विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कहां पर हुई थी?

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए  1 जनवरी 1995 को किया गया था। जिसे W.T.O. के नाम से भी जाना जाता है। विश्व व्यापार संगठन का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है।

30 दिसम्बर 1994 को इस समझौते पर हस्ताक्षर कर भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य बन गया। वर्तमान में 164 देश इसके सदस्य हैं। विश्व व्यापार संगठन की स्थापना अन्तर्राष्ट्रीय संधि के आधार पर की गई है। W.T.O. एक स्थायी संगठन है।

विश्व व्यापार संगठन के उद्देश्य

विश्व व्यापार संगठन के निम्नलिखित उद्देश्य निर्धारित हैं -

  • वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं व्यापार को बढ़ावा देना।
  • माँग एवं रोजगार में व्यापक वृद्धि करना।
  • विश्व के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करना।
  • सतत् विकास की अवधारणा को स्वीकार करना।
  • जीवन स्तर में वृद्धि करना।
  • पर्यावरण का संरक्षण एवं सुरक्षा करना।

विश्व व्यापार संगठन के कार्य 

विश्व व्यापार संगठन के कार्य - यह व्यापार एवं प्रशुल्क से सम्बन्धित किसी भी मसले पर सदस्य देशों के बीच विचार-विमर्श हेतु एक मंच प्रदान करता हैं। विश्व व्यापार समझौता एवं बहुपक्षीय समझौते के क्रियान्वयन, प्रशासन एवं परिचालन हेतु सुविधाएँ उपलब्ध करता हैं।

व्यापार नीति की समीक्षा प्रक्रिया से सम्बन्धित नियमों एवं प्रावधानों को लागू करता हैं। विवादों के निपटारे से सम्बन्धित नियमों की स्थापना करता हैं। विश्व आर्थिक नीति के निर्माण में अधिक सामंजस्य भाव स्थापित करने के लिए विश्व व्यापार संगठन विश्व बैंक का सहयोग करता हैं। विश्व के संसाधन का अनुकूलतम उपयोगकरने की सलाह देना इसके कार्य हैं।

विश्व व्यापार संगठन 

संगठन में प्रत्येक सदस्य देश का एक स्थयी प्रतिनिधि होता है। इसकी बैठक सामान्यतया माह में एक बार जेनेवा में होती है। मन्त्रि स्तरीय सम्मेलन का आयोजन प्रायः प्रत्येक दो वर्ष बाद होता है। दिन प्रतिदिन के प्रशासकीय कार्यो के संचालन के लिए संगठन का सर्वोच्च पदाधिकारी महानिदेशक होता है जो सामान्य परिषद् द्वारा चार वर्षों के लिए चुना जाता है। महानिदेशक की सहायता के लिए सदस्य देशों द्वारा चार महानिदेशक भी चुने जाते हैं।

W.T.O. का प्रथम मन्त्र स्तरीय सम्मेलन 9 से 13 दिसम्बर 1996 को सिंगापुर में हुआ था। सम्मेलन में विचारणीय प्रमुख मुद्दों में श्रम मानक, निवेश तथा प्रतिस्पर्द्धा को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने के विषय में चर्चा किया गया था। इसके अतिरिक्त टेक्सटाइल्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी के मुद्दे भी शामिल थे। 

भारत सहित विकासशील देश जहाँ श्रम मानकों को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से जोड़ने के विरोध में थे। वहीं अमेरिका सहित विकसित राष्ट्र इन्हें जोड़ने के पक्ष में थे। भारत का कहना था कि श्रम मानक W.T.O. की नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का विषय है।

पाँच दिन तक चले इस सम्मेलन के घोषणा-पत्र में यह तय हुआ की राष्ट्रों के व्यापार को प्रतिबन्धित करने के लिए श्रम मानकों का प्रयोग नहीं किया जायेगा। विकासशील देशों की यह एक बड़ी उपलब्धि थी।

विश्व व्यापार संगठन का दूसरा सम्मेलन 18 से 20 मई 1998 को जेनेवा में सम्पन्न हुआ। इसमें 132 देशों के वाणिज्यिक मन्त्रियों ने भाग लिया। इसमें भारत ने क्षेत्रीय व्यापारिक गुटों के फैलाव का विरोध किया गया।

W.T.O. का तीसरा सम्मेलन 30 नवम्बर से 3 दिसम्बर 1999 को अमेरिका के सिएटल नगर में सम्पन्न हुआ। इसमें 135 सदस्य देशों ने भाग लिया। इस सम्मेलन को लोगों के प्रदर्शन व विरोध का सामना करना पड़ा। सम्मेलन की कार्यसूची श्रम मानकों, जैसे गैर व्यापारिक मुद्दों के समावेश का भारत सहित विकासशील देशों ने कड़ा विरोध किया।

अधिकांश मुद्दों पर आम सहमति न बन पाने के कारण सम्मेलन की समाप्ति पर कोई घोषणा पत्र जारी नहीं किया जा सका तथा सम्मेलन के कार्य को स्थगित करने की घोषणा की गयी।

भारत द्वारा आयातों पर मात्रात्मक प्रतिबन्धों की समाप्ति 

विश्व व्यापार संगठन के समझौते के अनुरूप भारत सरकार ने देश के आयातों पर मात्रात्मक प्रतिबन्धों को समाप्त करने का निश्चय किया है। इस सम्बन्ध में सरकार ने W.T.O. के एक फैसले के परिप्रेक्ष्य में अमेरिका के साथ 29 दिसम्बर, 1999 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

भारत ने W.T.O. की शर्तों के अनुरूप अनेक उत्पादों के आयात से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा लिया था परन्तु अपनी भुगतान सन्तुलन की प्रतिकूल स्थिति को देखते हुए तथा घरेलू उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने की दृष्टि से 1429 उत्पादों पर अभी भी प्रतिबन्ध लगा रखा था। 

किन्तु व्यापार के सहयोगी विकसित देशों के दबाव में भारत इन सभी उत्पादों के आयात से अप्रैल 2003 तक मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटाने के लिए राजी हो गया था। भारत ने इस आशय का एक द्विपक्षीय समझौता भी यूरोपीय संघ, जापान, आस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैण्ड के साथ किया था किन्तु अमेरिका इस समझौते से राजी नहीं हुआ और 1997 में इस मामले की विश्व व्यापार संगठन में ले गया। संगठन का फैसला अमेरिका के पक्ष में हुआ। 

संगठन ने भारत को 22 सितम्बर, 1999 को यह निर्देश दिया कि वह इस सन्दर्भ में अमेरिका के साथ समझौता करे अन्यथा भारत के लिए जाने वाले आयातों पर दण्डात्मक प्रशुल्क लगाने की उसे छूट होगी। इस फैसले के फलस्वरूप भारत ने शेष बचे 1429 उत्पादों के आयात पर से अप्रैल 2001 तक प्रतिबन्ध हटाने के लिए अमेरिका से सहमति व्यक्त की और 714 उत्पादों पर से 1 अप्रैल, 2000 से तथा शेष बची 715 वस्तुओं पर 1 अप्रैल, 2001 से मात्रात्मक प्रतिबन्ध समाप्त कर दिया है। 

इस प्रकार 1 अप्रैल 2001 से जो प्रतिबन्ध समाप्त किया गया है, यह विश्व व्यापार संगठन समझौते के अनुरूप प्रतिबन्ध हटाने की अन्तिम कड़ी रही। भारत द्वारा आयातों पर मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटाने से सम्बन्धित मुख्य बातें इस प्रकार रहीं -

1 अप्रैल, 2001 से 715 वस्तुओं के विदेश से आयात पर से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा लिया गया है। तीन साल से कम पुरानी सेकेण्ड हैण्ड कारों के ही आयात की अनुमति होगी लेकिन लैफ्ट हैण्ड वाली कारों का आयात नहीं होगा। गेहूँ, चावल, मक्का, पेट्रोल, डीजल, यूरिया का आयात केवल राज्य व्यापार एजेन्सियाँ ही कर सकेंगी। 

तीन सौ संवेदनशील उत्पादों के आयात पर नजर रखने के लिए समिति का गठन होगा। 2001-02 के लिए निर्यात वृद्धि लक्ष्य 18 प्रतिशत, कृषि निर्यात बढ़ाने के लिए कृषि निर्यात क्षेत्र की स्थापना और कृषि नीति की घोषणा होगी। 

विशेष आर्थिक क्षेत्रों का विकास करने वालों को आयकर कानून के तहत ढाँचागत दर्जा। लघु औद्योगिक इकाइयों के तहत आरक्षित उत्पादों की यूनिट स्थापित करने के लिए लाइसेन्स की जरूरत नहीं। नई नीति के तहत अब रक्षा और स्वास्थ्य की दृष्टि से संवेदनशील वस्तुओं और बीजों को छोड़कर अन्य सभी वस्तुओं का खुला आयात किया जा सकेगा।

भारत का अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार

वर्ष 1995 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने के उपरान्त भारत द्वारा भूमण्डलीकरण की नीतियों का अनुपालन करने के परिणामस्वरूप विश्व निर्यात में भारत का भाग जो 1990 में 0.56% था, वह बढ़कर 1995 में 0.6% हो गया।

आर्थिक सुधारों की 8 वर्षों की अवधि के दौरान 1998 तक यह भाग 0.6% पर रहा। वर्ष 1990 में भारत का कुल निर्यात 18,143 मिलियन अमेरिकी डालर था जो बढ़कर 1995 में 31,167 मिलियन डालर तथा 1997 में 34,240 मिलियन डालर हो गया।

विश्व व्यापार में भारत के भाग में अपेक्षित वृद्धि न होने का प्रमुख कारण यह है कि विकसित देश विश्व है व्यापार संगठन जैसे राज्यों के परिसंगठन के दबावाधीन विकासशील देशों को अपने व्यापार अवरोधक को कम करने और वस्तुओं के बेरोक-टोक प्रवाह के लिए मजबूर करते हैं, वहीं वे अपने हितों की रक्षा के लिए संरक्षणात्मक नीतियाँ चलाने के लिए व्यापार अवरोधक खड़े करते हैं।

यद्यपि भारत के कुल निर्यात में वृद्धि के प्रयास सन्तोषजनक हैं परन्तु यह प्रयास और अधिक फलीभूत होता यदि विकसित देशों ने एक या कभी दूसरे बहाने की आड़ में संरक्षणात्मक नीति न अपनायी होती, क्योंकि हमारे निर्यात यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका में तेजी से बढ़ रहे थे।  

अतः इन विकसित देशों ने हमारे टेक्सटाइल्स निर्यात के मार्ग में रोड़े अटकाने प्रारम्भ कर दिये हैं। संरक्षणवादी नीतियों का हमारे टेक्सटाइल्स उद्योग पर गम्भीर प्रभाव पड़ेगा और इसके परिणामस्वरूप हमारी कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ेगा जो इस क्षेत्र से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं। इसी तरह, अमेरिका आदि विकसित देशों ने श्रम मानदण्डों के आधार पर भारत के कालीन निर्यात को बाधित करने का प्रयास किया है।

विश्व व्यापार संगठन के प्रावधान एवं कृषि कृषि क्षेत्र में W.T.O. के प्रावधानों को लागू किये जाने पर कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्र में आयात पर मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटाकर विदेशी उत्पादों के लिए दरवाजे पूरी तरह खोल दिये गये हैं। इस सन्दर्भ में आलोचकों का तर्क है कि कृषि के क्षेत्र में उदारीकरण की नीति को अपनाने तथा अनुदान को समाप्त करने, कृषि बीजों के सम्बन्ध में पेटेण्ट कानून लागू होने से भारतीय कृषि पर गम्भीर प्रभाव पड़ेगा। 

कृषि आगतों एवं उर्वरकों पर से सब्सिडी घटाने तथा महँगे बीजों के क्रय से कृषि उत्पादों को लागत बढ़ जायेगी। देश के गरीब किसान इससे बर्बादी के किनारे पहुँच जायेंगे। देशी कृषि उत्पादन विदेशी सस्ते कृषि उत्पादों की तुलना में बाजार में नहीं बिक पायेगे। वर्तमान में कृषि एवं सम्बन्धित वस्तुओं का देश के कुल निर्यात व्यापार में अंशदान लगभग 15% है, वह पर्याप्त मात्रा में घट जायेगा।

-इस सम्बन्ध में विभिन्न विकासशील देशों द्वारा विश्व व्यापार संगठन स्तर पर बातचीत जारी है ताकि इन राष्ट्रों के कृषि व्यवसायों को संरक्षण प्रदान किया जा सके । 1 अप्रैल, 2001 से 715 वस्तुओं के आयात पर से मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटाने की घोषणा करते समय वाणिज्य मन्त्री ने स्पष्ट किया है कि अप्रैल 1994 में मरक्कश में हुए समझौते के तहत जो जनवरी 1995 में लागू हुआ।  

उसमें भारत को अनुसंधान, कीट एवं रोग नियन्त्रण, विपणन एवं संवर्द्धन सेवाओं तथा बुनियादी सहायता सेवाओं के लिए कृषि एवं उद्योगों को दी जा रही वर्तमान सब्सिडी कम करने को कोई विवशता नहीं है। W.T.O. समझौते से देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। अब कृषि क्षेत्र को शुल्क रियायत स्कीम और निर्यात संवर्द्धन पूँजीगत सामान स्कीम के दायरे में शामिल कर लिया गया है।

फिर भी यह कहा जा सकता है कि फार्म निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कृषि विकास की अपनी रणनीति में आमूल परिवर्तन करना होगा और उसमें उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिक विकास के साथ भू-सुधार, उर्वरकों एवं सिंचाई का अनुकूलतम प्रयोग करना होगा। 

अपने कृषि उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने का प्रयास करना होगा, इसके साथ ही भारतीय फर्मों को अपने उत्पादों को पेटेण्ट के रूप में पंजीकृत करने की संस्कृति का विकास करना होगा। यद्यपि विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होने के कारण भारत को इस संघ के नियमों का पालन करना होगा। फिर भी यह अत्यन्त आवश्यक है कि भारत सरकार विश्व व्यापार संगठन के साथ बातचीत के दौरान भारतीय उद्योग, कृषि तथा भारतीय जनता के हितों का पूरा ध्यान रखे। 

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