किसी भी स्थान का भूगोल वहाँ की जनसंख्या पर निर्भर रहता है, भूगोल के अध्ययन में मानव का केन्द्रीय स्थान है, क्योंकि मानव ही अपने आस-पास के प्राकृतिक और सांस्कृति वातावरणों का उपयोग करता है।
अर्थात् भूमि, जल, वन खनिज, वायु, जीव-जन्तुओं का प्रयोग मनुष्य ही करता है तथा स्वयं भी इन तत्वों से प्रभावित होता है, अत: भूगोल में जनसंख्या अध्ययन विशेष महत्वपूर्ण है। इसका अध्ययन करते समय इसके विभिन्न पक्षों, जैसे - वितरण, घनत्व, संरचना आदि तथा इनकों प्रभावित करने वाले कारकों पर ध्यान दिया जाता है।
जनसंख्या को प्रभावित करने वाले करक
जनसंख्या का वितरण सर्वत्र असमान है। विश्व के कुछ भागों में जनसंख्या का वितरण सघन है, वहीं दूसरी ओर संसार का विस्तृत क्षेत्र लगभग जनशून्य है। इससे स्पष्ट है कि कुछ ऐसे कारक हैं, जो पृथ्वी पर जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करते हैं। सम्पूर्ण विश्व में जनसंख्या का वितरण असमान है, इसके निम्नलिखित कारण हैं -
भौतिक कारक
1. धरातलीय रचना - समतल मैदानी भू-भाग प्रायः पठारीय तथा पर्वतीय क्षेत्रों की अपेक्षा घने बसे होते हैं, क्योंकि यहाँ उत्तम जलवायु, कृषि की सुविधाएँ, परिवहन सुविधाएँ और व्यापारिक सुविधाएँ सर्वाधिक होती हैं। जैसे - सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र का मैदान।
यहाँ जनसंख्या का घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी है। पठारीय भागों में मैदानी भागों की अपेक्षा जनसंख्या घनत्व कम होती है, क्योंकि यहाँ ऊँची-नीची भूमि, कम उपजाऊ मिट्टी तथा परिवहन सुविधाएँ कम होती हैं,जैसे - भारत का दक्कन पठार।
यहाँ पर जनसंख्या घनत्व घटकर 220 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी रह जाता है। पर्वतीय प्रदेशों में वहाँ की अनुपयुक्त जलवायु, उपजाऊ मिट्टी का अभाव, परिवहन साधनों का अभाव आदि के कारण जनसंख्या घनत्व बहुत कम रह जाता है। जैसे - हिमालय के पर्वतीय प्रदेश में जनसंख्या घनत्व मात्र 70 व्यक्ति और कहीं-कहीं तो 18 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी ही पाया जाता है।
2. जलवायु - जनसंख्या वितरण एवं उसके घनत्व को प्रभावित करने वाला दूसरा महत्वपूर्ण कारक जलवायु है। मानव निवास के लिए समशीतोष्ण एवं स्वास्थ्यप्रद जलवायु अनुकूल होती है। समशीतोष्ण एवं स्वास्थ्यवर्धक अनुकूल जलवायु के कारण ही चीन की 80% जनसंख्या केवल 10 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र के मैदानी भागों में निवास करती है।
उत्तम जलवायु के कारण ही विश्व की आधे से अधिक जनसंख्या दक्षिण-पूर्वी एशिया में निवास करती है। बंगलादेश का जनसंख्या घनत्व 616 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है।
अति उष्ण एवं आर्द्र जलवायु वाले प्रदेशों में अस्वास्थ्यकारक जलवायु, सघन वन, कृषि भूमि का अभाव होने से जनसंख्या घनत्व कम होता है, जैसे - अमेजन बेसिन व काँगो बेसिन । विषम एवं शुष्क जलवायु वाले प्रदेश भी मानव निवास के लिए अनुपयुक्त होते हैं। जैसे— अरब मरुस्थल, सहारा - मरुस्थल आदि ।
इसी प्रकार से अति शीतल एवं हिमाच्छादित प्रदेशों में भी जलवायु की कठोरता के कारण जनसंख्या घनत्व अत्यल्प पाया जाता है। उत्तरी साइबेरिया, अलास्का, उत्तरी कनाडा में टुण्ड्रा सदृश प्रदेश का जनसंख्या घनत्व 5 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है।
सागर तटीय प्रदेशों की जलवायु भी मानव निवास के अनुरूप होती है, इसलिए आस्ट्रेलिया का तटीय क्षेत्र घना बसा हुआ है।
3. उपजाऊ मिट्टी -उपजाऊ मिट्टी से मनुष्य को भोजन, वस्त्र, आवास आदि की सुविधाएँ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती हैं। इसलिए उपजाऊ मिट्टी वाले भू-भाग सघन बसे हुए हैं। जैसे - नदियों द्वारा निर्मित मैदानी भू-भाग यांगटिसीक्यांग व सीक्यांग, गंगा-ब्रह्मपुत्र आदि के मैदान।
जिन भूभागों की मिट्टी उपजाऊ नहीं होती, वहाँ जनसंख्या बहुत कम पायी जाती है, जैसेसहारा मरुस्थल, कालाहारी मरुस्थल आदि। पठारीग्र एवं पर्वतीय प्रदेशों की मिट्टी भी कम उपजाऊ होती है, अतः वहाँ जनसंख्या का घनत्व क्रमशः कम हो जाता है ।
4. जलापूर्ति - वनस्पति एवं प्राणी-जगत के लिए जल अनिवार्य आवश्यकता है, अतः जिन भू-भागों में पर्याप्त जल सुलभ है, वे सघन बसे हैं। जैसे- नदियों के मैदान, शुष्क प्रदेशों में झीलों, जलाशयों, नदियों के तटीय प्रदेश आदि । इसके विपरीत शुष्क एवं जलाभाव वाले क्षेत्रों में अत्यधिक विरल जनसंख्या निवास करती है। जैसे- अटाकामा मरुस्थल ।
5. खनिज पदार्थ - खनिज पदार्थों की उपलब्धता जनसंख्या के घनत्व को बढ़ाती है, क्योंकि खनिजों के खनन से अनेक उद्योगों का विकास होता है। पश्चिमी एशिया में पेट्रोलियम की उपलब्धता ने जनसंख्या में वृद्धि की है।
उत्तरी चिली में ताँबा व शोरा के कारण, आस्ट्रेलिया के पश्चिमी मरुस्थल में कालगूर्डी तथा कूलगार्ली सोना खनन के कारण जनसंख्या में वृद्धि हुई है। अति शीतल प्रदेशों में भी खनिजों के कारण मानव पहुँच रहा है जैसे - अण्टार्कटिका पर मानव निवास।
मानवीय कारक
1. नगरीकरण – मनुष्य का नगरों की ओर आकर्षण पुराना है, किन्तु विगत कुछ शताब्दियों से यह आकर्षण बड़ी तेजी से बढ़ा है। इसका कारण सुरक्षा, रोजगार, परिवहन, शिक्षा आदि सुविधाओं का नगरों में पाया जाना है। नगर ही वाणिज्य, व्यापार, उद्योग तथा प्रशासन के भी केन्द्र होते हैं, अत: नगरों में जनसंख्या की बेतहासा वृद्धि हुई है। सम्पूर्ण विश्व की 20% जनसंख्या 10 लाख से अधिक आबादी वाले बड़े नगरों में निवास करती हैं।
2. परिवहन साधनों का विकास – परिवहन साधनों के विकास के साथ-साथ जनसंख्या में भी वृद्धि होती जाती है। जैसे - सड़कों के किनारे कस्बों, नगरों एवं औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना हो जाने से जनसंख्या बढ़ती है। -
3. औद्योगीकरण -औद्योगिक दृष्टि से विकसित प्रदेशों में जनसंख्या का घनत्व बहुत उच्च पाया जाता है, क्योंकि इन प्रदेशों में रोजगार प्राप्ति के अवसर विद्यमान होते हैं । औद्योगीकरण के कारण ही उत्तरी-पश्चिमी यूरोप की जनसंख्या का घनत्व अधिक है।
जैसे- नीदरलैण्ड में 342 व्यक्ति तथा बेल्जियम में 322 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. है। भारत के पश्चिम बंगाल का औसत घनत्व 766 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. वहाँ के औद्योगिक विकास के कारण ही है ।
4. सामाजिक एवं धार्मिक कारण - जनसंख्या वृद्धि में सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताएँ भी प्रभाव डालती हैं, जैसे- बड़े परिवार की मान्यता, हिन्दू धर्म में पुत्र प्राप्ति धार्मिक दृष्टि से अनिवार्य मानी जाती है ।
5. कृषि का विकास – जिन क्षेत्रों में कृषि का अच्छा विकास हुआ है, वहाँ भी जनसंख्या सघन पायी जाती है। भारत, चीन, स्टेपी, प्रेयरी, डाउन्स आदि क्षेत्र उसके उपयुक्त उदाहरण हैं।
6. ऐतिहासिक कारक - पृथ्वी तल के प्राचीन क्षेत्र नवीन क्षेत्रों की तुलना में घने बसे हुए हैं, जैसे—चीन, भारत, यूरोपीय देश नवीन देशों, संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि से घने बसे हुए हैं ।
7. राजनैतिक कारक – जनसंख्या घनत्व पर राजनीतिक कारक कभी-कभी बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं। प्रायः अशान्ति के समय तथा अशान्त क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम हो जाता है तथा जो क्षेत्र स्थायी रूप से शान्त होते हैं वहाँ जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है। भारत-पाक सीमा पट्टी पर असुरक्षा के कारण भय की स्थिति बनी रहती है, जिसके कारण यहाँ जनसंख्या विरल है।
8. सरकार की नीतियाँ – जनसंख्या कम करने, यथावत् बनाये रखने अथवा वृद्धि करने में सरकारें अपनी आवश्यकतानुसार नीतियाँ निर्धारित करती हैं । दक्षिण-पूर्वी व पूर्वी एशियाई देश की सरकारें जनसंख्या वृद्धि को रोकने हेतु अथक् प्रयास कर रही हैं। आस्ट्रेलिया में जनसंख्या वृद्धि का न होना, वहाँ की सरकार की अप्रवास नीति का प्रतिफल है।