किसी विस्तृत अपठित गद्यांश, विवरण, सविस्तार व्याख्या, वक्तव्य, पत्र व्यवहार या लेख के तथ्यों और निर्देशों के ऐसे संयोजन को सार लेखन कहते हैं, जिसमें अप्रासंगिक, असम्बद्ध, पुनरावृत्त, अनावश्यक बातों का त्याग और सभी अनिवार्य, उपयोगी तथा मूल तथ्यों का प्रवाहपूर्ण, संक्षिप्त एवं सारगर्भित लेखन हो । सार लेखन में पूर्णता, संक्षिप्तता, स्पष्टता, सरलता, शुद्धता एवं क्रमबद्धता होनी चाहिए।
सार लेखन में उदाहरण, दृष्टांत, उद्धरण और तुलनात्मक विचारों का समावेश नहीं होना चाहिए। मुहावरेदार एवं अलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं होना चाहिए। मूल पाठ से असम्बद्ध और अनावश्यक बातों का छाँटकर निकाल देना चाहिए। सारलेखन के बाद कभी-कभी अपेक्षा की जाती है कि उसका उचित शीर्षक भी दिया जाये।