जल पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्र मे पाया जाता हैं। तथा इसमे असीमित शक्तीय होता हैं। यह चाहे तो सम्पूर्ण पृथ्वी को जल से भर सकती हैं। हमने ऐसे कई चक्रवात देखे हैं। जिससे लाखों लोगों की जन गई है और कई घर बर्बाद हुए हैं। जापान मे आए सुनामी एक इसका आदर्श उदाहरण हैं।
मनुष्य चाहे तो इस शक्ति का उपयोग बिजली बनाने मे कर सकता हैं। वर्तमान मे कई देश जल विद्युत शक्ति का निर्माण और उपयोग करती हैं। चलिए जानते हैं आखिर ये जल विद्युत शक्ति क्या है?
जल विद्युत शक्ति क्या है
जल से उत्पन्न ऊर्जा को जल विद्युत् शक्ति कहते हैं। जल विद्युत् शक्ति ऊर्जा का सबसे सस्ता एवं प्रदूषण मुक्त तथा अक्षय स्रोत है। जल विद्युत् उत्पादन के लिए निम्नलिखित दशाओं का होना आवश्यक है।
- वर्ष भर नदी में पर्याप्त मात्रा में जल हो ।
- जल विद्युत् उत्पन्न करने के लिए जल को ऊँचे स्थान से गिराया जाता है।
- जल विद्युत् का उपभोग क्षेत्र निकट हो क्योंकि इसको संचय नहीं किया जा सकता।
- पर्याप्त मात्रा में पूँजी सुलभ हो ।
भारत में जल विद्युत् शक्ति का विशेष महत्व है -
- यहाँ उत्तम कोटि के कोयले का अभाव है।
- कोयले की अधिकांश खानें पूर्वी क्षेत्रों तक सीमित हैं। देश के अन्य भागों में कोयले की पूर्ति करने में अधिक समय और अधिक धन लगता है।
- देश में तेल एवं गैस के विस्तृत भंडार हैं, किन्तु इनका भी 2/3 भाग अपतटीय क्षेत्र में सीमित है।
- जल-विद्युत् शक्ति के विकास से उद्योगों के विकेन्द्रीकरण में सहायता मिली है।
- जल विद्युत् शक्ति के अन्य साधनों की तुलना में सस्ती एवं स्वच्छ तथा प्रदूषण रहित है।
भारत में नदियों का जाल बिछा हुआ है। यहाँ जल विद्युत् शक्ति के विकास हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ हैं। स्वतंत्रता के पश्चात् पंचवर्षीय योजनाओं के तहत् नदियों में बाँध बनाकर कई बहु - उद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएँ प्रारंभ की गईं।
जल विद्युत् शक्ति का नियोजित एवं संगठित विकास करने के उद्देश्य से सन् 1975 में राष्ट्रीय जल विद्युत् ऊर्जा निगम नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की गई। इसके पास पन बिजली परियोजनाओं की परिकल्पना से लेकर उनके चालू होने तक की सभी गति विधियों के संचालन की क्षमता है।
वर्ष 2005-06 में देश में बिजली का उत्पादन 617.510 अरब यूनिट था, जिसमें 497-214 अरब यूनिट ताप विद्युत् और 103-057 अरब यूनिट जल विद्युत् का हिस्सा है।
उत्तर भारत की परियोजनाएँ
- भाखड़ा नंगल योजना
- मयूरासी जल विद्युत् केन्द्र
- दामोदर घाटी योजना
- कोसी योजना
- हीराकुण्ड बाँध
- चम्बल योजना
- काकरावाड़ा योजना
- हिन्द योजना
- नर्मदा घाटी योजना
- इंदिरा गाँधी नहर परियोजना
- फरक्का तटबंध योजना
- फरक्का योजना
दक्षिण भारत की परियोजनाएँ
- लोनावाला जल विद्युत् केन्द्र
- नीलामूला जल विद्युत् योजना
- पैकारा योजना
- मैटूर योजना
- आँध्र घाटी परियोजना
- पापनाशम परियोजना
- पल्ली बासल योजना
- नागार्जुन सागर परियोजना
- तुंगभद्रा परियोजना
परमाणु खनिज – रेडियो धर्मी तत्व वाले खनिज पदार्थों को परमाणु खनिज कहते हैं। जैसे - यूरेनियम, थेरियम, बैरीलियम, जिरकन, एण्टीमनी तथा ग्रेफाइट आदि। इन खनिज पदार्थों की मुख्य विशेषता यह है कि इनके विखंडन से ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होती है जिसे परमाणु ऊर्जा कहते हैं ।
भारत में कुछ परमाणु खनिजों के बड़े भण्डार हैं। झारखण्ड के सिंहभूमि, राजस्थान के धारवाड़ क्रम की शैलों से, आंध्र प्रदेश के नैल्लोर, हिमाचल के कुल्लू तथा उत्तरांचल के चमोली क्षेत्र में यूरेनियम की खानें हैं।
इसी प्रकार केरल के समुद्र तटीय बालू से मोनाजाइट खनिज मिलता है। इससे थोरियम प्राप्त होता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा व मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में एण्टीमनी पाया जाता है।
इसी प्रकार राजस्थान, बिहार, आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु के पैगमेटाइटस शैलों से बैरीलियम, पश्चिमी तट पर कुमारी अन्तरीप से नर्मदा एस्चुअरी तक पूर्वी तट पर महानदी से तिरुनलवैली तक बालू के निक्षेप से इल्मेनाइट मिलता है।
परमाणु बिजली घर - इस समय भारत में चार परमाणु बिजली घर है -
- तारापुर - महाराष्ट्र
- नरोरा - उत्तर प्रदेश
- रावतभाटा - राजस्थान
- कलपक्कम - तमिलनाडु
भारत में परमाणु ऊर्जा का महत्व - भारत में उत्तम कोटि के कोयले एवं खनिज तेल की कमी है। परमाणु शक्ति के उपयोग से इस कमी को दूर किया जा सकता है। ऐसे क्षेत्र जहाँ शक्ति के अन्य साधनों का अभाव है वहाँ परमाणु शक्ति केन्द्र सरलता से स्थापित किये जा सकते हैं। परमाणु खनिजों के विघटन से अत्यधिक ऊर्जा प्राप्त होती हैं। चिकित्सा एवं कृषि क्षेत्रों में परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में भारत का विश्व में अग्रणी स्थान है।
Post a Comment
Post a Comment