नगरीय संरचना क्या है

किसी नगर की भौगोलिक जानकारी हेतु उसकी संरचना को समझना आवश्यक होता है। नगर की संरचना के दो पक्ष होते हैं।

  1. आकृतिक संरचना 
  2. क्रियात्मक संरचना

आकृतिक संरचना 

इसके अन्तर्गत नगर की स्थिति , आकृति , आकार  तथा प्रारूप आदि का अध्ययन किया जाता है। इस दृष्टि से नगरों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

1. प्राचीन नगर – प्राचीन काल में नगरों का विकास अपने आप बिना किसी पूर्व निर्धारित योजना के होता था । विश्व के कुछ नगर इसके अपवाद हो सकते हैं, परन्तु अधिकांश प्राचीन नगर इसी. प्रकार स्वतः विकसित हुए हैं । 

2. आधुनिक नगर – आधुनिक काल में नगरों का विकास पूर्व निर्धारित योजनानुसार किया जाता है। इससे नगर का सम्भावित आकार, सड़कों 2. आधुनिक नगर एवं रेलमार्गों का जाल, भवनों की बनावट यहाँ तक कि उनकी ऊँचाई तक पूर्व निर्धारित कर ली जाती है।

उदाहरण - दोनों प्रकार के नगरों का एक साथ उदाहरण पुरानी दिल्ली तथा नई दिल्ली में देखने को मिल जाता है। केवल आधुनिक नगर का उदाहरण चण्डीगढ़ है।

ग्रिड प्रतिरूप इस प्रतिरूप के नगरों में सड़कें एक-दूसरे को समकोण पर काटती हैं। जैसे - चण्डीगढ़ तथा जयपुर ।

त्रिज्यात्मक प्रतिरूप – इस प्रकार के नगर में नगर को केन्द्र मानकर उसके चारों ओर सड़कें इस प्रकार निकलती हैं, जिस प्रकार साइकिल के चक्के के केन्द्र से तीलियाँ बाहर की ओर निकलती हैं। इसका उदाहरण नई दिल्ली है। यूरोप में पेरिस तथा बर्लिन भी इसी प्रतिरूप के नगर हैं। 

क्रियात्मक संरचना

प्रत्येक नगर एक सेवा केन्द्र होता है, अतः नगर में अनेक सेवा कार्य सम्पन्न होते हैं । भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए भवन भी अलग-अलग बने होते हैं, किन्तु किसी क्षेत्र विशेष में किसी विशेष प्रकार के कार्य की प्रधानता होती है, 

अतः उस कार्य के नाम से ही उस क्षेत्र विशेष को पहचाना जाता है, जैसे- औद्योगिक क्षेत्र, व्यापारिक क्षेत्र आदि । इस दृष्टि से नगर को निम्नांकित भागों में विभाजित किया जाता हैं।

1. नगर कोड  – नगर के केन्द्रीय भाग में प्रायः दुकानों तथा व्यापारिक संस्थानों के भवन पाये जाते हैं। यह बाजार केन्द्र होता है।

2. आवासीय क्षेत्र — नगर में निवास करने वाले लोगों के आवासीय भवन नगर के खुले एवं स्वच्छ वायु वाले क्षेत्रों में बनाये जाते हैं। ये क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र से अलग बनाये जाते हैं ।

3. औद्योगिक क्षेत्र  – इस क्षेत्र में मुख्य रूप से कारखाने, मिलें, ऊर्जा केन्द्र, कार्यशालाएँ आदि के भवन होते हैं।

4. व्यापारिक क्षेत्र – इस भाग में बैंक, बीमा कम्पनियाँ, आढ़तें तथा मण्डियाँ होती हैं।

5. बाजार क्षेत्र  — नगरवासियों के दैनिक उपयोग की वस्तुओं की आपूर्ति हेतु बाजार होता है। इसमें खाद्य सामग्रियाँ, साक्-सब्जियाँ, फल, मसाले आदि मिलते हैं।

6. प्रशासनिक क्षेत्र – इस क्षेत्र में सरकारी कार्यालय, न्यायालय, डाकघर, पुलिस कार्यालय, टेलीफोन केन्द्र आदि होते हैं ।

7. परिवहन क्षेत्र – यह नगर का वह क्षेत्र होता है, जहाँ पर बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन, टैक्सी स्टैण्ड आदि के लिए भवन बने होते हैं ।

8. शिक्षा क्षेत्र – नगर के खुले एवं शान्त वातावरण वाले क्षेत्र में विश्वविद्यालय, कॉलेज, स्कूल एवं अन्य प्रकार की शिक्षण संस्थाओं के भवन बने होते हैं । 

आजकल नगरों की योजना का प्रारूप तैयार करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि नगर के रूप में विकसित हों ।

वृहत् नगरों का वर्गीकरण - जनसंख्या के आधार है पर नगरों का वर्गीकरण किया जाता है। जो निम्नानुसार हैं

विश्व में एक लाख की जनसंख्या में कुल 1785 नगर हैं, जिनमें 1660 एक लाख से 10 लाख तक जनसंख्या वाले हैं। 10 लाख से अधिक जनसंख्या के कुल 129 नगर हैं, जिनमें 10 महानगरों की जनसंख्या 70 लाख से अधिक है जो निम्नानुसार हैं।

दस लाखी नगर  - विश्व में 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले विशालकाय नगरों को दस लाखी नगर की संज्ञा दी जाती है। सन् 1900 में इनकी संख्या 10 थी जो 1960 में 61 हो गई और 1970 में 125 हो गई । विगत 100 वर्षों में विश्व में नगरीकरण में तीव्र विकास के कारण नगरीय जनसंख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई है। 

नगरों का आकार बढ़ा है और इनकी संख्या में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है साथ ही साथ नगरों के क्षेत्रफल में भी विस्तार हुआ जिससे सन्नगर का अभ्युदय हुआ है।

Related Posts