नगर से आप क्या समझते हैं?

नगर के विकास का इतिहास मानवीय संसाधनों के विकास के साथ सम्बद्ध रहा है। मानव उद्विकास के क्रम में मनुष्य को विभिन्न अवस्थाओं से होकर सभ्यता के वर्तमान स्तर तक पहुँचा दिया है। इसी क्रम में आखेट अवस्था, पशु अवस्था से होकर ग्रामीण जीवन की अवस्था और ग्रामीण जीवन से विकसित होकर अनेक सुविधाओं को प्राप्त कर मानव नगरीय जीवन में प्रवेश किया है। 

इसीलिए गिस्ट और हेल्बर्ट ने नगरों के उद्विकास को सभ्यता के उद्विकास के साथ सम्बद्ध किया है और लिखा है कि सभ्यता की उत्पत्ति के समान ही नगर की उत्पत्ति भी भूतकाल के अन्धकार में खो गई है। नगर का प्रादुर्भाव कैसे हुआ ? इस सम्बन्ध में विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

नगर से आप क्या समझते है 

माग्रेट मुरे का कहना है कि नगर का उद्भव धातु युग में हुआ है। और क्वीन और थामस ने बतलाया है कि पहले गाँव का विकास हुआ और कालान्तर में यही गाँव नगर के रूप में बदल गए हैं और फिर ये नगर साम्राज्यों की राजधानी बन गए हैं। 

अपने विकास की प्राथमिक अवस्था में ये नगर बहुत छोटे-छोटे होते थे। ममफोर्ड की यह धारणा है कि नगरों का विकास गाँव से हुआ है। इन्होंने बतलाया है कि वर्त में जो नगर दिखलाई पड़ रहे हैं उनमें से अधिकाँशतः गाँव में ही मौजूद थे। चार्ल्स कूले की यह मान्यता है कि नगरों का उद्भव यातायात तथा सन्देश वाहन के साधनों के प्रादुर्भाव और विकास के परिणामस्वरूप हुआ है। 

जिन स्थानों पर यातायात और सन्देशवाहन के साधनों के विकास की दशाएँ अनुकूलतम थीं वहाँ ही विशाल नगरों का उद्भव हुआ। यही कारण है कि समुद्र के किनारे विशाल नगरों का विकास हुआ है। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि नगरों का विकास एकाएक नहीं हुआ है बल्कि धीरे-धीरे जैसे समाज का विकास हुआ है वैसे ही नगरों का भी विकास हुआ है। 

भारतीय नगरों की संरचनात्मक विशेषताएँ 

भारतीय नगरों की अनेक विशेषताएँ हैं। कुल नगरीय सामाजिक जीवन से सम्बन्धित है और कुछ नगर की संरचना से सम्बन्धित हैं। कुछ विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से भी नगर या नगरीय समुदाय की विशिष्टताओं का उल्लेख किया है। जिनमें से यहाँ हम कुछ प्रमुख समाज वैज्ञानिकों के द्वारा बतलाई गई नगरीय समुदाय या नगर की संरचनात्मक विशिष्टताओं का पहले उल्लेख करेंगे।

रोनाल्ड फ्रीडमैन ने शहरी समुदाय या नगर की 9 प्रमुख विशिष्टताओं का उल्लेख किया है। जो निम्न प्रकार है

  1. समूहों और व्यक्तियों के बीच पारस्परिक निर्भरता । 
  2. जनसंख्या की अधिकता तथा अधिक जनसंख्या के घनत्व का होना।
  3. सामाजिक भिन्नताएँ। 
  4. पारिवारिक कार्यों में ह्रास । 
  5. नगर के सदस्यों में अनजानापन | 
  6. सन्देशवाहन के साधनों में बाहुलता। 
  7. श्रमविभाजन और विशेषीकरण।
  8. सदस्यों के बीच प्राथमिक सम्बन्धों का अभाव । 
  9. नगरीय संस्कृति की परिवर्तनशील एवं गतिशील प्रकृति।

किंग्सले डेविस ने नगर की संरचनात्मक विशेषताओं का उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार हैं

  1. सामाजिक विभिन्नता
  2. द्वितीयक संघ
  3. सामाजिक सहिष्णुता
  4. द्वितीय नियन्त्रण
  5. ऐच्छिक समिति
  6. सामाजिक गतिशीलता
  7. व्यक्तिवादिता

नेल्स एण्डरसन ने भी आधुनिक नगरों की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है

  • मुद्रा अर्थव्यवस्था की महत्ता,
  • लिखित क्रियाकलाप पर विश्वास, 
  • आविष्कारों और तकनीकी में प्रगति,
  • कुशल प्रशासन
  • सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ और परिवर्तन का होना। 

उपर्युक्त विशिष्टताओं का उल्लेख समाजशास्त्रियों ने अपने दृष्टिकोण से किया है। इनके अतिरिक्त भी अन्य विद्वानों ने भी नगरीय समुदाय की विशेषताओं का उल्लेख किया है। सभी विचार और दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए आनुभविक अध्ययन के आधार पर नगर की प्रमुख संरचनात्मक विशेषताएँ अथवा लक्षणों को हम निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते हैं

1 सामाजिक विभिन्नता - नगरों की प्रमुख विशेषता है यहाँ के सामाजिक जीवन में पाई जाने वाली विभिन्नताएँ। दूसरे शब्दों में, यहाँ के जीवन में एकरूपता का अभाव होता है। नगरों में उद्योग-धन्धों, व्यापार और वाणिज्य की अनेक सुविधाएँ होने के कारण अनेक धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों, वर्गों, प्रान्तों आदि के व्यक्ति आकर बस जाते हैं। 

इतना ही नहीं, यहाँ जीवन के प्रत्येक पक्ष में विभिन्नता की झलक देखने को मिलती है। इस विभिन्नता के कारण ही व्यक्तियों के रहन-सहन,भाषा, वेश-भूषा, चाल-चलन आदि में एकरूपता नहीं आने पाती और इस रूप में नगरों में सामाजिक विभिन्नता बनी रहती है। 

2 व्यवसायों में विभिन्नत  - व्यवसायों के असंख्य प्रकार भी नगरों की प्रमुख विशेषता है। यहाँ शायद ही ऐसा कोई व्यवसाय हो जिसे कि नगरों का प्रमुख व्यवसाय कहा जा सके। यहाँ तो असंख्य प्रकार के व्यवसायों का बोल-बाला होता है । यहाँ यदि कोई क्लर्क है तो कोई लेखा अधिकारी, कोई मास्टर है तो कोई टैक्सी ड्राइवर, कोई कपड़े की मिल का मालिक है तो कोई प्राइवेट नौकर, कोई टेलीफोन अधिकारी है तो कोई बाजार में आवाज लगाकर चाट बेचने वाला। इस प्रकार नगरों में व्यवसायों की बहुलता होती है।

3 श्रम विभाजन और विशेषीकरण - नगरों में प्रायः सभी कार्य, विशेषकर उद्योग-धन्धों से सम्बन्धित कार्य, बड़े पैमाने पर ही होते हैं, जिसके कारण श्रम-विभाजन अति आवश्यक हो जाता है। श्रम - विभाजन के सन्दर्भ में बड़े पैमाने के कार्यों को करने तथा उन्हें संचालित करने के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है। 

इसलिये नगरों में जज, वकील, प्रोफेसर, डॉक्टर, इन्जीनियर आदि सभी अपने-अपने क्षेत्रों में विशेषज्ञ होते हैं। इतना ही नहीं, एक ही व्यवसाय में भी विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है, जैसे डॉक्टरों में हृदय विशेषज्ञ, हड्डी एवं जोड़ विशेषज्ञ, बाल विशेषज्ञ, आँख विशेषज्ञ आदि।

4 व्यक्तिवादिता - नगरों में व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा जन्म के आधार पर आधारित न होकर उसके व्यक्तिगत गुणों पर निर्भर होती है। 

नगरों का यह आदर्श व्यक्तियों को स्वार्थी बना देता है और प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने हितों की अधिकतम पूर्ति में लग जाता है। कभी-कभी तो यह व्यक्तिवादी आदर्श इतना भयंकर रूप धारण कर लेता है कि व्यक्ति अपने माता-पिता की भी परवाह करना छोड़ देता है।

5 घनी जनसंख्या  - नगरों की प्रमुख विशेषता वहाँ घनी जनसंख्या का होना है। औद्योगिक दृष्टि से जो भी नगर जितना अधिक महत्त्वपूर्ण होगा, उसकी जनसंख्या उतनी ही अधिक होगी। इतना ही नहीं, सामान्यतया भी गाँवों की अपेक्षा नागरिक समुदाय के व्यापार, वाणिज्य, शिक्षा, राजनीति आदि का क्षेत्र अधिक विस्तृत होने के कारण नगरों की जनसंख्या अधिक घनी होती है।

6 धर्म एवं परिवार का कम महत्त्व - नगरों में शिक्षा एवं विज्ञान से अधिक सम्बन्ध होने के कारण धर्म एवं परिवार का महत्त्व काफी कम होता है। शिक्षा से रूढ़िवादिता दूर हो जाती है, फलतः हम धार्मिक अन्धविश्वासों को स्वीकार नहीं करते हैं। 

इसके अतिरिक्त नगरों में अनेक सुविधाएँ होने के कारण भोजन हम होटल में खा सकते हैं, कपड़े का ड्राईक्लीनर के यहाँ साफ करवा सकते हैं, यहाँ तक कि मनोरंजन और दैनिक जीवन की अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति भी हम बाहरी समितियों द्वारा कर सकते हैं। इसीलिए परिवार का महत्त्व नगरों में नाममात्र का ही होता है ।

7 सामाजिक गतिशीलता और सहनशीलता - नगरों में श्रम विभाजन, प्रतिस्पर्धा और विभिन्नता के कारण सामाजिक गतिशीलता की मात्रा भी अधिक होती है। यहाँ पर व्यक्तिगत योग्यतानुसार हर समय व्यवसायों में परिवर्तन लाया जा सकता है। 

अन्य क्षेत्रों में भी परिवर्तन तीव्रता के साथ होता है। इसके अतिरिक्त सामाजिक दायरा बढ़ने के कारण और विभिन्न व्यक्तियों और समूहों के आपस में सम्पर्क में आने के कारण एक-दूसरे के प्रति सहनशीलता का विकास होता है।

8 अधिक मानसिक संघर्ष - नगरों में प्रायः प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार का मानसिक संघर्ष चलता रहता है क्योंकि नगरों में यदि एक ओर खाने-पीने, धन कमाने और जीवन चलाने की अनेक सुविधाएँ उपलब्ध हैं, तो दूसरी ओर दुर्घटना, बेकारी, व्यापार में हानि आदि भी रोज की ही घटनाएँ हैं।

 इन अनिश्चितताओं में मनुष्य को मानसिक शान्ति नहीं प्राप्त हो पाती। इतना ही नहीं, नगरों में मशीनों की आवाज भी उसके अन्दर मानसिक रोगों को जन्म देती है ।

9 फिजूलखर्ची और कृत्रिमता -नगरों में व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा कृत्रिमता और बाहरी दिखावे पर बहुत कुछ निर्भर करती है। व्यक्ति के रहने या बैठने का स्थान, पोशाक, आचार-व्यवहार, बातचीत करने के ढंग आदि में जितनी चमक-दमक एवं कृत्रिमता होगी, उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा उतनी ही अधिक होगी। इस बाहरी चमक-दमक या कृत्रिमता को बनाए रखने के लिए अत्यधिक फिजूलखर्च भी करना होता है।

10 द्वितीयक समिति और नियन्त्रण की प्रधानता - नगरों में द्वितीय समितियों की प्रधानता होती है, जैसे कारखाना, कॉलेज, श्रमिक संघ आदि-आदि । साथ ही, ये सभी समितियाँ या समूह अपने-अपने विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य कर रहे होते हैं। 

इस अवधि के दौरान इन समितियों पर नियन्त्रण की समस्या उठ खड़ी होती है। ये समितियाँ इतने विभिन्न प्रकार की होती हैं कि इन पर प्रथा, परम्परा या धर्म के माध्यम से नियन्त्रण रखना असम्भव होता है। इसलिए इन पर द्वितीयक नियन्त्रण के साधनों, जैसे कानून , पुलिस, कोर्ट, सेना आदि का प्रयोग किया जाता है।

11 अवैयक्तिक सामाजिक सम्बन्ध - नगरों की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि यहाँ व्यक्तियों का पारस्परिक सम्बन्ध न तो घनिष्ठ ही होता है और न ही व्यक्तिगत । इसका प्रमुख कारण यह है कि नगरों में सामाजिक सम्बन्धों का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत होता है। 

दूसरी बात यह है कि नगरों में द्वैतीयक समूहों का आधिक्य होता है और इन समूहों में अधिकतर सम्बन्ध 'छुओ और जाओ की प्रकृति का होता है। वास्तव में नगरों में अधिकतर सम्बन्ध डाक, तार, टेलीफोन, सिनेमा आदि के माध्यम से स्थापित होते हैं और इसीलिए यहाँ व्यक्तिगत सम्बन्धों का नितान्त अभाव होता है ।

12 प्रतिस्पर्द्धा और सामाजिक सुविधाएँ - नगरों में विभिन्न प्रकार की द्वैतीयक समितियाँ तथा व्यक्ति होते हैं। ये सभी अपने-अपने स्वार्थों की अधिकतम पूर्ति में लगे होते हैं जिसके कारण उनमें प्रत्येक व्यक्ति या समूह प्रत्येक दूसरे व्यक्ति अथवा समूह से आगे निकलने का ही प्रयत्न करता है। 

फलतः नगरों में प्रतिस्पर्द्धा अत्यधिक होती है। साथ ही, नगर के वातावरण में सभी को अपनी क्षमतानुसार अपने व्यक्तित्व का विकास करने की सामाजिक सुविधाएँ भी प्राप्त होती है।

उपर्युक्त प्रकार से नगरों की सामाजिक संरचना को समझ लेने के पश्चात् नगर से सम्बन्धित प्रक्रिया नगरीकरण को समझना भी आवश्यक है क्योंकि आज इसी नगरीकरण की तीव्र प्रक्रिया के परिणामस्वरूप नए-नए नगरों का प्रादुर्भाव और विकास होता जा रहा है। अतएव अब हम यहाँ नगरीकरण की प्रक्रिया तथा उसकी विशेषताओं की चर्चा करेंगे।

Related Posts