अपराध किसे कहते हैं - apradh kya hai samjhaiye

सामान्य व्यक्ति किसी भी असामाजिक अथवा समाज-विरोधी कार्य और प्रथाओं का उल्लंघन करता है। उसे अपराध कह दिया जाता हैं। वे कभी-कभी अपराध और पाप तथा अनैतिकता को अलग नहीं मानते हैं। अपराध को इस अर्थ में समझ लेना गलत है।

ऐसे अनेक कार्य होते हैं जिनसे लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है या उन्हें किसी प्रकार का कष्ट उठानी पड़ सकती है, परन्तु ये सभी कार्य अपराध नहीं कहे जा सकते हैं।

अपराध किसे कहते हैं

अपराध एक प्राधिकरण द्वारा दंडनीय गैरकानूनी कार्य होता है। अपराध शब्द, आधुनिक आपराधिक कानून में, कोई सरल और सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, हालांकि कुछ उद्देश्यों के लिए वैधानिक परिभाषाएं प्रदान की गई हैं।

सामाजिक संघर्षों और परिवर्तन की परिस्थितियों में सामाजिक सुधार हेतु किए जाने वाले  प्रयास आमतौर समाज का कुछ समय के लिए अहित कर सकते है। लेकिन उसे अपराध नहीं कहा जा सकता हैं। प्रत्येक असामाजिक कार्य न तो सदैव अपराध होता है और न ही प्रत्येक अपराध का समाज-विरोधी होना आवश्यक है। 

जैसे - देश-हित की दृष्टि से विद्रोही या क्रान्तिकारी बन जाना अपराध होते हुए भी समाज-विद्रोही नहीं है। यह आवश्यक है कि अपराध को दो पृथक्-पृथक् अर्थों में वैधानिक रूप से समझा जाए।

अपराध की अवधारणा को समझाइए

कई समाजशास्त्र के जानकार मानते है की अपराध एक सामाजिक विकार है जो सामाजिक हितों के विरोध मे कार्य करते हैं। जिनके प्रति सम्बन्धित दोषी व्यक्ति को दण्डित किया जाना अति आवश्यक होता हैं। उसे किसी भी प्रकार मुक्त कर देना या ऐसे मामलों में ढीला देना उचित नहीं हैं।

उन्हें कानून तो अपराधी मानता ही है, परन्तु यदि उन्हें कानून अपराधी न भी माने तब भी समाज किसी-न-किसी रूप में दण्डित करने की व्यवस्था अवश्य ही करेगा। अपराध को विभिन्न समाजशास्त्रियों ने इसीलिए एक सामाजिक घटना का रूप प्रदान किया है।

समाज में सदैव ही पाये जाने वाले ऐसे विरोधी तत्व जो सामान्य हितों की रक्षा, सामाजिक शान्ति तथा व्यवस्था और सामाजिक नियन्त्रणों के विरुद्ध कुछ-न-कुछ कार्य करते ही रहते हैं। इनसे विघ्नकारी तत्वों को सामाजिक दण्ड देना आवश्यक है।

अपराध की परिभाषा दीजिए

समाजशास्त्र की दृष्टि से अपराध को निम्नलिखित विद्वानों ने परिभाषित किया हैं - 

1. गैरोफैलो के अनुशार - अपराध को प्राकृतिक अपराध की अवधारणा के अन्तर्गत दया तथा सत्य की प्रचलित भावनाओं का उल्लंघन माना है। इस परिभाषा में नैतिकता की अधिक झलक दिखाई पड़ती है।

2. रैडक्लिफ ब्राउन के अनुसार - अपराध किसी ऐसे प्रचलन का उल्लंघन है जो दण्डनीय मान्यता के प्रयोग को प्रोत्साहित करता है। इसके अन्तर्गत अपराध को किसी समुदाय की संस्कृति, आदर्शों तथा प्रतिमानों और रीति-रिवाजों पर आधारित किया जाता है।

3. टॉमस के अनुसार - अपराध एक ऐसा कार्य है जो उस समूह की एकता का विरोधी हो जिसे व्यक्ति अपना समझते हों। इस परिभाषा में सामाजिक- मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाते हुए सामाजिक समूहों की एकता में बाधक तत्व के रूप में अपराध को समझा गया है।

4. हैकरवाल के अनुसार - सामाजिक दृष्टिकोण से अपराध या बाल अपराध व्यक्ति का ऐसा व्यवहार है जो कि उन मानवीय सम्बन्धों की व्यवस्था में बाधक होता है जिन्हें समाज अपने अस्तित्व के लिए एक प्राथमिक दशा के रूप में मानता है। यह परिभाषा मनुष्य के व्यवहार तथा मानवीय सम्बन्धों पर आधारित है।

5. टैफ्ट के अनुसार - सामाजिक रूप से अस्वीकृत, अनैतिक, पापपूर्ण, असामाजिक कार्यों को अपराध माना जा सकता है। इसमें अपराधों का अभिप्राय ऐसे हानिकारक कार्यों से है जिन्हें सामाज को हानि होती हैं।

अपराध सदैव उपस्थित रहने वाली एक दशा है। यह ठीक किसी बीमारी की तरह है। समाज जितना ही जटिल बनता जाता है। मनुष्य के लिए यह और भी कठिन होता जाता है और मनुष्य की असफलताओं की पुनरावृत्ति होती रहती है।

अपराध के आवश्यक तत्व को समझाइए

1. कोई मूल्य जो किसी समूह अथवा उसके किसी भाग द्वारा जो कि राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो, प्रशंसा की गयी हो।

2. इसी समूह के किसी दूसरे भाग का पृथक्करण या उसमें विद्यमान सांस्कृतिक संघर्ष, ताकि इसके सदस्य इस मूल्य की प्रशंसा न कर सकें।

3. एक उत्तम दण्ड व्यवस्था जिसे उस मूल्य की प्रशंसा या आदर करने वाले लोग अनादर करने वालों पर लागू कर सकें। जब कोई अपराध घटित होता है, इस प्रकार के सम्बन्ध उस अपराध के दौरान सामने आते हैं।

अपराध की कानूनी अवधारणा

अपराध को वैधानिक आधार पर ही अधिक समझे जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है और जो कोई भी कार्य किसी सरकारी कानून का उल्लंघन या विरोध के रूप में किया जाए अपराध मान लिया जाता है। 

किसी भी कार्य को अपराध कहे जाने के लिए उस देश के दण्ड विधान के अन्तर्गत दण्डनीय होना चाहिए। अन्यथा उसे समाज के लिए हानिकारक होते हुए भी अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकेगा हैं। वैधानिक दृष्टि से अपराध को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है।

मैककार्कल  के अनुसार - अपराध किसी व्यक्ति के द्वारा किया गया ऐसा कार्य या ऐसी भूल है, जबकि उस क्षेत्र पर निरन्तर राजनीतिक नियन्त्रण रखने वाले अधिकारियों द्वारा, जहाँ वह रहता है, दण्डित किया जाता है।

इलियट के अनुसार - अपराध को किसी ऐसे कार्य करने या उस कार्य की भूल से परिभाषित किया जाता है जिसे कानून के द्वारा वर्जित या निर्धारित किया गया है और इस नियम के उल्लंघन को अर्थदण्ड, कारावास, देश निकाला, मृत्यु या अन्य किसी दण्डनीय विधि से, जैसा कि राज्य निर्धारित कर दे, दण्डित किया जा सके।

अपराध की विशेषताएं क्या है

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर अपराध को कानूनी रूप से देखने पर उसमें कुछ सामान्य लक्षण या विशेषताएँ पाई जानी आवश्यक हैं।

  1. यह कोई कानून विरोधी कार्य अथवा भूल है।
  2. अपराध करने पर राज्य द्वारा अपराधी को दण्डित करने का अधिकार होता है। 
  3. अपराधी का दण्ड साधारण जुर्माना से लेकर मृत्यु तक हो सकते हैं जो अपराध की प्रकृति पर निर्भर करता हैं।
  4. इसे न्यायालयी प्रक्रिया के सम्पन्न हो जाने के पश्चात् दण्डनीय बनाया जाता है। 
  5. अपराध समाजिक कल्याण का बाधक तत्व होता है।

ऊपर बताये गये लक्षणों के अतिरिक्त भी अपराध को कानूनी रूप से समझने के लिए निम्नांकित तत्वों का उसमें होना और भी अधिक आवश्यक समझा जाता है।

  1. एक निश्चित आयु के पश्चात् किये गये अपराध के कारण उसे अपराधी कहा जा सकता हैं।
  2. अपराधी कार्य अपनी स्वेच्छा से तथा बिना किसी दबाव के होने चाहिए। 
  3. गम्भीर अपराधों में कार्य करने के पीछे इरादा भी अपराधी होना होता है।
  4. किसी कार्य को अपराध कहे जाने के लिए राज्य या उसकी सम्पत्ति को क्षति पहुँचनी चाहिए।
  5. ऐसे किसी भी कार्य के लिए दण्ड की व्यवस्था राज्य के द्वारा अवश्य उपलब्ध होनी चाहिए। 

कुछ ऐसे दुष्कृत्य जो आजकल अपराध बना दिए गये हैं, आदिकालीन समाज में केवल सामाजिक नियम-भंग की स्थिति को बताते रहे हैं। 

कानून विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। यदि कानूनों में काफी समानता भी हो फिर भी उन्हें लागू करने की दशाएँ भिन्न हो सकती हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि - अपराध अपराधियों की स्थिति तथा उनके द्वारा नियम भंग करने की परिस्थितियों के सापेक्षिक अर्थ में समझा जाना ही श्रेष्ठ होगा।

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