भाषा के मानकीकरण के आधार - bhasa ka manvikarn

मानक से तात्पर्य एक निश्चित माप या स्थिर किया हुआ सर्वमान्य मान से है। जिसके आधार पर किसी भी योग्यता, श्रेष्ठता एवं गुण आदि का अनुमान या कल्पना की जाये। मानक शब्द अंग्रेजी के स्टैण्डर्ड के प्रति शब्द के रूप में प्रयुक्त हुआ है। 

मानक भाषा उस भाषा को कहा जाता है जो कि व्याकरण की दृष्टि तथा शिक्षाविदों की दृष्टि से शुद्ध और परिष्कृत हो। मानक भाषा में उच्चारण, लेखन में प्रयुक्त अक्षर, वर्तनी, शब्द, रूप तथा वाक्य रचना आदि की दृष्टि से एकरूपता होती है।

मानक भाषा को परिनिष्ठित भाषा या स्टैण्डर्ड लैंग्वेज भी कहा जाता है। वस्तुतः किसी भाषा का मानक रूप ही प्रतिष्ठित माना जाता है तथा बोली और अमानक रूपों की तुलना में इसका प्रयोग क्षेत्र व्यापक होता है। यह सर्व स्वीकृत न सही, किन्तु बहु - स्वीकृत तो होता ही है।

भाषा के मानकीकरण के आधार को स्पष्ट कीजिए।

मानक अथवा परिनिष्ठित भाषा में कोई एक मात्र तत्व नहीं रहता, जिसके आधार पर किसी भाषा का मानकीकरण होता है। विभिन्न विकल्पों में से एक का चयन कर के ही किसी भाषा को मानक स्वरूप दिया जाता है। भाषा के मानकीकरण के आधार निम्नांकित हैं-

1. अधिकांश द्वारा मान्य विकल्प को मान्यता - किसी भी भाषा को मानक भाषा के लिए स्वीकृत किया जाता है जब अधिकांश भाग में अथवा अधिकांश लोगों के द्वारा उसे इस रूप में मान्यता मिल जाये। शेष अल्पांश भागों में मान्य विकल्प छोड़ दिया जाता है।

उदाहरणार्थ - हिन्दी प्रदेश के अधिकांश भागों में 'चिड़िया' को पक्षी के अर्थ में प्रयोग किया जाता है परन्तु हरियाणा में इसका अर्थ है- गौरैया पक्षी । ऐसी स्थिति में इसका मानक अर्थ 'पक्षी' ही ग्रहण किया जाता है ।

2. शिक्षित समुदाय में प्रयोग के आधार पर - यदि शिक्षित समुदाय में कोई शब्द प्रचलित है तो अशिक्षितों की तुलना में शिक्षितों के आधार पर मानक भाषा का विशेष महत्व मान्य रहता है । 

जैसे— 'डालडा’ आम लोगों के मध्य प्रचलित होते हुए भी 'वनस्पति घी' शिक्षित लोग के बीच प्रचलित होने के कारण मानक भाषा का शब्द है।

3. सुविधाजनक प्रयोग - कभी-कभी उच्चारण, लेखन, टंकण, छपाई आदि की सुविधा को ध्यान में रखकर मानक भाषा को मान्यता दी जाती है।

4. परम्परा का पक्ष - परम्परा के रूप में जिस विकल्प को स्वीकृति रहती है उसे मानक भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है।

5. संस्था, प्रतिष्ठान व सरकार की मान्यता - यदि किसी प्रसिद्ध संस्था, प्रतिष्ठित व्यक्ति तथा सरकार द्वारा किसी प्रयोग को स्वीकृति मिल जाती, तो उसे भी मानक भाषा में मान लिया जाता है। 

ऐसी स्थिति में अन्य प्रचलित प्रयोगों को छोड़ दिया जाता है। जैसे-आम जन छ: का प्रयोग करते हैं परन्तु शिक्षित समुदाय में ‘छह' का प्रयोग होने के कारण इसे मानक रूप प्राप्त है।

6. परिनिष्ठित भाषा - इसे स्तरीय, मानक, आदर्श और टकसाली भाषा भी कहा जाता है। यह व्याकरण सम्मत भाषा होती है। डॉ. कपिलदेव द्विवेदी के अनुसार, भाषा का व्याकरण इसी को आधार मानकर बनाया जाता है। 

यह भाषा राजकीय स्तर पर स्वीकृत होने से आदर्श भाषा के रूप में व्यवहृत होती है। डॉ. श्याम सुन्दर दास के अनुसार- कई विभाषाओं में व्यवहत होने वाली एक शिष्ट-परिगृहीत विभाषा ही भाषा, राष्ट्रीय भाषा अथवा टकसाली भाषा कहलाती है।

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