राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृतांत पर टिप्पणी

राहुल सांकृत्यायन धुमक्कड़ स्वभाव के थे। जब सौंदर्यबोध की दृष्टि से उल्लास भावना से प्रेरित होकर यात्रा करता है, मानव प्रकृति व सौंदर्य का प्रेमी, जहाँ भी जाता है वहाँ से साहित्य की भाँति कुछ न कुछ ग्रहण करता है। उसके द्वारा ग्रहण किये गये प्रेम, सौंदर्य, भाषा, स्मृति आदि को अपने शुद्ध मनोभावों से प्रकट करता है। 

यह यात्रा मानव आदि-अनादि काल से करता आ रहा है किन्तु साहित्य में यह कला नवीन है जो निबंध शैली का एक नया रूप है जिसे यात्रा वृतांत कहते हैं। इस साहित्य विधा के पीछे का उद्देश्य लेखक के रमणीय अनुभवों को हु-ब-हू पाठक तक प्रेषित करना है जिसके माध्यम से पाठक उस अनुभव को आत्मसात कर सके, उसे अनुभव कर सके। 


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