपूर्ण सम्बन्धों को उजागर करना और प्रकाश में लाना ही इस एकांकी का प्रमुख उद्देश्य तो है ही, इसके साथ ही साथ आधुनिक जीवन में आई हुई विसंगति को और तीव्रता और सार्वभौमिक स्वरूप देना भी इस एकांकी का एक और प्रमुख उद्देश्य है।

(7) अभिनय—अभिनय एकांकी का अन्तिम तत्व है। इसे पाश्चात्य विद्वानों ने प्रमुख रूप से मान्यता न देकर भी दी है। इसका तात्पर्य यह है कि उन्होंने इस तत्व का पृथक रूप से उल्लेख नहीं किया है। इसके विपरीत भारतीय आचार्यों ने इसे प्रमुखता दी है। 

इसका यह मानना है कि अभिनय नामक तत्व ही एक ऐसा तत्व है, जो एकांकी नाटक को साहित्य की अन्य विधाओं से अलग दर्जा देता है। 'अभिनय' की दृष्टि से प्रस्तुत एकांकी 'स्ट्राइक' एक सफल एकांकी है। 

इसके लिए एकांकीकार ने समय-सीमा, पात्र-सीमा और साज-सज्जा का विशेष और अधिक ध्यान दिया है। 

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