वीरों का कैसा हो वसंत कविता की व्याख्या

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता वीरों का कैसा हो वसंत राष्ट्रीयता और देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत रचना है। जिसमें कवयित्री ने भारतीय नवयुवकों का आह्वान करते हुए इस बात पर बल दिया है, कि भारतीय नवयुवक सुख भोग में डूबने की अपेक्षा देश को स्वतंत्र कराने के लिए काम करें। वह कहती हैं कि वीरों का अपना बसंत किस प्रकार मनाना चाहिए।

वीरों का कैसा हो वसंत कविता की व्याख्या

वीरों का कैसा हो वसंत में कवयित्री भारतीय युवकों को देश को स्वतन्त्र कराने के लिए आह्वान करती हैं। वह भारतीय वीरों को अपने गौरवपूर्ण अतीत से प्रेरणा लेने का आह्वान करती हैं।

कह दे अतीत अब मौन त्याग, लंके, तुझ में क्यों लगी आग?
हे कुरुक्षेत्र! अब जाग, जाग, बतला अपने अनुभव बसन्त,
वीरों का कैसा हो वसंत ?

इस कविता में कवयित्री श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान ने प्रश्न शैली में पूछा है कि वीरों का वसंत कैसा होना चाहिए ? हमारे यहाँ वसंत ऋतु मादकता और रसिकता लेकर आती है। इसी मादकता और रसिकता को ध्यान में रखते हुए सुभद्रा कुमारी चौहान ने वीरों का वसंत मादकता और रसिकता के स्थान पर वीरता माना है।

वीरों के वसंत का प्रश्न सभी ओर से आ रहा है। हिमालय से आने वाली ध्वनि, समुद्र की गर्जना, पूर्व, पश्चिम, पृथ्वी, आकाश तथा दिशा-दिशान्तर से बार-बार यही पूछा जा रहा है कि वीरों का वसंत कैसा होना चाहिए ? वसंत ऋतु आ गई है। पीली-पीली फूली सरसों के कारण सारी धरती पीली हो गयी है। 

कामदेव पुष्पों का पराग तथा माधुर्य लेकर आ गया है। ऐसे मादक वातावरण में धरती रूपी वधू अत्यन्त प्रसन्नचित्त हो गयी है किन्तु युवती का पति तो वीरवेश में है। इसलिए उस वीर का वसंत कैसा होना चाहिए ? 

कवयित्री ने विरोधाभास की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा है, कि इधर तो कोयल अपनी मीठी और मादक तान निकाल रही है और उधर युद्ध का बाजा बज रहा है। एक ओर राग-रंग तो दूसरी ओर युद्ध का विधान। एक ओर जीवन का प्रारम्भ है, तो दूसरी ओर जीवन का अंत। जीवन और मृत्यु का यह कैसा परस्पर विरोधी सम्मिलित है? 

इस प्रकार के वातावरण में वीर, किस प्रकार अपना वसंत मनाएँ ? इसी पर कवयित्री ने विचार किया है। इस वातावरण में प्रिया की बाहें गले में हों या शत्रु से लड़ने के लिए हाथ में तलवार, प्रिया की चंचल चितवन हो या धनुष-बाण हो, हास विलास हो या दबे हुए लोगों की रक्ष प्रश्न हो। इस समय यही कठिन समस्या है। 

हे लंका, तू अपना पुराना मौन छोड़कर यह बता दे कि तुझ में आग क्यों लगी थी? हे कुरुक्षेत्र, तू अपना पुराना मौन छोड़कर यह बता दे कि तेरे यहाँ युद्ध क्यों हुआ था? इसी प्रकार हे हल्दीघाटी के पत्थरों, दुर्गम सिंहगढ़ के किले, तुम महाराणा प्रताप और ताना भी भालसुरे की वीरता को दोहरा दो। तुम बता दो कि वीरों का वसंत कैसा होता है?

आज पराधीन भारत में चन्दबरदाई और भूषण जैसे वीर रस के कवि नहीं रहे। यही कारण है कि आज की कविताओं में वह शक्ति नहीं, जिसे सुनकर पढ़कर हममें बिजली कौंध जाए।

साथ ही पराधीन भारत का कवि भी पराधीन है। वह स्वतंत्र रूप से अपने विचारों की अभिव्यक्ति नहीं कर सकता। इसी विवशता पर खेद व्यक्त करते हुए कवयित्री कहती है कि हमें आज कौन बताए कि वीरों का वसंत कैसा होता है ?

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