अनुवाद के उद्देश्य एवं विशेषताएं - anuwad ke uddeshya

संस्कृत में अनुवाद का उपयोग शिष्य द्वारा गुरु की बात के दुहराने के लिए किया जाता था। संस्कृत के वद् धातु से अनुवाद शब्द का निर्माण हुआ है। अनु और वाद के मिलने से 'अनुवाद' शब्द बना है, जिसका अर्थ है, प्राप्त कथन को पुनः कहना होता हैं। लेकिन अनुवाद शब्द का प्रयोग एक भाषा में किसी के द्वारा कही गई बात को दूसरी भाषा में प्रस्तुत करना अनुवाद कहलाता हैं।

अनुवाद के उद्देश्य क्या है

अनुवाद का इतिहास जितना प्राचीन है उतना ही अधिक उसकी महत्ता भी है। वर्तमान समय में अनुवाद का महत्व प्रौद्योगिकी, विज्ञान और तकनीकी की भाँति अत्यधिक मूल्यवान हो गया है। अनुवाद जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वव्यापी हो गया है।

अनुवाद के मुख्य रूप से निम्न तीन उद्देश्य माने जाते हैं -

  1. दूसरी भाषा के साहित्य से अपनी भाषा के साहित्य को समृद्ध करना। 
  2. दूसरी भाषाओं की शैलियों, मुहावरों, दार्शनिक तथ्यों वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान को प्राप्त करना।
  3. विचारों का विनिमय करना।

भारत जैसे बहुभाषा-भाषी देश के राष्ट्रीय सामाजिक सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास के लिए अनुवाद की उपयोगिता और भी ज्यादा बढ़ जाती है । 

विभिन्न ग्रंथों की जानकारी, विदेशी भाषा को सीखने के अलावा स्वभाषा के विकास तुलनात्मक अध्ययन आदि क्षेत्रों में अनुवाद की महत्ता निर्विवाद रूप से स्वीकार्य है । मानव सभ्यता और संस्कृति के विकास में अनुवाद महत्वपूर्ण नहीं है ।

सार रूप में हम कह सकते हैं कि ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनीक, विधि, न्याय, प्रशासन आदि विविध विषयों का ज्ञान राजनीति, धर्म, दर्शन, पर्यावरण, व्यापार संबंधी जानकारियाँ, चिकित्सा, संचार आदि से संबंधित विषयों को जानने समझने में अनुवाद सर्वदा सहायक हो सकते हैं।

अनुवाद की प्रक्रिया को सम्पन्न करने वाला अनुवादक कहलाता है अर्थात् अनुवाद करने वाला ही अनवादक की संज्ञा पाता है। इसके लिए अनुवादक को स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा का अच्छा ज्ञान होना अनिवार्य है। 

कोई भी अनुवादक किसी पाठ को पूरी तरह समझे बिना उसका अनुवाद नहीं कर सकता। अनुवादक को स्रोत भाषा की सांस्कृतिक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से भी पूर्णत: परिचित होना चाहिए। 

अनुवाद की विशेषताएँ

1. स्रोत भाषा की सामग्री को लक्ष्य भाषा में सावधानीपूर्वक प्रस्तुत करने की क्षमता होनी चाहिए। 

2. अच्छे अनुवाद के लिए अभिव्यक्ति सुबोध, प्रांजल और प्रवाहमयी होती है। 

3. अनुवाद मूलत: भावानुवाद होना चाहिए, शाब्दिक रूपान्तरण भर नहीं।

4. अच्छे अनुवाद में मूल रचना की भाषा-शैली सुरक्षित रहना चाहिए।

5. अनुवाद की भाषा स्रोत भाषा की प्रकृति के अनुसार होनी चाहिए। अत: अनुवादक को स्रोत भाषा की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से परिचित होना चाहिए।

6. अच्छे अनुवाद की भाषा सुबोध होनी चाहिए जिससे कि आसानी से समझ में आ सके।

7. अनुवाद की प्रक्रिया में स्रोत भाषा की प्रतीक-व्यवस्था को लक्ष्य भाषा के अनुरूप परिवर्तित करना होता है। इसलिए स्रोत भाषा के समानार्थी प्रतीक ही लक्ष्य भाषा में खोजना चाहिए। 

8. अनुवाद जीवन्त हो तथा उसकी भाषा में प्रवाहमयता हो। 

9. शब्दों को स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में रूपान्तरित करते समय उसके लिंग, वचन और व्याकरणिक रूपों की संगति का ध्यान रखना आवश्यक  है।

10. एक अच्छा अनुवादक वह होता है जिसे स्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा पर पूरा अधिकार हो, दोनों भाषाओं की संरचनात्मक बनावट, पदबंध - प्रयोग, वाक्य गठन आदि को अच्छी तरह समझता हो।

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