हिन्दी निबंध क्या है

सर्वप्रथम हिन्दी में निबन्ध की रचना बाबू भारतेन्दुजी ने की, जिस कारण इन्हें ही हिन्दी निबन्ध का जन्मदाता माना जाता है। बाबू हरिश्चन्द्र से लेकर आज तक निबन्ध बराबर विकासशील है। हिन्दी गद्य निखार के साथ-साथ निबन्ध पर भी निखार आया।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र तथा उनके मण्डल के निबन्धकारों ने अपने-अपने निबन्धों द्वारा निबन्ध साहित्य के भण्डार में वृद्धि की। भारतेन्दुजी के निबन्धों के शीर्षक हैं-कश्मीर कुसुम, पाँचवें पैगम्बर, लेवी प्राण लेगी, अंग्रेज स्रोत, स्वर्ण में विचार सभा का अधिवेशन, वैष्णवला और भारतवर्ष नाटकों का इतिहास आदि।

आचार्य शुक्ल के शब्दों में उनके निबन्धों की भाषा की विशेषताएँ अवलोकनीय हैं-“उनकी भाषा में न तो लल्लूलाल जी की ब्रजभाषापन आने पाया न मुंशी सदासुखलाल का पं. ताऊपन, न सदल मिश्र का पूर्वीपन न राजा शिवप्रसाद का उर्दूपन और न राजा लक्ष्मणसिंह का खालीपन और आगरापन । उनकी भाषा संस्कार शब्दों की काट-छाँट तक ही नहीं रही वे वाक्य विन्यास में भी सफाई लाए।

भारतेन्दु बाबू ने भूमिका शैली (बंगभाषा की कविता), जीवन शैली (सूरदास जी का जीवन-चरित्र), जाति वर्ण शैली (खत्रियों की उत्पत्ति), यात्रा वर्णन शैली (सरयू पार की यात्रा), भाव-प्रधान शैली (माधुरी), व्यंग्यपूर्ण शैली (बड़े पुण्य का फल) आदि शैलियों में निबन्ध लिखे। सामाजिक, साहित्यिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक आदि विषय के वैविध्य का प्रयोग भी देखने को मिलता है।

अपने निबन्धों की मौलिकता, विचारात्मकता तथा विचाराभिव्यक्ति के कारण एवं सरसता के कारण आपका हिन्दी के निबन्धकारों में प्रमुख स्थान है।

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