हिंदी का आदि कवि स्वयंभू को माना जाता है। स्वयंभू के पिता का नाम मारुतदेव और माता का पद्मिनी था। यह सातवीं सदी के कवी थे। जिनकी रचना में भरत, पिंगल, भामह और दण्डी और हर्ष का भी उल्लेख मिलता है।
अभी तक स्वयंभू की पउमचरिउ, रिट्ठणेमिचरिउ और स्वयंभू छंदस्र ही उपलब्ध हो पाई हैं। इनमें दो रचनाएँ काव्यात्मक हैं तथा तीसरी प्राकृत-अपभ्रंश की है।
ज्ञात अपभ्रंश प्रबंध काव्यों में स्वयंभू की रचनाएँ प्राचीन हैं, इसीलिए उन्हें अपभ्रंश का आदि महाकवि भी कहा जाता है। स्वयंभू की रचनाओं में महाकाव्य के सभी गुण पाए जाते हैं। पुष्पदंत कवि ने स्वयंभू का नाम बड़े आदर से लिया है। स्वम्भू को अपभ्रंश का वाल्मिकी कहा जाता है।