भारत में जेल सुधार पर एक निबन्ध लिखिए

अति प्राचीनकाल से ही भारत में बन्दीगृह की व्यवस्था रही है। प्राचीन समय के बन्दीगृह अंधेरी, बन्द, गन्दी और छोटी-छोटी कोठरियाँ होती थीं। निर्जन स्थानों और गुफाओं को भी बन्दीगृहों के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में पुराने किलों को कारागार के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। 

बुद्ध के समय से पूर्व भारत में कारागृह निश्चित ही भयानक होते थे। उस समय काल-कोठरियाँ हुआ करती थीं और बन्दियों को भारी जंजीरों एवं वजनी पदार्थों एवं वस्तुओं से बाँधकर रखा जाता था और उन्हें किसी भी साधारण बहाने पर कोड़े लगाए जाते थे। 

भारत में जेलों में सुधार का युग अंग्रेजों के काल से शुरू होता है। सन् 1836 में प्रथम बन्दीगृह सुधार समिति का गठन किया गया जिसने सन् 1838 में अपनी रिपोर्ट दी। मैकाले ने जो कि इस समिति के अध्यक्ष थे। कई सुझाव दिए। 

उन्होंने जेलों की दूषित दशाओं की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया। इस समिति ने जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अनुशासनहीनता का उल्लेख किया। इस समिति ने अग्रांकित सुझाव दिए -

(1) एक केन्द्रीय कारागृह की स्थापना की जाए जिसमें उन्हें अपराधियों को रखा जाए जिनकी सजा की अवधि एक वर्ष से अधिक हो तथा इस बन्दीगृह में 1,000 कैदियों के रहने की व्यवस्था हो। 

(2) प्रत्येक प्रान्त के बन्दीगृह पर एक बन्दीगृह निरीक्षक की नियुक्ति की जाए जो बन्दीगृहों की व्यवस्था का निरीक्षण करे। इस सुझाव के आधार पर ही उत्तर प्रदेश में सन् 1844 में तथा पंजाब, मुम्बई व चेन्नई में बन्दीगृह निरीक्षकों की नियुक्तियाँ की गईं और आगरा व बरेली में केन्द्रीय कारागार स्थापित किए गए।

सन् 1864 में द्वितीय बन्दीगृह सुधार समिति की स्थापना की गई। इस समिति ने निम्नलिखित सुझाव दिए -

(1) बन्दीगृहों की दशाओं में सुधार किया जाए और उनमें भोजन, वस्त्र एवं बिस्तर की समुचित व्यवस्था की जाय ।

( 2 ) केन्द्रीय और जिला बन्दीगृहों में चिकित्सकों की नियुक्ति हो और कैदियों की समुचित चिकित्सा की व्यवस्था की जाए।

(3) अपराधियों का अपराध की गम्भीरता के आधार पर वर्गीकरण किया जाए। 

(4) केन्द्रीय बन्दीगृहों में 15% अपराधियों के निर्जनवास की सुविधा हो ।

इसके बाद सन् 1877 तृतीय, सन् 1889 में चतुर्थ एवं सन् 1892 में पंचम बन्दीगृह समितियों का गठन किया गया जिन्होंने जेल सुधार सम्बन्धी अनेक सुझाव दिए।

सन् 1894 में बन्दीगृह अधिनियम बना जिसके द्वारा अपराधियों को कोड़े लगाने पर रोक लगा दी गई। अपराधियों का अपराध के अनुसार वर्गीकरण किया जाने लगा तथा भारत के सभी बन्दीगृहों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया।

सन् 1920 में सर अलेक्जेण्डर कारड्यू की अध्यक्षता में भारतीय बन्दीगृह समिति की स्थापना की गई। इस समिति ने कैदियों के प्रति सुधारात्मक एवं मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाने पर बल दिया। इस समिति ने जेल को दण्ड स्थल के स्थान पर सुधार स्थल मानने की सिफारिश की। इसकी प्रमुख सिफारिशें निम्नांकित थीं -

( 1 ) बन्दीगृहों की देखभाल प्रशिक्षित अधिकारियों द्वारा की जाए। बन्दीगृह अधीक्षक वे हों जिन्हें बन्दीगृहों का अनुभव हो। इस कार्य के लिए पुलिस अधिकारी एवं सेना के डॉक्टरों को लगाया जा सकता है। 

(2) प्रत्येक बन्दीगृह में एक चिकित्सक की नियुक्ति की जाए जो जेल अधीक्षक के अधीन हो। 

(3) बन्दीगृहों के द्वारपाल पढ़े-लिखे हों। 

(4) बन्दीगृहों में अपराधियों का वर्गीकरण किया जाए। आदतन अपराधी एवं आकस्मिक अपराधी को अलग-अलग किया जाय। 

(5) अपराधियों से परिश्रम कराया जाय। 

(6) अपराधियों को कोड़े न लगाए जायें। 

(7) अपराधियों को पत्र लिखने एवं पत्र प्राप्त करने की छूट दी जाय। 

(8) अपराधियों को अपने मित्रों एवं रिश्तेदारों से मिलने की छूट दी जाय। 

(9) बन्दीगृहों में पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाय। 

(10) बन्दियों को पहनने के लिए दो जोड़ी वस्त्र दिए जायें। 

(11) उन्हें पौष्टिक व अच्छा भोजन दिया जाय। 

(12) अपराधियों को पैरोल पर छोड़ने की व्यवस्था की जाय। 

(13) जब अपराधियों को जेल से मुक्त किया जाए तो उन्हें कुछ मदद भी दी जाए जिससे कि वे अपने परिवार एवं समाज में सामंजस्य कर सकें। 

(14) बाल-अपराधियों के लिए बाल-बन्दीगृहों की व्यवस्था की जाए तथा उन्हें आजीवन कारावास वाले कैदियों से पृथक् रखा जाय। 

(15) भयंकर अपराधियों के अलावा अन्य अपराधियों को अण्डमान निकोबार नहीं भेजा जाय। 

(16) अपराधियों से निर्माण कार्य करवाया जाय।

सन् 1919 में 'भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत जेल विभाग प्रान्तीय सरकारों को सौंप दिया गया। इससे बन्दीगृह सुधार कार्यों को धक्का लगा और आज विभिन्न प्रान्तों में बन्दीगृहों की भिन्न-भिन्न स्थितियाँ हैं।

सन् 1946 में उत्तर प्रदेश जेल सुधार समिति नियुक्ति की गई। इस समिति ने कई सुझाव दिए; जैसे-बाल-अपराधियों का वर्गीकरण - बाल-अपराधी, वयस्क अपराधी, महिला अपराधी, आकस्मिक अपराधी, आदतन अपराधी, मनोवैज्ञानिक अपराधी तथा शारीरिक विकृत अपराधियों में किया जाए।

वर्तमान में उत्तर प्रदेश में वयस्क अपराधियों एवं बाल-अपराधियों के लिए अलग-अलग जेलें हैं। लखनऊ में आदर्श जेल है तथा अपराधी स्त्रियों के लिए बन्दी नारी निकेतन भी है। सन् 1962 में राजस्थान में और सन् 1972 में बिहार में कारागृह सुधार समितियों की स्थापना की गई। इन्होंने भी जेल-सुधार के अनेक सुझाव दिए।

सन् 1951 में संयुक्तराष्ट्र संघ के एक विशेषज्ञ वाल्टर रैकलेस ने जेल सुधार सम्बन्धी कई सुझाव दिए। भारत में सरकार ने सन् 1980 में जेल प्रशासन में सुधार, वर्तमान कानूनों का परीक्षण एवं कैदियों को सुविधाएँ एवं शिक्षा देने के लिए ए. एन. मुल्ला की अध्यक्षता में एक छः सदस्यीय समिति गठित की जिसने भी अनेक रचनात्मक सुझाव दिए।

दिल्ली में तिहाड़ जेल की अधीक्षक महिला आई. पी. एस. अधिकारी किरण बेदी ने तिहाड़ जेल के कायाकल्प का बीड़ा उठाया। उन्होंने जेल व्यवस्था में कई परिवर्तन किये, कैदियों को सुधारने हेतु कदम उठाये। उन्होंने कैदियों हेतु कई कार्यक्रम प्रारम्भ किये; जैसे- योग, विपश्ना, प्रार्थना, हवन, आदि कार्यों द्वारा बन्दियों को सद्मार्ग पर चलने हेतु प्रोत्साहित किया। 

बन्दियों के मनोरंजन हेतु खेलकूद व अन्य कई कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये। महिला बन्दियों हेतु अलग से सुधार कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये। इन सब कार्यों से तिहाड़ जेल में काफी परिवर्तन आया और किरण बेदी को मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।

वर्तमान में भारतीय जेलों में तीन लाख चार हजार आठ सौ तिरानवे कैदी हैं जिनमें से दो लाख पच्चीस हजार आठ सौ सत्रह विचाराधीन कैदी हैं। इसका मतलब यह हुआ कि 75 प्रतिशत कैदी बिना किसी सुनवाई के कैद हैं। हालत यह है कि जेलों में महिलाएँ बच्चों को जन्म तक दे रही हैं। 

बन्दीगृहों के प्रमुख दोष

निःसन्देह भारतीय बन्दीगृहों में अपराधियों के सुधार हेतु यथासम्भव प्रयत्न किए जाते रहे हैं, परन्तु फिर भी इनमें कई दोष पाए जाते हैं। उनमें से कुछ निम्न प्रकार से हैं -

(1) अधिकांश कारागृहों में सभी प्रकार के अपराधियों को एक साथ ही रखा जाता है। जिससे प्रथम अपराधी भयंकर अपराधी की संगति में रहकर अधिक अपराधी प्रवृत्तियों को साथ लेकर जेल से बाहर आता है। अतः अपराधी में सुधार नहीं होकर अनेक नवीन बुराइयाँ आ जाती हैं।

(2) सिविल तथा मानसिक रूप से विकृत बन्दी आज भी सामान्य कारागारों में रखे जाते हैं। 

(3) यदि कोई व्यक्ति किसी कारण से एक बार जेल चला जाए तो उसके बारे में समाज का दृष्टिकोण ही बदल जाता है। वह समाज के साथ पुनः सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता और अपराधी प्रवृत्ति की ओर उन्मुख होता है।

(4) जेल का जीवन भी अत्यन्त दूषित होता है। यहाँ व्यक्ति पशुओं की भाँति एक स्थान पर बँधे होते हैं। उनके साथ अशोभनीय व्यवहार किया जाता है जिससे उनमें सुधार की बजाय विद्रोह की भावना अधिक पनप जाती है।

(5) अधिकांश जेल कार्यकर्त्ता अप्रशिक्षित होते हैं। वे बन्दियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते। वे बन्दियों से घूस लेकर उन्हें वर्जित वस्तुएँ, जैसे- शराब, चरस आदि उपलब्ध कराते हैं। 

वे बन्दियों से भद्दे तरीके से बात करते हैं। कारण यह है कि जेल कार्यकर्त्ता कम पढ़े-लिखे, अप्रशिक्षित होते हैं।  उन्हें कम वेतन दिया जाता है। अतः वे अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए घूस लेते हैं और जेल के वातावरण को दूषित करते हैं।

(6) वर्तमान में जेलों का संचालन परम्परात्मक आधार पर हो रहा है। जेलों में पढ़ने-लिखने की सुविधा का अभाव, वैचारिक आदान-प्रदान का अभाव, पुस्तकालय एवं स्वस्थ मनोरंजन का अभाव आदि दशाएँ बन्दीगृहों में विभिन्न दोषों के रूप में विद्यमान हैं।

बन्दीगृहों में सुधार करने हेतु सुझाव

बन्दीगृह आज अनेक समस्याओं के शिकार हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए कुछ सुझाव दिए जा सकते हैं, वे निम्नलिखित प्रकार से हैं-

1. बन्दीगृहों में राष्ट्रीय विकास योजनाओं को लागू करना - बन्दीगृहों को पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत विकास योजनाओं से जोड़ा जाए।

2. नए बन्दीगृहों की स्थापना - जब से अपराधों की संख्या बढ़ी है तभी से अपराधी भी बढ़े हैं और उन्हें पुराने व संकुचित बन्दीगृहों में एक साथ पशुओं की भाँति रखा जाता है। आवश्यकता नवीन बन्दीगृहों के निर्माण की है ताकि अपराधियों को स्वच्छ स्थान व वातावरण मिले और वे सुधार की ओर अग्रसर हो सकें।

3. भिन्न-भिन्न तरह के कैदियों को रखने हेतु भिन्न-भिन्न व्यवस्थाएँ की जाएँ ताकि कम अवधि वाले साधारण अपराधी जघन्य अपराधियों के साथ रहकर गम्भीर अपराधों की ओर अग्रसर न हों।

4. बन्दियों को इस प्रकार का वातावरण प्रदान किया जाए जिससे कि उन्हें अच्छा आदमी बनने की प्रेरणा मिल सके।

5. मनोरंजन की सुविधा - बन्दीगृहों में रहने वाले कैदियों को रहने, खाने, पहनने, काम करने, शिक्षा, मनोरंजन की सुविधाएँ दी जाएँ जिससे कि स्वस्थ मस्तिष्क का विकास हो सके।

6. बन्दीगृहों में अधिकारियों की नियुक्ति अपराधियों की संख्या के आधार पर की जाए ताकि हर अपराधी की ठीक से जाँच होती रहे।

7. वेतन में सुधार - जेल अधिकारियों को उचित वेतन दिया जाये ताकि वे घूस न लें और अपराधियों को सुधारने में पूर्ण रूप से अपना योगदान दें।

8. योग्यतम कर्मचारियों की नियुक्ति की जाय जो व्यावसायिक दृष्टि से प्रशिक्षित हों। 

9. परिवीक्षा को व्यावहारिकता के सही अर्थ में प्रयोग करना - हर अपराधी को कारागार में भेजकर परिवीक्षा पर छोड़ना चाहिए, तभी उसे सुधरने का मौका मिल सकेगा।

10. आदर्श बन्दीगृहों की स्थापना करना आवश्यक - आदर्श बन्दीगृहों की स्थापना पर्याप्त मात्रा में करनी चाहिए। ऐसा होने पर अपराधियों के चरित्र का उत्तम तरीके से विकास होगा तथा वे अपनी इच्छा के अनुसार व्यवसाय को चुन सकेंगे।

11. बन्दीगृह में नैतिक तथा सांस्कृतिक शिक्षा - बन्दीगृह में सुधार हेतु आधारभूत सिद्धान्त यह है कि इनमें कैदियों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए। शैक्षणिक कार्यक्रम के अन्तर्गत सांस्कृतिक तथा नैतिक शिक्षा के अतिरिक्त, स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा अध्ययन तथा व्यावसायिक शिक्षा भी सम्मिलित है। 

प्रत्येक बन्दी को शैक्षिक कार्यक्रम द्वारा लाभान्वित किया जाये, ताकि उसके पुनः समाजीकरण में सहायता मिल सके। इसके अलावा कैदियों की दिनचर्या में धार्मिक क्रियाओं तथा प्रार्थना आदि का भी प्रमुख स्थान होना चाहिए, जिससे कि उनकी आत्मा पवित्र हो।

12. अधिकारियों में व्यवहार परिवर्तन - बन्दीगृहों में अधिकारीगण कैदियों के साथ अक्सर बुरा व्यवहार करते हैं, उन्हें यातानाएँ देते हैं। अतः इस प्रवृत्ति में सुधार किया जाना चाहिए। 13. अमानुषिक प्रवृत्ति की समाप्ति-सुधारवादी सिद्धान्तों के अनुसार, कारागृहों में अमानुषिक प्रवृत्ति को पूर्णतया समाप्त कर देना चाहिए।

14. कैदियों के साथ वैयक्तिक सम्पर्क - सहानुभूति एवं स्नेहपूर्ण व्यवहार के द्वारा व्यक्ति को सुधारा जा सकता है। यह व्यक्तिगत सम्पर्क के द्वारा ही सम्भव हो सकता है।

15. पुरस्कार तथा दण्ड की व्यवस्था - जब कोई व्यक्ति अच्छा कार्य करता है तो उसके लिए पुरस्कार दिया जाना चाहिए, जिससे उसे प्रोत्साहन मिलेगा। खराब व्यवहार करने पर दण्ड की व्यवस्था भी होनी चाहिए।

जेल सुधार हेतु आवश्यक सुझाव देने के लिये न्यायाधीश श्री मुल्ला की अध्यक्षता में 25 जुलाई, 1980 में एक जेल सुधार समिति गठित की गई। इस समिति में इस बात पर जोर दिया गया कि जेल की व्यवस्था मानव गरिमा के अनुरूप होनी चाहिए। इस समिति ने अध्ययन के आधार पर पाया कि जेलों में अमानवीय व्यवहार होता है।

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