सांख्यिकी किसे कहते हैं?

वर्तमान समय में, सांख्यिकी वह विज्ञान एवं कला है जिसमें किसी अनुसन्धान के क्षेत्र से सम्बन्धित और विविध कारणों से प्रभावित, सामूहिक संख्यात्मक तथ्यों के संग्रहण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण एवं विवेचन की रीतियों का अध्ययन किया जाता है।

सांख्यिकी की परिभाषा

सांख्यिकी को दो रूपों में परिभाषित किया गया है - 

  1. बहुवचन
  2. एकवचन

1. बहुवचन के रूप में सांख्यिकी शब्द का अर्थ समंकों या आँकड़ों से है जो किसी विशेष क्षेत्र से सम्बन्धित संख्यात्मक तथ्य होते हैं; जैसे-कृषि समंक, जनसंख्या समंक, राष्ट्रीय आय समंक आदि । बहुवचन से सम्बन्धित सांख्यिकी की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं

(1) प्रो. बाउले के अनुसार - किसी अनुसन्धान से सम्बन्धित अंकों में व्यक्त किये गये उन तथ्यों के विवरण को समंक कहते हैं, जिन्हें एक-दूसरे के सम्बन्ध में रखा जा सकता है।"

(2) यूल एवं कैण्डाल के अनुसार - सांख्यिकी से आशय से संख्यात्मक तथ्यों से है, जो एक बड़ी सीमा तक अनेक कारणों से प्रभावित होते हैं।

2. एकवचन के रूप में विद्वानों ने इसे सांख्यिकी विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है, जो निम्न प्रकार हैं

(1) बाउले के अनुसार - सांख्यिकी गणना का विज्ञान है।

(2) बॉडिंगटन के अनुसार - सांख्यिकी अनुमान तथा सम्भावनाओं का विज्ञान है।

(3) क्रॉक्सटन तथा काउडेन के अनुसार - सांख्यिकी संख्यात्मक तथ्यों के संग्रहण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा विवेचन के रूप में परिभाषित किया जाता है।

इस प्रकार सांख्यिकी एक विज्ञान और कला है जो सामाजिक, आर्थिक एवं प्राकृतिक समस्याओं से सम्बन्धित समंकों के संग्रहण, वर्गीकरण, सारणीयन और पूर्वानुमान से सम्बन्ध रखती है ताकि निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति हो सके।

एकवचन के परिभाषाओं को दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है 

  1. संकीर्ण परिभाषाएँ 
  2. व्यापक परिभाषाएँ। 

संकीर्ण परिभाषाएँ

इन परिभाषाओं को अपूर्ण एवं प्राचीन मत की परिभाषाओं के नाम से भी पुकारा जाता है। प्राचीनकाल में सांख्यिकी विज्ञान राज्य विज्ञान के रूप में विकसित हुआ, अतः इन परिभाषाओं का क्षेत्र या तो राज्य विज्ञान तक ही सीमित रहा या कतिपय सांख्यिकीय रीतियों तक, जैसे गणना एवं माध्य, जो उस समय अधिक महत्वपूर्ण थीं। यही कारण है कि ये परिभाषाएँ संकीर्ण दृष्टिकोण का प्रतीक मानी जाती हैं।

डॉ. बाउले ने सांख्यिकी की तीन परिभाषाएँ दी हैं. जो इस प्रकार हैं -

  • सांख्यिकी गणना का विज्ञान है।
  • सांख्यिकी को सही अर्थ में औसतों का विज्ञान कहा जा सकता है।
  • सांख्यिकी वह विज्ञान है जो सामाजिक व्यवस्था को सम्पूर्ण मानकर सभी रूपों में उसका मापन करती है।

बॉडिंगटन के अनुसार, सांख्यिकी अनुमानों और सम्भाविताओं का विज्ञान है।

व्यापक परिभाषाएँ

इन परिभाषाओं को आधुनिक युग की परिभाषाओं की संज्ञा भी दी जाती है। आधुनिक संख्याशास्त्री सांख्यिकी का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक समझते हैं और इसमें अनेक सांख्यिकीय रीतियों को समाविष्ट करते हैं। आधुनिक मत की परिभाषाओं में से कुछ प्रमुख का उल्लेख निम्न प्रकार किया जा रहा है। 

प्रो. किंग के मतानुसार, “गणना अथवा अनुमानों के संग्रह के विश्लेषण के आधार पर प्राप्त परिणामों से सामूहिक, प्राकृतिक अथवा सामाजिक घटनाओं पर निर्णय करने की रीति को सांख्यिकी विज्ञान कहते हैं।"

परिभाषा का स्पष्टीकरण-इस परिभाषा में निम्न तीन बातों पर जोर डाला गया है

(क) सांख्यिकी विज्ञान में प्राकृतिक या सामाजिक घटनाओं का विवेचन किया जाता है।

(ख) यह विवेचन गणना या अनुमानों के द्वारा एकत्र किए हुए समंकों के विश्लेषण से प्राप्त परिणामों के आधार पर किया जाता है। 

(ग) यह विवेचन सामूहिक रूप से होता है।

सांख्यिकी के कार्य

आज के युग में सांख्यिकी का उपयोग ज्ञान व विज्ञान के प्रत्येक क्षेत्र में होने लगा है। यह अत्यन्त उपयोगी विज्ञान तथा वैज्ञानिक विधि है क्योंकि इसके द्वारा तथ्यों के संख्यात्मक पहलू को सरल, संक्षिप्त, तुलनीय तथा विश्वसनीय बनाने के कार्य किये जाते हैं। 

यही कारण है कि एच. जी. वेल्स ने कहा है कि “कुशल नागरिकता के लिये संख्यात्मक रूप से सोचना एक दिन उतना ही आवश्यक हो जायेगा जितना पढ़ने-लिखने की योग्यता प्राप्त करना है। इसीलिए कहा जाता है कि सांख्यिकी का कार्य केवल आर्थिक व सामाजिक विश्लेषण करना ही नहीं है वरन् प्रत्येक क्षेत्र की समस्याओं पर भी प्रकाश डालना है। 

वास्तव में सांख्यिकी द्वारा किये जाने वाले विविध कार्य ही इसकी उपयोगिता का आधार हैं। सांख्यिकी के द्वारा किये जाने वाले कार्य निम्न प्रकार हैं।

1. तथ्यों को संख्यात्मक रूप प्रदान करना

सांख्यिकी का एक प्रधान कार्य तथ्यों को आँकड़ों के रूप में व्यक्त करना होता है। यह कार्य संख्याओं के माध्यम से सरलतापूर्वक किया जा सकता है। इसमें शुद्धता तथा विश्वसनीयता होती है।

उदाहरणार्थ यदि कहा जाय कि रायपुर की आबादी बहुत अधिक है तो यह कथन अत्यन्त अस्पष्ट तथा अनिश्चित दिखायी पड़ता है, किन्तु यदि यह कहा जाय कि रायपुर की जनसंख्या 40 लाख है तो यह तथ्य स्पष्ट शुद्ध तथा विश्वसनीय दिखायी पड़ता है। अतः सांख्यिकी तथ्यों को संख्या के रूप में व्यक्त करके सरलता प्रदान करती है।

 प्रो. किंग के शब्दों में, "बृहत् संख्यात्मक तथ्यों को सरल बनाने में ही सांख्यिकी विज्ञान की उपयोगिता है।" यही सांख्यिकी का महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है।

2. जटिल तथ्यों को सुगम बनाना

सांख्यिकी का दूसरा कार्य विशाल तथा जटिल तथ्यों को सरल तथा संक्षिप्त बनाना है। यह जटिल तथ्यों को सरल व संक्षिप्त बनाती है ताकि लोग सरलता से समझकर उपयोग कर सके। 

समाज में तथ्य व आँकड़े अव्यवस्थित रूप से विद्यमान होते हैं जिनका उपयोग जनता के लिये उपयोगी नहीं होता है किन्तु सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग करके इन्हें अधिक सरल व उपयोगी बनाया जा सकता है। 

इसके लिये वर्गीकरण, सारणीयन तथा रेखाचित्र का उपयोग किया जा सकता है। डॉ. बाउले के शब्दों में, “एक जटिल समूह के सांख्यिकी अनुमान का उद्देश्य एक ऐसी संख्या प्रस्तुत करना है जिससे मस्तिष्क साधारण प्रयत्न से स्मरण समूह के महत्व को समझ सके।

3. तथ्यों की तुलना करना

प्रो. बॉडिंगटन के अनुसार, “केवल गणना करना ही सांख्यिकी का कार्य नहीं है वरन् तुलना करना भी है।” तथ्यों की तुलना करना सांख्यिकी का एक महत्वपूर्ण कार्य है। 

संकलित किये गये तथ्यों की उपयोगिता तब तक नहीं होती जब तक कि इसकी तुलना अन्य आँकड़ों यां तथ्यों से न की जाये। उदाहरणार्थ यह कहा जाय कि भारत में प्रतिवर्ष 250 लाख टन चीनी का उत्पादन होता है तो इससे कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है।

किन्तु इस सम्बन्ध में सही निष्कर्ष तब तक नहीं निकाले जा सकते हैं जब तक कि अन्य देशों के उत्पादन अंक न दिये गये हों। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये सांख्यिकी विधि तुलनात्मक विधि का सहारा लेती है। यही इसका उपयोग है।

4. ज्ञान तथा अनुभव में वृद्धि करना

सांख्यिकी के अध्ययन से अन्य विज्ञानों की भाँति मनुष्य के ज्ञान तथा अनुभव में वृद्धि होती है। प्रो. बाउले के अनुसार, “वास्तव में सांख्यिकी का उचित कार्य व्यक्तिगत अनुभव की वृद्धि करना है।” इसके माध्यम से सही निष्कर्ष तक पहुँचा जा सकता है। 

यही नहीं इसकी सहायता से ज्ञान व अनुभव के साथ मानव के विचारों में दृढ़ता भी आती है। इसका कारण यह है कि समंकों का विश्लेषण व निर्वचन करने से तर्कशक्ति में वृद्धि होती है। इसीलिए प्रो. हिपिल के अनुसार, “सांख्यिकी व्यक्ति के क्षितिज का विस्तार करने में सहायक होती है।

5. तथ्यों के बीच सह

सम्बन्ध ज्ञात करना-सांख्यिकी की सहायता से दो तथ्यों के मध्य सह-सम्बन्ध की मात्रा का पता लगाया जा सकता है। इसके माध्यम से संकलित किये गये तथ्यों की संख्याओं का विश्लेषण के द्वारा यह पता लगाया जा सकता है। 

कि इन तथ्यों में कोई सम्बन्ध पाया जाता है या नहीं। यदि सम्बन्ध पाया जाता है तो उसकी सीमा कितनी है। इस सम्बन्ध में प्रो. बाउले का कथन है कि "सांख्यिकी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य एक समूह का दूसरे समूह से सम्बन्ध बतलाते हुए प्रमाण देना है।" यही इसका महत्वपूर्ण कार्य होता है।

6. नीति निर्धारण में सहायता प्रदान करना

जिन क्षेत्रों में समंक विद्यमान होते हैं तथा आसानी से प्राप्त किये जा सकते हैं वहाँ पर नीति का निर्धारण सरलता से किया जा सकता है। इसके आधार पर आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक सभी क्षेत्रों में नीति निर्धारण में सहायता मिलती है। 

आँकड़ों तथा उनकी प्रवृत्तियों के आधार पर देश में औद्योगिक नीति, आयात-निर्यात नीति, मौद्रिक नीति तथा मूल्य नीति आदि का निर्धारण किया जा सकता है। सांख्यिकी के आधार पर भी योजना के लक्ष्यों का निर्धारण होता है। इसके आधार पर डॉ. ऐंजिल ने अपना उपयोग नियम बनाया।

7. सत्यता की जाँच करना

विभिन्न विज्ञानों द्वारा प्रतिपादित नियमों की सत्यता की जाँच सांख्यिकी विधियों द्वारा की जा सकती है। यही नहीं इसके माध्यम से अन्य विज्ञानों के अन्तर्गत नवीन नियमों का निर्माण भी किया जा सकता है। 

अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, अन्तरिक्ष विज्ञान तथा जीव विज्ञान आदि सांख्यिकीय विधियों पर ही आधारित हैं। सांख्यिकी की सहायता से निर्मित नियमों में स्थिरता तथा शुद्धता पायी जाती है। यह नियम सार्वभौमिक भी होते हैं। अतएव सांख्यिकी के द्वारा है।

8. निश्चयात्मक प्रदान करना

लॉर्ड केल्विन का कथन है कि “जिस विषय की बात आप कर रहे हैं यदि आप उसे माप सकते हैं तथा संख्या में प्रकट कर सकते हैं तो आप उसके विषय में कुछ जान सकते हैं। 

जब आप उसे माप नहीं सकते, जब उसे संख्या में प्रकट नहीं कर सकते तो आपका ज्ञान अल्प है।" जब तक किसी समस्या को सांख्यिकी रूप नहीं दिया जाता है तब तक उसका स्वरूप अनिश्चित माना जाता है। उदाहरणार्थ महँगाई का अनुमान तब तक नहीं लगाया जा सकता है जब तक कि मूल्यों के निर्देशांक न बनाये जा चुके हों।

9. पूर्वानुमान लगाना

सांख्यिकी की विभिन्न रीतियों द्वारा वर्तमान तथ्यों का विश्लेषण करके इसके आधार पर भविष्य के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। 

प्रायः आज के औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में सांख्यिकी द्वारा लगाये गये अनुमानों का विशेष महत्व है। योजनाओं में पूर्वानुमान द्वारा ही विभिन्न उद्देश्यों को निर्धारित किया जाता है। इसमें समानता लाने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि इसी आधार परियोजनायें बनायी जायें। 

इसी प्रकार जनसंख्या खाद्यान्न की उत्पत्ति, उपयोग तथा रहन-सहन के स्तर के बारे में वर्तमान तथ्यों के आधार पर भविष्यवाणी की जाती है। इस सम्बन्ध में प्रो. बाउले के शब्दों में, “एक सांख्यिकीय अनुमान अच्छा या बुरा, ठीक हो या गलत परन्तु प्रत्येक दशा में वह एक आकस्मिक प्रक्षेप के अनुमान से अधिक ठीक होगा।

सांख्यिकी का महत्व

प्राचीनकाल में सांख्यिकी का उपयोग शासन व्यवस्था तक ही सीमित था, किन्तु आज आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा प्राकृतिक सभी विज्ञानों की तर्कपूर्ण विवेचना में सांख्यिकी का महत्वपूर्ण स्थान बन गया है। वास्तव में सांख्यिकी आज प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है और उसके जीवन के अनेक बिन्दुओं को स्पर्श करती है।

क्रासटन एवं काउडेन के शब्दों में, “आज हमारे प्रयास का शायद कोई ऐसा पहलू हो जहाँ सांख्यिकीय रीतियों की कुछ उपयोगिता न हो।" विभिन्न क्षेत्रों में सांख्यिकी के महत्व को अग्रांकित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है।

1. शासन प्रबन्ध में महत्व

राज्य शासन-प्रशासन की दृष्टि से सांख्यिकी का इतना अधिक महत्व है कि इसका प्रारम्भ ही राजकीय विज्ञान के रूप में हुआ। सरकार अपनी उचित सैनिक तथा राजकोषीय नीति के लिये जनसंख्या, अपराध, आय, सम्पत्ति आदि के सम्बन्ध में आँकड़े एकत्रित करती है। 

वर्तमान समय में कल्याणकारी राज्य की विचारधारा के कारण इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। आज देश की सरकार को विभिन्न दृष्टिकोणों से आँकड़े एकत्रित करने पड़ते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि "सांख्यिकी को शासन प्रबन्ध के नेत्र कहा जाता है।

2. आर्थिक नियोजन में महत्व

आज के नियोजन युग में सांख्यिकी का आर्थिक नियोजन के क्षेत्र में अत्यन्त महत्व पाया जाता है। वर्तमान समय में विश्व के प्रत्येक देश अपने आर्थिक विकास की गति तीव्र करने में व्यस्त हैं। इसके लिए आँकड़ों तथा सांख्यिकी रीतियों का उपयोग किया जाना नितान्त आवश्यक होता है।” 

वास्तव में नियोजन की कल्पना आँकड़ों के आधार पर ही की जाती है तथा नियोजन के परिणामों की विवेचना भी सांख्यिकीय रीतियों द्वारा की जाती है। इस सम्बन्ध में प्रो. टिपेट ने ठीक ही कहा है कि "नियोजन आजकल का व्यवस्थित क्रम है और समंकों के क्रिया नियोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अतएव किसी भी आर्थिक नियोजन के निर्धारण तथा उसे सफलतापूर्वक चलाने के लिए समंकों तथा सांख्यिकीय रीतियों का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक होता है।

3. व्यापार एवं उद्योग में महत्व

सांख्यिकी व्यापार एवं उद्योग की जीवन शक्ति है। इसकी सफलता सांख्यिकी पर निर्भर होती है। व्यापार तथा व्यवसाय में अनुमानों तथा सम्भावनाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है। एक व्यापारी इन्हीं अनुमानों पर अपनी नीति और लक्ष्य निर्धारित करता है। यही नहीं व्यापार की सफलता के लिए उत्पादन की जान वाली वस्तुओं की माँग का अनुमान लगाया जाना आवश्यक होता है। प्रो. बॉडिंगटन के शब्दों में, “एक सफल व्यवसायी वह है जिसका अनुमान शुद्धता के निकट हो।" इसीलिए कहा जाता है कि यह तभी सम्भव है जब उचित आँकड़े उपलब्ध हों तथा उन पर उचित सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग किया जाये।

4. वाणिज्य के क्षेत्र में महत्व

वाणिज्य के विभिन्न क्षेत्रों में भी सांख्यिकी की पर्याप्त उपयोगिता है। बैंक को अपने यहाँ एक सांख्यिकी विभाग रखना पड़ता है जो व्यापार चक्रों, मुद्रा की माँग में होने वाले परिवर्तनों, मुद्रा बाजार की स्थिति तथा विनियोग की सुविधाओं का विश्लेषण करता रहता है। 

इसके आधार पर ही नीति का निर्धारण किया जाता है। बीमा व्यवसाय का प्रादुर्भाव सांख्यिकी के आधार पर हुआ है। विभिन्न आयु वाले व्यक्तियों से की जाने वाली प्रीमियम की दर का निर्धारण मृत्यु दर के आधार पर किया जाता है। इसी प्रकार यातायात कम्पनियाँ आँकड़ों के आधार पर ही यातायात की सुविधायें, भाड़े की दर, यात्रियों की सुविधायें निर्धारित करती हैं।

5.सामाजिक समस्याओं के क्षेत्र में महत्व

सामाजिक दोषों को मापने तथा उनसे उत्पन्न समस्याओं का मूल्यांकन करने की दृष्टि से सांख्यिकी का विशेष महत्व है। इसके माध्यम से सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, बेरोजगारी, मद्यपान, वेश्यावृत्ति तथा भुखमरी समस्याओं का अध्ययन करके उपचार प्रस्तुत किया जा सकता है। देश में निरक्षरता की दर का अनुमान भी इन सांख्यिकी रीतियों से लगाया जा सकता है। 

प्रो. वालिस एवं रॉबर्ट्स ने कहा है कि “सांख्यिकी एक ऐसा अस्त्र है जो प्रयोग सिद्धि अनुसन्धान के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर आक्रमण करने में प्रयोग किया जा सकता है।” इसीलिए कहा जाता है कि सांख्यिकीय आज जीवन के प्रत्येक बिन्दुओं को स्पर्श करती है। विशेष महत्व है। राजनीतिज्ञों का एक सामाजिक दायित्व होता है।

6. राजनीतिज्ञों के लिए महत्व

राजनीतिज्ञों की दृष्टि से भी सांख्यिकी का एक का अध्ययन करना तथा उन्हें दूर करना भी उनका एक विशेष दायित्व होता है। आँकड़ों की सहायता से देश में पायी जाने वाली समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

तत्पश्चात् अपने विचार संसद या देश के समक्ष रखते हैं। इस प्रकार देश के सभी लोगों का ध्यान इन समस्याओं की ओर जाता है। इस प्रकार सरकार भी अपना दायित्व निर्वाह करने में भलीभाँति सफल होती है। प्रो. ब्लेयर के शब्दों में, "राष्ट्रीय कानूनों के निर्माण तक सभी क्रियायें सांख्यिकी पर आधारित हैं।

7. अन्य विज्ञानों के अध्ययन का आधार

वैज्ञानिक रीति के रूप में सांख्यिकी की सार्वभौमिक उपयोगिता पायी जाती है। इसका उपयोग सभी आर्थिक, सामाजिक तथा प्राकृतिक विज्ञानों के अध्ययन में होता है। अर्थशास्त्र में इसके उपयोग की चर्चा करते हुए डॉ. बाउले ने कहा है कि “अर्थशास्त्र का कोई भी विद्यार्थी पूर्णता का दावा नहीं कर सकता है जब तक कि वह सांख्यिकीय रीतियों में पूर्ण दक्ष नहीं हो जाता है।" 

गणित तथा सांख्यिकीय में इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि सांख्यिकी को व्यावहारिक गणित की शाखा कहा जाता है। लेखांकन में लागत तथा लाभदायकता की गणना करने में सांख्यिकीय रीतियों का उपयोग किया जाता है। इसी प्रकार नक्षत्र विज्ञान, रसायन-शास्त्र, भौतिक विज्ञान, जीव-विज्ञान, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान तथा शिक्षाशास्त्र आदि में सांख्यिकीय रीतियाँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह कहना गलत न होगा कि वर्तमान समय में वैज्ञानिक रीति के रूप में सांख्यिकीय की सार्वभौमिक उपयोगिता पायी जाती है। अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि आज के युग में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसमें सांख्यिकी की उपयोगिता न हो। डॉ. या-लुन-चाऊ के शब्दों में, “सांख्यिकी का प्रयोग इतना विस्तृत हो गया है कि आज वह मानव क्रियाओं के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करता है।

सांख्यिकी का क्षेत्र

जो भी तथ्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संख्याओं में व्यक्त किये जा सकते हैं, सांख्यिकी के क्षेत्र के अन्तर्गत आ जाते हैं। सांख्यिकी के क्षेत्र को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है। 

सांख्यिकी रीतियाँ 

सांख्यिकीय रीतियाँ उन रीतियों को कहते हैं जिन्हें संख्यात्मक तथ्यों का स्पष्टीकरण करने के लिए किया जाता है। इन रीतियों का प्रयोग करके जटिल तथ्यों को सरल और सुगम बनाया जाता है। सांख्यिकी की विभिन्न रीतियों को निम्न भागों में बाँट सकते हैं। 

(1) आँकड़ों का संकलन -किसी समस्या विशेष से सम्बन्धित आँकड़ों का विभिन्न रीतियों से एकत्रीकरण करना है। संकलन के आधार पर समंकों को दो वर्गों में बाँटा जाता है-(1) प्राथमिक समंक एवं (2) द्वितीयक समंक प्राथमिक समंक अनुसन्धानकर्ता प्रारम्भ से लेकर अन्त तक बिल्कुल नये सिरे से एकत्रित करता है। द्वितीयक समंक पहले से एकत्रित एवं प्रकाशित होते हैं और अनुसन्धानकर्ता अपनी आवश्यकतानुसार इनमें से समंक ले लेता है।

(2) वर्गीकरण एवं सारणीयन -एकत्रित आँकड़ों को सरल करने व तुलना योग्य बनाने के लिए विशेष गुणों के आधार पर अनेक वर्गों में बाँटना और इन बनाये गये विभिन्न वर्गों का सारणियों में ज़माना है।

(3) आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण - विभिन्न सारणियों से निकाले गये निष्कर्षों को सरल एवं बोधगम्य बनाने के लिए चित्रों या बिन्दु रेखा द्वारा प्रस्तुत करना है।

(4) विश्लेषण - माध्य, अपकिरण, विषमता और सहसम्बन्ध की सहायता से एकत्रित वर्गीकृत एवं सारणीयुक्त आँकड़ों का विश्लेषण करना है।

(5) तुलना करना - समंकों के विश्लेषण के पश्चात् निकाले गये निष्कर्षों की सहायता से तुलनात्मक सम्बन्ध स्थापित करना है।

(6) निर्वचन करना - पूर्व के निष्कर्षों से तुलना जो भी फल निकला उससे परिणाम निकालना व इसे सरल शब्दों में प्रकट करना। 

(7) पूर्वानुमान लगाना - पूर्व के व अभी के परिणामों के आधार पर भावी सम्भावनाओं की ओर संकेत करना। 

व्यावहारिक सांख्यिकी 

सांख्यिकी रीतियों को व्यवहार में किस प्रकार लाया जाये, इसका अध्ययन इस विभाग में किया गया है। किसी समस्या से सम्बन्धित अंकों का किस प्रकार संग्रह, विश्लेषण एवं निर्वाचन किया जाये, यह व्यावहारिक सांख्यिकी का क्षेत्र है।

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