मैकियावेली अपने युग का शिशु था व्याख्या कीजिए

मैकियावेली-युग का शिशु उत्तरडनिंग ने मैकियावेली के सम्बन्ध में लिखा है, "यह प्रतिभा सम्पन्न फ्लोरेंस निवासी वास्तविक अर्थ में अपने काल का शिशु था।

यद्यपि प्रत्येक महान् विचारक अपने युग का शिशु होता है, क्योंकि उसका ध्यान अपने समय की समस्याओं पर जाता है, जिनके निदान के लिए वे उपाय ढूँढ़ते हैं। इस प्रकार प्लेटो और अरस्तू भी अपने युग के शिशु थे। 

मैकियावेली पर अपने समय की समस्याओं का अधिक प्रभाव पड़ा, इसीलिए डनिंग ने उसे विशेष रूप से अपने युग का शिशु कहा है। मैकियावेली ने इटालियन समाज का बारीकी से अध्ययन किया था। मैकियावेली इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि बौद्धिक और मानसिक दृष्टि से अधिक सम्पन्न होते हुए भी इटालियन समाज के पिछड़ेपन का कारण धार्मिक अन्धविश्वास है। 

इसीलिए उसने धार्मिक साम्राज्य का विरोध किया और बताया कि स्वतन्त्र इटालियन राष्ट्र बनने से ही इटली की स्थिरता व सुरक्षा सम्भव है। अपनी रचनाओं (दि प्रिंस और दि डिसकोर्सेज) में मैकियावेली ने समकालीन परिस्थितियों, समस्याओं आदि पर प्रकाश डाला है। 

सेबाइन ठीक कहता है कि, "उसके (मैकियावेली के) युग का कोई भी अन्य व्यक्ति यूरोप के राजनीतिक विकास की दिशा को इतनी स्पष्टता के साथ नहीं देख सका, जितनी स्पष्टता के साथ इसे मैकियावेली ने देखा "कोई भी अन्य इटली को उतने अच्छे रूप से नहीं जानता था, जितना कि मैकियावेली । ” था

अतः मैकियावेली के राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने वाली बातें जिनके कारण उसे अपने युग का शिशु कहा जाता है, इस प्रकार हैं

(1) इटली का राजनीतिक विघटन और उसके फलस्वरूप फैली हुई बुराइयाँ । ( 2 ) राजतन्त्र की पुनर्स्थापना । (3) पुनर्जागरण ।(4) मैकियावेली को अपने युग का शिशु सिद्ध करने वाली दूसरी बातें । 

(1) इटली का राजनीतिक विभाजन- 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक इटली पाँच राज्यों में बँटा हुआ था - (i) नेपल्स का राज्य, (ii) मिलान का राज्य, (iii) रोमन चर्च का क्षेत्र, (iv) वेनिस गणराज्य, और (v) फ्लोरेंस का गणराज्य। ये पाँचों राज्य भी आपस में टकराव की स्थिति में थे। 

यही नहीं, नैतिक दृष्टि से भी इटली का इतना पतन हो चुका था कि वहाँ के लोग किराये के सैनिकों के रूप में लड़ने जाते थे, जो अधिक धन के लालच में किसी भी तरफ बिक सकते थे । सच्चाई और ईमानदारी कहीं नहीं थी । चर्च और साम्राज्य दोनों का प्रभाव समाप्त हो चुका था। 

स्वयं पोप का चरित्र अपवित्रता की सीमा लाँघ रहा था । पोप पर ऐसी विदेशी ताकतों का प्रभाव था, जो इटली की अधःपतन की स्थिति का लाभ अपने स्वार्थों के लिए उठा रही थीं । अतः मैकियावेली चाहता था कि इटली को भी ऐसा सशक्त शासन मिले जो पाँचों को एकता के सूत्र में बाँधकर सुदृढ़ राजतन्त्र की स्थापना कर सके । 

इटली को फ्रांस और स्पेन से सुरक्षित रख सके, जो इटली को हड़पने के लिए तैयार बैठे हैं। इसी उद्देश्य को लेकर मैकियावेली ने अपने ग्रन्थों- 'दि प्रिन्स', 'दि डिसकोर्सेज', 'आर्ट ऑफ वार' की रचना की ।

(2) राजतन्त्र की पुनर्स्थापना - यूरोप में जो पुनर्जागरण हुआ, उसने मध्यकालीन यूरोप में अनेक परिवर्तन किये। मैकियावेली के समय तक 'परिषदीय आन्दोलन' समाप्त हो चुका था और शक्तिशाली शासकों ने सामन्तों और उनकी प्रतिनिधि सभाओं को कुचलकर राजतन्त्र स्थापित किये थे । 

आर्थिक परिवर्तनों ने भी निरंकुश शासन का मार्ग प्रशस्त किया था, क्योंकि यातायात के साधनों में विकास हुआ। द्रुतगामी साधनों के आविष्कार ने व्यापार में क्रान्ति ला दी। राष्ट्रीय राज्यों ने राष्ट्रीय साधनों का लाभ उठाते हुए व्यापार में हस्तक्षेप किया। 

इस प्रकार इन आर्थिक परिवर्तनों का परिणाम मध्यकाल के अन्त को ले आया और निरंकुश राजतन्त्र यूरोप के राज्यों में सामान्य शासन-पद्धति के रूप में अपनाया जाने लगा । यह युग राज्य और चर्च दोनों में वीर पुरुषों की निरंकुश सत्ता का युग था जिसने मैकियावेली के 'दि प्रिंस' को प्रभावित किया ।

'दि प्रिंस' के अन्तिम अध्याय में मैकियावेली ने यही चाहा है कि इटली का एकीकरण हो और वह विदेशी ताकतों की दासता से मुक्त हो । उनके अनुसार यह कार्य एक राष्ट्रीय राजा ही कर सकता है।

(3) पुनर्जागरण —मैकियावेली के समय में समस्त यूरोप बौद्धिक पुनर्जागरण के दौर से गुजर रहा था, जिसने मैकियावेली के विचारों को भी प्रभावित किया । इटली में यह पुनर्जागरण (अर्थात् ज्ञान अथवा विद्या का पुनरुत्थान ) 16वीं शताब्दी में अपनी चरम सीमा पर था,।

इसलिए कभी-कभी इसे इटालियन पुनरुत्थान भी कह दिया जाता था। इस पुनर्जागरण के आन्दोलन से मध्यकाल की पारलौकिकता समाप्त होने लगी। पुनर्जागरण ने चर्च और धर्म की जड़ों पर कड़े प्रहार ये और आन्दोलन ने मनुष्य के स्वतन्त्र बौद्धिक विकास को प्रोत्साहित किया। अब स्टों की इस उक्तिको स्वीकार किया जाने लगा कि 'मनुष्य ही प्रत्येक वस्तु का मापदण्ड है'। 

मैकियावेली ने चर्च और धर्म की जड़ों पर कड़े प्रहार किये, जिन्होंने तत्कालीन ' समाज को दूषित कर रखा था। मैकियावेली ने कहा कि, "हम इटैलियन रोम के चर्च और उसके पुजारियों के कारण ही अधार्मिक और बुरे हो गये हैं। 

चर्च के हम एक और बात के लिए ऋणी हैं और यही बात हमारे लिए विध्वंस का कारण है कि चर्च ने हमारे देश को विभाजित कर रखा है और वह अब भी ऐसा कर रहा है।" उल्लेखनीय है कि मैकियावेली ने धार्मिक पाखण्डों के विरुद्ध जिहाद छेड़ा था ।

मैकियावेली यद्यपि गणतन्त्र का समर्थक था, परन्तु इटली की विशेष परिस्थितियों के कारण निरंकुश राजतन्त्र की वकालत की। मैकियावेली का कहना था कि निरंकुश राजा ही इटली की शोचनीय अवस्था को सुधार सकता है। 

यद्यपि मैकियावेली ने अपने विचार अपने देश की दशा सुधारने के उद्देश्य से प्रकट किये हैं, उनकी विचारधारा परन्तु ने आज समस्त विश्व को प्रभावित किया है ।

(4) मैकियावेली को अपने युग का शिशु सिद्ध करने वाली दूसरी बातें - मैकियावेली की एक को उसके युग का शिशु सिद्ध करने वाली दूसरी बातें इस प्रकार हैं- इस युग विशेषता व्यावहारिकता पर बल देना था और मैकियावेली ने भी व्यावहारिक राजनीति पर बल दिया है। 

उनके अनुसार राजा की नैतिकता व्यक्तिकी नैतिकता से बिल्कुल भिन्न है। मैकियावेली ने स्पष्ट कहा है कि यदि साध्य अच्छा है, तो साधन कैसे भी हो सकते हैं। इससे यह भी स्पष्ट है कि वह राजनीति और नीतिशास्त्र को एक-दूसरे से पृथक् करता है। 

यह उस समय के ज्ञान के पुनरोदय आन्दोलन का प्रतीक है। मैकियावेली अपने समय के विचारकों की तरह व्यक्तिवाद में भी विश्वास करता है, क्योंकि वह मानता है कि व्यक्ति अपने भाग्य का स्वयं निर्माण होता है ।

उपर्युक्त अध्ययन के बाद हम कह सकते हैं कि डनिंग का यह कहना सही है कि, “प्रतिभावान फ्लोरेंसवादी (मैकियावेली) पूरे-पूरे अर्थ में अपने युग का शिशु था ।” जोन्स ने भी कहा है कि, “मैकियावेली अपने युग का श्रेष्ठ निचोड़ है।” 

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