हबीब तनवीर की साहित्यिक विशेषताएँ लिखिए

हबीब तनवीर के साहित्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

1 हबीब तनवीर ने प्रायः सामाजिक समस्याओं पर नाटक लिखे।

2. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय भावना के प्रचार-प्रसार का भी महत्त्वपूर्ण प्रयास किया।

3. वे युगीन आवश्यकताओं से पूरी तरह जुड़े थे। उन्होंने जनता के लिए साहित्य लिखा। इसलिए यह स्वाभाविक था कि उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय, सामाजिक और लोक चेतना हो। 

4. अनेक नाटकों में आपने युवकों को देश-रक्षा का दायित्व निभाने की प्रेरणा दी। 

हबीब तनवीर का जीवन परिचय

हबीब तनवीर का जन्म 1 सितम्बर, सन् 1923 को रायपुर (तब मध्यप्रदेश में था, अब छत्तीसगढ़ की राजधानी) में हुआ था, जबकि निधन 3 जून, 2009 को भोपाल में हुआ। वे मशहूर लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता थे। उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954), बहादुर कलारिन और चरणदास चोर (1975) शामिल हैं। 

उन्होंने ( 1975) में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित की थी। उनके बचपन का नाम हबीब अहमद खान था। उन्हें बचपन से ही कविता लिखने का शौक था। पहले 'तनीवर' के छद्म नाम से लिखना शुरू किया और बाद में उन्हें इसी नाम से पुकारा जाने लगा। 

हबीब तनवीर एक नाटककार हैं। नाटक को काव्य कला की सर्वश्रेष्ठ विधा माना गया है। इसी विधा को नये सन्दर्भो में विकसित करने में हबीब तनवीर का महती योगदान है। आपने नाटक को एक नई दिशा दी है। आप नाट्य रंगकर्मी के रूप में विख्यात हैं। आपके नाटक वर्तमान में ही रंगमंच पर खेले जाते हैं।

हबीब तनवीर का नाटक में योगदान

हबीब तनवीर ने प्रायः सामाजिक समस्याओं पर नाटक लिखे। उन्होंने राष्ट्रीय भावना के प्रचार-प्रसार का भी महत्वपूर्ण प्रयास किया। वे युगीन आवश्यकताओं से पूरी तरह जुड़े हुए थे। उन्होंने जनता के लिए साहित्य लिखा । इसलिए यह स्वाभाविक था कि उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय, सामाजिक और लोक-चेतना हो।

अनेक नाटकों में आपने युवकों को देश-रक्षा का दायित्व निभाने की प्रेरणा दी है। वे यथास्थान छत्तीसगढ़ी का प्रयोग करते थे। चुटीली व प्रवाहमयी भाषा होती है जो पात्रानुसार होती है। भाषा-शैली-हबीब जी ने ऐतिहासिक प्रसंगों को प्रस्तुत करने के लिए तत्युगीन संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है। 

उनकी शब्द-योजना कोमल, पात्रानुकूल तथा गतिशील है। संवाद सहज स्वाभाविक एवं चुस्त है। बीच-बीच में काव्य के अंश आये है जिससे कवि सुलभ वतावरण का निर्माण हो सका है।

हबीब तनवीर एक नाटककार थे। नाटक को काव्य कला की सर्वश्रेष्ठ विधा माना गया है। इसी विधा को नये सन्दर्भो में विकसित करने में हबीब तनवीर का अपूर्व योगदान है। आपने नाटक को एक नई दिशा दी है। आप नाट्य रंगकर्मी के रूप में विख्यात थे।

छत्तीसगढ़ी में हबीब तनवीर का चरणदास चोर एक प्रख्यातिलब्ध नाटक है। सन् 1982 में फ्रांस के अन्तर्राष्ट्रीय नाट्य समारोह में 'चरणदास चोर' को सर्वश्रेष्ठ नाट्य प्रस्तुति का पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

इस नाटक से पहली बार भारतीय रंगकर्म की विशिष्टता की संसार में पहचान हुई, विशेषकर छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य को विश्व में पहचान मिली।छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार उनके नाटकों के प्राण रहे हैं। तनवीर की इस प्रस्तुति ने ही उन्हें श्रेष्ठ निदेशक के रूप में स्थापित कर दिया।

हबीब तनवीर ने हिन्दी रंगमंच को एक दर्जन से अधिक सफल नाटक दिये हैं। 'चरणदास चोर' और 'बहादुर कलारिन' उनके सर्वाधिक सफल नाटक हैं। उनके सफलतम नाटकों में आगरा बाजार, मिट्टी की गाड़ी, शाजापुर की सांताबाई, जिन लाहौर नहीं देखा, सड़क लाला शोहरतराय और मुद्राराक्षस, चरणदास चोर, गाँव का नाम ससुराल, मोर नाम दामाद का नाम लिया जा सकता है।

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