माखनलाल चतुर्वेदी की काव्यगत विशेषताएं लिखिए

उत्तर - छायावाद की पृष्ठभूमि बड़ी व्यापक, सुदृढ़ और प्रभावशाली है। इसमें जिन रचनाकारों ने योगदान दिए उनमें कविवर माखनलाल चतुर्वेदी का स्थान अत्यन्त सम्माननीय और उल्लेखनीय स्वीकृत हुआ है। 

यह इसलिए कि उनकी सम्पूर्ण काव्यधारा छायावादी काव्यकाल की प्रवृत्तियों से न केवल प्रभावित हुई, अपितु उनसे सराबोर भी होती रहीं। यों तो छायावादी काव्यधारा का स्रोत कंठ कविवर मुकुटधर पाण्डेय से प्रस्फुटित हुआ था,।

लेकिन इसकी अपेक्षित और प्रभावोत्पादक अनुगूंज प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी के कोकिल कलकंठों से ही हृदयस्पर्शी हो सकी। 

इन श्रेष्ठ काव्यकारों की पंक्तियों में सर्वमान्य समालोचकों और काव्य-प्रेमियों ने कविवर माखनलाल चतुर्वेदी जी को सम्मान दिया है। 

अब हम विषयानुसार कविवर चतुर्वेदी की छायावादी काव्य-धारा का विश्लेषण छायावादी प्रवृत्तियों के आधार पर करना समुचित समझ रहे हैं।

(1) वैयक्तिकता-छायावादी काव्य- प्रवृत्ति का पहला स्वरूप है- वैयक्तिकता | कविवर चतुर्वेदी की कविताएँ इस वैशिष्ट्य में पूरी तरह प्रभावित हैं। एक उदाहरण देखिए

"मैं सुगन्ध, मैं अन्न प्रवासी, मैं अर्पण, मैं ज्वाला,
झर-झर कर ऊँचे उठ जाना, मैंने नित्य संभाला।।”

 (2) शृंगारिकता 

छायावादी काव्य की दूसरी विशेषता है- शृंगारिकता । महाकवि चतुर्वेदी की कविताएँ इसके अपवाद नहीं हैं। ऋतुराजबसंत के भुज-बन्धन में आबद्ध प्रकृति-वधू का यह संश्लिष्ट चित्र द्रष्टव्य है

गेहूंओं के गर्व पर सरसों उठी है झूम। प्रकृति के सुकयोल रवि किरनें रही हैं चूम ।।” 

(3) प्रकृति का मानवीकरण 

छायावादी वैशिष्ट्यान्तर्गत प्रकृति का मानवीकरण एक प्रमुख वैशिष्ट्य है। कविवर चतुर्वेदी की काव्यधारा में यह वैशिष्ट्य प्रवाहित होता हुआ दिखाई देता है"कल कलिकाएँ पुष्प बनेगी, खिलने की लाचारी लेकर, कुछ अपनी कुण्ठा से उलझी, कुछ मुस्कान तुम्हारी लेकर ।” 

(4) प्रकृति के संयोगावस्था का चित्रण 

छायावादी कवियों ने प्रकृति को नायक-नायिका के रूप में चित्रित किया है। यह चित्रण संयोगावस्था में है तो वियोग में भी । प्रकृति के संयोगावस्था का एक चित्रण देखिए।

"निशि ने शरमाकर पहला शशि-मुख-चूमा, गलवहियाँ दे जब निशि-निशि छाये - छाये, जब लाख-लाख तारे निज पर शरमाये ।” 

(5) प्रकृति के वियोगावस्था का चित्रण  

छायावादी काव्य में प्रकृति के वियोगावस्था के मर्मस्पर्शी चित्रण है। महाकवि चतुर्वेदी इस दृष्टि से महत्वपूर्ण सिद्ध होते हैं । इसके प्रमाण एवं उनका एक काव्यांश द्रष्टव्य है“शीतल अंगारों के विश्व जलाने क्यों आते हो ? कम्पन के तारों में गूंथे से क्यों लहराते हो ?”

(6) प्रगतिवादी चेतना 

 छायावादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्ति प्रगतिवादी चेतना भी है। समाजगत विषमता को छायावादी कवियों ने न केवल अनुभव किया, अपितु उनका मर्मस्पर्शी चित्रण भी किया। कविवर माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ काव्य-पंक्तियों को हम यहाँ प्रसंगतः उद्धृत करना समावश्यक समझ रहे हैं

"तोड़ अमीरों के मनसूबे, गिन न दिनों की घड़ियाँ, 
बुला रही हैं तुझे देश की कोटि-कोटि झौंपड़ियाँ ।”
"महलों पर कुटियों को वारो, पकवानों पर दूध-दही, 
राज-पंथों पर कुंजे वारों, पर गोलोक मही।" 

(7) शैलीगत विविध प्रयोग 

छायावादी काव्य शैली निस्सन्देह वैविध्यपूर्ण है। उसमें ध्वन्यात्मकता, बिम्बात्मक, प्रतीकात्मकता, मूर्तिमत्ता, अप्रस्तुत विधान आदि बखूबी तौर पर है। इस तरह के वैशिष्ट्य के धनी कविवर माखनलाल चतुर्वेदी निस्सन्देह हैं। इसके प्रमाण में उनकी कुछ चुनी हुई कविताओं के अंश निम्न प्रकार दिए जा रहे हैं

1. ध्वन्यात्मकता

“आ पुकारती हुई सभा में, दिवसना के चीर । 
आ सब कुछ खोने वाले जीवन के साथी, धीर ।।”

2. आलंकारिकता

 “लज्जावती को लज्जित करती हैं, हा-हा सुन्दर गलियाँ 

चढ़ने को तैयार नहीं सकुचाती हैं सुन्दर कलियाँ । ।” ,

3. वैयक्तिकता

"जब चाहूँ हँस सकूं तुम्हारे प्यार में

, झरने-सा झर सकूं चढ़ाव-उतार में । "

 अन्ततः हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि छायावाद काव्य की सभी सर्वमान्य काव्यगत वैशिष्ट्य से कविवर माखनलाल चतुर्वेदी का काव्य-वैभव समालंकृत है। यह निःसन्देह परवर्ती रचनाधर्मियों के लिए बड़ा प्रेरणा का स्रोत होता रहेगा। राष्ट्रीय कविताओं की समीक्षा कीजिए।

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