मानव भूगोल का विषय क्षेत्र क्या है - manav bhugol ka vishay kshetra

मानव भूगोल का अध्ययन क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। भूगोल की इस शाखा में विभिन्न प्रदेशों में निवास करने वाले जनसंख्या के समूहों एवं उनकी प्राकृतिक परिस्थितियों के सम्बन्धों की तार्किक विवेचना किया जाता है। 

मानव भूगोल का विषय क्षेत्र

मानव भूगोल का विषय क्षेत्र मे निम्नलिखित पक्षों को सम्मिलित किया जाता है - 

  • किसी प्रदेश की जनसंख्या तथा उसकी क्षमता और मानव भूमि अनुपात। 
  • उस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का मूल्यांकन।
  • प्रदेश में निवास करने वाले मानव समुदाय द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के शोषण एवं उपयोग से निर्मित सांस्कृतिक भू-दृश्य।
  • उस प्रदेश के प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण के कार्यात्मक सम्बन्धों से उत्पन्न मानव वातावरण समायोजन का प्रारूप तथा
  • वातावरण समायोजन का समयानुसार विकास तथा इसकी दिशा का इतिहास। 

इस प्रकार, धरातल पर सभी मानवीय क्रियाकलापों का एक प्रदेश स्तर पर अध्ययन करना मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र कहा जाता है। मानव स्वयं एक भौगोलिक कारक है, जो प्राकृतिक वातावरण द्वारा प्रदत्त संसाधनों का उपयोग करके अपना विकास करता है।

अपने जीविकोपार्जन के लिए वह कृषि, आखेट, मत्स्याखेट, वन पदार्थ संग्रह, खनन तथा अन्य प्रकार के आजीविका के साधनों को अपनाता है। रहने के लिए घर और आवागमन के लिए सड़कें तथा रेलामार्गों का निर्माण करता हैं।  सिंचाई के लिए नहरें खोदता है और मरुभूमि में वनस्पतियाँ उगाकर हरियाली उत्पन्न करता है।

नदियों पर पुल निर्माण तथा पर्वतों में सुरंगें खोदकर इनकी अपारगम्यता समाप्त कर अपने विकास हेतु उपयोगी बना लेता है। इस प्रकार की समस्त मानवीय क्रियाओं को सांस्कृतिक भू-दृश्य की संज्ञा दी जाती है। जो मानव की बौद्धिक क्षमता का परिणाम हैं।

मानव भूगोल के अन्तर्गत इन समस्त मानव-निर्मित सांस्कृतिक भू-दृश्यों की विवेचना के साथ-साथ इस तथ्य को भी दृष्टि में रखा जाता है कि किसी प्रदेश के प्राकृतिक वातावरण का वहाँ की मानवीय क्रियाओं अर्थात् उसकी आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्रियाओं पर कितना, कैसा और क्या प्रभाव पड़ता है ?

मानव भूगोल का विषय

क्षेत्र के अन्तर्गत उन विषमताओं को भी सम्मिलित किया जाता है, जो विश्व के विभिन्न भागों में निवास करने वाले मानव समुदायों की शारीरिक रचना, वेश-भूषा, भोजन के प्रकार, गृह निर्माण के प्रकार तथा निर्माण सामग्रियाँ, आर्थिक व्यवसायों तथा जीवनयापन के ढंग में पायी जाती हैं। 

इसके साथ ही विभिन्न प्रदेशों के मानव समुदायों की कार्यकुशलता, स्वास्थ्य, शिक्षा, कला, विज्ञान तथा तकनीकी, शासनप्रणाली तथा धार्मिक मान्यताओं को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। 

उदाहरण के लिए यूरोपीय अधिक कार्यकुशल तथा आविष्कारक प्रवृत्ति के होते हैं। जबकि न्यूगिनी के पापुआन सुस्त होते हैं। इनमें से कुछ विशेषताएँ जैविक होती हैं तथा कुछ प्राकृतिक वातावरण की भिन्नता के कारण होती हैं।

जहाँ कृषि योग्य भूमि एवं उत्तम जलवायु होगी, वहीं कृषि कार्य किया जा सकता है। इसी प्रकार जहाँ किसी खनिज पदार्थ की उपलब्धि होगी, वहीं खनन कार्य को उद्यम के रूप में अपनाया जा सकता है। 

जलवायु की भिन्नता के कारण ही वस्त्रों के प्रकार में अन्तर होता हैं। कुछ भिन्नताएँ सांस्कृतिक प्रगति के कारण भी होती हैं। समान प्राकृतिक वातावरण में निवास करने वाले कुछ मानव समुदाय ने आधुनिक मशीनों, औजारों का प्रयोग अधिक बढ़ा लिया है तथा कुछ समुदाय अभी तक पुराने ढंग के औजारों का प्रयोग करते हैं।

उपर्युक्त सभी विषमताएँ या तो प्राकृतिक वातावरण की शक्तियों अथवा मानवीय कार्यक्षमता के कारण ही दिखाई देती हैं। इस प्रकार मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसकी व्याख्या करना एक कठिन कार्य है।

मानव भूगोल की परिभाषा

इस सम्बन्ध में विभिन्न भूगोलवेत्ताओं द्वारा विभिन्न मत प्रस्तुत किए गए हैं। यद्यपि उनके उद्देश्य में लगभग समानता परिलक्षित होती है। हटिंगटन ने भौतिक दशाओं पृथ्वी की ग्लोब स्थिति, भूमि के प्रकार, जल-राशियाँ, मिट्टी एवं खनिज तथा जलवायु का प्रभाव प्राकृतिक वनस्पति एवं पशुओं पर बताया है। 

इन प्राकृतिक परिस्थितियों का गहरा प्रभाव मानव के कार्य और व्यापार पर पड़ता हैं जैसे -

  1. भौतिक आवश्यकताओं पर प्रभाव जैसे भोजन एवं जल, वस्त्र, आवास, औजार एवं परिवहन के साधन आदि।
  2. आधारभूत व्यवसाय पर प्रभाव आखेट, पशुचारण, कृषि, खनन, लकड़ी काटना, उद्योग एवं व्यापार आदि।  
  3. कार्यकुशलतापर प्रभाव स्वास्थ्य, सांस्कृतिक प्रेरणा, आमोद-प्रमोद आदि।  
  4. उच्च आवश्यकताएँ प्रभाव प्रभाव शासन प्रणाली, शिक्षा, विज्ञान, धर्म, कला एवं साहित्य आदि।

विडाल डी ला ब्लाश के अनुशार मानव भूगोल का विषय क्षेत्र

विडाल डी ला ब्लाश ने मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र को निम्नलिखित तीन वर्गों में रखा है

  • जनसंख्या का वितरण, घनत्व, मानव समूह, जीविकोपार्जन के साधन और जनसंख्या के घनत्व में सम्बन्ध तथा वृद्धि के कारण। 
  • सांस्कृतिक तत्वों में वातावरण, समायोजन, औजार, जीविकोपार्जन के साधन, गृह निर्माण की सामग्री, मानव अधिवास तथा सभ्यता और संस्कृति का विकास।
  • परिवहन एवं भ्रमण के अन्तर्गत मानव एवं पशु, परिवहन एवं गाड़ियाँ, सड़कें, रेल एवं महासागरीय परिवहन।

इनके अतिरिक्त ब्लाश ने जातियों, आविष्कारों के प्रसार तथा नगरों का भी उल्लेख किया है।

फिंच एवं ट्विार्था के अनुशार मानव भूगोल का विषय क्षेत्र

फिंच एवं ट्विार्था ने अपनी पुस्तक 'एलीमेण्ट्स ऑफ ज्यॉग्राफी' में भौगोलिक तथ्यों को भूगोल के अध्ययन-क्षेत्र के रूप में विभाजित किया है। उनके मतानुसार भौतिक भूगोल के तत्व जलवायु, धरातल के स्वरूप, मिट्टी, खनिज पदार्थ, नदी तथा वनस्पति एवं पशु मानव को प्रभावित करते हैं। 

जो मानव की जनसंख्या, मकान एवं बस्ती उत्पादन की दशाएँ तथा परिवहन के साधन एवं व्यापार को निर्धारित करते हैं। इस व्याख्यात्मक विवरण को दोषपूर्ण बताया गया है, क्योंकि इसमें उच्च आवश्यकताओं पर ध्यान नहीं दिया गया है।

जीन ब्रून्श के अनुशार मानव भूगोल का विषय क्षेत्र

जीन ब्रून्श ने मानव भूगोल के तथ्यों का विभाजन दो आधारों पर किया है - 

  1. सभ्यता के विकास पर आधारित। 
  2. नवीन एवं यथार्थ विभाजन। 

सभ्यता के विकास पर आधारित

सभ्यता के विकास के आधार पर ब्रून्श ने मानव भूगोल के तथ्यों को चार भागों में विभाजित किया है।

1. जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं का भूगोल – मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताएँ भूमि, वायु जल, भोजन, आवास आदि हैं। मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं में क्रमशः वृद्धि होती जा रही है, अतः इनकी पूर्ति हेतु साधनों में भी विस्तार हो रहा है। सभ्यता के

2. पृथ्वी के शोषण का भूगोल - मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पृथ्वी पर आश्रित रहता है। कृषि उत्पादन, पशुपालन, खनन आदि के द्वारा मानव भूमि का शोषण करता है, इसे पृथ्वी के शोषण का भूगोल कहते हैं।

3. आर्थिक एवं सामाजिक भूगोल - सभ्यता के विकास के साथ मनुष्य ग्राम अथवा नगर में समूह के रूप में रहने लगे, जिससे समाज का विकास हुआ। अपनी जीविकोपार्जन हेतु वह कई प्रकार के उद्यम करने लगा जिस कारण एक मनुष्य दूसरे की सहायता लेने लगा।

इससे श्रम विभाजन का विकास हुआ, साथ ही वस्तुओं का उत्पादन एवं बाजार क्रमशः व्यापक होता गया । इस तरह सामाजिक एवं आर्थिक भूगोल का विकास हुआ।

4. राजनीतिक एवं ऐतिहासिक भूगोल- मनुष्य की जनसंख्या, आविष्कार एवं कार्यकुशलता में वृद्धि के साथ ही शासन प्रणाली में विकास होता गया फलस्वरूप राजनीतिक एवं ऐतिहासिक भूगोल का विकास हुआ। 

नवीन एवं यथार्थ विभाजन

इसके अन्तर्गत जीन ब्रून्श ने मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र को तीन वर्गों में विभाजित किया है-

1. प्रथम वर्ग में मिट्टी के अनुत्पादक व्यवसाय से सम्बन्धित तथ्यों को रखा है। इन तथ्यों को पुनः दो वर्गों में विभाजित किया है - मकान और मार्ग।

2. द्वितीय वर्ग में पौधों और पशु-जगत से सम्बन्धित तथ्यों को रखा है। इसके अन्तर्गत कृषि तथा पशुपालन शामिल है।

3. तृतीय वर्ग में विध्वंसात्मक आर्थिक क्रियाएँ हैं। इसमें खनिजों का शोषण तथा वनस्पति एवं जीव जगत का विनाश सम्मिलित है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त भूगोलवेत्ताओं के विचारधाराओं की समीक्षा के बाद मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र के सम्बन्ध में निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं -

मानव भूगोल के अध्ययन क्षेत्र का मुख्य केन्द्र मानव है, जिस पर उसके प्राकृतिक वातावरण का प्रारम्भ काल से ही प्रभाव पड़ता रहा है। मानव भी इस प्राकृतिक वातावरण की शक्तियों और प्रभावों के साथ समायोजन करता रहा है। 

पर्वतों, पठारों और मैदानों के साथ समायोजन, जलवायु के साथ समायोजन, वनस्पति तथा पशु जगत से सम्बन्ध, मिट्टियों और खनिजों से सम्बन्ध तथा जल-राशियों से सम्बन्ध आदि। अपनी प्रतिक्रियाओं तथा वातावरण समायोजन से मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

प्राकृतिक वातावरण के तत्व सम्मिलित रूप से मानवीय क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। मानव इन तत्वों में अपने हित के अनुकूल कुछ अंशों तक संशोधन तथा परिवर्तन भी करता है। इस प्रकार मानव न तो प्राकृतिक वातावरण के प्रभावों पर विजय ही पा सकता है और न ही इसके नियन्त्रण से मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

मानव स्वयं प्राकृतिक वातावरण के एक तत्व के रूप में सांस्कृतिक वातावरण का जनक है। इसलिए मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र में जातियाँ, जनसंख्या का वितरण, घनत्व तथा घनत्वों को प्रभावित करने वाले तथ्य, नर-नारी अनुपात, आयु वर्ग, स्वास्थ्य तथा कार्यक्षमता आदि का अध्ययन समाहित है।

मानवीय प्रतिक्रियाओं के अन्तर्गत मानव की भौतिक आवश्यकताएँ, अर्थव्यवस्था का प्रारूप, प्राविधिक प्रगति तथा उच्च आवश्यकताओं का अध्ययन सम्मिलित किया जाता है। 

साथ ही किसी प्रदेश के मानव समुदाय के आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए उस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का सही मूल्यांकन तथा उसका विवेकपूर्ण शोषण और प्रदेश के भावी नियोजन का अध्ययन भी मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र में सम्मिलित किया जाता है।

मानव भूगोल की कई शाखाएँ हो गई हैं। अतः इसका विषय क्षेत्र व्यापक होता जा रहा है। अमरीकी भूगोलवेत्ता कार्ल सावर मानव भूगोल को सांस्कृतिक भूगोल की संज्ञा दी है। 

प्रो. जे. एच. लेबन, प्रो. जेलिंस्की तथा अन्य पश्चिमी भूगोलवेत्ताओं ने मानव भूगोल को पृथ्वी तथा मानव धर्म एवं मानव जीवन के मूल्यों को प्रतिस्थापित करके उन्हें कल्याणकारी बनाने वाला विषय मान्य किया है, जो प्राकृतिक वातावरण तथा मानवीय कार्यों के मध्य गत्यात्मक, किन्तु सुसम्बन्ध सामंजस्य स्थापित करता है। यही मानव भूगोल का प्रत्यक्ष विषय क्षेत्र है।

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