औपचारिक व अनौपचारिक पत्र में अन्तर -aupcharik and aupcharik patra

औपचारिक व अनौपचारिक पत्र में अन्तर स्पष्ट करते हुए दैनिक जीवन में पत्रों की महत्व पर प्रकाश डालिए । 

औपचारिक एवं अनौपचारिक पत्रों के लेखन में शैलीगत अंतर होता है । अनौपचारिक पत्रों के लेखन में प्राय: वार्तालाप की शैली ही महत्वपूर्ण होती है और पत्र लेखक की अपनी व्यक्तिकताएँ उभरकर सामने आती हैं। 

औपचारिक पत्रों के लेखन में ऐसा नहीं होता। औपचारिक पत्रों के लेखन के कुछ निश्चित प्रतिमान होते हैं। जिनके अभाव में ये पत्र अस्वीकार्य भी हो सकते हैं ।

पत्र दूरसंचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम है । संचार के अन्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष माध्यमों से संचारक या संप्रेषक के व्यक्तित्व का तात्कालिक रूप ही प्रधानता के साथ उभरता है। पत्रों के माध्यम से तात्कालिक रूप तो उभरता ही है।  

आंतरिक जगत में विद्यमान दीर्घकालिक रूप भी उद्घाटित होता है। अन्य माध्यमों से संप्रेषण करते समय संप्रेषक गंभीरतापूर्वक विचार नहीं कर पाता, अपने विवेक को पूरी तरह जागृत नहीं रख पाता, जबकि पत्रों के माध्यम से संप्रेषण करते समय उसकी विचारणा शक्ति और विवेक अधिक जागृत रहते हैं। 

उसे शब्द प्रयोग एवं वाक्य रचना में सतर्कतापूर्वक चयन की छूट रहती है । इसीलिए मनुष्य संप्रेषण के लिए पत्रों को एक सबल माध्यम के रूप में महत्व देता है।पत्र सभी संचार माध्यमों की तुलना में सुलभ एवं सर्वाधिक उपयोगी माध्यम है। 

इसके लिए खर्चीले उपकरणों एवं लम्बी तैयारी की आवश्यकता नहीं पड़ती और न गोपनीयता भंग होने का भय रहता है। फलत: प्रेषक और प्रेषिती को अपने सम्बन्ध निर्बाध एवं विश्वसनीयता बनाए रखने में सुविधा होती है ।

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