भारत में दहेज प्रथा के कारण - bhaarat mein dahej pratha ke kaaran

हिन्दू विवाह से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं में से दहेज की समस्या एक भीषण समस्या है। शिक्षा का प्रसार एवं जीवन स्तर में सुधार के साथ-साथ दहेज की समस्या घटने के बजाय लगातार बढ़ी है। 

यदि लड़का डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, प्रशासनिक अधिकारी या कुशल व्यापारी एवं सम्पन्न परिवार से सम्बन्धित है तो दहेज के बाजार में उसकी ऊँची बोली लगती है। 

दूसरी ओर सुन्दर, सुशील एवं शिक्षित कन्या को दहेज के अभाव में उपयुक्त वर नहीं मिल पाता। दहेज को लेकर प्रतिवर्ष भारत में हजारों नव-विवाहिताएँ आत्महत्या करती हैं या उन्हें जिन्दा जला दिया जाता है। दहेज के भूखे भेड़ियों एवं नर-पिशाचों ने विवाह की पवित्रता को समाप्त कर इसे केवल लाभ का सौदा बना दिया है। 

कानून भी दहेज को समाप्त करने में निष्क्रिय रहे हैं। नवयुवकों का यह दायित्व है कि वे दहेज रूपी दानव की होली जलाएँ और विवाह को पवित्र बन्धन का रूप प्रदान करें जिसका आधार पारस्परिक प्रेम, स्नेह, सहयोग एवं विश्वास हो। इसी सन्दर्भ में हम यहाँ दहेज की समस्या के विभिन्न पक्षों पर विचार करेंगे ।

दहेज प्रथा का अर्थ

सामान्यतः दहेज उस धन या सम्पत्ति को कहते हैं। जो विवाह के समय कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को दिया जाता है। फेयरचाइल्ड के अनुसार - दहेज वह धन या सम्पत्ति है जो विवाह के अवसर पर लड़की के माता-पिता या अन्य निकट सम्बन्धियों द्वारा दी जाती है। दहेज निरोधक अधिनियम, 1961 के अनुसार - दहेज का अर्थ कोई ऐसी सम्पत्ति या मूल्यवान निधि है।  

जैसे - विवाह करने वाले दोनों पक्षों में से एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अथवा विवाह में भाग लेने वाले दोनों पक्षों में से किसी एक पक्ष के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति ने किसी दूसरे पक्ष अथवा उसके किसी व्यक्ति को विवाह के समय, विवाह के पहले या विवाह के बाद विवाह की एक आवश्यक शर्त के रूप में दी हो अथवा देना स्वीकार किया हो। 

दहेज की यह परिभाषा अत्यन्त विस्तृत है जिसमें वर-मूल्य एवं कन्या-मूल्य दोनों ही आ जाते हैं। साथ ही इनमें उपहार एवं दहेज में अन्तर किया गया है। दहेज विवाह की एक आवश्यक शर्त के रूप में दिया जाता है। जबकि उपहार देने वाला अपनी स्वेच्छा से देता है। कभी-कभी वर-मूल्य एवं दहेज में अन्तर किया जाता है। 

दहेज लड़की के माता-पिता स्नेहवश देते हैं। यह पूर्व-निर्धारित नहीं होता और कन्या पक्ष की सामर्थ्य पर निर्भर होता है। जबकि वर- मूल्य वर के व्यक्तिगत गुण, शिक्षा, व्यवसाय, कुलीनता तथा परिवार की स्थिति, आदि के आधार पर वर पक्ष की ओर से माँगा जाता है और विवाह से पूर्व ही तय कर लिया जाता है। किन्तु वर्तमान में दहेज का प्रचलन वर - मूल्य के रूप में या विवाह की आवश्यक शर्त के रूप में ही है।

उच्च शिक्षा प्राप्त, धनी, अच्छे व्यवसाय या नौकरी में लगे हुए एवं उच्च कुल के वर को प्राप्त  करने के लिए आज कन्या के पिता को अच्छा-खासा दहेज देना होता है। शिक्षा एवं सामाजिक चेतना की वृद्धि के साथ-साथ दहेज घटने के बजाय बढ़ा ही है। 

वर्तमान में तो दहेज प्रथा का स्वरूप बहुत ही विकृत हो चुका है। अब तो विवाह सम्बन्ध तय करते समय काफी सौदेबाजी की जाती है। यदि यह कहा जाय कि दहेज के रूप में लड़की के माता-पिता का शोषण किया जाता है तो इसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है। 

सामान्यतः सभी माता-पिता विवाह के अवसर पर अपनी लड़की को अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र, आभूषण एवं अन्य वस्तुएँ देना चाहते हैं और देते भी हैं। 

परन्तु दहेज प्रथा का स्वरूप आज इतना विकृत हो चुका है कि लड़कियों के परिवारजनों को दहेज जुटाने के लिए या तो कर्ज लेना पड़ता है या अपनी जमीन जायदाद तक बेचनी पड़ती है या रिश्तेदारों के आगे हाथ फैलाना पड़ता है अथवा उन्हें अपनी लड़कियों का विवाह अयोग्य लड़कों के साथ करने को बाध्य होना पड़ता है। 

आज तो जिस लड़की के माता-पिता दहेज हेतु लाख-दो लाख, पाँच लाख रुपए खर्च कर पाने की स्थिति में हों। उन्हें ही सामान्यतः योग्य लड़के मिल पाते हैं। जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होती है।  उनके लिए लड़कियों का विवाह एक गम्भीर समस्या बन गया है। 

दहेज के कारण ही बहुत सी लड़कियों एवं बहुओं को आत्महत्या तक करने को बाध्य होना पड़ता है। बहुत सी बहुओं को जिन्दा जला दिया जाता है। मार दिया जाता है। इस वेदना को लड़की के माता-पिता ही समझ सकते हैं। अन्य नहीं।

दहेज कारण के कारण

दहेज प्रथा को जन्म देने के लिए निम्नांकित कारण उत्तरदायी हैं -

(1) जीवन साथी चुनने का सीमित क्षेत्र - जब कन्या का विवाह अपने ही वर्ग, जाति या उप-जाति करना होता है तो विवाह का दायरा सीमित हो जाता है और योग्य वर के लिए दहेज देना आवश्यक हो जाता है।

(2) बाल-विवाह - बाल-विवाह के कारण वर एवं वधू का चुनाव उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है और अपने लाभ के लिए दहेज की माँग करते हैं।

(3) विवाह की अनिवार्यता - हिन्दुओं में कन्या का विवाह अनिवार्य माना गया है। इसका लाभ उठाकर वर पक्ष के लोग अधिकाधिक दहेज की माँग करते हैं।

(4) कुलीन विवाह - कुलीन विवाह के कारण ऊँचे कुल के लड़कों की माँग बढ़ जाती है और उन्हें प्राप्त करने के लिए कन्या पक्ष को दहेज देना पड़ता है।

(5) शिक्षा एवं सामाजिक प्रतिष्ठा - वर्तमान समय में शिक्षा एवं व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का अधिक महत्व होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह शिक्षित एवं प्रतिष्ठित लड़के के साथ करना चाहता है। जिसके लिए उसे दहेज देना होता है। क्योंकि ऐसे लड़कों की समाज में कमी पायी जाती है।

(6) धन का महत्व - वर्तमान समय में धन का महत्व बढ़ गया है और आज तो इसके आधार पर ही व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा निर्धारित होती है। जिस व्यक्ति को अधिक दहेज प्राप्त होता है। उसकी प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। काले धन की वृद्धि ने भी दहेज को बढ़ावा दिया है।

(7) महँगी शिक्षा - वर्तमान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए काफी धन खर्च करना पड़ता है। जिसे जुटाने के लिए वर पक्ष के लोग दहेज की माँग करते हैं। शिक्षा के लिए लिये गए ऋण का भुगतान भी दहेज द्वारा किया जाता है। 

(8) प्रदर्शन द्वारा झूठी प्रतिष्ठा - अपनी प्रतिष्ठा एवं शान का प्रदर्शन करने के लिए भी लोग अधिकाधिक दहेज लेते एवं देते हैं। दहेज लेने एवं देने वाले दहेज के लेन-देन में प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।  

(9) गतिशीलता में वृद्धि - वर्तमान समय में यातायात के साधनों में उन्नति एवं विकास हुआ है। नगरीकरण एवं औद्योगीकरण बढ़ा है। परिणामस्वरूप एक जाति एवं उप-जाति के लोगों की गतिशीलता में वृद्धि हुई है और वे दूर-दूर तक फैल गए हैं। इस कारण अपनी ही जाति या उपजाति में वर ढूँढना कठिन हो गया है। फलस्वरूप दहेज प्रथा को बढ़ावा मिला है।

(10) सामाजिक प्रथा - दहेज प्रथा का प्रचलन समाज में एक सामाजिक प्रथा के रूप में पाया जाता है। जो व्यक्ति अपनी कन्या के लिए दहेज देता है। वह अपने पुत्र के लिए भी दहेज प्राप्त करना चाहता है।

(11) आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा - आज के युग में आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गयी है और प्रत्येक व्यक्ति जीवन के भौतिक सुखों की ओर भाग रहा है। अतः व्यक्ति की इच्छा किसी भी प्रकार धन प्राप्त करने की रहती है।

दहेज प्रथा का दोष

दहेज के परिणामस्वरूप समाज में अनेक समस्याओं ने जन्म लिया है। इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं -

(1) बालिका वध - दहेज की अधिक माँग होने के कारण कई व्यक्ति कन्या को पैदा होते ही मार डालते थे। इस कुप्रथा का प्रचलन राजस्थान में विशेष रूप से रहा है। किन्तु वर्तमान में यह प्रथा समाप्त हो चुकी है।

(2) पारिवारिक विघटन - कम दहेज देने पर कन्या को ससुराल में अनेक प्रकार के कष्ट दिए जाते हैं। दोनों परिवारों में तनाव और संघर्ष पैदा होते हैं और पति-पत्नी का सुखी जीवन उजड़ जाता है। 

(3) आत्महत्या एवं हत्या - जिन लड़कियों को दहेज अधिक नहीं दिया जाता है। उन्हें अपने ससुराल में साधारणतः सम्मान नहीं मिल पाता और कई बार उन्हें परेशान भी किया जाता है। उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए कई लड़कियाँ आत्महत्या कर लेती हैं। 

(4) ऋणग्रस्तता - दहेज देने के लिए कन्या के पिता को रकम उधार लेनी होती है या अपनी जमीन, जेवरात एवं मकान आदि को गिरवी पाता और कई बार उन्हें परेशान भी किया जाता है। रखना या बेचना पड़ता है और परिवार ऋणग्रस्त हो जाता है।

(5) निम्न जीवन स्तर - कन्या के लिए दहेज जुटाने के लिए परिवार को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में कटौती करनी पड़ती है। बचत करने के प्रयत्न में परिवार का जीवन स्तर गिर जाता है। 

( 6 ) बहुपत्नी विवाह - दहेज प्राप्त करने के लिए एक व्यक्ति कई विवाह करता है, इससे बहुपत्नीत्व का प्रचलन बढ़ता है। यद्यपि आजकल इस कुप्रथा को कानून द्वारा रोक दिया गया है। 

(7) बेमेल विवाह - दहेज के अभाव में कन्या का विवाह अशिक्षित, वृद्ध, कुरूप, अपंग एवं अयोग्य व्यक्ति के साथ भी करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कन्या को जीवन भर कष्ट उठाना पड़ता है।

(8) विवाह की समाप्ति - दहेज के अभाव में कई लोग अपने वैवाहिक सम्बन्ध कन्या पक्ष से समाप्त कर लेते हैं। कई बार तो लड़के वाले दहेज के अभाव में तोरण द्वार से बारात वापस तक लौटा लाते हैं और कई कन्याओं को जीवन भर कुंआरी रहना पड़ता है।

(9) अनैतिकता - दहेज के अभाव में लड़कियों का देर तक विवाह न होने पर कुछ लड़कियाँ अपनी यौन इच्छाओं की पूर्ति अनैतिक तरीकों से करती हैं, इससे भ्रष्टाचार बढ़ता है।

(10) अपराध को प्रोत्साहन - दहेज जुटाने के लिए कई अपराध भी किए जाते हैं, रिश्वत, चोरी एवं गबन के द्वारा धन एकत्र किया जाता है, आत्महत्या एवं भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है। 

(11) मानसिक बीमारियाँ - दहेज एकत्र करने एवं योग्य वर की तलाश में माता-पिता चिन्तित रहते हैं। माता-पिता एवं लड़कियों में चिन्ता के कारण कई मानसिक बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं।

(12) स्त्रियों की निम्न स्थिति - दहेज के कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति गिर जाती है। उनका जन्म अपशकुन माना जाता है और उन्हें भावी विपत्ति का सूचक समझा जाता है। 

कुछ लोग दहेज के पक्ष में निम्नांकित तर्क देते हैं

(i) दहेज के कारण कुरूप कन्याओं का भी विवाह हो जाता है। 

(ii) दहेज न जुटा पाने की स्थिति में कन्याओं का देर तक विवाह नहीं होता। इससे बाल विवाह समाप्त हो जाते हैं।

(iii) दहेज के अभाव में देर तक विवाह न होने पर माता-पिता उन्हें शिक्षा दिलाते रहते हैं। इससे स्त्री शिक्षा में वृद्धि होती है।

(iv) दहेज से नवदम्पति को घर बसाने में सहायता मिलती है।

(v) दहेज से परिवार में स्त्री का मान बढ़ता है। उसे सास-ससुर एवं पति का प्रेम मिलता है तथा परिवार के सदस्यों का कोपभाजन नहीं होना पड़ता।

(vi) इससे अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। दहेज की अधिक माँग को पूरा न करने पर लड़की अन्य जाति में बिना दहेज के विवाह कर लेती है तो अन्तर्जातीय विवाह की प्रवृत्ति को बल मिलता है। दहेज प्रथा के दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए इसके लाभ नगण्य हैं। इसके पक्ष में दिये गये तर्क खोखले हैं।

दहेज प्रथा के निराकरण 

डॉ. अल्तेकर ने लिखा है कि हिन्दू समाज के लिए यह उचित समय है कि दहेज की दूषित प्रथा को जिसने अनेक अबोध कन्याओं को आत्महत्या के लिए प्रेरित किया है। समाप्त कर दे। इसके लिए निम्नांकित सुझाव दिए जा सकते हैं -

(1) स्त्री शिक्षा - स्त्री शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार किया जाय, ताकि लड़कियाँ पढ़-लिखकर स्वयं कमाने लगें।  उनकी पुरुष पर आर्थिक निर्भरता समाप्त हो तथा इसके परिणामस्वरूप विवाह की अनिवार्यता भी नहीं रहे।

(2) जीवन साथी के चुनाव की स्वतन्त्रता - यदि लड़के व लड़कियों को अपना जीवन साथी स्वयं चुनने की स्वतन्त्रता दे दी जाए तो दहेज प्रथा स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। 

(3) अन्तर्जातीय विवाह - अन्तर्जातीय विवाह की छूट होने पर विवाह का दायरा विस्तृत होगा। परिणाम यह होगा कि दहेज प्रथा समाप्त हो सकेगी।

(4) लड़कों को स्वावलम्बी बनाया जाय - जब लड़के पढ़-लिखकर स्वयं कमाने लगेंगे तो योग्य वरों की कमी दूर हो जायेगी, उसके लिए प्रतियोगिता भी समाप्त हो जायेगी। फलस्वरूप दहेज भी घट जायेगा।

(5) स्वस्थ जनमत - दहेज विरोधी जनमत तैयार किया जाये। लोगों में जागृति पैदा की जाय। ताकि वे दहेज का विरोध करें। इसके लिए अधिकाधिक प्रचार एवं प्रसार के साधनों का उपयोग किया जाय। 

(6) युवा आन्दोलन - दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि युवक स्वयं संगठित होकर इसका विरोध करें। इसके लिए दृढ़ निश्चय का होना अनिवार्य है।

(7) दहेज विरोधी कानून - दहेज की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि कठोर कानून बनाए जायें, उनका दृढ़ता से पालन कराया जाय तथा उल्लंघन करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाय । वर्तमान में 'दहेज निरोधक अधिनियम, 1961' लागू है।

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