व्यंग्य विधा क्या है - What is satire mode

व्यंग्य शब्द संस्कृत भाषा का है। अंग शब्द से पूर्व वि उपसर्ग तथा बाद में यत् (य) प्रत्यय लगने से व्यंग्य शब्द की उत्पत्ति होती है। व्यंग्य का अभिप्राय विकृतियों की ओर संकेत करना है। हिन्दी जगत में जिसे व्यंग्य कहा जाता है, उसे अंग्रेजी में सेटायर (Satire) कहा जाता है।

वस्तुतः व्यंग्य समाज के मानस या चरित्र में आयी रोगग्रस्तता को पहचानता है और उसे दूर करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि व्यंग्य गद्य साहित्य की एक ऐसी विधा है, जिसमें मानव जीवन की विसंगतियों पर प्रहार किया जाता है।

आधुनिक लेखकों ने व्यंग्य को पर्याप्त विस्तार दिया है। सामाजिक, राजनीतिक, धर्मविषयक और अर्थविषयक सभी समस्याओं और विडम्बनाओं पर आधुनिक व्यंग्य लेखकों की पैनी दृष्टि रही है। आज के व्यंग्यकारों की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि किसी-न-किसी गम्भीर सामाजिक या राजनीतिक आशय की ओर उनकी लेखनी चुटकी ले रही है। 

इस दृष्टि से हरिशंकर परसाई कृत 'पगडंडियों का जमाना', 'निठल्ले की डायरी', 'शिकायत मुझे भी है', 'वैष्णव की फिसलन', 'सदाचार का ताबीज' आदि श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ हैं।

परसाई जी ने हिन्दी साहित्य में व्यंग्य को विशेष प्रतिष्ठा प्रदान की है। उन्होंने व्यंग्य के कथ्य, शिल्प और उद्देश्य पर बहुत ही विस्तार से विचार प्रकट किये हैं। 

व्यंग्य के विषय में उनका एक विचार है कि जैसे कहानी, कविता, उपन्यास या नाटक शास्त्रीय विधाएँ हैं, उनका एक स्ट्रक्चर है, व्यंग्य का ऐसा कोई स्ट्रक्चर (ढाँचा) नहीं है। यह एक स्परिट (क्षमता) है, जो किसी भी विधा में हो सकती है। 

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