रूसो के सामाजिक समझौता सिद्धांत का वर्णन कीजिए

रूसो ने प्राकृतिक अवस्था के मनुष्य को 'सज्जन वनचारी' अथवा 'भला असम्भव जीव' कहा है। उसका कहना है कि प्राकृतिक अवस्था में जो सुख-शान्ति थी, वह सम्पत्ति रूपी सर्प के कारण समाप्त हो गई। ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई कि यदि मनुष्य अपने रहन-सहन के तरीकों में परिवर्तन नहीं करता है तो वह नष्ट हो जायेगा।

डनिंग ने असमानता से उत्पन्न होने वाली नई स्थिति को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “स्वतन्त्रता और समानता जो प्राकृतिक अवस्था की मुख्य विशेषताएँ हैं, अदृश्य हो जाती हैं। रूसो ने कहा है कि इस नई स्थिति में उत्पन्न नई समस्या के हल के लिए ही सामाजिक समझौता हुआ, नागरिक समाज या राज्य की स्थापना हुई।

रूसो का सामाजिक समझौता-हॉब्स और लॉक के समान रूसो भी समाज औ राष्ट्र की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सामाजिक समझौता सिद्धान्त का समर्थक है। उसका उद्देश्य लॉक की तरह व्यक्तिवाद और प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन करना मात्र नहीं था। 

रूसो समाज के नैतिक पतन के प्रति अधिक चिन्तित था और चाहता था कि इस बुराई से मनुष्य जीवन पुनः नैतिक बने, इसी दृष्टिकोण से यह विवेचनाकरता है और इसी आधार पर मानव स्वभाव और प्राकृतिक अवस्था का वर्णन करता है। 

रूसो के अनुसार मानव स्वभाव-मानव स्वभाव के सम्बन्ध में उसका विचार हॉब्स तथा लॉक दोनों से अलग है। रूसो की इस विचारधारा का अध्ययन उन दो निबन्धों के आधार पर किया जा सकता है, जो उसने 'डिजान की अकादमी' में लिखे थे । इन निबन्धों में मानव स्वभाव का वर्णन करते हुए वह उसे स्वाभाविक रूप से अच्छा घोषित करता है। 

वह बताता है कि मनुष्य में स्वार्थ साधन के अतिरिक्त परोपकार, दया की भावना भी होती है। स्वतन्त्रता और आत्म-निर्भरता उसके जीवन के विशेष गुण होते हैं। उसमें न तेरे मेरे की भावना होती है और न ही भविष्य के प्रति चिन्ता । 

वह घृणा, द्वेष, ईर्ष्या और अहंकार आदि दुर्भावनाओं से मुक्त होता है तथा निर्भय, शांति, सन्तुष्ट और सुखी रहने के गुणों से सम्पन्न होता है। नैतिक, अनैतिक, पाप और पुण्य की भावनाओं का उसके लिये कोई महत्त्व नहीं है। रूसो मानव स्वभाव को निर्दोष और निष्पाप मानता है। 

इस दृष्टि से उसने अपने आपको हॉब्स और लॉक के विचारों से अलग कर लिया है । वह न मानव स्वभाव को हॉब्स की तरह क्रूर और हिंसक मानता है और न लॉक की तरह नैतिक और परोपकारी मानता है। 

सेबाइन के शब्दों में, "उसने दोनों विचारों को गलत मानते हुए आदिम मनुष्य को लगभग पशुतुल्य, निष्पाप, निर्दोष और स्वाभाविक रूप से अच्छा माना है। मानव प्राकृतिक अवस्था में सहज भावना से काम करने वाले विवेकहीन, नैतिकता के विचारों से रहित और सम्पत्ति शून्य था।

रूसो की प्राकृतिक अवस्था

अपनी इस मनुष्य स्वभाव की इस भिन्न अवस्था के आधार पर रूसो की प्राकृतिक अवस्था हॉब्स और लॉक की प्राकृतिक अवस्था से भिन्न है। अपनी प्राकृतिक अवस्था का चित्रण करते हुए रूसो कहता है कि इसमें मनुष्य का जीवन सरल, शांत, सुखमय और सन्तुष्ट था । 

मनुष्य प्राकृतिक जीवन स्वच्छंदतापूर्वक व्यतीत करता था। उसे किसी प्रकार का न भय था, न चिन्ता । इस तरह उसका जीवन आदर्श था वह एक 'आदर्श बर्बर'की तरह मस्ती का जीवन व्यतीत करता था। यह पूर्ण स्वतन्त्रता की ही नहीं वरन् पूर्ण समानता की भी दशा थी। 

मनुष्य में तर्क और विवेक नहीं था और पाप-पुण्य, ऊँच-नीच, अच्छाई - बुराई और तेरे मेरे की भावना का अभाव था । व्यक्ति स्वयं अपने स्वामी थे और उनका जीवन पूर्ण आत्मनिर्भर था । वह वर्तमान से सन्तुष्ट था और उसे भविष्य की चिन्ता नहीं थी। वह शिकार खेलकर अथवा कन्दमूल खाकर अपना जीवन व्यतीत करता था । 

प्रत्येक व्यक्ति प्राकृतिक नियमों के अनुसार अपने हितों की रक्षा करता था और दूसरे व्यक्ति को हानि नहीं पहुँचाता था। लेकिन इस स्वर्णिम युग की स्थिति अधिक दिनों तक नहीं चल सकी। सभ्यता का विकास, निजी स्वामित्व का उदय तथा श्रम विभाजन की शुरुआत आदि ऐसे कारण सामने आये जिनके फलस्वरूप नागरिक समाज की स्थापना आवश्यक हो गई। -

रूसो के अनुसार सामाजिक समझौते का जन्म – रूसो द्वारा चित्रित यह आदर्श प्राकृतिक अवस्था अधिक समय तक जीवित नहीं रह सकी। यह धीरे-धीरे छिन्न-भिन्न होने लगी। उसके विनाश के लिये उत्तरदायी तत्व था— व्यक्तिगत सम्पत्ति का उदय । 

जनसंख्या की वृद्धि और विवेक के विकास ने व्यक्तिगत सम्पत्ति को जन्म दिया जिसने व्यक्ति को स्वार्थी बना दिया तथा उसने जीवन की सफलता और प्रसन्नता को नष्ट कर दिया। दूसरे शब्दों में, “सम्पत्ति के साँप ने स्वर्णिम युग को डस लिया और उसके विष से सम्पूर्ण वातावरण विषैला और दूषित हो उठा । ”

रूसो के अनुसार, जब प्राकृतिक अवस्था में शांति और कलह उत्पन्न हुआ तो इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए लोगों ने समझौते द्वारा नागरिक समाज की स्थापना की और यह समझौता रूसो के अनुसार भिन्न प्रकार का था, 

"इसमें प्रत्येक अपने व्यक्तित्व तथा अपनी पूर्ण शक्ति को सामान्य प्रयोग के लिये सामान्य इच्छा के सर्वोच्च निर्देशन के अधीन सौंप देता है तथा एक समूह के रूप में इसमें से प्रत्येक व्यक्ति समूह के अविभाज्य अंग के रूप में अपने व्यक्तित्व तथा अपनी पूर्ण शक्ति को प्राप्त कर लेता है।”

यह समझौता लोगों द्वारा व्यक्तिगत रूप तथा सामूहिक रूप में किया गया । उदाहरण के लिये, क, ख, ग, घ आदि ने अपने प्राकृतिक अधिकारों को क, ख, ग, घ को सामूहिक रूप में सौंप दिये। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने वैयक्तिक रूप में जिस अधिकार को सौंपता है, उसी अधिकार को समूह का अभिन्न अंग होने के नाते प्राप्त भी करता है ।

इस प्रकार पारस्परिक संयोग से उत्पन्न समूह का नाम ही राज्य या राजनीतिक समाज है।

सामाजिक समझौते की विशेषताएँ

रूसो द्वारा प्रतिपादित संविदा को और अधिक स्पष्ट रूप में समझने के लिए आवश्यक है कि समझौते के परिणामस्वरूप निर्मित स्थिति की कल्पना का अध्ययन किया जाये। सामाजिक समझौते की अग्रलिखित विशेषताएँ हैं।

1. समानता की स्थापना - आदिम अवस्था में मनुष्य सरल तथा सुखी थे, किन्तु व्यक्तिगत सम्पत्ति एवं अधिकारों के कारण उनमें असमानता उत्पन्न होती है। समझौते के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति अपने समस्त अधिकार समुदाय को सौंपकर अपना अस्तित्व शून्य बना लेता है। इस प्रकार समुदाय के सदस्यों में पुनः समानता आ जाती है।

2. समझौते द्वारा समुदाय का कोई भी सदस्य कुछ खोता नहीं है, अपितु उसे पूर्ण सुरक्षा प्राप्त हो जाती है, क्योंकि जो अपने को पूरे समुदाय के हाथ सौंपता है वास्तव में अपने को किसी के हाथ नहीं सौंपता है । 

यद्यपि देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि व्यक्तिअपने सारे अधिकार समुदाय को सौंपकर अपनी स्थिति कमजोर कर लेता है पर वास्तव में ऐसा नहीं होता, बल्कि समझौते द्वारा वह अपनी सुरक्षा हेतु समुदाय की संगठित शक्ति प्राप्त कर लेता है। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति एक हाथ से जो देता है, दूसरे हाथ से उसे अच्छे रूप में प्राप्त कर लेता है।

3. शासक एवं शासित के भेद का अभाव - रूसो के समझौते द्वारा लोगों के बीच हॉब्स के संविदा जैसी कोई सर्वमान्य सम्प्रभु का जन्म नहीं होता है, जो समुदाय के सदस्यों तथा जनता के बीच अपने निर्णय को लाद सके। इस तरह इस संविदा के माध्यम में शासक एवं शासित के भेद की तरह उसमें एकीकरण होता है। 

प्रत्येक व्यक्तिशासित के साथ शासक भी होता है, क्योंकि वह सामान्य इच्छा के आदेशों का पालन करता हुआ अपनी ही इच्छा का पालन करता है ।

4. समझौते के द्वारा व्यक्ति एवं समुदाय का एकीकरण होकर नैतिक एवं सामूहिक व्यक्तियों का निर्माण होता है, जिसमें पूर्ण एकत्व होता है तथा उसकी अलग आत्मा और इच्छा निर्मित हो जाती है।

5. समझौते द्वारा व्यक्ति नागरिक का रूप धारण करता है तथा उसकी प्राकृतिक स्वतन्त्रता नागरिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता में बदल जाती है। 

रूसो के सामाजिक समझौते की आलोचना

1. तार्किक दृष्टि से सामाजिक समझौते असंगत हैं - अपने समझौते द्वारा रूसो ने पलभर में जिस आसानी से मानव प्रकृति को बदल दिया है अव्यावहारिक प्रतीत होता है। 

एक तरफ रूसो कहता है कि अन्तरिम प्राकृतिक अवस्था में मनुष्यों में बहुत बुराइयाँ में तथा स्वार्थ, लालच, मिथ्या दम्भ, सम्पत्ति की भावना इत्यादि आ गयीं; पर दूसरी ओर वह यह भी कहता है कि समझौता होते ही व्यक्ति की दुष्प्रवृत्तियों में परिवर्तन आ गया तथा वह नैतिक, कर्त्तव्यपरायण तथा न्यायप्रिय हो गया । वास्तव में यह एक हास्यास्पद बात है तथा ऐतिहासिक दृष्टि से गलत है।

2. मानव प्रकृति का एकाकी चित्रण - रूसो ने मानव को स्वभावतः श्रेष्ठ प्राणी माना है, किन्तु यह मानव प्रकृति का एकाकी चित्रण है। मानव न तो हॉब्स और मैकियावेली की भाँति दुष्ट ही है और न ही रूसो द्वारा कल्पित श्रेष्ठ प्राणी ही है। वास्तव में मानव प्रकृति में इन दोनों विशेषताओं का अंश मिलता है।

3. रूसो ने राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया है - राज्य का निर्माण एकाकी नहीं होता, बल्कि वह समाज के धीरे-धीरे विकास का परिणाम जो राजनैतिक चेतना के फलस्वरूप उत्पन्न होता है। वास्तव में राज्य एवं समाज के मध्य अन्तर है, समाज के विकास के साथ-साथ राज्य का स्वरूप विकसित हुआ है। समाज का विकास पहले हुआ है, तदन्तर राज्य का विकास हुआ है।

4. व्यक्ति की अधीनता-यद्यपि रूसो की मान्यता है कि समझौते के बाद व्यक्ति को उसके अधिकार और स्वतन्त्रता वापस मिल जाती है, पर वास्तव में उस पर सामान्य इच्छा का इतना अंकुश हो जाता है कि उसका स्वयं के जीवन तक पर कोई अधिकार नहीं रह जाता है।

5. रूसो का समझौता अवैधानिक है - सामान्यतः समझौता तभी वैधानिक माना जाता है, जबकि अधिक की गारण्टी देने वाला कोई दूसरा पक्ष हो तथा बाध्यता से समझौते की शर्तों का पालन करा सके। 

रूसो के समझौते को इसलिए अवैधानिक माना गया है कि इसमें राज्य ( समुदाय) द्वारा व्यक्ति को सुरक्षा की गारण्टी नहीं मिलती है तथा उसमें भौतिक शक्ति के दबाव के स्थान पर नैतिक शक्ति का ही दबाव है। रूसो पूर्व में कह चुके हैं कि समझौते करने से पूर्व नैतिकताविहीन अवस्था थी, अतः यह समझौता अवैधानिक है।

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