बाबू गुलाबराय का जीवन परिचय

बिखेरता हुआ हिन्दी के समर्थ आलोचक तथा निबंधकार श्री गुलाबराय का जन्म इटावा (उत्तर प्रदेश) में 17 जनवरी, 1888 में हुआ। सन् 1911 में दर्शनशास्त्र में एम.ए. तथा सन् 1913 में एल-एल.बी. की परीक्षायें उत्तीर्ण की। 

कुछ समय के लिये आपने सेण्ट जॉन्स कॉलेज आगरा में दर्शनशास्त्र का अध्यापन कार्य किया। छतरपुर (मध्यप्रदेश) राज्य में वहाँ के राजा के निजी सचिव, दीवान तया मुख्य न्यायाधीश आदि पदों पर लगभग बीस वर्ष तक कार्य किया। 

सन् 1932 में वहाँ से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात् आप स्थायी रूप से आगरा में आकर बस गये तथा 'साहित्य सन्देश' नामक साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन करने लगे। आपने अनेक वर्षों तक सेण्ट जॉन्स कॉलेज आगरा में अवैतनिक अध्यापक के रूप में उच्च कक्षाओं में हिन्दी का अध्यापन कार्य किया। 

हिन्दी साहित्य उपवन का यह गुलाब 13 अप्रैल, 1963 को अपनी सुषमा की सुवास मिट्टी में विलीन हो गया। गुलाबराय जी की अनेक कृतियों को राज्य सरकारों तथा विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया। आगरा विश्वविद्यालय ने आपकी साहत्य सेवा का सम्मान करते हुये सन् 1957 में आपको डी. लिट् की मानद उपाधि से अलंकृत किया।

रचनाएँ - गुलाबराय जी ने अनेक विषयों पर साहित्य रचना की लेकिन उनकी ख्याति समीक्षक तथा निबंधकार के रूप में अधिक थी। आपके निबंधों के संग्रह इस प्रकार हैं -

(1) ठलुआ क्लब, (2) फिर निराश क्यों, (3) मेरी असफलतायें, (4) प्रबंध प्रभाकर, (5) निबंध रत्नाकर, (6) कुछ उयले कुछ गहरे, (7) मेरे निबंध, (8) अध्ययन और आस्वादन, (9) जीवन रश्मियाँ, (10) निबंध माला।

आपकी समीक्षात्मक कृतियाँ इस प्रकार हैं (1) नवरस, (2) हिन्दी नाट्य विमर्श, (3) सिद्धांत और अध्ययन, (4) काव्य के रूप, (5) हिन्दी काव्य विमर्श, (6) साहित्य समीक्षा, (7) रहस्यवाद और हिन्दी कविता, (8) हिन्दी साहित्य का इतिहास।

समीक्षा तथा निबंधों की रचना करने के साथ-साथ आपने दर्शन, धर्म, विज्ञान आदि विषयों पर भी पुस्तकों की रचना की। आपने महापुरुषों तथा वैज्ञानिकों की जीवनियाँ भी लिखी तथा अनेक पाठ्य-पुस्तकों का सम्पाद किया।

Related Posts