आतंकवाद के कारण और उपाय - aatankwad ke karan or upay

कुछ वर्षों पहले आतंक उत्पन्न करना डाकुओं और लुटेरों की पहचान थी। यह वर्ग समाज द्वारा बहिष्कृत समझा जाता था। किन्तु वर्तमान सन्दर्भ में यह एक जीवन दर्शन और मान्य आन्दोलन के रूप में ग्रहण किया जाने लगा है। 

ऐतिहासिक दृष्टि से आतंकवाद व्यापक असन्तोष, विद्रोही भावना तथा अनुशासनहीनता की अभिव्यक्ति है, व्यावहारिक रूप में वह राजनीतिक स्वार्थपरता की सिद्धि के लिए अमोघ अस्त्र बन गया है। राजनीतिक छल-कपट की मिट्टी में इसकी जड़ें बहुत गहरे तक समाई हुई हैं तथा अर्थवादिता के पिशाच ने जल सिंचन द्वारा उसको पल्लवित किया है। 

हत्या, अपहरण, बलात्कार, लूट, आगजनी, रास्ता जाम, आदि उसके विभिन्न रूप हैं। अपनी बात मनवाने के लिए अथवा मनमानी करने के लिए आतंकवाद हमारी जीवन पद्धति का एक महत्वपूर्ण अंग बनता जा रहा है। उसके मूल में राजनीति प्रेरित धर्मान्धता है, जो वोट की राजनीति द्वारा निर्मित है। 

परिभाषाएँ 

(1) वृहद् हिन्दी कोश में आतंकवाद को इस प्रकार परिभाषित किया गया है राज्य या विरोधी वर्ग को दबाने के लिए भयोत्पादक उपायों का अवलम्बन।

(2) एडवान्स लर्नर्स डिक्शनरी ऑफ करण्ट इंगलिश में आतंकवाद को इस प्रकार परिभाषित किया गया है राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हिंसा एवं भय का उपयोग करना आतंकवाद है ।  

(3) लॉगमैन मॉडर्न इंगलिश डिक्शनरी में आतंकवाद को परिभाषित करते हुए लिखा है शासन करने या राजनीतिक विरोध प्रकट करने के लिए भय को एक विधि के रूप में उपयोग करने की नीति को प्रेरित करना ही आतंकवाद है। 

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि राजनीतिक विरोध प्रकट करने अथवा अपनी माँगों को मनवाने के लिए हिंसा एवं भय का प्रयोग करना ही आतंकवाद है।

उद्देश्य की दृष्टि से आतंकवाद को दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है- सकारात्मक एवं नकारात्मक सकारात्मक आतंकवाद वह है जिसके मूल में व्यापक हित साधन और समाज कल्याण रहता है । 

उदाहरण के लिए, विदेशी शासन से मुक्ति पाने के लिए अपनाया जाने वाला आतंकवाद इसी श्रेणी में आता है। इस प्रकार के आतंकवाद से केवल विदेशी शासक प्रभावित होते हैं और सामान्यजन एवं जीवन निरापद बने रहते हैं। 

नकारात्मक आतंकवाद वह है जो व्यापक हितों की उपेक्षा करके किसी संकुचित स्वार्थ की सिद्धि के लिए अपनाया जाता है। अपनी माँगें मनवाने के लिए स्वार्थ विरोधी किसी निर्णय का विरोध करने के लिए, किसी व्यवस्था के प्रति अपना विरोध प्रकट करने के लिए। 

चुनाव जीतने आदि के उद्देश्यों को लेकर अपनाया जाने वाला आतंक सर्वथा समाज कल्याण विरोधी होता है और देश की अखण्डता एवं एकता के लिए खतरा बन जाता है। वर्तमान में कश्मीर में पनप रहा आतंकवाद इसी श्रेणी में आता है।

भारत में आतंकवाद बढ़ता दावानल

भारत में आतंकवाद का साया पंजाब, कश्मीर तथा असम तक ही सीमित नहीं है, वरन् यह बिहार, प. बंगाल एवं आन्ध्रप्रदेश में भी पनप रहा है। अंग्रेजों के राज में देशभक्त क्रान्तिकारियों ने आतंक का सहारा लेकर ही अंग्रेजों को देश से भगाने का प्रयत्न किया था। 

किन्तु उन्हें आतंकवादी न कहकर क्रान्तिकारी कहा गया था। समय-समय पर होने वाले आन्दोलन, साम्प्रदायिक दंगे, आरक्षण विरोधी आन्दोलन, भाषा एवं प्रान्त को लेकर होने वाले आन्दोलन, नक्सलवाद, असम का बोडो आन्दोलन, आदि किसी-न-किसी रूप में आतंक से जुड़े रहे हैं। 

ये आन्दोलनकारी हिंसा एवं भय के द्वारा सरकार पर अपनी माँगें मनवाने के लिए दबाव डालते रहे हैं। वर्तमान में कश्मीर में आतंकवाद चरम सीमा पर है जिसने देश की एकता और अखण्डता को चुनौती दे रखी है।

आतंकवाद के कारण

भारत में आतंकवाद के जन्म के क्या कारण हैं ? उन्हीं का हम यहाँ विवरण प्रस्तुत करेंगे। यद्यपि पंजाब एवं कश्मीर में आतंकवाद का उल्लेख करने के दौरान हमने संक्षेप में वहाँ पनप रहे आतंकवाद के कारणों का भी उल्लेख किया। 

किन्तु यहाँ हम आतंकवाद के कारणों का समग्र रूप में उल्लेख करेंगे -

(1) क्षेत्रवाद - क्षेत्रवाद की संकुचित भावना के कारण देश का विभाजन भारत व पाकिस्तान के रूप में हुआ और आजादी के बाद भी इसी भावना के कारण देश के विभिन्न भागों से पृथक्करण की आवाज उठी। 

क्षेत्रवाद की भावना ने राष्ट्र की भावात्मक एवं राजनीतिक एकता की छवि धूमिल कर दी और समय-समय पर देश को तनाव एवं संघर्षों से जूझना पड़ा है। एक क्षेत्र के लोगों ने दूसरे क्षेत्र के लोगों के साथ उसी प्रकार का व्यवहार किया है जैसा कि दुश्मन राष्ट्र के प्रति किया जाता है। 

क्षेत्रवाद की भावना ने राष्ट्रीयता की जड़ें खोखली कर दीं और देश के सम्मुख अनेक आर्थिक एवं राजनीतिक संकट उत्पन्न कर दिए हैं। 

एक क्षेत्र के लोगों ने भाषा, आर्थिक विकास एवं संकीर्ण राजनीतिक हितों को लेकर आन्दोलन छेड़े और क्षेत्रीयता की भावना को राष्ट्रीय भावना से भी ऊँचा स्थान दिया। क्षेत्रवाद की इसी संकुचित भावना ने देश में आतंकवाद को पनपने में योग दिया है ।

(2) भाषावाद - भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न बोलियाँ एवं भाषाएँ बोली जाती हैं। इनकी संख्या लगभग 1,650 है। इनमें से 15 भाषाएँ तो समृद्ध हैं। सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, गुजराती, मराठी, असमी, कश्मीरी, बंगाली, तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ आदि हैं। 

भारत में कभी भी सम्पूर्ण देश की एक भाषा नहीं रही है। भाषायी क्षेत्र ने यहाँ के सामाजिक जीवन को भी प्रभावित किया है और एक भाषा वालों ने अपने सम्बन्ध अपने भाषायी क्षेत्र तक ही सीमित रखे हैं। 

भाषा ने सामाजिक एवं शैक्षणिक जगत में कई समस्याएँ खड़ी की हैं। लोगों में पारस्परिक वैमनस्य पैदा किया है। इसके कारण दंगे, झगड़े, तोड़-फोड़ तथा आगजनी की घटनाएँ घटी हैं। 

भाषा के विवाद ने पृथकतावादी प्रकृति को तेज करने में आग में घी का काम किया है इसी ने आतंकवाद को पनपने में योग दिया है। ।

(3) साम्प्रदायिकता - भारत में साम्प्रदायिक तनावों एवं दंगों में वे तनाव गम्भीर और महत्वपूर्ण समस्याएँ पैदा करते रहे जो हिन्दुओं एवं मुसलमानों के बीच हुए। 

हिन्दू मुसलमानों को और मुसलमान हिन्दुओं को शंका की दृष्टि से देखते रहे, दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे रहे, दोनों ने एक-दूसरे से रक्त रंजित होलियाँ खेलीं। साम्प्रदायिकता के कारण ही सन् 1947 में देश के टुकड़े हुए और स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भी अनेक स्थानों पर उपद्रव एवं दंगे हुए। 

अलीगढ़, रांची, मेरठ, कोलकाता, औरंगाबाद, अहमदाबाद, मुरादाबाद, बिहार शरीफ, जलगाँव एवं जमेशदपुर के दंगों की रक्त- रंजित यादें अभी ताजा ही हैं। इसी साम्प्रदायिकता ने देश में आतंकवाद फैलाने में सक्रिय भूमिका निभायी है।

(4) जातिवाद - जातिवाद वह संकुचित भावना है जिसके वशीभूत होकर व्यक्ति समाज और राष्ट्र को विशेष महत्व नहीं देकर अपने जाति-हितों को सर्वोपरि मानता है और अपनी जाति के स्वार्थों की दृष्टि से सोचता है। 

जातिवाद ने जातियों को आन्तरिक दृष्टि से शक्तिशाली बनाने में योग दिया है। आज विभिन्न जातियाँ जातीय संगठनों के निर्माण में लगी हुई हैं, अपनी जाति के लोगों को हर कीमत पर सब प्रकार की सुख-सुविधाएँ पहुँचा रही हैं। 

चाहे इससे राष्ट्रीय अहित ही क्यों न हो । जातिवाद ने ही सामाजिक तनाव एवं जातीय संघर्षों को जन्म दिया है तथा साथ ही आतंकवाद को भी बढ़ावा दिया है।

(5) धार्मिक पूर्वाग्रह - भारत में अनेक धर्मों का प्रचलन रहा है, किन्तु कभी-कभी छोटे-छोटे स्वार्थों को लेकर विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच तनाव और संघर्ष हुए हैं। 

अधिकांशतः हिन्दुओं और मुसलमानों में हिन्दू एवं मुस्लिम धर्म में टकराव उस समय पर जब मुसलमान आक्रमणकारी के रूप में यहाँ आए और उन्होंने यहाँ के मूल निवासियों को जबरन मुसलमान बनाया। 

इस प्रकार धार्मिक पूर्वाग्रहों ने भी विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच फूट, तनाव और मतभेद पैदा किया और आतंकवाद को पनपाया ।

(6) उग्रपंथी विचार एवं हिंसात्मक गतिविधियाँ-कई ऐसे दल और संगठन है जो हिंसा में विश्वास करते हैं और उन्होंने अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हिंसा का सहारा लिया है। नक्सलवादियों ने प. बंगाल, बिहार, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश और अन्य प्रान्तों में तोड़-फोड़ और मारकाट की। 

फासिस्ट और माओवादी विचारधारा के समर्थकों ने भी समय-समय पर हिंसा की घटनाएँ की हैं। आनन्द मार्ग के प्रणेता प्रभात सरकार उर्फ आनन्द मूर्ति का विचार है कि प्रजातन्त्र भीइतन्त्र या मूर्खतन्त्र है। 

वे प्रजातन्त्र के स्थान पर एकतन्त्र में विश्वास करते हैं तथा इससे मुक्ति के लिए रक्त-क्रान्ति को आवश्यक मानते हैं। इस प्रकार के प्रतिक्रियावादी और तोड़-फोड़ करने वाले तत्वों ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया है।

(7) अत्यधिक आर्थिक विषमता- दिनोंदिन बढ़ती महँगाई, बेकारी और गरीब-अमीर के बीच बढ़ती खाई ने भी लोगों के बीच विद्रोह की भावना पैदा की है। देश में करोड़ों लोग गरीबी रेखा से भी नीचे का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। 

दूसरी ओर कुछ लोग कालाबाजारी, स्मंगलिंग, मुनाफाखोरी, मिलावट और संग्रह करके सम्पन्न बन रहे हैं। प्रो. एम. वी. माथुर का मत है कि ऊपरी तौर पर तो ऐसा लगता है कि हमारे देश में होने वाली घटनाओं के पीछे साम्प्रदायिकता, भाषावाद और क्षेत्रवाद का हाथ है। किन्तु इसके मूल में विकास की कमी और उपलब्ध साधनों का उचित वितरण न होना है। 

इस आर्थिक विषमता ने भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। अत्यधिक आर्थिक विषमता विभिन्न वर्गों में ईर्ष्या-द्वेष, अशान्ति और संघर्ष के लिए उत्तरदायी है। ऐसी स्थिति में आतंकवाद फैलता है।

(8) राष्ट्रीय जागृति की कमी ने भी विघटनकारी तत्वों को खुलकर खेलने का अवसर दिया है और उन्होंने देश में आतंकवाद को पनपाने में योग दिया है ।

(9) राष्ट्रीय चरित्र में गिरावट ने भी आतंकवाद को बढ़ावा दिया है।

(10) स्वार्थपूर्ण नेतृत्व और राजनीतिक अवसरवादिता ने राष्ट्रीय हितों के स्थान पर वैयक्तिक और दलीय हितों को महत्व देकर लोगों में फूट, तनाव और संघर्ष को जन्म दिया है। राजनीतिक दल धर्म, भाषा और जाति के नाम पर चुनाव जीतने का पूरा प्रयत्न करते हैं। 

वे प्रादेशिक एवं क्षेत्रीयता की संकीर्ण भावनाओं को पनपाते और विघटनकारी तत्वों से अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए साँठ-गाँठ करते हैं। इससे भी आतंकवाद पनपता है ।

(11) राज्य और केन्द्रों के तनावपूर्ण सम्बन्धों ने भी एकता की भावना को ठेस पहुँचाई है और आतंकवाद को बढ़ावा दिया है।

(12) छात्र असन्तोष ने भी विभिन्न आन्दोलनों को जन्म दिया है और इन आन्दोलनों में छात्रों ने तोड़-फोड़ और हिंसात्मक उपायों का सहारा लिया है। इससे भी आतंकवाद पनपा है। 

भारत में आतंकवाद की रोकथाम हेतु किए गए उपाय

उत्तरी-पूर्वी भारत में तो लगभग 35 वर्षों से आतंकवाद की स्थिति चली आ रही थी, पिछले लगभग 20 वर्षों से पंजाब और दिल्ली, आदि में उग्रवादी सिखों से आतंकवाद का जो रूप सामने आया। 

विशेषतया मई 1985 में दिल्ली और उत्तरी भारत के अन्य नगरों में जो बम विस्फोट हुए, उसने सरकार को कानून निर्माण और प्रशासनिक क्षेत्र में आतंकवाद के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के लिए बाध्य किया।

आतंकवाद और विध्वंसकारी गतिविधि निरोध कानून (टाडा) - मई 1985 – आतंकवाद की रोकथाम के लिए जिन कानूनों का निर्माण किया गया था, उनमें 'टाडा' निश्चित रूप से सबसे प्रमुख था तथा पूरे एक दशक (मई 1985 से मई 1995) तक इस कानून ने आतंकवाद की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

टाडा’ को लागू करते समय कुछ पक्षों ने शंका व्यक्त की थी कि इस कानून का प्रयोग राजनीतिक उद्देश्यों से किया जा सकता है और व्यवहार में कुछ राज्य सरकारों ने ऐसा ही किया। 

ऐसी स्थिति में यह माँग की गई कि 23 मई, 1995 को टाडा की अवधि समाप्त होने पर इसे आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। इस प्रकार अब मई 1995 के अन्तिम सप्ताह से 'टाडा' कानून लागू नहीं रहा है।

आतंकवाद विरोधी विशेष पुलिस दल और अन्य सैन्य दल की व्यवस्था- आतंकवाद के विरुद्ध कार्यवाही के लिए कारगर आतंकवाद विरोधी संगठन जरूरी है। 

आतंकवाद के बढ़ते खतरे से निपटने के लिए अनेक देशों ने विशेष इकाइयों का गठन किया है। प. जर्मनी ने G.S.G.-9, ब्रिटेन ने S.A.S. और अमेरिका ने ग्रीन बेरेटस तथा रैंजर्स का गठन किया है । 

इजरायल के पास भी आतंकवाद से निपटने के लिए विशेषीकृत कमाण्डो बल है। ये आतंकवाद विरोधी कमाण्डो कितने सक्षम हैं। इसका पता तब चला जबकि इजरायली कमाण्डों ने एंटेबी हवाई अड्डे पर धावा बोलकर अपने बन्धकों को तुरन्त मुक्त करा लिया ।

भारत में आतंकवाद से निपटने के लिए कोई कारगर संगठन नहीं है। आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए गत वर्ष 'केन्द्रीय सचिव मण्डल' का जो अलग से एक सेल बनाया गया था। 

वह भी बहुत कारगर सिद्ध नहीं हुआ है । यह सेल 'रा' (RAW) के एक भूतपूर्व प्रधान के तहत कार्यरत है। हमारे अर्द्ध-सैनिक बल जैसे केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल (C.R.P.F.), सीमा सुरक्षा बल (B.S.F.), असम रायफल्स, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (I.T.B.P.) और केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (C.I.A.F.) भी आतंकवाद की रोकथाम में बुरी तरह नाकाम रहे हैं। 

मुख्यतया केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल और असम रायफल्स आतंकवाद विरोधी कार्यवाहियों में संलग्न हैं और यह तथ्य है कि हमारे इन अर्द्ध-सैनिक बलों के पास विशेषीकृत तकनीकी और अत्याधुनिक हथियार नहीं हैं। 

अर्द्ध-सैनिक बलों की मौजूदा शक्ति बहुत अपर्याप्त है, फलस्वरूप अनेक बार सेना को बुलाना पड़ता है। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस की कार्यकुशलता पर बुरा असर डालने वाला एक तथ्य यह है कि अर्द्ध-सैन्य बल को नागरिक प्रशासन के जबरदस्त दबावों के तहत काम करना पड़ता है।

सरकार अब आतंकवाद से संघर्ष के लिए विशेष तौर पर बनाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्डों को बढ़ाने पर जोर दे रही है। 5,000 कमाण्डों की क्षमता वाले इस आतंकवाद विरोधी विशेष बल के कमाण्डों पहले ही विभिन्न सैन्य इकाइयों में प्रशिक्षण ले रहे हैं। 

स्पेशल फ्रण्टियर फोर्स' की तीन कम्पनियाँ, जिनके कमाण्डो ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में भाग लिया था, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में मिला दी गई हैं। अतः राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड से आतंकवाद के विरुद्ध अधिक सक्षम होने की आशा की जा सकती है।

एन. डी. ए. सरकार ने ‘टाडा' कानून की समाप्ति के बाद आतंकवाद समाप्त करने हेतु एक नए कानून की आवश्यकता महसूस की जिसके लिए संसद में 'पोटा' कानून का बिल लाया गया। 

लेकिन काँग्रेस व अन्य विपक्षी दलों के विरोध के कारण 'पोटा' को दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाकर पारित कराना पड़ा। 'पोटा' लागू होने के कारण आतंकवादियों के हौसले पस्त हैं।

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