अमेरिकी सीनेट की शक्तियाँ - america cnet ki shaktiyan

 सीनेट अमेरिकी काँग्रेस का द्वितीय सदन या उच्च सदन है। सीनेट अमेरिकन राजनीति का प्रमुख केन्द्र है। ब्रोगन ने लिखा है कि, "सीनेट एक ऐसी संस्था है जो कभी है नहीं मरती है। 

राष्ट्रपति आते हैं, जाते हैं, दो वर्ष के बाद प्रतिनिधि सदन समाप्त हो जाता है, परन्तु सीनेट रहता है। लिण्डसे रोजर्स ने लिखा है, "संयुक्त राज्य की सीनेट संसार का सर्वाधिक शक्तिशाली सदन है। दूसरे देशों की शासन व्यवस्था में द्वितीय सदन की शक्तियों में ह्रास हुआ है, पर सीनेट की शक्तियों में वृद्धि हुई है। 

अमेरिकी सीनेट की रचना शक्तियाँ तथा कार्यों की विवेचना कीजिए। 

सीनेट की रचना-संविधान निर्माताओं ने सीनेट को अमेरिका की संघात्मक व्यवस्था का मेरुदण्ड बनाने की कोशिश की थी। सीनेट के सम्बन्ध में उसका यह विचार था कि वह राज्यों का प्रतिनिधित्व करे और संघ शासन में उन्हें प्रमुख स्थान दे। 

इसीलिए यह निश्चय किया गया है कि सभी राज्यों को चाहे वे छोटे हों या बड़े, सीनेट में समान प्रतिनिधित्व मिलना चाहिये। वर्तमान में अमेरिका में 50 राज्य हैं। प्रत्येक राज्य को चाहे वह बड़ा हो अथवा छोटा, दो प्रतिनिधि भेजने का अधिकार है। सीनेट की कुल सदस्य संख्या 100 है।

सीनेट का निर्वाचन-संविधान में 17वें संशोधन के अनुसार सीनेटरों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से मतदाताओं द्वारा होता है। वे ही मतदाता सीनेटरों का चुनाव करते हैं जो प्रतिनिधि सदन के सदस्यों का करते हैं। प्रत्येक सीनेटर का सदन में एक वोट होता है। 

यदि सीनेट में कोई स्थान खाली हो जाय तो जहाँ से स्थान खाली हो, वहाँ का राज्यपाल चुनाव लिये आदेश-पत्र जारी करेगा। जब तक चुनाव न हो तब तक उस स्थान को भरने के लिए उस राज्य का विधानमण्डल कार्यपालिका को अधिकार दे सकेगा। 

अवधि-सीनेटरों की अवधि 6 वर्ष है परन्तु उसका 1/3 भाग प्रति दो वर्ष के पश्चात् सेवानिवृत्त हो जाता है और उसके स्थान पर नए सदस्य चुने जाते हैं। सीनेट स्थायी सदन है और इसका विघटन नहीं हो सकता। निवृत्त होने वाले सदस्य पुनः चुने जा सकते हैं। 

योग्यताएँ- सीनेट के निर्वाचन में प्रत्याशियों के लिए निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिए। 

1. वह 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। 

2. वह संयक्त राज्य अमेरिका का 9 वर्ष से नागरिक होना चाहिए।

3. वह उस राज्य का निवासी होना चाहिए जहाँ से वह चुनाव लड़ रहा है।

सदस्यों के वेतन, भत्ते और विशेषाधिकार - सीनेट के सदस्यों के वेतन, भत्ते और विशेषाधिकार वही हैं जो कि प्रतिनिधि सदन के सदस्यों के हैं। सीनेट के सदस्यों को तीस हजार डालर वार्षिक वेतन मिलता है, इसके अतिरिक्त उन्हें कुछ भत्ते भी मिलते हैं। 

सदस्यों को भाषण देने की स्वतन्त्रता है। सीनेट में दिए गए भाषण के कारण उनके विरुद्ध कुछ भी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। गणपूर्ति के लिए कुल सदस्यों का बहुमत होना चाहिए।

अधिवेशन- बीसवें संशोधन के अनुसार सीनेट का अधिवेशन 3 जनवरी को दोपहर को प्रतिनिधि सदन के साथ ही आरम्भ होता है। दोनों सदनों का अधिवेशन उस समय तक चलता रहता है जब तक कि वे अधिवेशन के स्थगन या समाप्ति के लिए प्रस्ताव पास न करें। यदि दोनों सदनों में स्थगन की तिथि के बारे में मतभेद उत्पन्न हो जाय, तो राष्ट्रपति तिथि निश्चित करता है।

सीनेट का सभापति- अमेरिका का उपराष्ट्रपति सीनेट का सभापति होता है। वह सभापति के सभी सामान्य कर्त्तव्यों का पालन करता है लेकिन इस क्षेत्र में उसकी शक्तियाँ प्रतिनिधि सभा के स्पीकर से कम हैं। 

सीनेट को अपना एक सामयिक अध्यक्ष भी चुनने का अधिकार होता है। वह वास्तव में बहुमत दल का मनोनीत सदस्य या नेता होता है। उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में वह सदन की बैठकों की अध्यक्षता करता है।

सीनेट के कार्य एवं शक्तियाँ- सीनेट की शक्तियाँ बड़ी व्यापक है। वह संसार का सबसे अधिक शक्तिशाली दूसरा सदन है। उसकी शक्तियाँ निम्न प्रकार है -

1.विधायी शक्तियाँ-सीनेट की मूल शक्तियाँ व्यवस्थापन सम्बन्धी हैं। अमेरिका में व्यवस्थापिका के दोनों सदन समानपदी है और उनके अधिकार समान है।

सभा में जहाँ तक वित्त विधेयकों का सम्बन्ध है, उनके लिए यह आवश्यक है कि उन्हें प्रतिनिधि प्रस्तुत किया जाये। पर केवल प्रस्तुतीकरण को छोड़कर अन्य सब बातों में सीनेट किसी भी वित्त विधेयक को पूर्णतः संशोधित कर सकती है। 

वस्तुतः कोई विधेयक तब तक काँग्रेस द्वारा पारित नहीं समझा जाता, जब तक सीनेट उसे पारित न कर दे।

साधारण विधेयकों के विषय में दोनों सदनों की शक्तियाँ सब प्रकार से समान हैं। ये विधेयक दोनों ही सदनों में प्रस्तुत किये जा सकते हैं और वे तब तक पारित नहीं समझे जाते, जब तक दोनों सदन उन्हें स्वीकार न कर लें। 

यदि किसी विषय पर काँग्रेस के दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न हो जाये, तो उसको हल करने के लिए कॉन्फ्रेन्स कमेटी स्थापित की जाती है। इस कमेटी में भी सीनेट को ही अधिकतर लाभ रहता है क्योंकि उसके सदस्य अधिकतर कुशल और अनुभवी होते हैं।

2. कार्यपालिका शक्तियाँ कार्यपालिका के क्षेत्र में सीनेट की शक्तियाँ प्रतिनिधि सभा से भी बढ़कर हैं तथा वह राष्ट्रपति पर नियन्त्रण स्थापित करती है।

सीनेट की सबसे महत्त्वपूर्ण शक्तिसन्धियों के विषय में है। राष्ट्रपति द्वारा विदेशों के साथ की गई सन्धियाँ तब तक पूर्ण नहीं समझी जायेंगी, जब तक उन्हें सीनेट अपने दो-तिहाई बहुमत से स्वीकार न कर ले और तभी वे सन्धियाँ देश पर लागू होंगी। इससे सीनेट विदेश नीति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति की शक्ति का भागीदार बन गई है।

सीनेट की दूसरी प्रमुख कार्यपालन सम्बन्धी शक्ति राष्ट्रपति द्वारा की हुई नियुक्तियों के पुष्टिकरण की है। इस पुष्टिकरण के लिए साधारण बहुमत की आवश्यकता है। इस शक्ति के द्वारा भी सीनेट राष्ट्रपति पर अपना अंकुश बनाये रखती है।

सीनेट की तीसरी कार्यपालिका शक्ति विविध विभागों के विरुद्ध शिकायतों की जाँच करना है । इस विषय में उसका निर्णय अन्तिम होता है। इस शक्ति के कारण सीनेट प्रशासन पर नियन्त्रण रखती है।

युद्ध की घोषणा की स्वीकृति प्रतिनिधि सभा के साथ सीनेट द्वारा भी प्रदान की जानी आवश्यक है।

3. न्याय सम्बन्धी शक्तियाँ-न्यायिक क्षेत्र में भी सीनेट की शक्ति बड़े महत्त्व की है। सीनेट को संविधान में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और सभी असैनिक अधिकारियों को महाभियोग द्वारा देशद्रोह, रिश्वत तथा गम्भीर अपराध के कारण हटाने का अधिकार होगा। अभियोग लगाने का कार्य प्रतिनिधि सभा का है। 

सीनेट महाभियोग न्यायालय के रूप में जाँच करेगा। ऐसे अवसरों पर वह न्यायिक प्रक्रिया के सभी कार्य, जैसे- आदेश जारी करना, गवाहों को बुलाना, उन्हें शपथ दिलाना आदि करता है। 

जब अमेरिका के राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जायेगा, तो उस समय उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश सीनेट की अध्यक्षता करेगा। किसी भी व्यक्ति को सीनेट के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के बिना दण्डित घोषित किया जायेगा, उस पर देश के कानूनों के अनुसार मुकदमा चलाया जा सकेगा।

4. संविधान संशोधन सम्बन्धी शक्तियाँ- संविधान संशोधन का प्रस्ताव सीनेट प्रतिनिधि सदन के साथ मिलकर रख सकता है। इस विषय में सीनेट की शक्तियाँ प्रतिनिधि सदन के समान हैं।

5. निर्वाचन सम्बन्धी शक्तियाँ- सीनेट राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के चुनाव में डाले गये मतों की गिनती करता है और परिणामों की घोषणा करता है। यदि उपराष्ट्रपति पद के लिए किसी भी प्रत्याशी को निरपेक्ष बहुमत प्राप्त न हो, तो सीनेट पहले दो प्रत्याशियों में से एक उपराष्ट्रपति चुनता है। 

इस हेतु प्रत्येक सीनेटर का एक मत होता है। जिस प्रत्याशी को निरपेक्ष बहुमत प्राप्त हो जाता है, वह उपराष्ट्रपति घोषित कर दिया जाता है।

उपर्युक्त शक्तियों के कारण ही सीनेट का अधिक महत्त्व है। लॉस्की का कथन ठीक ही है कि, “विधायी क्षेत्र में केवल सीनेट का महत्त्व है और जनता उसकी ओर ही ध्यान देती है।

 ब्राइस ने भी लिखा है सीनेट शासन में आकर्षण का केन्द्र है। एक ओर तो वह प्रतिनिधि सभा की लोकतन्त्र की आकांक्षा को और दूसरी ओर राष्ट्रपति की राजतन्त्र की महत्त्वाकांक्षा को रोकने के लिए महत्त्वपूर्ण सत्ता है। 

प्रतिनिधि सदन की तुलना में सीनेट के शक्तिशाली होने के कारण

(1) संविधान निर्माताओं की इच्छा-संविधान निर्माता सीनेट को एक शक्तिशाली सदन बनाना चाहते थे, ताकि वह राष्ट्रपति पर नियन्त्रण रख सके, संघात्मकता की रक्षा कर सके और लोकप्रिय सदन के जोश को ठण्डा कर सके। 

मुनरो ने लिखा है यह कोई भूल नहीं है कि संविधान निर्माताओं ने संविधान में काँग्रेस के उल्लेख के समय सीनेट का नाम पहले लिखा है।

(2) लम्बी अवधि - सीनेट की अवधि प्रतिनिधि सदन से तिगुनी है, जबकि प्रतिनिधि सदन दो वर्ष के लिए चुना जाता है, सीनेट छः वर्ष के लिए चुना जाता है। सीनेट स्थायी सदन है। प्रतिनिधि सदन के सदस्यों को अपने चुनाव के बाद ही अगले चुनाव की चिन्ता लग जाती है, जबकि सीनेटर को छः वर्ष तक अपने नये चुनाव की चिन्ता नहीं रहती। 

लॉस्की के अनुसार सीनेटर की लम्बी अवधि, यदि उसमें योग्यता है तो विशाल व्यक्तित्व उत्पन्न करने का अवसर देती है तथा वह प्रतिनिधि सभा के साधारण सदस्य के मुकाबले में अच्छे और विस्तृत दृष्टिकोण से समस्याओं पर विचार कर सकता है। 

(3) सीनेट एक गौरवशाली संस्था - अपनी महत्त्वपूर्ण शक्तियों के कारण सीनेट एक गौरवशाली संस्था बन गयी है। अमेरिका के राजनीतिज्ञों की यह एक महत्त्वाकांक्षा रहती है कि वे सीनेट के सदस्य बनें। सीनेट का सदस्य बनना अत्यधिक सम्मान का विषय माना जाता है। 

सीनेट का स्तर इतना ऊँचा है कि पोटर के अनुसार, “अमेरिका के सभी बड़े राजनीतिज्ञ यहीं से राष्ट्रीय स्तर पर जगमगाने लगते हैं।

(4) सीनेट का प्रत्यक्ष निर्वाचन - सीनेट का प्रत्यक्ष निर्वाचन होता है तथा सीनेट के सदस्य जनता के प्रतिनिधि माने जाने लगे हैं। पहले वे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा चुने जाते थे। इसलिये अब सीनेट की लोकप्रियता प्रतिनिधि सदन से कम नहीं रह गई है। 

सीनेट इस लोकप्रियता में प्रतिनिधि सदन से एक कदम आगे बढ़ गई क्योंकि जहाँ प्रतिनिधि सदन के सदस्य अपने स्थानीय चुनाव क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहाँ सीनेट के सदस्य सारे राज्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।

(5) सीनेट का लघु आकार- सीनेट के इतने अधिक शक्तिशाली होने का एक अन्य कारण उसकी रचना व उसकी क्रिया-प्रणाली है। सीनेट केवल 100 सदस्यों की एक छोटी-सी सभा है, जो उन समस्याओं पर, जो उसके समक्ष रखी जाती है। 

लगभग 435 सदस्यों की प्रतिनिधि सभा से अधिक अच्छी तरह विचार कर सकती है। परिणामस्वरूप, जनता की दृष्टि में उसका सम्मान बढ़ता है और दिन-प्रतिदिन शक्तिशाली होती जाती है। 

लॉस्की ने भी लिखा है कि इसके छोटे स्वरूप के कारण इसमें विपक्षी दलों या विपक्षी गुटों में वह द्वेषभाव उत्पन्न नहीं होता जो प्रायः इंग्लैण्ड की कॉमन सभा में हो जाता है। 

(6) सीनेट में वाद-विवाद की स्वतन्त्रता- सीनेट की कार्यविधि ऐसी है कि उसमें सदस्यों के बोलने का समय निश्चित नहीं किया जाता। वहाँ कोई भी सदस्य कितने ही समय तक बोल सकता है। इसको 'फिलिबस्टर' कहा जाता है। परिणामस्वरूप, यहाँ विषयों पर विचार अधिक पूर्णता के साथ होता है। 

सीनेट में बोलने के लिए अधिक समय मिल जाता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति सीनेट का सदस्य बनना चाहता है। सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण प्रतिनिधि को सदन में बोलने के लिए कम समय मिलता है।

(7) सीनेट की विशिष्ट शक्तियाँ-प्रतिनिधि सदन की तुलना में सीनेट को महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति द्वारा की गई सभी नियुक्तियों पर सीनेट की स्वीकृति आवश्यक है, सीनेट को जाँच की शक्ति प्राप्त है।

संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि, सीनेट अमेरिका के शासनतन्त्र में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और गौरवशाली निकाय है। मैडीसन के शब्दों में, 'वह जनता की रक्षा उसके शासकों से करती है। 'जनता की रक्षा उसके कानूनों से करती है' तथा 'जनता की रक्षा अपनी स्वयं की कुभावनाओं से करती है।

प्रतिनिधि सभा के सदस्य सीनेट की सदस्यता प्राप्त करने के लिए इच्छुक रहते हैं। अमेरिका में जिन राजनीतिज्ञों का महत्त्व रहता है, वे अवश्य ही सीनेट के सदस्य रह चुके होते हैं। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा राज्यपाल बनने के लिये सीनेट ही महत्त्वपूर्ण सीढ़ी है। 

प्रेसीडेण्ट की केबिनेट के सदस्यों के बजाय सीनेटर अधिक सम्मान प्राप्त करते हैं। यह ठीक ही कहा गया है कि, “कई कार्य ऐसे हैं जो सीनेट और प्रतिनिधि सदन आपसी सहयोग से और राष्ट्रपति के सहयोग के बिना कर सकते हैं। 

अन्य कुछ कार्य ऐसे हैं जो राष्ट्रपति और सीनेट प्रतिनिधि सदन के सहयोग के बिना कर सकते हैं; किन्तु ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो सीनेट की सहायता के बिना केवल राष्ट्रपति और प्रतिनिधि सदन के सहयोग से किया जा सके।

सीनेट की आलोचना तथा दोष-सीनेट यद्यपि अत्यधिक शक्तिशाली सदन है, तथापि इसमें अग्रलिखित कई दोष पाये जाते हैं-

1. सीनेट में बड़े छोटे सभी राज्यों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त है। लिण्डसे के अनुसार अमेरिका के आधे से अधिक सीनेटर वहाँ की 1/5 से कम जनता के द्वारा चुने जाते हैं। इससे सीनेट का प्रतिनिध्यात्मक स्वरूप फीका पड़ जाता है।

2. सीनेट की क्रिया-प्रणाली के अन्तर्गत किसी भी सदस्य पर भाषण के विषय में कोई रोक नहीं है। वह जितने समय तक सीनेट में विचार होने वाले विषय पर बोलना चाहे, बोल सकता है। भाषण की इस स्वतन्त्रता के कारण एक ऐसी प्रथा का प्रचलन हो गया हैं। जिसे फिलिबस्टरिंग कहते हैं और जिसके सहारे लोग कभी-कभी आवश्यक-से-आवश्यक विधेयक को भी पारित होने से रोक देते हैं।

3. सीनेट में लाग रोलिंग की प्रथा प्रचलित है जिसके अनुसार किसी को पास कानून करवाने के लिए अस्थायी गठबन्धन होते रहते हैं। 

4. सीनेट को सन्धियों और नियुक्तियों के पुष्टिकरण की शक्ति प्राप्त है। इससे कई बार सीनेट राष्ट्रपति पर अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए अनुचित दबाव डालते हैं। 

इस कारण 'सीनेटोरियल कर्टसी' की दूषित प्रथा विकसित हो गयी है। इस प्रथा के कारण निजी हितों की पूर्ति के लिये सीनेट के सदस्य राष्ट्रपति पर नियन्त्रण नहीं रख पाते हैं। 

क्या सीनेट विश्व में सबसे शक्तिशाली द्वितीय सदन है ? 

मुनरो के अनुसार अमेरिकी सीनेट विश्व के द्वितीय सदनों में सर्वाधिक शक्तिशाली है। अन्य देशों के द्वितीय सदनों से तुलना करने की इसकी सर्वोच्चता स्वतः प्रकट हो जायेगी।

सीनेट की लॉर्ड सभा से तुलना

1. द्वितीय सदन - सीनेट अमेरीकी काँग्रेस का उच्च (द्वितीय) सदन है और लॉर्ड सभा ब्रिटिश संसद का उच्च (द्वितीय) सदन है। लॉर्ड सभा न केवल द्वितीय बल्कि गौण सदन है जबकि अमेरिकी सीनेट की ऐसी स्थिति नहीं है, उसे पूर्ण अधिकार प्राप्त है और वह लॉर्ड सभा की तरह गौण सदन नहीं है।

2. व्यवस्थापन सम्बन्धी शक्तियाँ- साधारण विधेयकों के सम्बन्ध में सीनेट की स्थिति अधिक शक्तिशाली है। जहाँ तक विधेयकों के प्रस्तुतीकरण का प्रश्न है, दोनों ही की स्थिति एक सी है क्योंकि सीनेट और लॉर्ड सभा दोनों में साधारण विधेयकों का प्रस्तुतीकरण हो सकता है। 

किन्तु सीनेट की स्वीकृति के बिना अमेरिका में जहाँ कोई विधेयक पारित नहीं हो सकता, वहाँ इंग्लैण्ड की लॉर्ड सभा किसी साधारण विधेयक को केवल एक वर्ष के लिये रोक सकती है और उसके बाद वह विधेयक राजा की स्वीकृति के बाद कानून बन जाता है। इस प्रकार लॉर्ड सभा की अस्वीकृति का कोई महत्त्व नहीं होता।

3. वित्तीय शक्तियाँ-जहाँ तक प्रस्तुतीकरण का प्रश्न है, वित्त विधेयक न तो लॉर्ड सभा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं और न सीनेट में। परन्तु जहाँ लॉर्ड सभा उनमें कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं कर सकती, सीनेट केवल प्रारम्भिक धारा को छोड़कर विधेयकों के सम्पूर्ण स्वरूप को बदल सकती है। 

लॉर्ड सभा वित्त विधेयक को केवल एक महीने के लिये रोक सकती है। अमेरिका में जब तक दोनों सदन किसी विधेयक के विषय में एकमत न हो लें, तब तक यह सम्भव नहीं है कि वह विधेयक काँग्रेस से पारित समझा जा सके। 

इस प्रकार वित्त विधेयकों के सम्बन्ध में लॉर्ड सभा का अधिकार विलम्ब का निषेधाधिकार है, जबकि सीनेट का अधिकार पूर्ण निषेधाधिकार का है।

4. संविधान संशोधन-संविधान संशोधन सम्बन्धी विधेयकों के बारे में लॉर्ड सभा की स्थिति साधारण विधेयकों जैसी ही है। विधेयकों का प्रस्तुतीकरण लॉर्ड सभा व लोक सदन दोनों में ही हो सकता है पर अन्तिम निर्णय लोक सदन के ही हाथ में रहता है। 

इसके  विपरीत, सीनेट की स्थिति लॉर्ड सभा की तुलना में अधिक शक्तिशाली है, क्योंकि संवैधानिक विषयों के सम्बन्ध में उसे सब तरह से प्रतिनिधि सदन के समान अधिकार प्राप्त है। अमेरिका में जब तक दोनों सदन किसी संवैधानिक विधेयक पर एकमत न हो जायें, वह काँग्रेस द्वारा पारित नहीं हो सकता है।

5. कार्यपालिका शक्तियाँ-सीनेट को सन्धियों के पुष्टिकरण का, राष्ट्रपति द्वारा की हुई नियुक्ति का, विविध विभागों के विरुद्ध जाँच का तथा युद्ध की घोषणा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हैं। 

इन शक्तियों के द्वारा सीनेट राष्ट्रपति पर नियन्त्रण रखती है। इन शक्तियों के कारण सीनेट का महत्त्व प्रतिनिधि सदन से अधिक हो जाता है, किन्तु ब्रिटेन की लॉर्ड सभा को इस प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त नहीं हैं।

6. न्यायिक शक्तियाँ- न्यायिक क्षेत्र में यदि सीनेट व लॉर्ड सभा की तुलना की जाये तो लॉर्ड सभा की स्थिति अधिक महत्त्वपूर्ण है। लॉर्ड सभा ब्रिटेन का सबसे ऊँचा अपीलीय न्यायाधिकरण है, जबकि अमेरिका की सीनेट को ऐसा कोई स्तर प्राप्त नहीं है।

7 निर्वाचन - सीनेट के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचित होते हैं, जबकि लॉर्ड सभा के सदस्यों का मनोनयन होता है तथा अधिकांश सदस्य वंशानुगत क्रम से सदस्य बन जाते हैं।

8. राजनीतिक महत्त्व - इंग्लैण्ड में लोक सदन की सदस्यता का राजनीतिक महत्त्व है, जबकि अमेरिका में सीनेट की सदस्यता का राजनीतिक महत्त्व है।

संक्षेप में, लॉर्ड सभा एक निर्बल सदन है और सीनेट शक्ति का केन्द्र है। 

सीनेट की भारत की राज्यसभा से तुलना

भारत में राज्य सभा उच्च सदन है किन्तु सीनेट की तुलना में वह एक कमजोर सदन है। राज्य सभा को धन विधेयक को 14 दिन तक विलम्ब करने का अधिकार है। साधारण विधेयकों के बारे में उसकी शक्ति लोकसभा के समकक्ष है। 

किन्तु मतभेद उपस्थित होने पर राष्ट्रपति छः मास के पश्चात् दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाते हैं जिसमें लोकसभा की अधिक संख्या होने के कारण उसी की इच्छा मान्य रहती है। सीनेट की तरह भारत में राज्यसभा संघात्मकता का भी समुचित प्रतिनिधित्व नहीं कर पाती है। 

सीनेट की स्विस राज्य परिषद् से तुलना

संविधान के अनुसार स्विट्जरलैण्ड में दोनों सदनों की समान शक्तियाँ हैं, किन्तु अमेरिकी सीनेट को युद्ध की घोषणा, सन्धियों के पुष्टिकरण, नियुक्तियों के पुष्टिकरण इत्यादि महत्त्वपूर्ण शक्तियाँ प्राप्त हैं, अतः स्विस राज्य परिषद् सीनेट की तुलना में कम शक्तिशाली है।

 सीनेट की रूस के ऊपरी सदन से तुलना

रूस में साधारण तथा वित्तीय विधेयकों के बारे में दोनों सदनों की शक्तियाँ बराबर हैं, परन्तु रूस के ऊपरी सदन को सीनेट के समान शक्तिशाली नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसे सीनेट के समान नियुक्तियों, सन्धियों तथा महाभियोग के अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

निष्कर्ष - इस प्रकार उपर्युक्त तुलना से स्पष्ट है कि विश्व के अधिकतर उच्च सदन अपनी शक्ति खो बैठे हैं और सिर्फ संवैधानिक प्रतिष्ठा के हकदार रह गये हैं। विश्व के द्वितीय सदनों की शक्ति के सामान्य ह्रास के बावजूद अमेरिकन उच्च सदन में विपरीत प्रवृत्ति दिखलायी है। 

उसकी शक्ति में ह्रास नहीं, बल्कि वृद्धि हुई है। विश्व के अन्य द्वितीय सदन द्वितीय श्रेणी के सदन बन गए हैं, जबकि अमेरिकी सीनेट ने प्रथम सदन का स्थान ले लिया है। प्रो. मुनरो का कथन सत्य प्रतीत होता है कि ऐसा समय न कभी आया और न कभी आयेगा, जब काँग्रेस के दूसरे सदन का दूसरा दर्जा हो जाय। 

सीनेट का वह अन्त होने की सम्भावना नहीं दिखती जो दूसरे देशों के उच्च सदनों की हुई है क्योंकि इसकी संवैधानिक शक्तियाँ बहुत ही अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। 

प्रो. स्ट्रांग के अनुसार सीनेट की बहुत अधिक शक्तियाँ हैं। शायद संसार का कोई ऐसा द्वितीय सदन नहीं होगा जो राष्ट्रीय सरकार के सभी मामलों में वास्तविक और सीधा महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखता हो। 

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